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Sanjiv verma 'salil''s Blog (225)

भज गोविन्दम् (मूल संस्कृत, हिन्दी काव्यानुवाद, अर्थ व अंग्रेजी अनुवाद सहित) - संजीव 'सलिल'







भज गोविन्दम् 

(मूल संस्कृत, हिन्दी काव्यानुवाद, अर्थ व अंग्रेजी अनुवाद सहित)


                                                                             

भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते।

संप्राप्ते सन्निहिते काले, न हि न हि रक्षति डुकृञ् करणे ॥१॥…




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Added by sanjiv verma 'salil' on March 13, 2011 at 2:34pm — 2 Comments

सामयिक नव गीत: मचा कोहराम क्यों?... संजीव वर्मा 'सलिल

सामयिक नव गीत



मचा कोहराम क्यों?...



संजीव वर्मा 'सलिल'

*

(नक्सलवादियों द्वारा बंदी बनाये गये एक कलेक्टर को छुड़ाने के बदले शासन द्वारा ७ आतंकवादियों को छोड़ने और अन्य मांगें मंजूर करने की पृष्ठभूमि में प्रतिक्रिया)

अफसर पकड़ा गया

मचा कुहराम क्यों?...

*

आतंकी आतंक मचाते,

जन-गण प्राण बचा ना पाते.

नेता झूठे अश्रु बहाते.

समाचार अखबार बनाते.



आम आदमी सिसके

चैन हराम क्यों?...

*

मारे गये सिपाही अनगिन.

पड़े… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 9, 2011 at 7:46am — 2 Comments

आचार्य श्यामलाल उपाध्याय की कवितायेँ :

आचार्य श्यामलाल उपाध्याय की कवितायेँ :

मित्रों!

प्रस्तुत हैं कोलकाता निवासी श्रेष्ठ-ज्येष्ठ हिंदीसेवी आचार्य श्यामलाल उपाध्याय की कुछ रचनाएँ

१. कवि-मनीषी…

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Added by sanjiv verma 'salil' on March 9, 2011 at 7:32am — 2 Comments

द्वादश ज्योतिर्लिंग / बारह ज्योतिर्लिंग हिंदी अनुवाद: संजीव 'सलिल'

द्वादश ज्योतिर्लिंग / बारह ज्योतिर्लिंग



हिंदी अनुवाद: संजीव 'सलिल'

*

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम.

उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरं.१.



सोमनाथ सौराष्ट्र में, मलिकार्जुन श्रीशैल.

ममलेश्वर ओंकार में, महाकाल उज्जैन.१.



परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरं.

सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने.२.



भीमशंकर डाकिन्या, परलय वैद्येश.

नागेश्वर दारुकावन, सेतुबंध रामेश.२.



वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 7, 2011 at 5:39pm — 2 Comments

एक कविता: धरती _____ संजीव 'सलिल'

एक कविता

धरती

संजीव 'सलिल'

*

धरती काम करने

कहीं नहीं जाती

पर वह कभी भी

बेकाम नहीं होती.

बादल बरसता है

चुक जाता है.

सूरज सुलगता है

ढल जाता है.

समंदर गरजता है

बँध जाता है.

पवन चलता है

थम जाता है.

न बरसती है,

न सुलगती है,

न गरजती है,

न चलती है

लेकिन धरती

चुकती, ढलती,

बंधती या थमती नहीं.

धरती जन्म देती है

सभ्यता को,

धरती जन्म देती है

संस्कृति को.

तभी ज़िंदगी

बंदगी बन पाती है.

धरती… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 7, 2011 at 5:38pm — 2 Comments

मुक्तिका: बड़े नेता... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

बड़े नेता...



संजीव 'सलिल'

*
बड़े नेता.

सड़े नेता. .



मरघटों में

गड़े नेता..



स्वहित हेतु

अड़े नेता..



