जिसनें जीवन के सुन्दर पल
Added by Deepak Sharma Kuluvi on January 17, 2012 at 12:30pm — 8 Comments
तुम्हारी हर आजमाइश के आगे हम सर झुकाते चले गए
सोचा यह आजमाइश ही सच्चे प्रेम की निशानी है
इक आजमाइश पर उतरकर खरे खुश होने से पहले ही
तुम एक और आजमाइश संग खड़े मुस्काते नज़र आये
हम फिर जुट गए उस पर खरा उतरने की जुगत में
जब होने लगा यकीन तुम्हे प्यार पे मेरे आजमयिशो से परे
तुम लगे सोचने ख़त्म करने को सिलसिला आवाजाही का
तब तक मन का जीव मुक्त हो चुका था हर आजमाइश से
और सिर्फ खुली हुई आंखें मेरी रह गई बैचैनी का मंज़र लिए
पूछती एक ही ही…
ContinueAdded by Kiran Arya on January 17, 2012 at 10:59am — 5 Comments
अवश्य ही कट जाएगा,
एक दिन वह भी मुझसे,
जो शेष बचा रहा अब तक,
स्वार्थ में अपने...
नहीं इसलिए कि ,
उसका है ध्येय अनुचित
वरन यही तो है
सृष्टि का ऋत!
Added by Nutan Vyas on January 17, 2012 at 9:30am — 1 Comment
कल्पना में बिखरे कुछ टुकड़े पेश हैं:
घर में छा जातीं खुशियाँ
अगर कोई लल्ला हो गया l
और अगर जन्मी बिटिया
तो भारी पल्ला हो गया l
जब कभी फसल हुई कम
तो मंहगा गल्ला हो गया l
कोई डिग्री लेकर घर बैठे
तो वो निठल्ला हो गया l
शादी क्या हुई जनाब की
बीबी का…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on January 17, 2012 at 3:30am — 8 Comments
हुए थे सूरमा कई, जो खेले थे जान पर ,
Added by dilbag virk on January 16, 2012 at 10:17pm — 3 Comments
कुछ पन्ने इसके पलट गये
कुछ को न हाथ लगाया है
कुछ याद पुरानी बाकी है
कुछ में इतिहास समाया है
कुछ में वो बीता बचपन है
जिनकी इक अमिट निशानी है
कुछ में है लिखा हुआ छुटपन
कुछ में अनकही कहानी है
कुछ पन्ने बीती रातों से
कुछ ख्वाबों…
ContinueAdded by Amit Pandey on January 16, 2012 at 9:30pm — 5 Comments
समझ सॆ परॆ हैं हम,,,,,
-------------------------
यॆ मत सॊच कि इतनॆ गिरॆ हैं हम ॥
फ़क्त तॆरॆ इक वायदॆ पॆ मरॆ हैं हम ॥१॥
हॊशियारी की हरियाली न दिखावॊ,
ऎसॆ तॊ तमाम सारॆ खॆत चरॆ हैं हम ॥२॥
दिल मॆं कैद कर लॆं तुम्हॆं क्यूं कर,
कानूनी अदालत कॆ कटघरॆ हैं हम ॥३॥
हमारी हस्ती कॊ तॊलतॆ हॊ तराजू पॆ,
क्या समझॆ बॆज़ान सॆ बटखरॆ हैं हम ॥४॥
नॆकियॊं का दामन नहीं छॊड़ा कभी,
चाहॆ ला्खॊं मु्सीबत मॆं घिरॆ हैं हम ॥।५॥
शैतान की परवाह नहीं है जी…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on January 16, 2012 at 9:01pm — 3 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 16, 2012 at 6:20pm — 2 Comments
करवट लेता है नया साल
आओ कुछ उम्मीदें कर लें
अरमानों के कुछ बूटों को
दामन में हम अपने सी लें l
नेकी हो भरी दुआओं में
मायूस ना हो कोई चेहरा
जीवन हो शांत तपोवन सा
खुशिओं का रंग भरे गहरा l
ना आग बने कोई चिंगारी
ना आस बने कोई लाचारी
जग में फैला हो अमन-चैन
ना कहीं भी हो कोई बेगारी l
ओंठों पे खिली तबस्सुम हो
हर दिल में नूर हो इंसानी
आँखों में रोशन हों…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on January 15, 2012 at 8:00pm — No Comments
ये दुनिया गोल है
यहाँ बड़ा ववाल है
हर चीज का मोल है
बड़ा गोलमाल है l
बातों में तो मिश्री
मन में कोई चाल है
है बहेलिया ताक में
बिछा के बैठा जाल है l
कहीं ताल लबालब
कहीं पड़ा अकाल है
क्यों इतना अन्याय
उठता रहा सवाल है l
कर पायें आपत्ति
ऐसी कहाँ मजाल है
बात-बात में लोगों की
खिंच जाती खाल है l
-शन्नो अग्रवाल
Added by Shanno Aggarwal on January 15, 2012 at 7:37am — 4 Comments
है समय की दरकार l
ये है संसार
कभी ना
किसी पर
करना एतबार l
झूठ के खार
कब जाने
किस पर
कर देंगे वार l
खिला हरसिंगार
कब कौन
लूट जाये
पेड़ की बहार l
आज है प्यार
कल को
नफरत के
होंगें अंगार l
है समय की दरकार l
-शन्नो अग्रवाल
Added by Shanno Aggarwal on January 15, 2012 at 6:00am — 2 Comments
स्त्री और प्रकृति
प्रकृति और स्त्री
कितना साम्य ?
