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आगाज़...

मैनें कहा

कुछ और नहीं

सिर्फ वो ही

जो युगों से

सहा था...

सहा था फूलों नें

ख्वाबों में लहराते

सावन के झूलों नें

उन शब्दों नें

जो आ न पाए

लबों पर तुम्हारे ही

ज़ुल्मों से ...

सहा था उस प्यासे नें...

जो दम तोड़ गया

समंदर में रह कर

पर छू न पाया

पानी को जुबान से कभी.

सहा था उन पलकों नें...

जो युगों से भरी हैं

अनमोल मोतियों से

आतुर हैं

छलकने को

पर…

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Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 12, 2012 at 11:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल



आँखों में भरे खूँ लिए तलवार खड़ा है 

करने को मुझे कत्ल मेरा यार खडा है

.

दे दे तु मुझे अपनी दुआओँ का सहारा

चोखट पे तेरी आज ये बीमार खडा है

.

जाने दे मुझे मौत की आगोश मे हमदम

क्योँ बनके मेरी राह मे दीवार खडा है

.

मरकर ही सही  आज ये एजाज मिला तो 

करने को मेरा आज वो दीदार खडा है

.

गर मुझको मिटाने का वो रखते हें इरादा

हसरत भी फना होने को तय्यार खडा…

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Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on March 12, 2012 at 11:30pm — 18 Comments

चेहरे.....

चेहरे के पीछे

चेहरे है

उन पे कसे नकाब

बड़े तगड़े है..

मीठे बोलो के भीतर

तीखेपन का खंजर है..

घावों पे मरहम तो है

पर दाग बने गहरे है

लोग बने मदारी है.. और

समझे हमे जमूरा

मतलब की यारी है और

जमकर सीनाजोरी है

संभल संभल के हँसना है और

नाप तोल के कहना

मन के दुखड़े खोले तो

कहते है रोना धोना

खुल के जीने का

दम भर लो कितना भी

पर बच बच के है रहना

दुनिया गर…

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Added by MAHIMA SHREE on March 12, 2012 at 5:30pm — 16 Comments

नज़्म - निमिष भर को उथल है !

नज़्म - निमिष भर को उथल है !

 

सफ़र कटने में अंदेशा नहीं है

मगर सोचा हुआ होता नहीं है

कई लोगों को छूकर जी चुका हूँ

नहीं…

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Added by Abhinav Arun on March 12, 2012 at 4:39pm — 14 Comments

मैंने जीना चाहा था

सुर्ख इबारत बयाँ करेगी – मैंने जीना चाहा था,

चाक कलेजे के ज़ख्मों को मैंने सीना चाहा था;

जो भी आया उसने ही कुछ दुखते छाले फोड़ दिए,

वहशत की आग बुझाने को मेरे सब सपने तोड़ दिए;

तेरे आँचल के धागों से रिसना ढकना चाहा था,

सुर्ख इबारत बयाँ करेगी- मैंने जीना चाहा था |

अपनी ही रुसवाई…

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Added by Chaatak on March 12, 2012 at 11:31am — 22 Comments

तेरी याद

सोचा था

तेरी याद के सहारे

जिंदगी बीता लूंगा

अब न तेरी याद आती है

न ही जिंदगी के दिन ही बचे

जो बचे भी उनमें क्या तेरे मेरे

क्या सुबह, क्या शाम

बस एक ही तमन्ना है

जहां भी रहो मुझे याद करना

क्योंकि तुम याद करोगे तो

दुनिया से जाते वक्त गम न होगा

क्योंकि तुम, तुम हो और हम, हम

राहें जुदा हो गई तो क्या

कभी मिलकर चले थे मंजिल की ओर

अब तो सोच कर भी सोचता हूं

क्यों मिले थे हम और क्यों बिछड़े

सोचता हूं

तेरी याद को ही…

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Added by Harish Bhatt on March 12, 2012 at 2:49am — 6 Comments

"कशमकश"

"कशमकश"

क्यों वक़्त से पहले ये वक़्त भागता सा लगे है मुझे. 

