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विनय कुमार's Blog (201)

देवी दर्शन--

सब लोग तैयार हो रहे थे, पूरे घर में गहमागहमी मची हुई थी| बच्चों में भी बहुत उत्साह था, आज छुट्टी तो थी ही, साथ में दुर्गा पंडाल देखना और मेले का आनंद भी लेना था| रजनी ने भी अपनी चुनरी वाली साड़ी पहनी और शीशे के सामने खड़ी होकर अपने को निहारने लगी|

"माँ जल्दी चलो, पूजा को देर हो जाएगी", बेटे ने आवाज़ लगायी जो बाहर कार निकाल रहा था|

"आ रही हूँ, अरे अपने पापा को बोलो जल्दी निकलने के लिए", साड़ी सँभालते हुए रजनी कमरे से बाहर निकली|

"अच्छा किनारे वाला कमरा भी भिड़का देना, आने में तो देर…

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Added by विनय कुमार on October 10, 2016 at 3:23pm — 8 Comments

रावण दहन--

पूरे इलाके में हंगामा मचा हुआ था, अब तो पुलिस की गाड़ियां भी आ गयी थीं कि किसी अनहोनी को टाला जा सके| खैर, हुई तो बहुत अनहोनी बात ही थी इस दशहरा पर जिसे हजम कर पाना किसी के लिए सहज नहीं था|

हर साल की तरह इस बार भी रज्जन और उसका परिवार दशहरा के काफी दिन पहले से ही रावण का पुतला बनाने में जुट गया था, आखिर ये न सिर्फ उसका बल्कि उसके पुरखों का भी काम था| लेकिन इस बार वो हवा का रुख नहीं भांप पाया जो बदली हुई थी| और इसी वजह से उसने रामलीला समिति या गांव के सरपंच से पूछा भी नहीं| इधर गांव से…

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Added by विनय कुमार on October 8, 2016 at 3:05pm — 2 Comments

ममता--

फोन की घंटी लगातार बज रही थी, रश्मि दूसरे कमरे में बैठी काँप गयी| किसी तरह फोन बंद हुआ तब तक विवेक भी अंदर आ गया और दूसरे कमरे में आकर बोला "यहीं बैठी हो, फोन क्यों नहीं उठाया?

रश्मि कुछ बोल नहीं पायी, उसके चेहरे पर जैसे सन्नाटा छाया हुआ था| तभी विवेक के मोबाइल पर बेटी का फोन आया "पापा, मम्मी घर में नहीं है क्या, फोन नहीं उठाया उन्होंने"|

"नहीं बेटा, वो घर में ही है, लो बात कर लो", कहते हुए उसने फोन रश्मि को पकड़ा दिया|

"सब ठीक है बेटी, बस ऐसे ही झपकी आ गयी थी इसलिए फोन नहीं उठा…

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Added by विनय कुमार on October 6, 2016 at 6:24pm — No Comments

विसर्जन--

"गणपति बप्पा मोरिया" की आवाज़ अबीर गुलाल और कानफाड़ू संगीत के बरसात के बीच गूंज रही थी, सड़क को निकलने वाले जुलुस ने पूरी तरह से जाम कर दिया था। किसी तरह बचते बचाते वो निकल रही थी कि एक गेंदे का फूल आकर छाती पर लगा और नज़र अनायास उस ट्रक की ओर चली गयी। भक्तों की भीड़ में दिख ही गया लखना, बज रहे संगीत पर झूम रहा था, या नशे में, समझना मुश्किल था। घृणा से एक जलती निगाह उसने उसकी ओर फेंकी और जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगी। पता नहीं मेडिकल स्टोर भी खुला होगा या नहीं इसी चिंता में वो परेशान थी कि लखना भी मिल…

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Added by विनय कुमार on September 16, 2016 at 3:31pm — 4 Comments

बराबरी--

"मैं संजू से शादी कर रही हूँ और हम लोग चेन्नई शिफ्ट कर रहे हैं", घर में घुसते ही उसने माँ से कह दिया| बैग को टेबल पर रखकर उसने फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और पीने लगी, माँ उसे देखे जा रही थी|

"लेकिन चेन्नई शिफ्ट करने की क्या जरुरत है, मुझे तो कोई ऐतराज नहीं है तुम लोगों की शादी से", माँ ने पूछा|

"दर असल उसको एक बढ़िया जॉब मिल गयी है चेन्नई में और मैंने भी अपने ट्रांसफर की अर्जी लगा दी है", उसने सोफे पर बैठते हुए कहा|

"तो अब तुम उसके हिसाब से चलोगी, ख़त्म हो गयी सब बराबरी की…

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Added by विनय कुमार on September 6, 2016 at 7:33pm — 12 Comments

