पुल .....
अर्थात ...मिलन
दो गांवों का /दो देशों का
और
नदियों को लांघने का एक संरचना ॥
रिश्तों का पुल बनता है
जब दो परिवार
शादी के बंधन में बंधते है ।
कुछ दिनों पहले पढ़ा था
एक तलाक शुदा दंपत्ति के
१२ वर्षीय पुत्र ने
माता -पिता के दिलो को जोड़ा
पुल बनकर ॥
प्रजातंत्र में भी
पुल बनाया जाता है
नेताओ और वोटरों के बीच
भाषणों का / आश्वासनों का
जो तुरंत ही ढह जाता है ॥
दरअसल…
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Added by baban pandey on June 6, 2010 at 11:50am —
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गुमाँ का बोझ हटा तो संभल गया हूँ मैं
इसी यक़ीन के नीचे कुचल गया हूँ मैं
ये क्या कि मोम कि सूरत पिघल गया हूँ मैं
तेरे क़रीब की हर शय में ढल गया हूँ मैं
इस अंधकार की सीमा तलाशने के लिए
एक आफताब से आगे निकल गया हूँ मैं
अज़ीज़ दोस्त के चेहरे की अजनबी आँखें
बता रहीं हैं कि कितना बदल गया हूँ मैं
मेरा वजूद समंदर की रेत जैसा है
ख़याल छाओं का आते ही जल गया हूँ मैं
Added by fauzan on June 4, 2010 at 5:32pm —
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तकदीर
गर रोने सी ही
बदल सकती तकदीर
यह ज़मीन बस सैलाब होती
गर अश्क बहाने सी होती
हर गम की तदबीर
यह नम आंखें
कभी बेआब न होती
Added by rajni chhabra on June 4, 2010 at 8:50am —
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रक्त से सारा मरुस्थल तरबतर करते हुए
प्राण तो त्यागे मगर खुद को अमर करते हुए
सब्र की सारी हदों से कोई आगे बढ़ गया
अग्निपथ पे तिशनगी को अग्रसर करते हुए
उसके चेहरे के वरक़ को झुर्रियों से भर दिया
उम्र की रेखाओं ने हस्ताक्षर करते हुए
धीरे धीरे बोझ बुनियादों पे कम होता गया
वक़्त यूँ गुज़रा हवेली को खंडहर करते हुए
ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए
Added by fauzan on June 3, 2010 at 9:47pm —
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नेट पे होती है बाते ,
फिर होती है मुलाकाते ,
यारो दिल की सुनो ,
कहता हु दोस्ती के नाते,
ये तो सुनहरा मौका ,
देता हैं (ओ बी ओ )
प्यार से मिलो और ,
प्यार में ही जिओ ,
गुरु के संग गणेश जी ,
और सतीश जी ,
पावन स्थल पटना,
मंदिर महाबीर की ,
तीनो जो हम मिले ,
दोस्ती दिल के खिले ,
लगता नहीं था यारो ,
पहली बार हम मिले ,
बरसो की दोस्ती हो ,
हो बरसो से मिलते रहे ,
दिल में बहुत हैं बाते ,
और मैं क्या कहू…
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Added by Rash Bihari Ravi on June 3, 2010 at 4:00pm —
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आज दिनांक 02/06/2010 को ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के कुछ सदस्यो का मिलन पटना के पवित्र महावीर मंदिर के प्रांगण मे हुआ, जिसका चित्र यहाँ देखा जा सकता है |
पटना के पवित्र महावीर मंदिर
रवि कुमार "गुरु" और सतीश मापतपुरी जी
गनेश जी "बागी", रवि कुमार "गुरु" और सतीश मापतपुरी जी…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 2, 2010 at 10:32pm —
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सीना नहीं बना पाए तो क्या ..पेट तो फुला लिया .. अपराध मिटा न सके तो क्या .. अवरोधक तो बना लिया ....
पेट में जो चर्बी है सब आम जनता की अमानत है ..वापस लेना है की नहीं..
. इतनी चर्बी से ना जाने कितने घुप्प घरो के दिए रोशन हुए होते ..
Added by Anand Vats on June 2, 2010 at 12:09pm —
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काश!