फिर भी क्यों ये ज़िन्दगी थमी सी लगे है मुझे ?

एक अजीब सी कशमकश है! क्या? मालूम नहीं.

पर कभी सब पास तो कभी सब दूर सा लगे है मुझे.…

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Added by Monika Jain on March 12, 2012 at 2:18am — 4 Comments

बहुत जरूरी है|

पिछली बातों को दुहराना बहुत जरूरी है|

कल को सब बातें बतलाना बहुत जरूरी है|

बहुत जरूरी है अपनी सब भूलों को लिखते जाना,

आशाओं के दीप जलाना बहुत जरूरी है|…

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Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 11, 2012 at 6:33pm — 11 Comments

सनम मैं क्या लिखूं.....

सनम मैं क्या लिखूँ .............

नयनों से बहते हुए नीर को,

या दिल में चुभते तीर को.

दिखे चेहरा तेरा जिसमे, उस दर्पण को,

या, प्यार में सब कुछ समर्पण को .

या फिर लिखें अपनी फूटी तकदीर को.

नयनों से बहते हुए नीर को,

या दिल में चुभते हुए तीर को.

सनम मैं क्या लिखूँ .............



लिखूँ तुम्हारे रेशमी बालों को,

या उनमे उलझे सारे सवालों को.

लिखूँ अपने दिल की पुकार को,

या तुम जैसे संगदिल यार को.

बंध गई जिसमे मुहब्बत, लिखूँ उस…

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Added by praveen singh "sagar" on March 11, 2012 at 4:00pm — 10 Comments

"पहाड़ी नदी"

मैं पहाड़ी नदी हूँ…

उसी स्वामी के अस्तित्व से उद्भूत होती

उसी का सीना चीरती, काटती

अपने गंतव्य का पथ बनाती

विच्छिन्न करती प्रस्तरों-शिलाओं को

विखंडनों को भी चाक करती…

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Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 11, 2012 at 2:32pm — 17 Comments

साहिल पॆ जिसनॆ मुझकॊ,,,,,,,

साहिल पॆ जिसनॆ मुझकॊ,,,,,,,

---------------------------------

आँचल हया का सर सॆ सरकनॆ नहीं दिया ॥

चॆहरॆ पॆ दिल का ग़म भी झलकनॆ नहीं दिया ॥

 

तॆबर अना कॆ, उनकॆ, कभी ख़म नहीं हुयॆ,…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 11, 2012 at 1:42am — 15 Comments

भरोसा

दिल की धडकनों को महसूस करके देखो.

कुछ देर मेरे साथ चल के देखो.

तुम्हारे सारे ग़म में अपने सीने में छुपा लुंगी.…

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Added by Monika Jain on March 11, 2012 at 12:30am — 6 Comments

हम बेघर भले

कौन कहता है जन्नत इसे,

हम से पूछो जो घर में फंसे।

न हिफाजत, न इज्जत मिली,

कर- कर कुर्बानी हम मर गए।

दुश्मनों की जरूरत किसे,

जुल्म अपनों ने ही हम पे किए।

हमने हर शै संवारी मगर,

खुद हम बदरंग होते गए।

अपने हाथों बनाया जिन्हें,

हाथ उनके ही हम पर उठे।

घर के अंदर भी गर मिटना है,

तो संभालों ये घर, हम…

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Added by Harish Bhatt on March 10, 2012 at 1:44pm — 5 Comments

मांग मत अधिकार अपना

मांग मत अधिकार अपना, ये अनैतिक कर्म है,
ठेस लगती है, हुकूमत का बहुत दिल नर्म है.
 
हक हमारा कुछ नहीं, पुरखे हमारे लापता,
हर तरक्की के लिए, बस 'द्रष्टि उनकी' मर्म है.
 
