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जब भगवान शिव ने सृष्टि की

जब चारों ओर केवल अन्धकार का अस्तित्व था, न सूर्य था न चन्द्रमा और न कहीं ग्रह-नक्षत्र या तारे थे, दिन एवं रात्रि का प्रादुर्भाव नहीं हुआ था, अग्नि, पृथ्वी, जल एवं वायु का भी कोई अस्तित्व नहीं था, तब एकमात्र भगवान शिव की ही सत्ता विद्यमान थी; और यह वह सत्ता थी जो अनादि एवं अनंत है।



एक बार भगवान शिव की इच्छा सृष्टि की रचना करने की हुई। उनकी एक से अनेक होने की इच्छा हुई। मन में ऐसे संकल्प के जन्म लेते ही भगवान शिव ने अपनी परा शक्ति अम्बिका को प्रकट किया। उन्होंने उनसे कहा, ‘‘हमें सृष्टि… Continue

Added by Neelam Upadhyaya on July 9, 2010 at 4:07pm — 6 Comments

ग़ज़ल-४

ज़िन्दगी जो भी तेरे अहकाम रहे

..वो सब के सब मिरे मुक़ाम रहे |



अय्यार कम नहीं हर बशर-ए-मौजूदा

पर तेरी जिद के आगे सब नाकाम रहे |



हर रास्ता खत्म था इक दोराहे पर..

क्या कहें किस तलातुम बेआराम रहे |



रंग-ए-खूं की खबर हर सम्त थी फैली

हम फिर भी गफ़लत में सुबहोशाम रहे |



इक मौत ही है जो बेख़ौफ़ तुझसे

वरना जो लड़े गुजरे अय्याम रहे |



हर शख्स ख्वाहिशमंद है केवल इतना

कुछ न हो बस वो चर्चा-ए-आम रहे |



सतर ना छुप सकेगी… Continue

Added by विवेक मिश्र on July 9, 2010 at 3:30pm — 6 Comments

चालीसा मन्त्र इत्यादि

श्री सूर्य नमस्कार मन्त्र

~~

ॐ मित्राय नम:॥1॥

ॐ रवये नम:॥2॥

ॐ सूर्याय नम:॥3॥

ॐ भानवे नम:॥4॥

ॐ खगाय नम:॥5॥

ॐ पूष्णे नम:॥6॥

ॐ हिरण्यगर्भाय नम:॥7॥

ॐ मरीचये नम:॥8॥

ॐ आदित्याय नम:॥9॥

ॐ सवित्रे नम:॥10॥

ॐ अर्काय नम:॥11॥

ॐ भास्कराय नम:॥12॥



-:##############:-



श्री गायत्री मन्त्र

~~

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यम्

भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on July 9, 2010 at 3:16pm — 9 Comments

