Added by Raj on April 23, 2011 at 11:22am — No Comments
अमझर गांव में संचालित छत्तीसगढ़ स् टील एण्ड पावर लिमिटेड द्वारा पिछले 3 वर्षो से भू-जल की चोरी कर बिजली पैदा किया जा रहा है। भू-जल दोहन की शिकायत पर प्रशासनिक अधिकारियों ने प्लांट में छापामार कर कंपनी प्रबंधन को बोर से पानी चोरी करते…
ContinueAdded by rajendra kumar on April 23, 2011 at 10:49am — No Comments
विकास की अंधी दौड़ में हम मं गल और चन्द्रमा पर आशियाना बनाने के सपने देख रहे हैं, लेकिन इस आपाधापी में पृथ्वी को भूल रहे हैं। आज पृथ्वी के बेहतरी लिए गंभीरता से कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। एक ओर हम वातावरण में कार्बन बढ़ाने वाले स्त्रोत बढ़ाते जा रहे…
ContinueAdded by rajendra kumar on April 23, 2011 at 10:45am — 1 Comment
Added by rajendra kumar on April 23, 2011 at 10:33am — No Comments
Added by Abhinav Arun on April 23, 2011 at 9:00am — 4 Comments
Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on April 22, 2011 at 8:00pm — 2 Comments
Added by rajni chhabra on April 22, 2011 at 1:00pm — 4 Comments
Added by Saahil on April 22, 2011 at 2:30am — 4 Comments
अन्वेषण स्वयं का
जैसे
अनंत शून्य में भटकना
क्या सत्य है मेरा ,
या कोई मिथ्या
अंतरद्वंद या छलावा
मैं बुद्ध नहीं
महावीर भी नहीं हूँ
जो संसार के कष्टों से भाग चलूँ |
नहीं बैठ सकता कंदराओं में…
Added by Shashi Ranjan Mishra on April 21, 2011 at 6:39pm — 10 Comments
जो पत्थर दिल थे आँसू बहानें लगें हैं,
रु-ब-रु गर हो तो मुस्कुराने लगें हैं.
अज़ीब तर्ज है तकल्लुफ़ का फ़िज़ायों में,
छुपाते थे जो, सिलसिलें बतानें लगें हैं.
कल तलक मायूस थे जो ईद पर हम से,
अब मुखबरी मुहल्लें की सुनानें लगें हैं.…
Added by अमि तेष on April 21, 2011 at 1:30pm — 4 Comments
सब कुछ शांत है...मौन | दो छूहों पर टिकी छप्पर वाली दालान में रजाई ओढ़े हुए मैं इस सन्नाटे की आवाज़ सुनने की कोशिश करता हूँ | इस रजाई की रुई एक तरफ को खिसक गयी है; लिहाज़ा जिस तरफ रुई कम है उस तरफ से सिहरन बढ़ जाती है | हल्का सा सर बाहर निकालता हूँ तो तैरते हुए बादल दीखते हैं; कोहरा है ये जो रिस रहा है धरती की छाती पर | छूहे की खूँटी पर टंगी लालटेन अब भी जल रही है...हौले हौले | अम्मा देखेंगी तो गुस्सा होंगी; मिटटी का तेल जो नहीं मिल पाता है गाँव में....दो घंटों तक खड़ा रहा था कल, तब जाकर तीन लीटर…
ContinueAdded by neeraj tripathi on April 21, 2011 at 1:00pm — 2 Comments
करना रुखसत मुझे तो यूं करना ..
मेरे शब्दों को साथ कर देना..
मेरे स्वप्नों को हार कर देना..
गीत जो संग संग गाए थे..…
ContinueAdded by Lata R.Ojha on April 20, 2011 at 11:00pm — 7 Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on April 20, 2011 at 9:30pm — 5 Comments
तुमने चाहा मेरा वजूद ही मर जाए
किन्तु तुम्हारे प्यार में मै बुत था,
मेरे प्रेम तप से अनजान बने क्यूँ.
क्या तुम्हें मेरा विश्वास कम था...........,
तुम शौके बहार बन आए जीवन में
मैंने भी सब कुछ नाम किया तुम्हारे
प्रीत प्याले को हाथ में देकर
तुम अमृत की जगह विष दे डाले.......
तुम एक प्रेयसी बन के आए थे
तुम्हारी खुशबू से महक उठा मै
नए जोश उमंग से घड़ियाँ प्रेम की बीतीं.
ऐसा जख्म दिया साथी, ये जिंदगी है मुझसे रूठी........
Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 20, 2011 at 8:00pm — 6 Comments
Added by Veerendra Jain on April 20, 2011 at 11:30am — 9 Comments
Added by वीनस केसरी on April 20, 2011 at 3:00am — 7 Comments
Added by देवDevकान्तKant पाण्डेयPandey on April 19, 2011 at 3:32pm — 3 Comments
Added by neeraj tripathi on April 19, 2011 at 12:03pm — No Comments
गजल-खुदी को खुदी से छुपाते रहें हैं हम ।
गैरो को मोहरा बनाते रहें हैं हम।।
भ्रष्टाचार को सबने अपना लिया हैं।
शिष्टता की बातें बनाते रहें हैं हम।।
रोशनी से चैंधिया जाती है आंखें ।
अंधेरे में खुशियां मनाते रहें हैं हम।।
जेब कतरों का पेट नहीं भरता।
मेहनत की अपनी खिलाते रहें हैं हम।।
लाखों भूखे पेट सोते हैं यहां।
बज्मों में रातें बिताते रहें हैं हम।।
अन्नाजी आपका बहुत आभार ।
अब तक सूखी खाते रहें हैं हम।।
दोस्तों नेकी कुछ करलो अभी…
ContinueAdded by nemichandpuniyachandan on April 19, 2011 at 10:30am — 1 Comment
Added by sanjiv verma 'salil' on April 19, 2011 at 8:30am — No Comments
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