अपराधबोध--

"मैं जा रही हूँ घर छोड़कर, मुझे रोकना मत", फोन पर रितू को ये कहते सुनकर सलिल चौंक गया|

"क्या हुआ, मैंने तो सब कुछ भुला दिया है, तुम भी क्यूँ नहीं भूल जाती सब कुछ", उसने तुरंत पूछा|

"वही तो नहीं कर पा रही हूँ, मैं इंसान हूँ, तुम्हारी तरह देवता नहीं", बोलते बोलते वो सुबकने लगी|

"मैं आ रहा हूँ, एक बार मिलने के बाद बेशक चली जाना, मैं रोकूंगा नहीं", कहते हुए उसने फोन रख दिया और ऑफिस से निकल कर घर चल पड़ा| घर पहुँचा तो दरवाज़ा खुला हुआ ही था, वो अंदर कमरे में पहुँचा, रितू अपना…

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Added by विनय कुमार on August 17, 2016 at 1:30pm — 8 Comments

बेबसी--

"बता जल्दी, कहाँ छुपा रखा है कमांडर को तुम लोगों ने", नशे में धुत्त और गुस्से के कांपते हुए दरोगा ने कस के एक लाठी मारी| मरियल सा आधी हड्डी का रग्घू लाठी पड़ते ही बाप बाप चिल्लाते हुए जमीन पर लेट गया| पीठ पर जहाँ लाठी पड़ी थी, वहां जैसे आग लग गयी थी उसके, लेकिन अब इतनी हिम्मत भी नहीं बची थी कि वो उठ पाए|

"साला, नाटक करता है, बहुत मोटी चमड़ी है इन सभो की, ऐसे नहीं बताएगा" कहते हुए दरोगा ने एक बार फिर लाठी उठायी| रग्घू जमीन पर पड़े पड़े फटी आँखों से देख रहा था, उसने अपने हाथ ऊपर उठा दिए| तब तक…

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Added by विनय कुमार on August 12, 2016 at 9:43pm — 4 Comments

जानवर--

"बाबू साहब, इ तो हमार काम है, आप तो जानत हो", जोखू हैरान हाथ जोड़े खड़ा था| हमेशा की तरह उसने उस मरे हुए जानवर की खाल उतारी थी और उसे घर पर सुखा रहा था, कि गाँव के चौकीदार ने आकर उसको बताया "थाने से तुम्हरे नाम का कुछ आया है, जाके बाबू साहब से मिल लो, नहीं तो !", आगे के शब्द वो नहीं सुन पाया| उल्टे पैर भागा और बाबू साहब के दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया|

"उ सब तो ठीक है लेकिन थाने में तो किसी ने खबर कर दी है कि तुमने कोई गलत जानवर काट डाला है", बाबू साहब ने पान चबाते हुए कहा|

"चाहे जिसका कसम…

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Added by विनय कुमार on August 10, 2016 at 10:05pm — 20 Comments

नफरत का रिश्ता--

नफरत का रिश्ता--

पूरा गाँव पार कर गए पंडित लेकिन दुक्खू नहीं दिखा| जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते वो गाँव से बाहर निकल गए, बहुत जरुरी काम से जा रहे थे और ऐसे में दुक्खू न दिखे, यही मना रहे थे| पंडित को लगा कि लगता है गाँव के बाहर चला गया है आज, राहत की सांस ली उन्होंने| पंडित पूरे नियम कानून वाले थे, बिना नहाए धोए अन्न ग्रहण नहीं करते थे और सारी गणना करके ही घर से निकलते थे| कब किस दिशा में जाना है, कब नहीं, सब देख समझ ही किसी यात्रा की तैयारी करते थे| ख़ुदा न खास्ता अगर किसी ने छींक दिया या…

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Added by विनय कुमार on July 25, 2016 at 12:49am — 9 Comments

अमन की राह--

थक गए थे जलील चचा, कोई भी उनकी बात सुनने को तैयार नहीं था| सबको बस एक ही बात समझ आ रही थी कि बड़ी बड़ी बंदूकें उठाओ और हर उस शख्श को रास्ते से हटा दो जो उनकी बात नहीं माने| पता नहीं ये उन भड़काऊ तकरीरों का असर था या उनके द्वारा दिखाए गए प्रलोभन का असर| आज उनको बेहद अफ़सोस हो रहा था, अपने ऊपर और पत्नी के ऊपर भी जो उनको अकेला छोड़कर जन्नत सिधार गयी थी| काश उनको एक औलाद दे गयी होती तो कम से कम उसे तो सही रास्ते पर चला पाते|

आज शाम की मीटिंग में फिर से सबने उनके शांति और सौहार्द के प्रस्ताव को…

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Added by विनय कुमार on July 17, 2016 at 3:23pm — 8 Comments

