बीता साल चला गया, देकर नन्हा चित्र.
अंग्रेजी नव वर्ष की, तुम्हें बधाई मित्र.
तुम्हें बधाई मित्र, इसे अपनापन देना.
देकर स्नेह दुलार, इसे नवजीवन देना.
अम्बरीष…
Added by Er. Ambarish Srivastava on January 1, 2012 at 1:25am — 14 Comments
बीत यह भी साल गया
जिंदगी की पुस्तक से पृष्ठ कुछ निकाल गया |
करके कंगाल हमे बीत यह भी साल गया ||
भूपेन्द्र हजारिका जगजीत हमे बहुत प्यारे थे |
देवानंद और शम्मी देश के दुलारे थे ||
उनको बड़ी क्रूरता से आज निगल काल गया |
करके कंगाल हमे बीत यह भी साल गया ||
भृष्टाचार ख़त्म हो यह मन में सव विचारे है |
एक अन्ना काफी था यह तो फिर हजारे है…
Added by Mukesh Kumar Saxena on December 31, 2011 at 8:57pm — 9 Comments
(छंद - दुर्मिल सवैया)
जब मौसम कुंद हुआ अरु ठंड की पींग चढी, फहरे फुलकी
कटकाइ भरे दँत-पाँति कहै निमकी चटखार धरे फुलकी
तब जीभ बनी शहरी नलका, मुँह लार बहे, लहरे…
Added by Saurabh Pandey on December 31, 2011 at 2:00pm — 58 Comments
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on December 31, 2011 at 1:12pm — 5 Comments
नये है रंग
रुत है नयी तस्वीर बनाने की
नये साज़ नयी आवाज़ में
कुछ नयी धुन गुनगुनाने की
नयी सुबह है नये सूरज के जगमगाने की
खठी मीठी यादे पीछे छोड़ आने की
नयी उम्मीद नई आशाएं जगाने की
जो बीता उसे सम्मान से विदा करे
और नये बरस के स्वागत में दीप जलाने की
लौ से शोला और शोलो से लपटों में बदल जाने की
दिलो से दूरियाँ मिटाने की
बस यही गीत गुनगुनाने की
:शशिप्रकाश सैनी
Added by shashiprakash saini on December 31, 2011 at 10:00am — No Comments
अपनी गलतियों का भोझ आप ही ढोता हूँ
Added by shashiprakash saini on December 31, 2011 at 3:00am — No Comments
रातो के हो गए है पुजारी
कि दिन की खबर नहीं है
पैसे की है ये दुनिया
मेरा ये शहर नहीं है
दिन में भी ये जलाते है बत्तियाँ इतना
ना जाने यहाँ अंधेरा है कितना
आदमी अपने साये पे भी शक करता है
हाथ हाथ मिलाने से डरता है
पैसो से हर चीज तोलने लगा हूँ
की मै भी पैसो की जुबा बोलने लगा हूँ
नीद बेचता हू बेचता हू सासे भी
बेचे है त्यौहार बेचीं है उदासी भी
हसी बेचीं है…
Added by shashiprakash saini on December 30, 2011 at 8:00pm — 2 Comments
Added by Mukesh Kumar Saxena on December 30, 2011 at 5:33pm — No Comments
जैसे -जैसे दिन गुजरते चले गए |
वो मेरे दिल में उतरते चले गए ||
याद दिलाने की कोशिश की है मगर ,
वो इन वादों से मुकरते चले गए |
औरों को देते थे सलाह, मगर खुद ,…
Added by Nazeel on December 30, 2011 at 1:56pm — 2 Comments
ये ख़ासियत रही उस मुलाक़ात की
जुबा कुछ कह न सकी आँखों ने सब बात की
ये दुनिया है सब पैसे से चलते है
खबर लेता नहीं कोई बिगड़े हालात की
जो करते है लडकियों पे छीटा-कसी
न जाने किस घर के है उपज है किस ख़यालात की
हमसे रूठी है यु बात भी करती नहीं
नाराज़गी है न जाने किस रात की
किस गम में भीगी है छत की सीढ़ियां "सैनी"
किसके जज़्बात छलके किस आंख ने इतनी बरसात की
: शशिप्रकाश…
ContinueAdded by shashiprakash saini on December 30, 2011 at 11:00am — 1 Comment
तू वो ही है ना !
जो मेरे लात मारने पर
सहज ही मुस्कुराती थी
मेरी रग रग में भी तुरंत
गुदगुदी सी दौड़ जाती थी
ये बात तू जानती थी
मेरी हालत पहचानती थी .
और मै
बस रहता था इंतज़ार में.
तेरे पेट से बाहर निकालनें के
सोच विचार…
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on December 29, 2011 at 5:11pm — No Comments
ख़ुशी पहले भी बहुत थी,
Added by Yogyata Mishra on December 29, 2011 at 12:04pm — No Comments
पल पल बढ़ चल
बढ़ चल बढ़ चल....
पढ़ कर हर पल,
चढ़ नभ थल जल.
पल पल बढ़ चल....
कर कर कर छल
तन कर मत चल
मन मन मत जल
तज मन छल खल
पल पल बढ़ चल.....
कर पर धन…
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on December 29, 2011 at 11:37am — 1 Comment
भीड़ में सब मुखौटे है
इंसा कहा है
जिसकी सूरत पे सीरत दिखे
वो चेहरा कहा है
खिड़किया यु बंद करली है
की हम खोलते ही नहीं
दुनिया से करते है बात
पडोसियो से बोलते ही नहीं
न बगल में खुशी न मातम का पता
पर ये मालूम दुनिया में क्या घटा
कमरे बंद रखने से सिर्फ सडन होगी
खिडकिया खोलोगे तो हवा…
Added by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 10:29am — No Comments
Added by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 8:42am — 8 Comments
आत्मविस्मरण
विद्युत सी तरंग ,
कम्पन का भूकंप ,
स्पर्श नहीं आग !
मन से तन तक जाग !
सांसों में उच्छ्वास,
एक एहसास ...
होश नहीं,
जान बही !
कम्पित होठों की प्यास,
एक एहसास ...
हाथों में नर्म बारूद,
बारूद मुख में,
विस्फोट नस नस में !
बढ़ी प्यास,
एक एहसास ...
रिक्तता उभय ओर,
पूर्णता पे जोर,
साँसों का…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on December 28, 2011 at 4:32pm — 2 Comments
क्या लोकपाल?
अनिश्चय से भरा
शोर शराबा
लोक या पाल
लोकपाल का शोर
थम पाएगा?
मुश्किल भरा
लोकपाल का रास्ता
चुनावी रिश्ता
फिर चुनाव
फिर शुरु हो रहे
चुनावी शोर
Added by Neelam Upadhyaya on December 28, 2011 at 12:30pm — No Comments
कल रात कहीं कुछ रीत गया.
लम्हे टूटे, मैं बीत गया.
साँसें क्या हैं..? इक व्यर्थ गति,
जब साँसों का संगीत गया.
जीवन सपनों के नाम हुआ,
तज कर मुझको हर मीत गया.
अक्सर जीवन की चौसर पर,
सुख हार गया, दुःख जीत गया.
इक दर्द रहा जो क़ायम है,
'साबिर' बाक़ी सब बीत गया.
[14/04/2007]
Added by डॉ. नमन दत्त on December 28, 2011 at 8:30am — 3 Comments
पिटवा कर छोड़ा
प्रो. सरन घई
सामने मेरे घर के महल बना कर छोड़ा,
मेरे हिस्से का भी सूरज खा कर छोड़ा।
बहुत पुकारा मैनें मत छीनो मेरा हक,
मगर जालिमों ने मेरा हक खा कर छोड़ा।
सब को धूप, हवा सबको, सबही को पानी,
इसी आस को लिये मर गई बूढ़ी नानी,
फटे चीथड़ों में इक घर में देख जवानी,
फिरसे इक अबला को दाग लगाकर छोड़ा।
मचा गुंडई का डंका यों मेरे शहर में,
फ़र्क न बचा कज़ा या दोजख या कि क़हर…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on December 27, 2011 at 10:05pm — 5 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 27, 2011 at 11:30am — 3 Comments
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