For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,998)

तुम्हें बधाई मित्र.

बीता साल चला गया, देकर नन्हा चित्र.

अंग्रेजी नव वर्ष की, तुम्हें बधाई मित्र. 

तुम्हें बधाई मित्र, इसे अपनापन देना.

देकर स्नेह दुलार, इसे नवजीवन देना.

अम्बरीष…

Continue

Added by Er. Ambarish Srivastava on January 1, 2012 at 1:25am — 14 Comments

बीत यह भी साल गया

बीत यह  भी साल गया 





जिंदगी की पुस्तक से पृष्ठ कुछ निकाल गया |

करके कंगाल हमे बीत यह भी साल गया ||





भूपेन्द्र हजारिका जगजीत हमे बहुत प्यारे थे |

देवानंद और शम्मी देश के दुलारे थे ||

उनको बड़ी क्रूरता से आज निगल काल गया |

करके कंगाल हमे बीत यह भी साल गया ||





भृष्टाचार ख़त्म हो यह मन में सव विचारे है |

एक अन्ना काफी था यह तो फिर हजारे है…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on December 31, 2011 at 8:57pm — 9 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
फुलकी

(छंद - दुर्मिल सवैया)

जब मौसम कुंद हुआ अरु ठंड की पींग चढी, फहरे फुलकी

कटकाइ भरे दँत-पाँति कहै निमकी चटखार धरे फुलकी

तब जीभ बनी शहरी नलका, मुँह लार बहे, लहरे…

Continue

Added by Saurabh Pandey on December 31, 2011 at 2:00pm — 58 Comments

नया साल

शुभकामनाएं लिए

आ गया

नया साल

क्या हुआ है

हसरतों का हाल

कुछ शिकवे हैं

तुमको हमसे

हमको तुमसे

कुछ सतह…
Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on December 31, 2011 at 1:12pm — 5 Comments

नये है रंग

नये है रंग

रुत है नयी तस्वीर बनाने की

नये साज़ नयी आवाज़ में

कुछ नयी धुन गुनगुनाने की

नयी सुबह है नये सूरज के जगमगाने की

खठी मीठी यादे पीछे छोड़ आने की

नयी उम्मीद नई आशाएं जगाने की

जो बीता उसे सम्मान से विदा करे

और नये बरस के स्वागत में दीप जलाने की

लौ से शोला और शोलो से लपटों में बदल जाने की

दिलो से दूरियाँ  मिटाने की

बस यही गीत गुनगुनाने की

:शशिप्रकाश सैनी

Added by shashiprakash saini on December 31, 2011 at 10:00am — No Comments

अपनी गलतियों का बोझ आप ही ढोता हूँ

अपनी गलतियों का भोझ आप ही  ढोता हूँ

गंगा खुद मैली है मै वहा पाप नही धोता हूँ


पाप धोने के लिए बहुत है  आंख के  आसू
रात रो अंतर्मन पश्चाताप से ही भिगोता…
Continue

Added by shashiprakash saini on December 31, 2011 at 3:00am — No Comments

अंधेरा है कितना

रातो के हो गए है पुजारी

कि दिन की खबर नहीं है

पैसे की है ये दुनिया

मेरा ये शहर नहीं है

दिन में भी ये जलाते है बत्तियाँ इतना

ना जाने यहाँ अंधेरा है कितना

आदमी अपने साये पे भी शक करता है

हाथ हाथ मिलाने से डरता है



पैसो से हर चीज तोलने लगा हूँ

की मै भी पैसो की जुबा बोलने लगा हूँ

नीद बेचता हू बेचता हू सासे भी

बेचे है त्यौहार बेचीं है उदासी भी

हसी बेचीं है…

Continue

Added by shashiprakash saini on December 30, 2011 at 8:00pm — 2 Comments

दुत्कार

एक रोटी का छोटा टुकड़ा जब दिल चाहा  तब डाल दिया . 
इस पर भी मैंने  खुश होकर वोह जब आया सत्कार किया .
मैं फिर भी नहीं समझ पाया की उसने क्यों दुत्कार दिया . 
उसके बच्चे मुझको प्यारे वे मोती हैं मैं धागा  हूँ .
मैं उनकी गेंद उठाने को दूर दूर तक भागा हूँ. 
वे मेरे संग दिन भर खेले मैंने भी उनको प्यार दिया .
मैं अब तक नहीं समझ  पाया कि  उसने क्यों दुत्कार दिया.
घर में मेरी कोई जगह नहीं इससे है मुझे इंकार…
Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on December 30, 2011 at 5:33pm — No Comments

उनकी सुहबत में सुधरते चले गए ||

जैसे -जैसे दिन गुजरते चले गए |

वो मेरे दिल में उतरते चले गए ||

याद दिलाने की कोशिश की है मगर ,

वो इन वादों से मुकरते  चले गए |

औरों को  देते थे सलाह, मगर खुद ,…

Continue

Added by Nazeel on December 30, 2011 at 1:56pm — 2 Comments

ये ख़ासियत रही उस मुलाक़ात की

ये ख़ासियत रही उस मुलाक़ात की

जुबा कुछ कह न सकी आँखों ने सब बात की

 

ये दुनिया है सब पैसे से चलते है

खबर लेता नहीं कोई बिगड़े हालात की

 

जो करते है लडकियों पे छीटा-कसी

न जाने किस घर के है उपज है किस ख़यालात की

 

हमसे रूठी है यु बात भी करती नहीं

नाराज़गी है न जाने किस रात की

 

किस गम में भीगी है छत की सीढ़ियां "सैनी"

किसके जज़्बात छलके किस आंख ने इतनी बरसात की

 

: शशिप्रकाश…

Continue

Added by shashiprakash saini on December 30, 2011 at 11:00am — 1 Comment

तू वो ही है ना !

तू  वो  ही  है  ना !

जो  मेरे  लात  मारने  पर

सहज  ही  मुस्कुराती  थी

मेरी रग रग में भी तुरंत

गुदगुदी सी दौड़ जाती थी

ये बात तू जानती थी

मेरी हालत पहचानती थी .

और  मै



बस रहता था इंतज़ार में.

 

तेरे पेट से
बाहर निकालनें के



सोच विचार…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on December 29, 2011 at 5:11pm — No Comments

आस

ख़ुशी पहले भी बहुत थी,

क़सक थी हर साँस में,
प्रतीक्षा इस  नज़र में थी,
धड़कने थी हर रात में,
कोई आकर के गया,
टीस थी हर याद में,
जाकर आएगा कोई,
जिंदगी बीती इस आस में...
ख़ुशी पहले भी बहुत थी,
आज भी है हर याद में,
कोई जाकर आएगा,
आस थी हर साँस में,
आस है हर याद में....

Added by Yogyata Mishra on December 29, 2011 at 12:04pm — No Comments

बढ़ चल....

पल पल बढ़ चल 

बढ़ चल बढ़ चल....

 

पढ़ कर हर पल, 

चढ़ नभ थल जल. 

 

पल पल बढ़ चल.... 

 

कर कर कर छल 

तन कर मत चल  

मन मन मत जल 

तज मन छल खल  

पल पल बढ़ चल..... 

 

कर पर धन…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on December 29, 2011 at 11:37am — 1 Comment

मुखौटा हटाओ

भीड़ में सब मुखौटे है 

इंसा कहा है

जिसकी सूरत पे सीरत दिखे 

वो चेहरा कहा है



खिड़किया यु बंद करली है

की हम खोलते ही नहीं

दुनिया से करते है बात

पडोसियो से बोलते ही नहीं 

न बगल में खुशी न मातम का पता 

पर ये मालूम दुनिया में क्या घटा 





कमरे बंद रखने से सिर्फ सडन होगी

खिडकिया खोलोगे तो हवा…

Continue

Added by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 10:29am — No Comments

मै चलने के लिए बना था मै उड़ न सका

रुकना साँस लेना मेरी ज़रूरत थी
जब भी मै रुका
दुनिया ने कहदिया मै पीछें रह गया
मै चलने के लिए बना था
वो कहते रहे मै उड़ न सका
 