काश!अपना कह देने भर से ही
गैर अपने होते
तो अनजान शहर में भी
अजनबी लोगों से घिरे
खुशनमा सपने होते
मगर हकीकत तो यह की
अपने ही शहर में अपने
बेगानों सा मिला करते हैं
क्यों खफा रहते हैं आप हम से
इस पर यह गिला करते हैं
रजनी छाबरा
Added by rajni chhabra on June 2, 2010 at 9:00am —
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kya bachpan hota hai yar ab bachpan ki kimat samajh aati hai us waqt lagta tha ki jaldi se bara ho jaun to koi padhne ke liye nahi kahega khele aur ghumne ki puri aajadi hogi. result nikalne se 1 din pehle ye manata tha ki bhagwan is par kisi tarah pass kar do next class me man laga ke padhenge. kya ajib sab khel humlog khelte the
1. budhiya kabaddi
2. kabbadi
3. noon tha
4 Gilli danda
5. Goli
6. Lakri choo
7. cricket jisme wicket 9-10 bricks se bante…
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Added by Ajit kumar sinha on June 1, 2010 at 8:22pm —
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वैसे तो
खुटे से बंधी चरती गाय
और प्रजातंत्र में
कोई समानता नहीं दिखती ॥
मगर
थोडा गौर फरमायें
तीन महत्वपूर्ण बिंदु ....
खूंटा , गाय और रस्सी ॥
खूंटा मतलब संबिधान
अपनी जगह स्थिर
गाय मतलब नेता
चारों ओर चरने वाला
और रस्सी यानी वोटर
इस रस्सी को जब चाहो
तोड़ दो , मोड़ दो , काट दो
है ना समानता ॥
क्या हम सब रस्सी
आपस में मिलकर .....
गाय को नियंत्रित नहीं कर सकते ॥
Added by baban pandey on June 1, 2010 at 8:03pm —
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मैं कोई लेखक नहीं हु लेकिन मेरे अंदर कीड़ा मचला है अब ..शब्दों को पिरोना संजोना नहीं अत्ता है .. लेकिंग जो बातें हैं कही अनकही बस लिख देना है
गर्मी भीषण हो रही है दिल्ली में मगर बचपना याद दिला रही है..झारखण्ड में एक जगह है , साहिबगंज . वह एक तरफ झरने वाली पहाड़ी है दूसरी तरफ उत्तर वाहिनी गंगा ..चिलचिलाती धुप में कभी झरने में नहा के सुकून लेते थे केकड़ो को पकड़ पकड़ कर हमलोग उसके शल्य चिकित्सा किया करते थे . रोज़ स्कूल से भाग के गंगा नहाने जाते थे सारा दिन मस्ती शाम को आंखे लाल होती…
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Added by Anand Vats on June 1, 2010 at 1:03pm —
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मैं
समुद्र की उन लहरों की तरह नहीं
जो बार -बार गिरती है / उठती है
और
किनारे तक आते - आते
दम तोड़ देती है ॥
मैं
उन घोड़ो की तरह भी नहीं
जिसे
चश्मा लगा देने पर
सुखी घास भी
हरी दूब समझ खा लेते हैं ॥
मैं
उन दिहाड़ी मजदूरों की तरह भी नहीं
जो १०० रुपया और एक पेट खाना पर
बुला लिए जाते है ....
राजनेताओ की रैलियो में
भीड़ जुटाने के लिए ॥
मैं तो चिंगारी हु मेरे दोस्त !!
सबके दिल में रहता…
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Added by baban pandey on June 1, 2010 at 12:49pm —
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माँ की सुनायी प्रयाय्वाची पे आधारित कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी है ....
हरी गए हरी से मिलने , हरी बैठे हरी पास
ये हरी वोह हरी मिल गए , ये हरी भये उदास |
हरी अर्थात (साप , मेढक . नदी )
Added by Anand Vats on June 1, 2010 at 12:06pm —
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मैं तत्काल प्रभाव से मेरे सारे कार्यों से त्यागपत्र दे रहा हूँ -- मेरे इस्तीफे के लिए कारण है कि मैं आज सुबह काम पर जाने से पहले मुझे एहसास हुआ की बाल मजदूरी आपराध है|| आपसे शिकायत है की आप मुझे एहसास न दिला पाए .