बंटवारा--

जैसे ही वो भिखारी उनके दरवाज़े पर पहुंचा और आवाज़ लगायी "भगवान के नाम पर कुछ दे दो बाबा", पंडितजी ने डपट कर कहा "यहाँ क्यों आये माँगने, वहीँ से ले लिया करो"|

भिखारी ऐसी झिड़कियों का आदी था, कुछ देर सोच में पड़ा रहा फिर बोल "हम तो मांग के खाने वाले हैं, जहाँ मिल जाए, ले लेते हैं"|

"फिर भी, सोचते नहीं हो कि कहाँ माँगना है और कहाँ नहीं", कहते हुए पंडितजी की नज़र किनारे वाले घर की ओर चली गयी|

भिखारी ने भी गर्दन उस तरफ किया, किनारे वाला घर अहमद भाई का था जिनके यहाँ से उसने अभी कुछ खाने…

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Added by विनय कुमार on July 5, 2016 at 10:30pm — 8 Comments

प्रतिभा का सम्मान--

"सर, ये लिस्ट एक बार देख लीजिए| कमेटी ने तो पास कर दिया है, बस आपका अप्रूवल चाहिए", मुख्य अधिकारी ने तीन पन्ने की लिस्ट उनके सामने रख दी|

"हूँ, अच्छा मैंने जो नाम कहे थे, वो सब तो हैं ना इसमें", एक गहरी नज़र मुख्य अधिकारी के चेहरे पर डाली उन्होंने|

"हाँ सर, वो सब तो हैं ही, आप एक बार देख लीजिए", मुख्य अधिकारी ने हकलाते हुए कहा|

"ठीक है, लिस्ट छोड़ जाओ, मैं देख लूंगा", अभी भी उन्होंने लिस्ट की तरफ नज़र भी डालने की जहमत नहीं उठाई थी|

"ओ के सर" बोलकर मुख्य अधिकारी जाने के लिए…

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Added by विनय कुमार on July 3, 2016 at 4:53am — 4 Comments

अपने अपने सपने--

बनारसी गईया चरा के लौटे और उनको चरनी पर बाँध के पीठ सीधा करने के लिए झोलंगी खटिया पर लेट गए। इस बार पानी महीनों से बरस नहीं रहा तो घाँस भी कम हो गयी है सिवान में, गर्मी अलग बढ़ गयी है। गमछी से माथे का पसीना पोंछते हुए मेहरारू को आवाज़ दिए " अरे तनी एक लोटा पानी त पिलाओ रघुआ की महतारी, बहुत गरम है आज"। दरवाज़े पर नज़र दौड़ाये तो साइकिल नहीं दिखी, मतलब रघुआ कहीं निकला है।

" कहाँ गायब हौ तोहार नवाब, खेत बारी से कउनो मतलब त नाहीं हौ, कम से कम गईया के ही चरा दिहल करत", पानी लेते हुए मेहरारू से…

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Added by विनय कुमार on February 13, 2016 at 11:48pm — 6 Comments

एक अलग रिश्ता --

बेहद दुःखद ख़बर थी, रहमान नहीं रहा, फोन रखने के बाद भी वो बहुत देर तक सकते में रहा। अभी दो घंटे पहले ही तो लौटा था वो हॉस्पिटल से, ऐसी कोई बात लग तो नहीं रही थी, लेकिन अचानक एक अटैक आया और सब कुछ ख़त्म। मौत भी कितनी ख़ामोशी से दबे पाँव आती है, जिन्दगी को खबर ही नहीं होती और उसे शरीर से दूर कर देती है। तुरन्त कपड़े बदल कर कुछ रुपये, ए टी एम और बाइक की चाभी लेकर घर से निकल पड़ा। रास्ते भर पिछले कई साल उसके दिमाग में सड़क की तरह चलते रहे। चार साल पहले ही उसने ज्वाइन किया था इस ऑफिस में और धीरे धीरे…

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Added by विनय कुमार on January 26, 2016 at 2:13am — 8 Comments

मन का अँधेरा--

बस खड़ी थी और उसमें कुछ सवारियाँ बैठी भी हुई थीं, कण्डक्टर उसके पास ही खड़ा होकर लख़नऊ लख़नऊ की आवाज़ लगा रहा था। मैंने किनारे कार खड़ी की और नीचे उतर गया, दूसरी तरफ से मुकुल भी उतर गया था। उसका झोला पिछली सीट पर ही पड़ा था जिसे मैंने उठाने का अभिनय किया, मुझे पता था वो उठाने नहीं देगा। झोला उठाकर वो बस की तरफ चलने को हुआ तभी मैंने उसके कन्धे पर हाथ रखा और उसे धीरे से दबा दिया, मुकुल ने पलटकर देखा और उसकी आँखे भीग गयीं।

