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पापा की सीख

                                                …

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Added by monika on June 22, 2011 at 1:30pm — 3 Comments

''फिर क्या होगा ?''

गर कोई पाठशाला न हो फिर क्या होगा

हम जैसों का इस जहाँ में फिर क्या होगा ?



मेरा गजलें लिखना तो है कोई जुर्म नहीं

मगर बिन इल्म लिखीं तो फिर क्या होगा ?



किस्मत ले आई है हमें भी इक कक्षा में  

पाठ समझ ना आये तो फिर क्या होगा ?



हुस्ने मतला का हुस्न हमसे बर्बाद हुआ

अगला मतला पतला हुआ फिर क्या होगा ?



रुक्न को समझने में रुकी हुई है अकल

फायलातुन, मुफाइलुन का फिर क्या होगा ?



रदीफ, काफिया की है हालत बड़ी नाजुक

मत्ला औ मकता… Continue

Added by Shanno Aggarwal on June 22, 2011 at 3:30am — 4 Comments

कभी मुझे इस दुनिया में रहने का ढब न आएगा ...

कौन किसी के अश्रु पिएगा, कौन घाव सहलाएगा ...

पत्थर दिल वालों की नगरिया में तू धोखा खाएगा ...



माँगेगा दो बोल प्रेम के, तुझे भिखारी समझेंगे ...

जो कुछ… Continue

Added by Prabha Khanna on June 21, 2011 at 9:54am — 9 Comments

मानसरोवर ----२

नियति का नीयत नियत होता, यह है कायर का कहना.



नियति भरोसे जीवन -यापन, जीवन से है छल करना.



यदि मनुज चाहे तो उसका, भाग्य बदल सकता है.



पत्थर के सीने से भी, निर्मल जल बह सकता है.



महाशक्ति है पौरुषबल, जो बदल डालता ब्रम्ह्लेख.



अमित बार सुर काँप उठे, मानव का अनुपम तेज देख.



सर्व शक्तिमान है मानव, है उचित पराश्रित रहना ?



नियति भरोसे जीवन -यापन, जीवन से है छल करना.



नियति गौण मानव -जीवन में, कर्म पक्ष की महता… Continue

Added by satish mapatpuri on June 21, 2011 at 2:00am — 1 Comment


मुख्य प्रबंधक
ब्लॉग / रचना कैसे पोस्ट करें ...

साथियों ! नये सदस्यों के सहयोग हेतु ब्लॉग में रचना कैसे पोस्ट करे चित्र के माध्यम से समझाया गया है | यदि पुनः कोई प्रश्न इस सम्बन्ध में हो तो नीचे दिए गए टिप्पणी बॉक्स मे लिखकर पूछा जा सकता है |…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 20, 2011 at 7:00pm — 4 Comments

धरती- चंद्रमा का लुका-छिपी महोत्सव

Wednesday, June 15, 2011

धरती- चंद्रमा का लुका-छिपी महोत्सव (एल. आर. गाँधी)



आज पूर्णिमा की रात इस शताब्दी की बहुत विचित्र रात है !

आज की रात शशि....अवनी संग लुका- छिपी का खेल खलेंगे.

लो शशि छुप गए और धरा दबे पाँव अपने प्रेमी को ढूंढ रही है. रवि चुप चाप इस खेल को निहार रहे हैं . तीनो आज रात सदियों के बाद लम्बी छुट्टी पर उत्सव मना रहे हैं… Continue

Added by l.r.gandhi on June 20, 2011 at 5:30pm — 1 Comment

कुछ ऐसा सोचें

चलो आज कुछ ऐसा सोचें। 

रोज़ नहीं हम जैसा सोचें

नींद उड़ा दे जो रातों की

सपना कोई ऐसा…

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Added by प्रदीप सिंह चौहान on June 20, 2011 at 1:14pm — 1 Comment

टूटने का दर्द

टूटने का दर्द होता एक समान ...........रिश्ता नामवर हो या के अनाम

चुभन तो मिट जाती है हर शूल की....शालती राहती उम्र तमाम....