श्री शनि चालीसा

~~~

॥ दोहा ॥



जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ।

दीनन के दुःख दूर करि , कीजै नाथ निहाल ॥1॥

जय जय श्री शनिदेव प्रभु , सुनहु विनय महाराज ।

करहु कृपा हे रवि तनय , राखहु जन की लाज ॥2॥



जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥

चारि भुजा, तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छवि छाजै ॥

परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥

कुण्डल श्रवन चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमकै ॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on July 9, 2010 at 2:13pm — No Comments

आज फैशन का ज़माना हैं ,

आज फैसन का जमाना हैं ,

सारा जग माना हैं ,

हम सब अब ये भूल गए हैं ,

सच्चाई से दूर गए हैं ,

जिसको छुपाना हैं ,

उसकी नुमाइस होती हैं ,

जिसको दिखाना हैं ,

उसको छुपाई जाती हैं,

मैं नहीं ये तो ,

सारा जग माना हैं ,

आज फैसन का जमाना हैं ,

खाने में भी इसकी ,

अब होती नुमाइस हैं ,

भुट्टे को भूलने लगे ,

पापकोन की चोवाइस हैं ,

थोड़े में पेट भर जाये ,

खर्चा भी कम आये ,

मगर रोटी चावल नहीं ,

रेडी फॉर इट लाना हैं ,

आज… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on July 9, 2010 at 1:42pm — 1 Comment

गरीबी और भ्रष्टाचार

गरीबी और भ्रष्टाचार

एक तरह से देखे तो गरीबी और भ्रष्टाचार शास्वत समस्या है | यह समस्या सृष्टि के उद्भव से ही है और शायद सृष्टि के अंत तक रहेगी | जब हमारा राष्ट्र विश्व गुरु हुआ करता था तब भी ये समस्या किसी न किसी रूप में विद्यमान थी | शास्त्रों में भी इसका वर्णन मिलता है | समय के साथ ये समस्या बढती गई और अब इसने उग्र रूप ले लिया है | आज समाज का कोई भी कोना और वर्ग इससे अछूता नहीं है |

अगर हम चिंतन करे तो पता चलता है कि गरीबी और भ्रष्टाचार एक दूसरे के पूरक है | गरीबी से त्रस्त ब्यक्ति… Continue

Added by BIJAY PATHAK on July 9, 2010 at 1:30pm — 3 Comments

दुनिया (लोककथा)

एक लड़का था । बचपन में ही उसके माता-पिता गुजर गए । उसका लालन-पालन उसके नाना ने किया । लड़का अभी आठ-नौ साल का था तभी उसपर दुनिया देखने का भूत सवार हो गया । वह बार-बार अपने नाना से कहता कि मैं दुनिया देखना चाहता हूँ ? नाना समझाते कि बेटा अभी तो तुम्हारे पास बहुत समय है, जब तू बड़ा होगा, दुनियादारी में लगेगा तो तूझे खुद मालूम हो जाएगा कि दुनिया क्या है ? पर लड़का अपने नाना की एक न सुनता और बार-बार दुनिया देखने की रट लगाता ।

एक दिन लड़के के नाना ने कहा, "चलो आज मैं तुमको दुनिया दिखाता हूँ" ।… Continue

Added by Prabhakar Pandey on July 9, 2010 at 10:08am — 4 Comments

समर्थन मूल्य

समर्थन मूल्य पर अनाज बेचकर , किसान हुए बेहाल

उत्पादों का स्वं मूल्य लगाकर , पूंजीपति हुए निहाल ॥



अरहर दाल ९० रूपये किलो , बोल- बोलकर लोग खूब चिल्लाते

५ रूपये के टैबलेट को , पूंजीपति १०० रूपये का मूल्य दिखाते ॥



मंहगाई का दीया दिखाकर , पूंजीपति खूब कमाते

कड़े -कड़े नोटों की माला , नेताओं को पहनाते ॥



चुनाव के वक़्त दिया था , नेताओं को चंदा

जी भर कर दाम बढाओ , कर लो गोरखधंधा ॥



दवा, सीमेंट और लोहा पर , सरकार की कुछ नहीं चलती

मंहगाई… Continue

Added by baban pandey on July 9, 2010 at 8:22am — 4 Comments

फिर एक दिन ...

ताजे फल , ताज़ी सब्जियां