सैर को आये कभी जब, मान उपवन गाँव को,
खेत सूखे देख कर, गर्दन झुकी है, शर्म है.
 
कह दिया गर, 'भूख से हम मर रहे है ऐ खुदा!'
ज्ञान मिलता, सब्र और विश्वास रखना धर्म…
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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 10, 2012 at 11:00am — 25 Comments

हर दिल अज़ीज़....

हर दिल अज़ीज़....

रिश्तों को निभा लेने की जिसमे तमीज है,
यकीन मानिये   वो ,   हर-दिल- अज़ीज़ है.
#
ठहरा रहे जमीं को, क्योंकर कुसूरवार,
पौधे  वही  उगेंगे,  बोये  जो  बीज है!
#
उनको दवा न दीजिये,आँखों क़े मर्ज़ की,
नज़रें   चुरा  रहें  वो, दिल क़े मरीज़ हैं.
#
पत्थर सा सख्त चेहरा,रखते हैं जो यहाँ,
दो  घडी  में  पर  वो,  जाते  पसीज…
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Added by AVINASH S BAGDE on March 10, 2012 at 10:51am — 14 Comments

तेरे साथ की जरुरत है

तन की नक्काशी कही धोखा ना देदे

मन से पुकारे की एक आवाज की जरुरत है

साथ तेरे चलने से जले या ना जले दुनिया

पर क़यामत तक चले की तेरे साथ की जरुरत है

 

 

झुर्रियाँ बाल सफ़ेद

सब उम्र के फरेब

तन…

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Added by shashiprakash saini on March 10, 2012 at 2:00am — 7 Comments

"समर्पण"



मुझे दुनिया नहीं, मुझे तुम्हारा साथ चाहिए.

जीवन पथ पर तुम्हारा स्नेह चाहिए .

प्रेम की पराकाष्ठ में ही नहीं,

कंटीले पथ पर भी तुम्हारी बाँहें…

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Added by Monika Jain on March 10, 2012 at 1:00am — 2 Comments

होली की शुभकामनाएं... (अनुष्टुप)

बज उठे नगाड़े हैं, फाग फगुन गा रहा |

सज गया पलासों से, कानन इठला रहा ||

 

रस भरे नज़ारे हैं, फूल महकते सभी,

भँवरे अकुलाए हैं, बाग उन्हें बुला रहा ||

 

गगन में गुलालों का, इंद्रधनुष भी खिला,

कारवां खुशहाली का, मंगलमय छा रहा ||

 

रंग बिरंग राहें भी, भूल बैर गले मिलीं,

भोर मगन वीणा ले, गीत गुनगुना रहा ||

 

मन मयूर नाचे है, झूम कर बसंत सा,

हबीब मस्त नैनों से, रंग है बरसा रहा…

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Added by Sanjay Mishra 'Habib' on March 9, 2012 at 2:24pm — 7 Comments

होली मुबारक

बरसा है रंगों का सावन , धरती के आँगन में.
अब ना होगा काँटा , होगा गुल ही गुल गुलशन में.
मैल दिलों का धुल जाते हैं , होते सब खुशहाल.
ये है होली का मस्त धमाल .
OBO परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभ कामनाएं
                                      -------- सतीश मापतपुरी…
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Added by satish mapatpuri on March 9, 2012 at 12:40pm — 2 Comments

रिश्ते

जो हमारे साथ होते हैं,

हम उनके होकर भी,
उनके साथ नहीं होते...
जरा किस्मत तो देखिये....
हम जिनके होते है,
वो हमारे साथ होकर भी,
हमारे साथ नहीं होते....
रिश्तो की समझ तो,
हमारी अपनी सोच, 
से परे है...
यह बिलकुल सिक्को की,
खनक से होते है...
आवाज़ तो  नजदीकियों  की 
होती है,
एहसास में नजदीकियां नहीं 
होती…
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Added by Yogyata Mishra on March 9, 2012 at 11:16am — 6 Comments

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