घाव तो भर जाते है हर चोट के.... रह जाते है मगर निशान....

बेवफ़ाई तो भूल चुके उनकी मगर....भूल ना सके उनके अहसान

कद्र वो क्या समझते हमारी वफा का...जफ़ाओ का जो रखते सामान

क़ातिल तो फकत क़ातिल होता है...उसका न कोई धर्म न ईमान

                                              ##### प्रदीप सिंह चौहान "अनाम"

Added by प्रदीप सिंह चौहान on June 20, 2011 at 1:11pm — 1 Comment

शिक्षा का व्यवसायीकरण



फैलती मैकडोनल्ड की संस्कृति
कौशल किशोर
‘शिक्षा के व्यवसायीकरण के प्रभाव’ विषय पर बीते 14 जुलाई को लखनऊ के बली प्रेक्षागृह में रीगल मावन सृजन संस्थान की ओर से सेमिनार का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता शिक्षाविद अरुणेश मिश्र ने की तथा संचालन…
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Added by manu manju shukla on June 20, 2011 at 11:03am — No Comments

मत अभिमान करो ...

मत अभिमान करो ...

समय पक्षधर बना आज,

उसका सम्मान करो ...



कल साँसों की संचित पूँजी चुकने वाली है ...…

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Added by Prabha Khanna on June 20, 2011 at 9:00am — 9 Comments

मेरी त्रिवेनियाँ ....

 

1 . ये किसने इनके हाथ में ज़िन्दगी की कठिन किताब पकड़ा दी है 
      नुकीले सबक चुभ जाते हैं और आंसू बहता रहता है
 
      ये मजदूर माँ कब तक बच्चों से मजदूरी करवाती रहेगी !! 
 
 
2 . सोचता रहा सारा…
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Added by Veerendra Jain on June 19, 2011 at 11:46pm — 7 Comments

मुखौटों की दुनिया

मुखौटों की दुनिया

मुखौटों की दुनिया मे रहता है आदमी,

मुखौटों पर मुखौटें लगता है आदमी |

बार बार बदलकर देखता है मुखौटा,

फिर नया मुखौटा लगता है आदमी |

मुखौटों के खेल मे माहिर है आदमी,

गिरगिट को भी रंग दिखाता है आदमी |

शैतान भी लगाकर इंसानियत का मुखौटा,

आदमी को छलने को तैयार है आदमी |

मजहब के ठेकेदार भी अब लगाते है मुखौटे,

देते हैं पैगाम, बस मरता है आदमी |

लगाने लगे मुखौटे, जब देश के नेता,

मुखौटों के जाल मे, फँस गया आदमी |

जाति, धर्म… Continue

Added by dr a kirtivardhan on June 19, 2011 at 4:30pm — 1 Comment

सोमनाथ मे शिव

सोमनाथ मे शिव

--------------------

सोमनाथ मे शिव कि महिमा

अजब अनूठी हमने देखी|

जब-जब हुए आक्रमण इस पर,

भव्यता फिर से बढती देखी|

खंडन और विखंडन

प्रकृति का नियम है|

पुनः -पुनः निर्माण धारणा,

मानव कि उत्कंठा  देखी|

सोमनाथ है तीर्थ अनूठा,

सूर्य प्रथम शिव दर्शन करता,

सूर्यास्त पर भी सूर्य यहाँ,

शिव उपासना करता है|

समुद्र यहाँ पर चरण पखारे,

शिव कि महिमा गाता है|

अजब अनूठा शमा यहाँ है,

बच्चा -बच्चा शिव गाता… Continue

Added by dr a kirtivardhan on June 19, 2011 at 4:30pm — 1 Comment

---- सवाल खुदा से -----

ऐ खुदा   इस  जहाँ   में   तेरे ,

            कोई  हँसता ,कोई   रोता   क्यों ,,



इन्सान -इन्सान  सब  एक  समान  हैं  तो  फिर

            उंच -नीच   जाति-भेद  क्यों



इन्सान  तो  सब  तेरी  ही  सन्तान  हैं  फिर ,

            कोई  वारिस  कोई  लावारिस  क्यों ,,



तुने  ये  पेट  तो  सबको  दिया  हैं  फिर ,

            किसी  को  खाना  कोई  भूखा  क्यों ,,



दुनिया  में  कुछ  तेरा -मेरा  नही  फिर

            कोई  धनी कोई  गरीब  क्यों…

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Added by Ajay Singh on June 19, 2011 at 11:44am — No Comments