बनाती है , स्वस्थ खून
ताजे विचार , ताज़ी सोच
बनाती है , स्वस्थ रिश्ते ॥

स्वस्थ रिश्ते
चढ़ाती है सीढिया
सफलता की ॥
और फिर
चंचल बनते है हम
लक्ष्मी बरसने लगती है ॥

फिर एक दिन ....
हमें जाना होता है
शाश्वत सत्य की दुनियां में
साथ नहीं जाती लक्ष्मी ॥

दुनियां .....
उसे और लक्ष्मी को भूल जाती है
याद रहती है
सिर्फ ...उसके द्वारा बनाये गए
स्वस्थ रिश्ते ॥

Added by baban pandey on July 9, 2010 at 7:48am — 3 Comments

कृति चर्चा: चुटकी-चुटकी चाँदनी : दोहा की मन्दाकिनी चर्चाकार : संजीव वर्मा 'सलिल'

कृति चर्चा:

चुटकी-चुटकी चाँदनी : दोहा की मन्दाकिनी

चर्चाकार : संजीव वर्मा 'सलिल'

*

कृति विवरण : चुटकी-चुटकी चाँदनी, दोहा संग्रह, चन्द्रसेन 'विराट', आकार डिमाई, सलिल्ड, बहुरंगी आवरण, पृष्ठ १५६, समान्तर प्रकाशन, तराना, उज्जैन, म.प्र.

*



हिंदी ही नहीं विश्व वांग्मय के समयजयी छंद दोहा को सिद्ध करना किसी भी कवि के लिये टेढ़ी खीर है. आधुनिक युग के जायसी विराट जी ने १२ गीत संग्रहों, १० गजल संग्रहों, ३ मुक्तक संग्रहों तथा ६ सम्पादित काव्य संग्रहों के प्रकाशन के बाद… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on July 9, 2010 at 12:21am — 1 Comment

शेर

ना आप दूर जाना ना हम दूर जाएँगे ..
ना आप दूर जाना ना हम दूर जाएँगे ..
जिंदगी के इस सफ़र मे हम अपने वादे निभाएँगे..
बहुत अछा लगेगा जिंदगी का सफ़र .....
आप वाहा से याद करना हम यहा मुस्कुराएँगे

Added by advocate mukund vyas on July 8, 2010 at 6:11pm — 1 Comment

बंद ,

बंद ,
कितना छोटा शब्द ,
कितना बड़ा असर ,
मगर ,
इसकी पुकार पर ही ,
कितनो की .
धड़कन बढ़ जाती हैं ,
कितनो की ,
सांसे रुक जाती हैं ,
कितने
ये सोच कर परेशान,
कहा से कल ,
रोटी आयेगे ,
बच्चे क्या खायेंगे ,
लेकिन ,
कुछ को मिलती हैं ,
छुट्टी का आनंद ,
तो कुछ को ,
मिलता हैं ,
तांडव करने में आनंद ,

Added by Rash Bihari Ravi on July 8, 2010 at 2:00pm — 1 Comment

कहां है महगाई

महानगर में
सड़क के किनारे खड़ा था
१२ रूपये प्रति दर्जन की दर से
केले लेने पर अड़ा था ॥

कार से एक सज्जन आये
दुकानदार ने
२५ रूपये प्रति दर्जन की दर से
सब केले बेच दिए .... ॥

मैं बेवश था
सोच रहा था ....
कहां है महँगाई
खोज ही लिया मैं
महँगाई मेरे पर्स में रहती है
और जब
पर्स नोटों से भरी हो
मंहगाई पास भी नहीं फटकती

Added by baban pandey on July 8, 2010 at 10:43am — 5 Comments

एक दुआ

एक दुआ

--------

वोह उम्र के उस रुपहले दौर से

गुज़र रही है

जब दिन सोने के और

रातें चांदी सी

नज़र आती हैं

जब जी चाहता है

आँचल में समेट ले तारे

बहारों से बटोर ले रंग सारे

जब आईने में खुद को निहार

आता है गालों पर

सिंदूरी गुलाब सा निखार

और खुद पर ही गरूर हो जाता है

जब सतरंगी सपनों की दुनिया मे खोये

इंसान खुद से ही बेखबर नज़र आता है

जब तितली सी शोख उड़ान लिए

बगिया में इतराने को जी चाहता है

जब पतंग सी पुलकित उमंग… Continue

Added by rajni chhabra on July 8, 2010 at 12:30am — 6 Comments

ईट -भट्टे के मजदूर

वे इटे थापते है

बाल-बच्चो सहित

वर्षा ने कहर बरपाया

पानी ...

सर्वत्र पानी

वे वेरोजगार है आज से ॥



इधर सरकार का बेरोजगारी

दूर करने की योजना

मनरेगा भी बंद हो गया

२८ जून के बाद

हर साल की तरह ॥



मगर उनके बच्चो का

सुनहला दिन लौट आया है

केकड़ा पकड़ना

और ....दिन भर

