मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
हृदयाश्रुओं का अर्घ्य दे
हर भाव को सामर्थ्य दे
विह्वल हृदय में गूँजती
मृदुनाद सी सुरधीत है....
मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
सूर्यास्त नें चूमा उदय
दे हस्त…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on February 15, 2013 at 8:00pm — 35 Comments
मन निर्मल निर्झर, शीतल जलधर, लहर लहर बन, झूमे रे..
मन बनकर रसधर, पंख प्रखर धर, विस्तृत अम्बर, चूमे रे..
ये मन सतरंगी, रंग बिरंगी, तितली जैसे, इठलाये..
जब प्रियतम आकर, हृदय द्वार पर, दस्तक देता, मुस्काये..
मौलिक ,…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on February 3, 2013 at 11:30pm — 26 Comments
सप्त सिन्धु घट बह रहे, कर्ण पार स्वर सप्त.
व्योम वृहत निज व्याप्त है, सप्त वर्ण संतृप्त//१//
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तर्षण लब्धासक्ति का, करता उर संतप्त.
तर्कण कर तर्पण करें, वृथा फिरें अभिशप्त//२//
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मुद्रा, कीर्ति, स्वरुप भ्रम, क्षणिक करें मन तृप्त.
तप्त इष्टि परिशान्तिनी, शक्ति उर अनुज्ञप्त//३//
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डॉ.…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 12:00am — 31 Comments
रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर जो पार करा दे l
निश्छल प्रण से, शून्य स्मरण से
मूरत गढ़ना मृदु सिंचन से,
भाव महक हो चन्दन चन्दन
जो सोया चैतन्य जगा दे l
रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on January 6, 2013 at 11:00am — 59 Comments
ध्वजा को झुका दो कि क्रंदित है जन गण,
सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.
गुलशन उजड़ने से
सहमीं हैं कलियाँ,
पंखों को सिमटाये
दुबकी तितलियाँ,
कर्कश सा चिल्लाये भंवरा क्यों हर क्षण,…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 30, 2012 at 2:30pm — 24 Comments
"आज के अखबार में प्रतियोगी परीक्षा का परिणाम निकला है" जैसे ही हौस्टल में यह बात देवारती को पता चली, बेतहाशा दौड़ पड़ी लाईब्रेरी की ओर, अखबार उठा सारे रोलनंबर देखे, हर पंक्ति ऊपर से नीचे, दाएं से बाएँ, एक बार, दो बार, बार बार, पर उसका तो रोल नंबर ही नहीं था. उसके पैरों तले तो जैसे ज़मीन ही खिसक गयी. अपनी आखों पर यकीन नहीं हुआ, बुझे मन से भारी क़दमों से बाजार जा कर फिर से अखबार खरीदा, एक एक रोल नंबर पेन से काटा, कहीं उलट पलट जगह न छप गया हो. एक घंटा बीत गया, पर नहीं मिला उसका नंबर,…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 4, 2012 at 12:30pm — 15 Comments
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सीप में मोती.
पिय प्रेम हृदय.
जागृत ज्योति.
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दुख के शूल.
गुलदस्ता जीवन.
प्रेम के फूल.
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प्रेम शरण.
तिमिर में किरण.
गुरु चरण.
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अभिन्न मित्र.
सुरम्य लय ताल.
बंध पवित्र.
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है ज़रुरत.
अनकहा…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 2, 2012 at 8:27pm — 24 Comments
“हैलो क्षिप्रा, कैसी हो? मैं निशा बोल रही हूँ, मॉडर्न स्कूल की प्रिंसिपल! आज सभी स्कूलों के लिए आयोजित पोस्टर कम्पीटीशन में तुम जज हो न?”
ओहो! निशा! कैसी हो? कितने समय बाद याद किया? क्या तुम भी आ रही हो?क्षिप्रा नें पूछा.
“मेरे स्कूल के बच्चे प्रतिभागिता कर रहे हैं , बच्चों को मोटिवेट करने के लिए आना तो चाहती हूँ, पर मेरे स्कूल में भी एक समारोह है, अब देखो! अच्छा तुम कितने बजे तक पहुँचोगी?”निशा नें पूछा .
“मैं ग्यारह बजे तक पहुचूंगी, आ सको तो आना, मिलते हैं फिर.”…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 1, 2012 at 6:00pm — 21 Comments
“हैलो पूर्वा, शाम साढ़े सात बजे तक तैयार रहना, आज मिस्टर अग्रवाल की बिटिया का महिला संगीत है और रात को डिनर के लिए चलना है” अक्षय नें अपनी पत्नी से फोन पर कहा. पूर्वा नें हामी भरी और पार्टी के कपडे निकालने के लिए अल्मारी खोली. उफ़! कितनी भारी भारी साड़ियाँ, पर आज तो कुछ सौम्य सा पहनने का मन है, सोचते हुए पूर्वा नें पाकिस्तानी कढाई का एक बेहद खूबसूरत सूट निकला और तैयार होने लगी.
आँखों का हल्का सा मेकअप, आई लाईनर, काजल, बालों का ताजगी भरा स्टाईल, चन्दन का इत्र, छोटी सी बिंदी, हल्की सी…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on November 29, 2012 at 9:58am — 27 Comments
देखा है
क्रूर वक़्त को,
पैने पंजों से नोचते
कोमल फूलों की मासूमियत
और बिलखते बिलखते
फूलों का बनते जाना पत्थर,
देखा है
पत्थर को गुपचुप रोते
फिर कोमलता पाने को
फूल सा खिल जाने को
मुस्काने को, खिलखिलाने को,
देखा है
अटूट पत्थर का
फूल बन जाना
फिर कोमलता पाना
महकना, मुस्काना, इतराना,
देखा है
सब कुछ बदलते
आकाश से पाताल तक
फिर भी मैं वही हूँ…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on November 26, 2012 at 9:38am — 10 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on November 21, 2012 at 10:45am — 6 Comments
जब वो आते धूम मचाते
मन अंतर पर वो छा जाते
खुशियों के लाते उपहार,
क्या सखी साजन? नहीं त्यौहार.
रंग गेहुआ कड़कदार वो
बच्चों बूढों सबका यार वो
भटके, फिर भी वो गली गली
क्या सखी साजन? नहीं मूंगफली.
घुले हवा जब उसकी खुशबू
रहे नहीं तब मन पर काबू
दिल पर छाए उसका जलवा
क्या सखी साजन? नहीं सखी हलवा.
Added by Dr.Prachi Singh on November 6, 2012 at 6:58pm — 22 Comments
बावरिया हो भागती, सजनी ज्यों पिय ओर l
दीवानी मीरा बनी, थाम कन्हैया डोर ll
थाम कन्हैया डोर, प्रेम में सुध बुध हारी l
मोहबंध सब त्याग, पुकारूँ बस गिरधारी ll
प्राण भक्ति में लीन, ओढ़ चूनर केसरिया l
प्रभु संग मधुर मिलन, हुई…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 31, 2012 at 3:07pm — 16 Comments
शक्ति रूपिणी हे माँ अम्बा l वंदन स्वीकृत कर जगदम्बा ll
जय जय जय हे मातु भवानी l नत मस्तक हैं हम अज्ञानी ll
थामो माँ चेतन की डोरी l कर दो मन की चादर कोरी ll
हर क्षण हो इक नया सवेरा l तव प्रांगण नित रहे बसेरा ll
माँ ममता से हमको भर दो l हृदय प्रेम का सागर कर दो ll
अंगारे भी पग सहलाएँ l पुष्प बनें सुरभित मुस्काएँ ll
नयन समाय प्रेम की धारा l भटकन मन की पाय किनारा ll
वाणी बहे अमृत सी निर्मल l कर्म सहस्त्रान्शु…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 22, 2012 at 9:18pm — 12 Comments
सप्त पदी को पार करेंगे (०९-१०-२०१२)
हाथ थाम कर साजन सजनी सप्त पदी को पार करेंगे,
वचन बद्ध हो प्रिय चितवन का हर रस अंगीकार करेंगे...
चंचल चित्त माधुरी शोखी
और कभी गहरी ख़ामोशी,
प्रिय की हर इक भाव लहर से
अपना नव शृंगार करेंगे...
हाथ थाम कर साजन सजनी सप्त पदी को पार करेंगे,
वचन बद्ध हो प्रिय चितवन का हर रस अंगीकार करेंगे...
प्रिय के हिय में मुस्काएंगे
नयन प्रीति भर इतरायेंगे,
कर्म क्षेत्र में…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 9, 2012 at 10:00pm — 34 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on October 3, 2012 at 9:30am — 16 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on September 26, 2012 at 8:00pm — 20 Comments
मन क्षेत्र
आकाश सा विस्तृत...
आकांक्षाओं के बिंब ,
बन
भाव-बादल,
करते
कभी आहलादित
कभी विकृत
संपूर्ण अस्तित्व...
बदल बदल स्वरूप
बादल सम चंचल
अस्…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on September 21, 2012 at 4:40pm — 8 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on September 14, 2012 at 11:30am — 19 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on September 11, 2012 at 6:00pm — 21 Comments
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