" कुछ दिन रुके होते तो अच्छा लगता", मैं अपनी आवाज़ को ही पहचान नहीं पा रहा…

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Added by विनय कुमार on January 17, 2016 at 2:51pm — 4 Comments

ज़ल्लाद--

आज के अखबार में छपी एक छोटी सी खबर ने उसे बेचैन कर रखा था| खबर थी कि ज़ल्लाद नहीं होने से कई खूंख्वार सज़ायाफ्ता फाँसी पर नहीं चढ़ाये जा रहे| उसे पिछली कई घटनाएँ याद आने लगीं, उसके शहर में घटे उस जघन्य बलात्कार के अपराध में मौत की सजा पाये अपराधी अभी भी कालकोठरी में पड़े थे, कुछ आतंकवादी भी जिन्हें बहुत पहले ही इस दुनियाँ से चले जाना चाहिए था, वो भी किसी अप्रत्याशित रिहाई की आस लगाये पड़े हुए थे|

अचानक उसे उस ज़ल्लाद का चैहरा भी याद आ गया जिसे उसने कभी अखबार में देखा था और उसके चेहरे को देखकर…

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Added by विनय कुमार on January 14, 2016 at 2:41pm — 9 Comments

पीड़ा ( लघुकथा )

" क्यों मारा उसको , अब तो कोई रिश्ता नहीं बचा था तुम्हारे बीच ?
" एक रिश्ता तो था ही , नफ़रत का | मेरी बहन को जिन्दा जलाने के बाद किसी और से शादी करने जा रहा था वो "|
" पर उसके लिए तो कोर्ट से मिली सजा उसने भुगत ली थी , फिर क्यों ?
" किसी और बहन का जलना .., वो वाक्य पूरा नहीं कर पाया !
.
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on July 21, 2015 at 4:30pm — 14 Comments

तहज़ीब ( लघुकथा )

गुस्से से उबल रहे थे चौहान जी , प्रदेश के कई भागों से दंगे की खबरे आ रहीं थी | उनको लग रहा था कि काश उनको मौका मिले तो वो उन सब को सबक सिखा दें | अचानक उनको याद आया और पूछा " रामलीला की सारी तैयारी हो गयी , रावण का पुतला बन गया कि नहीं ?

" हाँ , पुतला बन के आ गया है | वो पैसे लेने आया है , दे दीजिये "|

" ठीक है , भेज दो उसको अंदर "|

" कितना हुआ रहीम ?

" अरे जितना देना हो , दे दीजिये | इस काम के पैसे का भी मोल भाव करूँगा "|

रहीम की बात सुनकर उनको कुछ तो हुआ और यकबयक उनके…

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Added by विनय कुमार on July 20, 2015 at 7:21pm — 21 Comments

भीख ( लघुकथा )

" इतने पैसे नहीं हैं मेरे पास , सोच समझ कर माँगा और खर्च किया करो ", पति की आवाज़ उसके मन को मथ रही थी | काश उसने भी नौकरी की होती तो आज पार्टी के लिए पैसे मांगने की नौबत तो नहीं आती | यही सब सोचती किचन की ओर बढ़ी थी कि अचानक उसके कदम ठिठक गए | दरवाजे से उसकी नज़र पड़ गयी थी कामवाली पर जो नीचे रखे प्लेट्स में से निकाल कर पूरी वगैरह अपने पल्लू में बांध रही थी |

फिर उसने एक प्लेट में ढेर सारा खाने का सामान रखा और थोड़ी दूर से आवाज़ लगायी " बाई , ये प्लेट भी धुलने में रख देना "|

उसे बाई को…

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Added by विनय कुमार on July 16, 2015 at 10:38pm — 12 Comments

जरुरी नहीं ( कविता )

जरुरी नहीं कि हम दोषी हों

मिल जाती है सजा

अक्सर निरपराध को भी

हो जाती हैं दुर्घटनाएं

बिना हमारी गलती के भी

जरुरी नहीं कि लोग

हमसे खुश ही हों

बिना वज़ह भी हो जाती हैं

गलतफहमियां

और बिगड़ जाते हैं रिश्ते

जरुरी नहीं कि जो हम सोचें

वो सही ही हो

क्यूंकि हर चीज़ का

होता है एक दूसरा भी पहलू

जो नहीं देख पाते हम

जरुरी नहीं कि हम जन्म लें

एक ऐसे वातावरण में

जो हो जीने के लिए आदर्श

पर ये बहुत जरुरी है कि

बनायें…

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Added by विनय कुमार on July 16, 2015 at 4:03pm — 6 Comments

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