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"मेरे सपने"

बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए..०१

चांदनी रात थी,

उजला आकाश था..

नदियों में लहरे,

और नीला प्रकाश था..

मछलियों की वो गुनगुनाहट,

और हर-हराती लहरे..

क्या खूब नज़ारा,

मन क्यों न अब उसपर ठहरे..



बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए..०२

फिर शांत हुई लहरे,

मेरा चेहरा सामने आया..

जैसे
नदियों ने मुझे,

गोद में था बैठाया..

सुकून  इतना मिला,

जैसे पा लिया ईश्वर को.

जैसे मिल…

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Added by Pradeep Kumar Kesarwani on August 31, 2012 at 11:00am — 5 Comments

गुनाहगार बनाया क्यों ?

 

ऐ मालिक ! बता दे तू , कि बहार बनाया क्यों ?

गर बहार बना था , तो उजाड़ बनाया क्यों ?

चमन में खिलती हैं कलियाँ , कली से नेह भौरों को .

पर भंवरे काँप उठे उस वक़्त , आखिर खार बनाया क्यों ?

जुदाई प्यार की मंजिल , तड़पना दिल को पड़ता है .

दिवाना कहती है दुनिया , तो फिर यह  प्यार बनाया क्यों ?

मिलन की चाह होती है , मिलन होता मुकद्दर से .

तो मिलकर क्यों बिछड़ते हैं , आखिर दीदार बनाया क्यों ?

अगर मापतपुरी जालिम  , तो उस पे कर करम मौला .

ख़ता…

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Added by satish mapatpuri on August 31, 2012 at 2:15am — 4 Comments

पांच मुक्तक

प्रेम मोबाइल में अगर,बैलेडिटी विश्वास हो,

नेटवर्क समन्वय हो पुख्ता,हृदय बैट्री चार्ज हो।

प्रतिपक्ष नम्बर रांग हो,एकांत स्पीकर साफ हो,

नहीं समस्या कोई यारोँ,प्रेम पगी तब बात हो॥



घायल नहीं हुआ कभी,जो तीर ओ तलवार से,

वो ही घायल हो गया,तेरे नजर के वार से।

पैदाइश से आज तक,जीत जिसकी हमसफर,

वो ही जीता जा चुका है,आज तेरे प्यार से॥



यार मैं तो रात का,शुक्र गुजार बन गया हूं,

वो बन गये हैं वादक,मैं सितार बन गया हूं।

बेदर्द बड़े प्यार से,बजाते हैं… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 30, 2012 at 10:07pm — 4 Comments

काल का आवेग (गीत)

कठिन काल के आवेगों से,कभी नहीं बच पाओगे,

परिवर्तन ही सत्य जगत का,सच को कहा छुपाओगे।

लौह सदृश इस सुगढ़ देह को,देख नहीं इतराओ तुम,

जब आयेगी काल की आंधी,तिनके सम उड़ जाओगे॥



ध्वस्त हुआ रावण का सपना,जो त्रैलोक्य विजेता था,

अस्त हुआ साम्राज्य ब्रिटिश का,अस्त सूर्य ना होता था।

मिटा सिकंदर विश्व विजेता,नेपोलियन बर्बाद हुआ,

अहंकार यदि नष्ट हुआ ना,मिट्टी में मिल जाओगे॥



ईश अंश श्रीराम कृष्ण भी,छोड़ धरा को चले गये,

कालजयी वो भीष्म पितामह,शर-शैय्या से… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 30, 2012 at 9:26pm — 4 Comments

मैं तो हस्ताक्षर करता था ? (लघुकथा)

सर! एक काम था आप से,अगर इजाजत हो तो कहूं-अर्जुन बाबू ने लेखपाल से कहा।

हां कहिए-वह उन्हें ऊपर से नीचे तक देखते हुये बोला।

सर! नसीबदार से कहिए कि वह इन कागजातों से अपने दस्तखत हटा ले-अर्जुन ने अपना चश्मा ठीक करते हुये कहा।

लेखपाल गरज पड़ा-बड़े बेवकूफ हो तुम?क्या बकवास करते हो?कहीं साइन भी परिवर्तनेबुल है,और वो भी डेड आदमी के?

अरे साहब! काहे को एंग्री होते हो(अपने आदमी की तरफ मुड़कर)तिलक ब्रीफकेस इधर ला न।हां सर! ये 50-50 के 10 बंडल हैं-अर्जुन बाबू ने ब्रीफकेस लेखपाल की ओर बढ़ाते… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 30, 2012 at 8:42pm — 1 Comment

माँ के दामन को ही आसमाँ कह दिया

हमको देखे बिना उसने हाँ कह दिया

मेरे खाना-ए-दिल को मकाँ कह दिया



चाँद तारे मयस्सर मुझे हो गए

माँ के दामन को ही आसमाँ कह दिया



आग तडपी तपिश तिल-मिलाने लगी

सर्द से कोहरे को धुआँ कह दिया



छोड़ के…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 30, 2012 at 1:57pm — 8 Comments

प्रकृति मेरी प्रेयसी

सौन्दर्य तुम्हारा प्रियतमे, सप्तसुर संगीत है!