दोनों में ही जीवन का प्रस्फुटन
दोनों ही जननी
नैसर्गिक वात्सल्यता का स्पंदन,
अन्तःस्तल की गहराइयों तक,
दोनों को रखता एक धरातल पर
दोनों ही करूणा की प्रतिमूर्ति
बिरले ही समझ पाते जिस भाषा को
दोनों ही सहनशीलता की पराकाष्ठा दिखातीं
प्रेम लुटातीं उन…
Added by mohinichordia on January 14, 2012 at 10:30am — 9 Comments
हर कोना शख्सियत को
Added by Yogyata Mishra on January 14, 2012 at 10:30am — 4 Comments
खुला मौसम गगन नीला
धरा का तन गीला - गीला l
पतंगों की उन्मुक्त उड़ान
तरु-पल्लव में है मुस्कान l
मकर-संक्रांति को भारत के हर प्रांत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. और वहाँ के वासी अलग-अलग तरीके से इस त्योहार को मनाते हैं. पंजाब में इसे लोहड़ी बोलते हैं जो मकर-संक्राति के एक दिन पहले की शाम को मनायी जाती है. और उत्तरप्रदेश में, जहां से मैं आती हूँ, इसे मकर-संक्रांति ही बोलते हैं. लोग सुबह तड़के स्नान करते हैं ठंडे पानी में. और इस दिन को खिचड़ी दिवस के रूप…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on January 13, 2012 at 5:30pm — 7 Comments
Added by Yogyata Mishra on January 13, 2012 at 3:00pm — 4 Comments
आँसू ----
आँसू नहीं छंद होते हैं
आँसू नहीं नियम होते हैं
भावों की अनुभूति है आँसू
कभी ख़ुशी कभी गम होते हैं..
मैंने देखे सुख के आँसू
हंसते गाते झिलमिल आँसू
दुःख मे भी देखे हैं आँसू
रोते-रोते दर्दीले आँसू ..
बेटी की विदा बेला पर
छलक पड़े आँखों के आँसू
गौरव के पल आने पर भी
बह निकले आँखों से आँसू ..
कभी किसी की मृत्यु पर भी
खूब बहाए मैंने आंसू
शिशु जन्म के अवसर पर भी
रुक न सके आँखों मे…
Added by dr a kirtivardhan on January 13, 2012 at 2:00pm — 3 Comments
पेंच जो लड़ी......
चढ़ी पतंगे डोर पे,छूने को आकाश.
होड़ मची है काट की,उड़े पास ही पास.
उड़े पास ही पास,उमंगें नभ को छूती.
वो...काट की बोल रही,होंठों पे तूती.
कहता है अविनाश पेंच जो लड़ी,
कटी पतंगें कहलाती ,दम्भी और नकचढ़ी.
अविनाश बागडे.
Added by AVINASH S BAGDE on January 13, 2012 at 11:07am — 3 Comments
ये तेरी बेरुखी की इंतेहा है या मेरी ख्वाहिशों का कसूर,
आज भी रोने के लिए हम तेरे शाने को तरसते हैं।
...........................................................................
तेरे साथ ही हूँ मगर अब वो एहसास नहीं दिखता,
जो गुदगुदा जाता था मुझे, कभी बस राहों मे तेरे मिल जाने से !
...............................................................................
दिल में सोई हुई तमन्नाओ का इज़हार करके देखो,
ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है, किसी से प्यार करके…
Added by Vasudha Nigam on January 13, 2012 at 10:00am — 6 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 13, 2012 at 1:29am — 6 Comments
मत पूंछियॆ,,,,,,,,,,
---------------------
मतलब की बात करियॆ, बेकार का हाल मत पूछियॆ ॥
जैसी भी है अपनी है, सरकार का हाल मत पूछियॆ ॥१॥
लहराती है नैया, सरकार की तॊ लहरानॆ दीजियॆ,
आप माझी सॆ मगर,पतवार का हाल मत पूछियॆ ॥२॥
चिल्लातॆ चिल्लातॆ अन्ना की तबियत तंग हुई,
अपनॆ भारत मॆं, भ्रष्टाचार का हाल…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 12, 2012 at 5:30pm — 4 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |