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अपवाद मेरे जीवन के

विकल्पों की इस दुनियां में

बेरस से इस जहां में

तुम्ही कहो क्यों ढूँढूँ विकल्प तुम्हारा

तुम ही तो वो लम्हा हो

जिसे जीया है मैने

तुम्हारी ही सॉसों के बिगङते तरन्नुम को

तो गीतों में पिरोया है मैंने

तुम्ही पर छोङ रखी है हर ख्वाहिश

 एक ही तो है सपना,जिसे तुम्हारी ही

आंखों से देख रखा है मैने

तुम्हारे ही हर लफ्ज को कैद रखा है दिल में,

जिसे तुम्हारा ही आशियां बनाया है मैने

तुमसे ही तो खुशियों-गमों का रिश्ता…

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Added by minu jha on March 3, 2012 at 1:00pm — 26 Comments

दुनियादारी के दस हाइकू

फूटा ठीकरा

शेख बच निकला

तू था मुहरा

 

ढूंढ़ बकरा

शनैः रेत लो गला

दे चारा हरा

 

बेजुबाँ खरा

हक माँगने लगा

तो दोष भरा

 

अना दोहरी

नश्तर सी चुभन

दगा अखरी!

 

यहाँ खतरा

ईश्वर हुआ अंधा

इन्सां बहरा

 

यार बिसरा

अब यहाँ क्या धरा

चलो जियरा

 

छटा कुहरा

छद्म बंधन मुक्त

पिया मदिरा

 

समा ठहरा

इंद्रधनुषी दुनिया

नशा…

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 3, 2012 at 10:30am — 17 Comments

-:प्रेम के कुछ मुक्तक:-

"कम से कम दो कदम प्रेम पथ पर चलें"…




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Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 3, 2012 at 1:30am — 13 Comments

हाइकु गीत



 खुद बेवफा

 दूसरों से चाहते

 करें वो वफा |…

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Added by dilbag virk on March 2, 2012 at 8:42pm — 6 Comments

वक़्त का वज़ूद

वक़्त का वज़ूद

वक़्त की बेलगाम रफ़्तार का वज़ूद

दिखता है चेहरे की गहराती लकीरों में

या मिलता है जीवन की भूलभुलैया में

स्नेहसिक्त माँ की आँचल में मौज़ूद

है अब भी मेरे होने की महक

सन्नाटों में गूँजती है मेरी चहक ।

चलती थी एक गुड़िया उँगलियों को थामे

उन काँपती बेजान हाथों की नरमी

और छुपी उनमे उनके नेह की गरम

उन्हीं थापों से बीतती हैं रातें ,हँसती है शामें ।

चराचर का भेद समझा जब ज्ञानदीप से

जीवन को गुज़रता देखा सामने से

अतीत के गर्त में…

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Added by kavita vikas on March 2, 2012 at 7:34pm — 6 Comments

अंतस का कोना...

बतकही कितनी भी
कर लूँ
रहता है खाली खाली
अंतस का कोना
ढोल बजा लूँ कितनी भी
रहता है सुना सुना
अंतस का कोना
शब्दों का मायाजाल है
जिंदगी का ख्याल है
कोशिश कितनी भी कर लूँ
रहता उदास है
अंतस का कोना
इश्वर के दरबार में
सब के लिए अरदास है
चलो अक दीप जला लूँ
जुगनुओ को दोस्त बना लूँ
अपनेपन के शोर से
गुंजित कर लूँ
अंतस का कोना.....

Added by MAHIMA SHREE on March 2, 2012 at 5:52pm — 9 Comments

मेरे कुछ हाइकू...( 5 - 7- 5 )

1.

प्रकृति प्यारी 

रुई बिछी धरती

ये बर्फ़बारी .

२.

मुखौटे छाए

जनमानस लुटा

चुनाव आये .

३.

उड़ते गिद्ध

फिर मारा आदमी

लो आया युद्ध .

४.

ये दुपहरी 

अलसाया शरीर

जेठ का माह .

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 2, 2012 at 5:26pm — 6 Comments

"तेरे मेरे बीच हैं"

यही है ख़ुदाई उसकी, छोटी सी ये इल्तजा,

जो कभी की थी उससे, पूरी वो न कर सका;


तेरे मेरे बीच हैं अब, मीलों के फ़ासले

कभी सामने थे तुम, आज हो गए परे


तेरे मेरे बीच…

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Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 2, 2012 at 2:00pm — 21 Comments

रिक्त

मैं और मेरी कृत्य के बीच एक रिक्त सदा से 

खुद से खुद को जकडे जंजीरों के शून्य हो जैसे



बंधे है एक दूसरे से बाहों में बाहें डाल कर 

फिर भी एक बड़ा घेरा जो घिर न रहा हो जैसे 



युग्म एकाकार हैं संभावनाएं भी अपरम्पार हैं 

लग रहा फिर भी…

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Added by Anand Vats on March 2, 2012 at 12:30pm — 8 Comments

जबान पर मसाला

हम लगायेंगे जबान पर मसाला नहीं,

अपनी गजलो में शऊर का ताला नहीं.



पैरवी उनके हसीन दर्द की क्या करें,

जिनको लगा धूप नहीं, पाला नहीं.…

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 10:30am — 20 Comments

इंतज़ार बस इंतज़ार.............