--------एक असफलता के बाद ------

एक छोटी सी असफलता मिली तो क्या

हर बार सफलता भी जरूरी नही होती ,

सूरज कि ऊंचाई पर न पहुँच सके तो क्या

चाँद कि ऊंचाई भी तो कम नही होती ,

एक हसरत पूरी न हो पायी तो क्या हुआ

हसरतें लोगों  की क्या अधूरी नही होती ,

हंसती-हंसती आती है नजर दुनिया तो क्या

हर हंसी के पीछे भी तो ख़ुशी जरूरी नही होती,

हमारा एक पल अच्छा न गुजरा तो क्या हुआ

 हर पल तो जिन्दगी ख़ूबसूरत नही होती ,

बोलकर मुंह से हाल न बता सके तो क्या

कविता क्या बीते पलों की जुबानी नही… Continue

Added by Ajay Singh on June 19, 2011 at 11:40am — No Comments

दुनिया की सबसे छोटी कविता "एकादशी" (सिर्फ ११ अक्षर) का सूत्रपात OBO पर...

(१)          यमुना                                                                                           

निर्मल जल

खो गया

(२)

निशानी

ताज महल

प्यार की

(३)

आगरा

खुबसूरत

घूम लो

(४)

पत्थर

हुआ क्षरण

बचालो

(५)

योजना

कागज़ पर

सफल

(६)

यमुना

जल विहार

भूल जा

(७)

ओबीओ

साहित्य…

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Added by Admin on June 19, 2011 at 10:00am — 53 Comments

जाने कब के बिखर गये होते....

= ग़ज़ल =

जाने कब के बिखर गये होते.

ग़म न होता,तो मर गये होते.



काश अपने शहर में गर होते,

दिन ढले हम भी घर गये होते.



इक ख़लिश उम्र भर रही, वर्ना -

सारे नासूर भर गये होते.



दूरियाँ उनसे जो रक्खी होतीं,

क्यूँ अबस बालो-पर गये होते.



ग़र्क़ अपनी ख़ुदी ने हमको किया,

पार वरना उतर गये होते.



कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,

दिल न जाते, तो सर गये होते.



बाँध रक्खा हमें तुमने, वरना

ख़्वाब…

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Added by डॉ. नमन दत्त on June 19, 2011 at 8:30am — 5 Comments

मै निराश हूँ……………….

कभी तो मेरा प्यार तुम्हे याद आयेगा ,

कभी तो तुम्हारा दिल मेरे लिए तड़पेगा ,

जैसे की आज मै तड़पता हूँ, ,

सुबह को न सही, दोपहर को न सही ,

शाम को न सही ,रात को न सही ,

अपने मिलन की कोइ घडी तो याद आएगी ?

जब कोइ तुम्हारा दिल दुखायेगा ,

तब मेरा प्यार याद आयेगा ,

कभी तो तुम्हारा दिल तड़पेगा ?

जैसे आज मै तड़पता हूँ, ,

तुम मेरे बेगैर एक पल भी नहीं रह पाते थे ,

मुझे न देखने पर बेचैन हो जाते थे ,

अब ओ प्यार कहाँ गया…

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Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on June 18, 2011 at 4:00pm — 4 Comments

रिश्ता-ए-गम





गम तो ग़म हैं ग़म का क्या ग़म आते जाते हैं
किसी को देते तन्हाई किसी को रुलाते हैं
दीपक 'कुल्लुवी' पत्थर दिल है लोग यह कहते हैं
उसको तो यह ग़म भी अक्सर रास आ जाते…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on June 18, 2011 at 1:00pm — No Comments

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