विचार बीज थे
मै मिट्टी था
दुनिया से अलग सोचता
मै मिट्टी था
बारिश की बूदों पड़े तो मै खुशबू
सूरज की रोशनी में जादू
की विचारों में जिंदगी भर दू
उपजाऊ था
पर था तो मै मिट्टी ही
कइयो ने…
Continue

Added by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 8:42am — 8 Comments

आत्मविस्मरण

आत्मविस्मरण

 

विद्युत सी तरंग ,

कम्पन का भूकंप ,

स्पर्श नहीं आग !

मन से तन तक जाग !

सांसों में उच्छ्वास,

एक एहसास ...

 

होश नहीं,

जान बही !

कम्पित होठों की प्यास,

एक एहसास ...

 

हाथों में नर्म बारूद,

बारूद मुख  में,

विस्फोट नस नस में !

बढ़ी प्यास,

एक एहसास ...

 

रिक्तता उभय ओर,     

पूर्णता पे जोर,

साँसों का…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on December 28, 2011 at 4:32pm — 2 Comments

कुछ हायकू

 

क्या लोकपाल?

अनिश्चय से भरा

शोर शराबा

 

लोक या पाल

लोकपाल का शोर

थम पाएगा?

 

मुश्किल भरा

लोकपाल का रास्ता

चुनावी रिश्ता

 

फिर चुनाव

फिर शुरु हो रहे

चुनावी शोर

Added by Neelam Upadhyaya on December 28, 2011 at 12:30pm — No Comments

एक ग़ज़ल....

कल रात कहीं कुछ रीत गया.
लम्हे टूटे, मैं बीत गया.

साँसें क्या हैं..? इक व्यर्थ गति,
जब साँसों का संगीत गया.

जीवन सपनों के नाम हुआ,
तज कर मुझको हर मीत गया.

अक्सर जीवन की चौसर पर,
सुख हार गया, दुःख जीत गया.

इक दर्द रहा जो क़ायम है,
'साबिर' बाक़ी सब बीत गया.


[14/04/2007]

Added by डॉ. नमन दत्त on December 28, 2011 at 8:30am — 3 Comments

पिटवा कर छोड़ा

पिटवा कर छोड़ा

प्रो. सरन घई

 

सामने मेरे घर के महल बना कर छोड़ा,

मेरे हिस्से का भी सूरज खा कर छोड़ा।

बहुत पुकारा मैनें मत छीनो मेरा हक,

मगर जालिमों ने मेरा हक खा कर छोड़ा।

 

सब को धूप, हवा सबको, सबही को पानी,

इसी आस को लिये मर गई बूढ़ी नानी,

फटे चीथड़ों में इक घर में देख जवानी,

फिरसे इक अबला को दाग लगाकर छोड़ा।

 

मचा गुंडई का डंका यों मेरे शहर में,

फ़र्क न बचा कज़ा या दोजख या कि क़हर…

Continue

Added by Prof. Saran Ghai on December 27, 2011 at 10:05pm — 5 Comments

अंतिम क्षण (दीपक शर्मा कुल्लुवी)

अंतिम क्षण 


अंतिम क्षण मेरे जीवन के

कितने सुहाने होंगे
कोई न होगा साथ हमारे
हम तन्हा…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 27, 2011 at 11:30am — 3 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"ग़ज़ल — 2122 2122 2122 212 धन कमाया है बहुत पर सब पड़ा रह जाएगा बाद तेरे सब ज़मीं में धन दबा…"
4 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 घोर कलयुग में यही बस देखना रह जाएगा इस जहाँ में जब ख़ुदा भी नाम का रह जाएगा…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। सुधीजनो के बेहतरीन सुझाव से गजल बहुत निखर…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाइये।"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, कुछ सुझाव प्रस्तुत हैं…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जा रहे हो छोड़ कर जो मेरा क्या रह जाएगा  बिन तुम्हारे ये मेरा घर मक़बरा रह जाएगा …"
8 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service