है प्रियवर,  तुम  कब  आओगे  भेजो  तुम  सन्देश 

थक  गई  मोरी  अँखियाँ अब  तो  भेजो  तुम  सन्देश 

भेजो  तुम  सन्देश  प्रिये  तो झपकूँ अपने  नैन 

राह  तकूँ मै हर  आहट पे  देखूँ  द्वारे …

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Added by Monika Jain on March 1, 2012 at 11:30pm — 7 Comments

ज़िंदगी क्या है..



मैं तुझको आज बताता हूं, के कमी क्या है,

तू मुझको आज ये बता, के ज़िंदगी क्या है..



ये ऊंच-नींच, जात-पात, ये मज़हब क्यूँ हैं,

ये रंग-देश, बोल-चाल, बंटे सब क्यूँ हैं,

तू-ही हर चीज़, तो फिर पाक़-ओ-गंदगी क्या है..



किसी पत्थर को पूज-पूज, नाचना-गाना,

सुबह-ओ-शाम, तेरा नाम, लेके चिल्लाना,

तेरा यकीं या ढोंग, तेरी बंदगी क्या है..



किसी को देके चैन, दर्द में सुकूं पाना,

किसी को देके दर्द, ज़ुल्म करके…

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Added by Aditya Singh on March 1, 2012 at 5:54pm — 8 Comments

कन्या भ्रूण हत्या ..हाइकू ( ५-७-५ )

शोख सी परी .

ज्यों बनी, खून सनी.

कोख में मरी.

 

( शोख = चंचल ; कोख = माँ का गर्भाशय / Uterus ) 

 

 रचयिता  : डा अजय कुमार शर्मा

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 1, 2012 at 4:08pm — 5 Comments

सीलन...

हर सुंदर

प्रभात वेला में

प्रतिदिन

मैं पाता हूँ

स्वयं को

सीलन भरी लकड़ी सा

जो चाहती है

सुलगना

और...

सुलगना भी

इस तरह की

उसमें होम हो जाए

सीलन .

सीलन अहम् की

बहुत सारे 

भ्रम की

मेरी हमसफ़र !

आओ ...

पवित्र अग्नि में

प्यार की .

भस्म कर दें

सीलन

हृदयों के

संसार की .

.

.

करोगी स्वीकार ?

मेरा निमंत्रण !!

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 1, 2012 at 3:00pm — 8 Comments

सकून

सच्चाई को खोजने चला था,

झूठ ही झूट मिले,

मोहब्बत खोजने चला,

तो बेवफाई मिली,

जब खोजना छोड़ दिया,

तो तन्हाई मिली,

अब तो खुदी को खोजने चला हूँ ,

जो चाहा था बेवजह था

जो मिला है बेइंतहा है

यूही भटक रहा था

अब सकून ही सकून है |

Added by Sanjeev Kulshreshtha on March 1, 2012 at 1:00pm — 8 Comments

"दुआ"

है अर्ज़ जो तेरी मैं दूँगी उसे सुना,

हौले से मेरे कान में कहती है ये सबा;

*

अल्फ़ाज़ बहुत आसमाने दिल पर उमड़ रहे हैं,

कोई नहीं बरसता मगर बनकर मेरी दुआ;…

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Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 1, 2012 at 11:30am — 26 Comments

मुक्ति ......

सुंदर -असुंदर

रूप-रंग

उच्च-नीच

उतार-चढ़ाव

गुड़िया-गहने

बादल-बिजली

फूल-काँटे

जीत-हार

अपना-पराया

मान-अपमान…

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Added by MAHIMA SHREE on February 29, 2012 at 11:00pm — 12 Comments

माँ

बचपन का क्या बयान करू, कुछ याद नहीं रहा दुनियादारी में, 

बस ये नहीं भूला की माँ जागती थी रात भर, मेरी हर बीमारी में. …

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on February 29, 2012 at 7:30pm — 14 Comments

"मुद्दतें" - ग़ज़ल

हुईं थीं मुद्दतें फिर, वक़्त कुछ ख़ाली सा गुज़रा है;

कोई बीता हुआ मंज़र, ज़हन में आके ठहरा है;



कहीं जाऊं, मैं कुछ सोचूँ, न जाने क्या हुआ है,

मेरी आज़ाद यादों पर किस तसव्वुर का पहरा है;…

Continue

Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on February 29, 2012 at 2:51pm — 37 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
तुम्हारी प्रेरणा

उपलब्धियों के मंच पर 

जब भी  कोई तुमसे पूछता कि 
तुम्हारी सफलता के पीछे किसका हाथ है 
तुम हमेशा मुझको अपनी ताकत 
बताते रहे |और उसके बाद
करतल ध्वनी 
की गूंजती आवाज से 
मेरा वो प्रेम का एहसास 
और बुलंद और गर्वित होता चला गया|
याद आया है वो हमारे मिलन का पहला दिन 
जब तुमने मेरे हाथ को थामते हुए कहा था 
कि मेरे अस्तित्व को आज पंख 
मिल गए |
और…
Continue

Added by rajesh kumari on February 29, 2012 at 1:52pm — 14 Comments

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