धरती-गगन संयुक्तता सा, प्रेम अपना गीत है!



संसार ये अतिशय है तप्त, मै बहुत संतप्त हूं!

संतप्तता के इस गहर में, संग तुम तो शीत है!



जग क्षितिज पर पाषाणता के, है तुम्हे भी कष्ट दे!

परन्तु उसी जग हेतु तुममे, शेष अति नवनीत है!



तुम नित करो नवनीत वर्षण, जग बदल सकता नही!

पाषाण मानव के ह्रदय में, कृतघ्न एक रीत है!



सत्प्रेमता का इस मनुज में, भाव कोई है नही!

सो…

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Added by पीयूष द्विवेदी भारत on August 30, 2012 at 11:30am — 8 Comments

उंगलियाँ हम पे यूँ न उठाया करो

उंगलियाँ हम पे यूँ न उठाया करो





हर बार लिया मजा तुमने, हम भी चखे,

इंतज़ार हमें भी कभी तो कराया करो |



दौलते दिल है ये, इन्हें यूँ न बहाओ,


अंखियों से मोती यूँ न छलकाया करो |



हमने जब भी किया शिकवा,सुना तुमने,


शिकायतों का दौर,खुद भी लगाया करो |



फ़िक्र रहती है तुम्हारी,इस दिल को सदा,

नज़रों से दूर यूँ तुम न जाया करो…

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Added by SACHIN on August 30, 2012 at 9:30am — 2 Comments

जीवन एक किताब है (दोहा छंद)

जीवन एक किताब है,तीन प्रमुख अध्याय।

बचपन यौवन वृद्धपन,कहैं सुकवि समुझाय॥



बचपन जीवन भूमिका,यौवन ललित निबंध।

वृद्धापन सारांश है,उत्तम काव्य प्रबंध॥



भाषा रूपी ज्ञान हो,रस चरित्र व्यवहार।

कर्म रीति से युक्त हो,अलंकार गुण भार॥



अनुशासन का व्याकरण,पद लालित्य अनूप।

छंद बद्ध हर पल रहे,कथ्य शास्त्र अनुरूप॥



जीवन पुस्तक में नहीं,यदि बातें उपरोक्त।

श्याम वर्ण पुस्तक लगे,जीवन जैसे शोक॥



अल्ट्रामार्डन हो गये,काव्य और सब… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 29, 2012 at 10:04pm — 5 Comments

तीन सामयिक कह-मुकरियां



निर्दोषों का वह हत्यारा

जन जन ने उसको धिक्कारा

किया कोर्ट ने ठीक हिसाब

क्या सखि अजमल ? नहिं रे कसाब





वो सबका इन्साफ़ करेगा

नहिं हत्याएं माफ़ करेगा

ख़ून का बदला लेगा ख़ून

क्या सखि मुन्सिफ़ ? नहिं कानून 





हुआ आज हर्षित मेरा मन

करूँ ख़ूब उनका अभिनन्दन

काम कर दिया…

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Added by Albela Khatri on August 29, 2012 at 4:30pm — 4 Comments

मीर का अंदाज अब गुजरा ज़माना हो गया

आप से नज़रें मिली दिल आशिकाना हो गया

यार से दिलबर हुए मौसम सुहाना हो गया



लोग अफसाने बना बातें हसीं करने लगे 

आपके घर जो मेरा आना-जाना हो गया



छू रहीं साँसे गरम ठंडी ठंडी आह भर

आँख का झुकना बड़ा ही कातिलाना हो गया…



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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 29, 2012 at 3:00pm — No Comments

काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता

 

 काश कोई होता जिसपे मेरा अधिकार होता!

काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता!

 

जिसके बिन मेरा जीवन पतझड़ सा ही सूना है!

पास है मेरे सबकुछ पर वो नहीं तो फिर क्या है!

पतझड़ से सूने जीवन में बनकर बहार होता!

काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता!

 

प्रेम कहानी, गीत-गज़ल…

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Added by पीयूष द्विवेदी भारत on August 29, 2012 at 12:54pm — 6 Comments

बेवफा ही रहो

बेवफा ही रहो

बेवफा थे बेवफा हो बेवफा ही रहो

यह मुहब्बत नहीं बस की यूँ न इज़हार करो
बेवफा थे बेवफा हो बेवफा...........
यह वोह जज़्वा है जो आशिक़ को अमर करता है
वोह तो हँसते हुए सब कुछ ही फनां करता है
जो उम्र भर किया तुमनें हर बार करो
बेवफा थे बेवफा हो बेवफा...........
दीपक 'कुल्लुवी' को मुहब्बत यहाँ कोई कम न…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 29, 2012 at 12:39pm — 5 Comments

क्यों चुप रहता है सूरज ?

यूँ तो सूरज का गर्वित होना वाजिब है
अपनी शान पर ,
क्योंकि अपनी रश्मियाँ फैलाता है ,
वो ज़मीं पर .
करता है रोशनी .
पर यह ज़मीं भी तो सहती है ,
धूप, सर्दी और बरसात सब.
क्यों चुप रहता है सूरज तब .
क्या दिखती नही उसे इस
ज़मीं की सहनशीलता ???

Added by Naval Kishor Soni on August 29, 2012 at 12:10pm — No Comments

कविता को समर्पित -कुछ पंक्तियाँ

लोग पूछते है कविता

हमे क्या है, देती

मैं कहता हूँ कविता

हमे क्या नहीं देती

हृदय सबके सादगी देती

नीरस जीवन में ताजगी देती

जीने का मकसद जब, तुझे ना सूझे

जीवन की राह फिर हमे दिखाती

मुहब्बत का पैगाम सुनाती

वीरो की गाथा सुना

कीर्ति उनकी जग फैलाती

संकीर्णता की सरहदे लाँघ

हृदय को विचरण नभ कराती

अमन का सन्देश सुनाती

कल्पना की छलांग लगा

सपनों की दुनिया में, कवि घुमाती

कभी बनाती शीश महल

कभी रंक से राजा बनाती…

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Added by PHOOL SINGH on August 29, 2012 at 9:30am — 2 Comments

सारांश

छुटपन में
हर रोज़ बाबा का हाथ थामे निकल जाता था मैं,
सुबह की सैर को |
रास्ते की हर ठोकरों से बेख़ौफ़ लड़ता,
अकड़ता,
बढ़ता जाता था मैं |
क्यों कि जानता था,
कि कोई भी पत्थर कोई भी ठोकर मुझे गिरा न पाएगी |
क्यों कि दुनिया का सबसे मज़बूत सहारा थाम रखा है मैंने....
पर
कल सीढियां चढ़ते वक़्त
बाबा लड़खड़ा गये...और थाम लिया हाथ मेरा!
और मैं रह गया,
अतीत और वर्तमान के बीच का
सारांश ढूंढता हुआ.....
 
-पुष्यमित्र उपाध्याय
.

Added by Pushyamitra Upadhyay on August 28, 2012 at 9:20pm — 2 Comments

दुनिया - मनहरण घनाक्षरी

भाई-भाई बैरी बना, रोटियों में खून सना,
छा गया अँधेरा घना, देख आँख रो पड़ी |

भूल गए सब नाते, दूर से ही फरियाते,
काम देख बतियाते, कैसी आ गई घड़ी |

जहाँ कोई मिल जाए, नोंच-नोंच कर खाए,
देख गिद्ध शरमाए, बात नहीं ये बड़ी |

होश नहीं इश्क जगे, चाहे भले जाए ठगे,
गैर लगे सारे सगे, सोच कैसी है सड़ी ||

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 28, 2012 at 6:00pm — 4 Comments

वक्त कीमती है --------

कर्म ने ही सुखद भाग्य बनाया 

गीता में कृष्ण ने यही बताया |

 

मदद ली जाती  है, इसकी समझ धरो 

भूलोंसे सीख का मन में उन्माद भरो |

 

प्रभु के दिए मौके को न जाने दिया करो 

उंगलियाँ यूँ ही  न सब पर उठाया करो | 

 

बीते वक्त की याद ने मन दुखी कराया 

उठों तभी सवेरा है, मन को समझाया…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 28, 2012 at 5:34pm — 2 Comments

हाहाकर

हाहाकर
मानसून की पड़ रही मार
मचा हुआ है हाहाकर
चारों तरफ  है पानी ही पानी
उफनती नदियाँ  बाढ़  ही बाढ़
परिणाम स्वरूप महँगाई बढ़ गयी
गरीब की हंडिया ख़ाली रह गयी
घर टूट गए खेत उजड़ गए  
बेबस अखियाँ मन है उदास 
दीपक…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 28, 2012 at 4:54pm — No Comments

अब भी कहोगें तुम मुझे सती ????

झुंझुनू यात्रा के दौरान

घुमाया गया मुझे

तथाकथित "रानी सती" के मंदिर में.

मंदिर में प्रवेश करते ही दरवाजे पर लिखा था ....

"हम सती प्रथा का विरोध करते है"

पर अंदर जाकर जिस तरह श्रदालुओं का दिखा रेला ,

और बाहर भी लगा था भक्तों का मेला ,

मेरे मन में सवाल उठा कि-------

जब दुनिया से गया होगा इस महिला का पति,

तो क्या अपनी इच्छा से हुई होगी यह सती ?

वहां तो कोई जवाब नहीं मिला पर रात को सपने में आई वो महिला .

उसे देखकर पहले तो मैं डरा फिर मेरा…

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Added by Naval Kishor Soni on August 28, 2012 at 4:30pm — 2 Comments

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