गजल#(नोट बंदी के फलितार्थ)-7
* एक वार्त्तालाप*
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दुकानें सजी हैं ,दिखाते खरीदो,
कहें बंद जिनकी,चलो अब कहीं तो।1(आज का सच)
अभी दौर मुश्किल हुआ जा रहा है,
उठेगी ही अर्थी,ठहर भर घड़ी तो।2(चेतावनी)
बुझे रात के सब मुसाफिर सुबह तक,
जलाती बहुत है प्रखरता मुरीदो!3(अनुभूति)
बड़े जोड़ से तो बटोरे थे' टुकड़े
जलाना, बहाना अखरता मुरीदो!4(आत्मकथ्य)
हुआ ही कहाँ कुछ?बता दो बखत है,
बचा है वसन बिन नहाना…
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Added by Manan Kumar singh on November 27, 2016 at 3:30pm —
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22 22 22 22
सच होता कब कहना सबकुछ
लाख करो क्या बनता सबकुछ?1
ढाते सब बेमतलब बारिश
झूठ कहाँ हो जाता सबकुछ?2
शमशीरें ले हाथ खड़े हैं
कर सकते क्या बौना सबकुछ?3
पंथ पता बेढ़ंग चले हैं
कौन कुपथ हो सकता सबकुछ?4
कितनों ने दी कुर्बानी, पर
याद भला कब रहता सबकुछ?5
खींच रहे बस रोज लकीरें
कोई कह दे, लिखता सबकुछ?6
मिहनत की ताबीर 'मनन'मय
हो सकता क्या जीना सबकुछ?7
मौलिक व अप्रकाशित@मनन
Added by Manan Kumar singh on November 22, 2016 at 10:16am —
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गाँव में चोरों का प्रकोप बढ़ रहा था। लोग परेशान थे।आये दिन किसी-न-किसी घर में चोरी हो जा रही थी। ग्राम प्रधान ने नई योजना बनाई। पूरा गाँव स्थिति से निपटने को तैयार था।रात चढ़े कालू सेठ के घर चोर पहुँचे।घर का मौन उन्हें ज्यादा मुखर लगा,कालू सेठ का चिर परिचित खर्राटा जो सुनने को नहीं मिला। वे भागने लगे।पूरा गाँव होहकारा देकर पीछे पड़ गया। पर चोर तो चोर थे।निकल गए दूर तक,चोरोंवाले गाँव की तरफ।प्रधान जी के नेतृत्व में उनके गाँव का जत्था आगे बढ़ता जा रहा था।पर यह क्या? थोड़ा ही आगे जाने पर वे…
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Added by Manan Kumar singh on November 18, 2016 at 6:30pm —
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1222 1222 1222 1222
अगर हो नागवारी तो भुलाना भी जरूरी है
भले कुछ हो हमारा पास आना भी जरूरी है।1
बटोरे थे बहुत धन अबतलक कुछ इस कदर मैंने
पचाना हो गया मुश्किल बताना भी जरूरी है। 2
चुने मैंने महज चमचे बदलने को पुराने सब
असीमित नोट हैं अब तो गिनाना भी जरूरी है।3
पड़े छापे बहुत अबतक पड़ेंगे और भी कितने
अगर हों साथ कुछ अपने दिखाना भी जरूरी है।4
पकड़ में आ न जाये धन सँजोया वक्त गाढ़े का
जलाना या बहा गंगा नहाना भी जरूरी…
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Added by Manan Kumar singh on November 13, 2016 at 12:56pm —
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22 22 22 22
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होते-होते कुछ हो जाता
वक्त सभी का मोल बताता।1
गाढ़े का जोड़ा धन धुँधला
बेसाबुन कोई धो जाता।2
हँसते रहते गाँधी बाबा
झुँझलाता कोई रिसिआता।3
रोते-मरते धन्ना कितने
चाय पिला चँदुआ मुसुकाता।4
नोट बड़े सब शून्य हुए हैं
छोटा लल्ला है इठलाता।5
चैन लुटा कितनों के घर का
काला धन कुछ बाहर आता।6
पीट रहे सब खूब लकीरें
वेग समय का बदला जाता।7
सोना दूभर करता…
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Added by Manan Kumar singh on November 10, 2016 at 11:54am —