खेतों में /तालाबों में

मछली मारना ॥



शाम को

माँ को मछली देना

और रात के खाने में

मछली -चावल का इंतज़ार॥





उन… Continue

Added by baban pandey on July 7, 2010 at 8:02pm — 1 Comment

गुज़रा था रात सूरज .

गुज़रा था रात सूरज, गलियों से मेरी होकर.
कितना कुरूप था वो, दिन का लिबास खोकर
किसने बदल दिया है, इस शहर का ही नक्शा.
जहां हुस्न सहमता है, मोहब्बत का नाम सुनकर.
जाबांज वो नहीं था, बुजदिल नहीं था मैं भी.
बैठा था मेरा कातिल, घूँघट की ओट लेकर.
हो जाए बात कुछ भी, नाराज़ हम ना होते.
सिखा है जब से हमने, जीना सहम-सहम कर.
कायर के हाथ खंज़र, जब से लगा है पुरी.
दैरो-हरम में अल्लाह, बैठा हुआ है छिपकर.
गीतकार- सतीश मापतपुरी

Added by satish mapatpuri on July 7, 2010 at 4:42pm — 1 Comment

योगिराज देवरहा बाबा

योगिराज देवरहा बाबा :- देवरिया सुप्रसिद्ध संत ब्रह्मर्षि योगिराज देवरहा बाबा की कर्मस्थली रह चुकी है । देवरिया क्षेत्र की जनता हार्दिक रूप से शुक्रगुजार है उस परम मनीषी, योगी की जो देवरिया क्षेत्र को अपना निवास बनाया, इस क्षेत्र की मिट्टी को अपने पावन चरणों से पवित्र किया और अपने ज्ञान एवं योग की वर्षा से श्रद्धालु जनमानस को सराबोर किया । इस योगी की कृपा से देवरिया जनपद विश्वपटल पर छा गया । देवरहा बाबा ब्रह्म में विलीन हो गए लेकिन उनके ईश्वरी गुणों की… Continue

Added by Prabhakar Pandey on July 7, 2010 at 3:37pm — 1 Comment

हाँ! मैं हूँ परमेश्वर.

हाँ! मैं हूँ परमेश्वर.

मैं बन बैठा भगवान,

मंदिर में,सबके दिल में.

गाँव-गाँव व शहर-शहर,

मैं घूमता रहा पहर-पहर,

चंदे के लिए,मंदिर के वास्ते,

मिल गए मुझे भाग्य के रास्ते.

सुबह निकलता बिना नहाए-खाए,

लंबा चंदन टीका करता,

कंधे में झोला लटकाता,

लगता पंडित भोला-भाला.

मंदिर के नाम की रसीद

हाथ में रहती,कटती रहती,

मैं घूमता रहता,काटता रहता,

अपने अभाग्य को,रसीद के साथ.

लोग चंदे के साथ भोजन भी कराते,

रात को हम वहीं भरते… Continue

Added by Prabhakar Pandey on July 7, 2010 at 10:52am — 3 Comments

कोई

लेकर उजियारे मेरे, अंधेरी शाम दे गया कोई
आँसू भरी रहे आँखे ऐसे इंतज़ाम दे गया कोई

इस ज़माने मे रहता था नशा उसके प्यार का
आज इस मासूम के हाथ मे जाम दे गया कोई

ना अब जाता हूँ मंदिर ना नमाज़ पढ़ता हू मैं
जपू माला उसके नाम की,ये काम दे गया कोई

नहीं हुई आवाज़ पर दिल टूटकर मेरा चूर हुआ
जातेजाते मुझपे बेवफ़ाई का इल्ज़ाम दे गया कोई

कल तक तो बुलाते थे तुझे पल्लव कह की ही सब यहाँ
छीनकर मेरी पहचान दीवाना मुझे नाम दे गया कोई

Added by Pallav Pancholi on July 7, 2010 at 12:01am — 1 Comment

,हलचल मचाना चाहता हूँ ! ...

सम्वेदनाओं के शून्य को ,जगाना चाहता हूँ !

विचारो के उत्तेज से ,हलचल मचाना चाहता हूँ !



मर्म को पहचान, चोट करारी होनी चाहिए ,

बंद आँखों को नींद से ,जगाना चाहता हूँ !

…!!

खून की गर्म धारा ,बह रही ही जिस्म में ,

देश-भक्ति का इसमें ,उबाल लाना चाहता हूँ !



जज्बों में ना कमी हो तो ,समन्दर भी छोटा है ,

,आसमां में अपना तिरंगा फहराना चाहता हूँ !



कमी नही इस देश में, बौद्धिक शारीरिक बल की ,

‘कमलेश’ इसे विश्व शीर्ष पर पहुंचाना चाहता हूँ…
Continue

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on July 6, 2010 at 11:03pm — 1 Comment

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