जड़, बिना जड़

जड़े नेता..…





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Added by sanjiv verma 'salil' on March 7, 2011 at 5:30pm — 3 Comments

दोहा सलिला: देख दुर्दशा देश की संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला: 

 

देख दुर्दशा देश की

 

संजीव 'सलिल'

*

देख दुर्दशा देश की, चले गये जो दूर.

उनसे केवल यह कहूँ, आँखें रहते सूर..



देश छोड़ वे भी गये, जिन्हें प्रगति की चाह.

वाह मिली उनको बहुत, फिर भी भरते आह..



वसुधा जिन्हें कुटुंब…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 23, 2011 at 12:28pm — 3 Comments

दोहा सलिला मुग्ध संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला मुग्ध  ***संजीव 'सलिल***

 

दोहा सलिला मुग्ध है, देख बसंती रूप.

शुक प्रणयी भिक्षुक हुआ, हुई सारिका भूप..

 

चंदन चंपा चमेली, अर्चित कंचन-देह.

शराच्चन्द्रिका चुलबुली, चपला करे विदेह..

 

नख-शिख, शिख-नख मक्खनी, महुआ सा पीताभ.

पाटलवत रत्नाभ तन, पौ फटता अरुणाभ..

 

सलिल-बिंदु से सुशोभित, कृष्ण…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 21, 2011 at 9:30am — 4 Comments

नये साल का गीत: कुछ ऐसा हो साल नया -- संजीव 'सलिल'

नये साल का गीत

कुछ ऐसा हो साल नया

संजीव 'सलिल'

*

कुछ ऐसा हो साल नया,

जैसा अब तक नहीं हुआ.

अमराई में मैना संग

झूमे-गाये फाग सुआ...

*

बम्बुलिया की छेड़े तान.

रात-रातभर जाग किसान.

कोई खेत न उजड़ा हो-

सूना मिले न कोई मचान.

प्यासा खुसरो रहे नहीं

गैल-गैल में मिले कुआ...

*

पनघट पर पैंजनी बजे,

बीर दिखे, भौजाई लजे.

चौपालों पर झाँझ बजा-

दास कबीरा राम भजे.…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 31, 2010 at 6:25pm — 1 Comment

नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'

नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'

नव वर्ष पर नवगीत





संजीव 'सलिल'



*

महाकाल के महाग्रंथ का



नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....



*

वह काटोगे,



जो बोया है.



वह पाओगे,



जो खोया है.



सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर



कर्म-मर्म सब आज तुल… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2010 at 10:10am — 3 Comments

बिदाई गीत: अलविदा दो हजार दस... संजीव 'सलिल'

बिदाई गीत:

अलविदा दो हजार दस...

संजीव 'सलिल'

*

अलविदा दो हजार दस

स्थितियों पर

कभी चला बस

कभी हुए बेबस.

अलविदा दो हजार दस...

*

तंत्र ने लोक को कुचल

लोभ को आराधा.

गण पर गन का

आतंक रहा अबाधा.

सियासत ने सिर्फ

स्वार्थ को साधा.

होकर भी आउट, न हुआ

भ्रष्टाचार पगबाधा.

बहुत कस लिया

अब और न कस.

अलविदा दो हजार दस...

*

लगता ही नहीं, यही है

वीर…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2010 at 9:44am — 2 Comments

विशेष रचना : षडऋतु-दर्शन --- * संजीव 'सलिल'

विशेष रचना :

                                                                                   

षडऋतु-दर्शन                 

*

संजीव 'सलिल'

*… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 27, 2010 at 11:54pm — 4 Comments

लघुकथा: एकलव्य -- संजीव वर्मा 'सलिल'

लघुकथा



एकलव्य



संजीव वर्मा 'सलिल'



*

- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'



- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'



- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'



-हाँ बेटा.'



- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'

*****



रचनाकार परिचय:-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई.,… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 26, 2010 at 12:06pm — 2 Comments

चौपाई सलिला: १. क्रिसमस है आनंद मनायें --संजीव 'सलिल'

चौपाई सलिला: १.



क्रिसमस है आनंद मनायें



संजीव 'सलिल'

*

खुशियों का त्यौहार है, खुशी मनायें आप.

आत्म दीप प्रज्वलित कर, सकें



क्रिसमस है आनंद मनायें,

हिल-मिल केक स्नेह से खायें.

लेकिन उनको नहीं भुलाएँ.

जो भूखे-प्यासे रह जायें.



कुछ उनको भी दे सुख पायें.

मानवता की जय-जय गायें.

मन मंदिर में दीप जलायें.

अंधकार को दूर भगायें.



जो प्राचीन उसे अपनायें.

कुछ नवीन भी गले लगायें.

उगे… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 25, 2010 at 11:00am — 2 Comments

जनक छंदी सलिला: २ संजीव 'सलिल

जनक छंदी सलिला: २                                                                         



संजीव 'सलिल'

*

शुभ क्रिसमस शुभ साल हो,

   मानव इंसां बन सके.

      सकल धरा खुश हाल हो..

*

दसों दिशा में हर्ष हो,

   प्रभु से इतनी प्रार्थना-

       सबका नव उत्कर्ष हो..

*

द्वार ह्रदय के खोल दें,

   बोल क्षमा के बोल दें.

      मधुर प्रेम-रस घोल दें..

*

तन से पहले मन मिले,

   भुला सभी शिकवे-गिले.

      जीवन में… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 24, 2010 at 9:30pm — 2 Comments

नवगीत: मुहब्बत संजीव 'सलिल

नवगीत:



मुहब्बत



संजीव 'सलिल'

*

दिखाती जमीं पे

है जीते जी

खुदा की है ये

दस्तकारी मुहब्बत...

*

मुहब्बत जो करते,

किसी से न डरते.

भुला सारी दुनिया

दिलवर पे मरते..



न तजते हैं सपने,

बदलते न नपने.

आहें भरें गर-

लगे दिल भी कंपने.

जमाने को दी है

खुदाने ये नेमत...

*

दिलों को मिलाओ,

गुलों को खिलाओ.

सपने न टूटें,

जुगत कुछ भिड़ाओ.



दिलों से मिलें दिल.

कली-गुल रहें खिल.

मिले आँख तो… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 24, 2010 at 8:16am — 3 Comments

जनक छंदी सलिला : १. संजीव 'सलिल'

जनक छंदी सलिला : १.

संजीव 'सलिल'

*

आत्म दीप जलता रहे,

तमस सभी हरता रहे.

स्वप्न मधुर पलता रहे..

*

उगते सूरज को नमन,

चतुर सदा करते रहे.

दुनिया का यह ही चलन..

* हित-साधन में हैं मगन,

राष्ट्र-हितों को बेचकर.

अद्भुत नेता की लगन..

*

सांसद लेते घूस हैं,

लोकतन्त्र के खेत की.

फसल खा रहे मूस हैं..

*

मतदाता सूची बदल,

अपराधी है कलेक्टर.

छोडो मत दण्डित…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 23, 2010 at 11:30pm — 4 Comments

मुक्तिका: कौन चला वनवास रे जोगी? -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



कौन चला वनवास रे जोगी?



संजीव 'सलिल'

**



कौन चला वनवास रे जोगी?

अपना ही विश्वास रे जोगी.

*

बूँद-बूँद जल बचा नहीं तो

मिट न सकेगी प्यास रे जोगी.

*

भू -मंगल तज, मंगल-भू की

खोज हुई उपहास रे जोगी.

*

फिक्र करे हैं सदियों की, क्या

पल का है आभास रे जोगी?

*

गीता वह कहता हो जिसकी

श्वास-श्वास में रास रे जोगी.

*

अंतर से अंतर मिटने का

मंतर है चिर…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 21, 2010 at 11:36pm — 7 Comments

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