Added by Anand Vats on June 1, 2010 at 11:50am —
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बाल श्रमिक
वह जा रहा है बाल श्रमिक
अधनंगे बदन पर लू के थपेड़े सहते
तपती,सुलगती दुपहरी मैं,सर पर उठाये
ईंटों से भरी तगारी
सिर्फ तगारी का बोझ नहीं
मृत आकांक्षाओं की अर्थी
सर पर उठाये
नन्हे श्रमिक के बोझिल कदम डगमगाए
तन मन की व्यथा किसे सुनाये
याद आ रहा है उसे
मां जब मजदूरी पर जाती और रखती
अपने सर पर ईंटों से भरी तगारी
साथ ही रख देती दो ईंटें उसके सर पर भी
जिन हालात मैं खुद जे रही थी
ढाल दिया उसी मैं बालक को भी
माँ के…
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Added by rajni chhabra on June 1, 2010 at 1:33am —
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इसी जद्दोज़हद में
ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं
हर्फ़ हर्फ़ जोड़ कर ज्यों
सफे भर रहे हैं
अधूरी है रदीफ़
काफिया नहीं है पूरा
तुकबंदी मिलाने की बस
जुगत कर रहे हैं
ज़िन्दगी गो कि
इक ग़ज़ल है
रूठा हुआ हमसे
अभी ये शगल है
अशआरों की तरह
उमड़ते हैं
चेहरे कई लेकिन
'मीटर' जो बैठ जाए
वही भर पन्नो पर
उतर रहे हैं
दुष्यंत .............
Added by दुष्यंत सेवक on May 31, 2010 at 4:31pm —
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चाँद नभ में आ गया, अब आप भी आ जाइये.
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.
नींद सहलाती है सबको, पर मुझे छूती नहीं.
जानें आँखें पथ से क्यों,क्षणभर को भी हटती नहीं.
प्यासी नज़रों को हसीं, चेहरा दिखा तो जाइये.
कल्पना मेरी बिलखती, वेदना सुन जाइये.
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.
कब तलक मैं यूँ अकेला, इस तरह जी पाउँगा.
इस निशा- नागिन के विष को, किस तरह पी पाउँगा.
इस जहर में अधर का, मधु रस मिला तो जाइये
याद जो हरदम रहे, वो बात तो कर जाइये
सज…
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Added by satish mapatpuri on May 31, 2010 at 2:17pm —
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एक और साल ख़त्म हुआ तेरे इंतज़ार का...
एक और जाम ख़त्म हुआ हिज़रे -ऐ-यार का
कई रिंद मर गए पीते-पीते,
साकी बता दे पता अब तू मेरे यार का
गिन-गिन के प्याला तोड़ता हूँ,
मै तेरे मैखाने में हर रोज़
कभी तो ख़त्म हो ये पैमाना तेरे इंतज़ार का
तुझे तो कातिल भी नहीं कह सकता
क्यूँ जिन्दा छोड़ दिया मुझे तड़पने को
सारे ज़माने से तनहा होगया
क्यूँ इतना तुझे प्यार किया
मुझे कहीं पागल न समझ बैठे जमाना
इसलिए थाम लिया लबो पे तेरे फ़साने को
अब…
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Added by Biresh kumar on May 30, 2010 at 7:30am —
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जब याद तेरी तडपाये
रातों को नींद न आये
कोई दर्द समझ न पाए
आने वाले अब तो आजा
सावन बीता जाए
जब याद तेरी तडपाये
बचपन में साथ जो खेले
सब दुःख सुख मिलकर झेले
हम रह गए आज अकेले
jab से वोह परदेस गए हैं
लौट कर फिर न आये
जब तेरी याद तडपाये
जब फैली तेरी खुशबू
सूखे आँखों में आंसू
है तुझमे ऐसा जादू
मिटटी को अगर हाथ लगा दे
तो सोना बन जाए
जब याद तेरी तडपाये
बरसे…
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Added by aleem azmi on May 29, 2010 at 9:03pm —
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ज़रा सोच लो
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दूसरों को ठोकरें मारने वालो
ज़रा सोच लो एक पल को
पराये दर्द का एहसास
तुम्हे भी सालेगा तब
ज़ख़्मी हो जायेंगे
तुम्हारे ही पाँव जब
दूसरों को ठोकरें मारते मारते
रजनी छाबरा
Added by rajni chhabra on May 28, 2010 at 2:40pm —
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