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2122 2122 2122 2
हैं उभरते आजकल यूँ रहनुमा घर-घर
अब सियासत का उतारा हो गया घर-घर।1
अब न पढ़ना है, न कुछ करना जरूरी ही,
बस वजीरों का मुहल्ला बन चला घर-घर।2
गलतियों से आपकी लाला मिनिस्टर हैं
कुर्सियों पर आजकल चिपटा पड़ा घर-घर।3
अँगुलियों पर नाचकर रहबर बना है वो
बढ़ गया कुनबा बड़ा इतरा रहा घर-घर।4
रोशनी की खोज में लड़ कर मरे पुरखे
बस अँधेरा ही यहाँ छितरा रहा घर-घर।5
जोड़ने की बात के थे मुंतजिर सारे
तोड़ने का…
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Added by Manan Kumar singh on November 4, 2016 at 4:00pm —
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देश से अपने हमें तो प्यार है
देशद्रोही मत बनो, धिक्कार है।1
धूप-धरती सब मिले तुझको यहाँ
देश की तुझको सखे दरकार है।2
जड़ बिना पौधा कहीं पनपा नहीं
देश की माटी बड़ा आधार है।3
चल रहे हैं बेवजह के चुटकुले
भेदियों की हो गयी भरमार है।4
सनसनाते हैं यहाँ नारे बहुत
'भारती'माँ की कहो जयकार है।5
कैद तेरी बात अब क्यूँ हो गयी?
रे! जवानी को बड़ी ललकार है।6
रोशनी पूरब से' देखो हो रही
झाँक लो अंदर यही मनुहार…
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Added by Manan Kumar singh on November 1, 2016 at 8:30am —
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दीप-पर्व पर(भुजंगप्रयात छंद)
122 122 122 122
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चलो रोशनी को जगाने चलें हम
अँधेरे यहाँ से हटाने चलें हम।1
रहे माँगते इक किरण का सहारा
लिये दीप कर में जलाने चलें हम।2
बँटे खेत कितनी तरह से अभी हैं
दिलों की लकीरें मिटाने चलें हम।3
बहुत बार देखी नजाकत जहाँ की
जरा नाज अपना दिखाने चलें हम।4
कहानी हुआ भेद बढ़ना यहाँ का
चलो आज पर्दा उठाने चलें हम।5
इशारों पे' अबतक उझकते फिरे…
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Added by Manan Kumar singh on October 23, 2016 at 7:30am —
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#गीतिका#
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टूटता रहता घरौंदा फिर बनाना चाहिये
जोड़कर कड़ियाँ जरा-सा गीत गाना चाहिये।1
जिंदगी से दर्द का बंधन बड़ा मशहूर है
जब समय थोड़ा मिले तो मुस्कुराना चाहिये।2
तीर ये कबके सँजोये चल रहे हैं आजतक
बात पहले की भुला नजदीक आना चाहिये।3
आदमी को आदमी के दर्द का अहसास हो
बस हवा ऐसी बहा गंगा नहाना चाहिये।4
मिल रहीं नजरें यहाँ परवान पन चढ़ता नहीं
आपके दिल में जरा मुझको ठिकाना चाहिये।5
फूल छितराये नहीं ऐसी करूँ…
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Added by Manan Kumar singh on October 18, 2016 at 8:00pm —
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2122 2122 2122 212
लूट का धंधा करें जो वे सभी रहबर हुए
जिंस कुछ जिनकी नहीं है आज सौदागर हुए।1
आशियाने जल रहे सब हो रहे बेघर यहाँ,
अब परिंदे क्या उड़ेंगे लग रहा बेपर हुए।2
मिल रही बहकी हवा कातिल बवंडर से अभी,
खरखराते पात सब हर डाल पर अजगर हुए।3
घुल रहा कैसा जहर गमगीन लगती है फिजा,
शब्द वैसे ही धरे हैं अर्थमय आखर हुए।4
है वही अपना गगन भरता गया काला धुआँ,
पूछते पंछी विकल हालात क्यूँ बदतर हुए।5
पत्थरों को फाड़ कर…
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Added by Manan Kumar singh on October 10, 2016 at 7:30pm —
