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ओबीओ परिवार के सभी सदस्यों को प्रणाम इस बार ओबीओ साहित्योत्सव देहरादून मे 9 सितम्बर 2017…Continue
Started this discussion. Last reply by Sheikh Shahzad Usmani Sep 9, 2017.
हमारे ओबीओ से जुड़े एक मित्र श्री अलबेला खत्री जी बहुत गंभीर अवस्था में सूरत के अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं जिस किसी से कोई भी सहायता बने कर सकते हैं भगवान् से प्रार्थना है वो जल्दी…Continue
Started this discussion. Last reply by Saurabh Pandey Apr 5, 2014.
१४ जून २०१३ की शाम ओबीओ की त्रतीय वर्षगाँठ पर काव्य गोष्ठी /कवी सम्मलेन /मुशायरा के आयोजन…Continue
Started this discussion. Last reply by rajesh kumari Jul 1, 2013.
मुझे गर्व है कि मेरे दामाद (थल सेना कर्नल) को गणतंत्र दिवस के अवसर पर सेना मैडल से सम्मानित किया गया है|…Continue
Started this discussion. Last reply by rajesh kumari Feb 22, 2013.
बड़े दिल का तो वो कद में बड़ा होने से पहले था
जमीं से राब्ता उसका ख़ुदा होने से पहले था
करें मत फ़िक्र अब मेरी सभी एहबाब घर जाएँ
मुझे एहसास-ए-तन्हाई नशा होने से पहले था
हुनर आया तपिश सहकर हजारों चोट खाकर ही
फ़कत माटी का लोंदा वो घड़ा होने से पहले था
बुरी सुहबत ने ही उसको मियाँ ऎसा बनाया है़
वगरना नेक बच्चा वो बुरा होने से पहले था
मुखौटे में निहाँ कितना घिनौना रूप था उसका
मसीहा वेश में ढोंगी सज़ा होने से पहले…
Posted on October 1, 2019 at 12:00pm — 7 Comments
आदरणीय योगराज जी , आदरणीय सौरभ जी , आदरणीय समर भाई जी , तथा जिस मित्र ने भी कभी भी मेरा मार्ग दर्शन किया सभी को समर्पित ,करती हूँ ये रचना .
जीवन निर्माता भाग्य विधाता सब दुःख हरता ईश्वर है़
तृण तृण परिभाषित राह प्रदर्शित पग- पग करता गुरुवर है़
गिर जाने पर हाथ बढ़ाना
हर मुश्किल में पार लगाना
गहन तमस में घिर जाने पर
भटकों को यूँ राह दिखाना
तेरी अनुकंपा के आगे
कष्टों की धुंध का छट जाना
पतझड़ के मारे तरुओं पर
हरित हरित…
Posted on September 5, 2019 at 4:30pm — 6 Comments
तिनका तिनका जोड़ बनाया एक घरौंदा
दरवाजे पर आँधी आके ठहर गई
बर्बादी की धीमे-धीमे
आहट पाकर
स्वप्नकपोतों की
आँखों में भय के साये
सहमे सहमे भीरु
कातर बुनकर देखो
कोने में जा बैठे
दुबके सकुचाये
…
ContinuePosted on April 3, 2019 at 12:00pm — 7 Comments
१.हास्य
उठाई है़ किसने ये दीवार छत पर
अब आएगा कैसे मेरा यार छत पर
अगर उसके वालिद का ये काम होगा
बिछा दूँगा बिजली का मैं तार छत पर
बताकर तू पढ़ती ख़बर नौकरी की
चली आना लेकर तू अख़बार छत पर
सुखाने को पापड़ या चटनी मुरब्बा
करा मुझको अपना तू दीदार छत पर
गया उसके घर पे जो छुपते छुपाते
बहुत ही कुटा मैं पड़ी मार छत पर
न तारे दिखे फ़िर हुआ चाँद ग़ायब
सुनी हड्डियों की जो झंकार छत पर…
Posted on January 22, 2019 at 11:45am — 13 Comments
आदरणीया राजेश कुमारी जी दोहा प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
धन्यवाद आ. राजेश मैम, आपने अपना बहुमूल्य समय दिया, उत्साहवर्धन के शब्द कहे, मेरी सोच-मेरे नजरिये की तारीफ़ की आपने, आपको पसंद आई मेरी कहानी, इसके लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ. आप सबों के प्रेरक वाक्य ही मेरी कलम को और धारदार और स्थापित करने में सहायक होंगे. धन्यवाद!!
आदरणीया
बिंदु नं 0 2 को ही समझना था i 'कहते है गोपाल' का उल्लेख कर आपने मेरे भ्रम का सटीक निवारण किया i आपका स्नेह यूँ ही बना रहे i सादर i
महनीया
आपसे सदा सीखता रहता हूँ i इसी जिज्ञासा में आपकी निम्न टिप्पणी पर भी अपनी शंका का निवारण चाहूँगा i
शैलि ,वैलि में गच्चा खा गए आदरणीय :))) और पकडे भी गए ...... स्वीकार है आदरणीया
अंग्रेजो ने किया वात-आवरण कसैला----रोले में विषम इसे कुछ और स्पष्ट करें महनीया
चरण का गुरु लघु से होना है आपका किया =लघु गुरु
कुण्डलिया का आरम्भ का शब्द और अंत का शब्द भी एक ही होना मेरे संज्ञान में अब यह बाध्यता अब
चाहिए समाप्त हो गयी है
स म्म्मान आदरणीया i
आपको सपरिवार ज्योति पर्व की हार्दिक एवं मंगलमय शुभकामनाएं...
जन्मदिन की आपको ढेरों शुभकामनायें आदरणीया राजेश दीदी
हे माँ श्वेता शारदे , सरस्वती वन्दना (उल्लाला छंद पर आधारित )
इस रचना के feature होने के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया राजेश जी।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीया राजेश कुमारी जी साधुवाद गज़ल पर दाद के लिये .
अनुरोध स्वीकार करके आपने मुझे उपकृत किया मैम, नमन
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