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( बेवजह भौंकनेवालों को संबोधित)
रमल मुरब्बा सालिम
2122 2122
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देख ढ़ेर बवाल मत कर
दोहरी अब चाल मत कर।1
रंग देख हँसे जमाना,
गिरगिटों-सा हाल मत कर।2
हैं सियारों-सी अदाएँ,
शेर वाली खाल मत कर।3
जो लड़ाई लड़ रहा उस
शस्त्र को वाचाल मत कर।4
कर रहा कुछ खुद नहीं तू,
भौंक कर अब ढ़ाल मत कर।5
बुझ गयीं कितनी मशालें,
और अब पामाल मत कर।6
श्वान भी सीमा बचाते,
भौंक,पर बेताल मत…
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Added by Manan Kumar singh on October 8, 2016 at 2:30am —
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छद्मवेशी देशभक्त दोस्तों को समर्पित)
2122 2122 2122 2
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कर गुजरते कुछ अभी तैयार बैठे हैं
देख अपनों की दशा लाचार बैठे हैं।1
दुश्मनों की नस दबाते, शोर मच जाता,
इश्क के तो ढ़ेर सब बीमार बैठे है।2
दोस्त वह खंजर चलाता आँख बेपानी,
भर रहे हामी मुए इस पार बैठे हैं।3
जीतते आये दिलों पे राज भी करते
भेदियों की भीड़ है मन मार बैठे हैं।4
फूल कितने भी खिलाये चुभ रहे काँटे
बागवाँ पहले यहाँ सब हार बैठे हैं।5
रोशनी…
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Added by Manan Kumar singh on September 28, 2016 at 8:34am —
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2122 2122 2122 2
फूल हैं खिलते निगाहें चार करते हैं,
बागवाँ पर हम बड़ा एतबार करते हैं।1
बाँटते खुशबू जमाने से रहे सब हम,
झेलते झंझा कहाँ तकरार करते हैं?2
हम बटोही प्यार के दो बोल के भूखे ,
खुशनुमा बस आपका संसार करते हैं।3
हैं विहँसते हम सदा बगिया सजाने को,
प्यास आँखों की बुझा आभार करते हैं।4
हो नहीं सकता मसल दे पंखरी कोई,
खार भी रखते बहुत हम प्यार करते हैं।5
जां लुटाने की अगर नौबत हुई तब भी,…
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Added by Manan Kumar singh on September 26, 2016 at 7:00am —
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बहर-रमल मुसद्दस सामिन
2122 2122 2122
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काश मुझको भी मिला उस्ताद होता!
शाइरी का इक जहाँ आबाद होता।1
हर्फ अपने बात हर दिल की पिरोते,
तालियाँ पिटतीं बहुत इरशाद होता।2
राबिते ढ़ल काफिये मिलते जमीं से
हर बहर में प्यार का संवाद होता।3
फिर कहाँ कोई भटकता रूक्न होता,
नित नया इक शेर तब ईजाद होता।4
रूप का डंका बजाते फिर रहे सब,
हुश्न हर ताबीर से आजाद होता।5
मानती अपनी गजल कविता सुहाती,
फिर नहीं मन में…
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Added by Manan Kumar singh on September 15, 2016 at 8:30pm —
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2122 2122 2122 212
बंदिशों को तोड़कर हलचल करूँगाआज भी
बात मन की बेझिझक मैं तो कहूँगा आज भी।1
फिर गयीं नजरें बहुत ही क्या हुआ कुछ गम नहीं,
आँख में बनकर सपन मैं तो रहूँगा आज भी।2
ले गये कितने बवंडर तोड़ कर कलियाँ मगर,
डाल पर इक फूल बन मैं तो सजूँगा आज भी।3
टूटती अबतक रही हैं गीत की लड़ियाँ मगर,
राग बन हमराज का मैं तो बजूँगा आज भी।4
लुट गये कितने सपन बेढ़ब फिजाओं के तले,
इक घरौंदा रेत पर फिर से रचूँगा आज भी।5
होंठ…
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Added by Manan Kumar singh on September 5, 2016 at 5:00am —
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2122 2122 2122 2
मर रहे क्यूँ नाम के अखबार की खातिर
कब बने तमगे कहो फनकार की खातिर।1
लिख रहे जो बात कुछ भी काम आये तो
गर बहें आँसू किसी दरकार की खातिर।2
चाँद-सूरज जल रहे फिर मोम गलती है,
रूठते हैं कब भला उपहार की खातिर।3
बाढ़ आती है जहाँ कुछ- कुछ पनपता है
है कहाँ सब लाजिमी घर-बार की खातिर।4
खुद खुशी हित थी लिखी बहु जन मिताई ही
लिख रहे कुछ लोग निज उपकार की खातिर।5
शोखियों का शौक रखते बदगुमां कुछ…
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Added by Manan Kumar singh on August 23, 2016 at 7:00am —
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2212 2212 2212
रिश्ता कभी गहरा कभी घायल लगा
अाँसू कहाँ अबतक भला कहकर बहा?1
डगमग हुई नैया कभी मझधार में
नाविक सजग पतवार ले खेता रहा।2
ढूँढे बहुत मिलती नहीं है चीज जब
हँसता हुआ भी आदमी रोता बड़ा।3
बसती रही हैं चाह में कलियाँ मगर
किस्मत बदा वह झेलता काँटा चला।4
रहता बगल में आदमी क्षण भर कभी
पल में मुखालिफ हो गया क्यूँ मनचला?5
जीती भले ही जंग है अबतक बहुत
लगता रहा क्यूँ हार पर है कहकहा।6
डरता नहीं है…
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Added by Manan Kumar singh on August 20, 2016 at 6:30am —
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(रमल मुसद्दस सालिम)
2122 2122 2122
हो फटा दामन भले पर मत लजाओ
फेंकते पत्थर जरा उनकी गिनाओ।1
टाँकते फिरते वसन अबतक रहे तुम
अब जरा उनकी हकीकत भी बताओ।2
घाटियों को घर समझने हैं लगे सब
जेब में कौड़ी पड़ी अपनी बताओ।3
दोस्ती कुर्बान अबतक सरहदों पर
पार से आवाज आती कर बढ़ाओ।4
हार जाता जो हमेशा वार कर के
चाहता दुश्मन चलो भी आजमाओ।5
मौलिक व अप्रकाशित@मनन
Added by Manan Kumar singh on August 17, 2016 at 9:30am —
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विमला और विशाल झगड़ रहे हैं।कैफे में बैठे लोग यह देखकर चकराये हुए हैं।अब तक उन लोगों ने इन दोनों का हँसना-खिलखिलाना ही देखा था,पर आज तो नजारा ही कुछ और है।विमला एकदम से भिन्नायी हुई है।विशाल ने कुछ कहना चाहा,पर वह खुद उबल पड़ी-
बस करो,अब रहा ही क्या कहने को......?
-मेरा मतलब, सब कुछ तो सहमति से ही हुआ था न?
-हाँ क्यों नहीं,पर कुछ और भी तो बातें हुई थीं कि नहीं,बोलो।
-हाँ,पर शादी के लिये घर वाले राजी नहीं हैं न ।उन्हें कैसे भी पता चल गया है कि तुम वहीदा हो,विमला नहीं।…
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Added by Manan Kumar singh on July 31, 2016 at 10:30pm —
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2122 2122 212
अब नयी पहचान देगा आदमी
बात पत्थर से करेगा आदमी।1
जो मरा अबतक बचाते जिंदगी
क्या कभी आगे मरेगा आदमी?2
पोंछता आँसू जमाने से रहा
खून बन अब तो बहेगा आदमी।3
लाज का फटता वसन हर मोड़ पर
अब भला कितना सियेगा आदमी।4
मोहरों का बन रहा है मोहरा
आपको पहचान लेगा आदमी?5
गलतियों पर चढ़ रही कबसे बरक
कब भला यह मान लेगा आदमी?6
ढूँढते तुम आ गये हो दूर तक
देख लो शायद मिलेगा आदमी।7
मौलिक व…
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Added by Manan Kumar singh on July 24, 2016 at 3:11pm —
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