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नाम और काम का संबंध

ये नाम और काम का संबंध बड़ा नाजुक है

बड़े हिसाब किताब के बाद ही इनके संबंध स्थापित करने चाहिए

अब खुद ही देख लो

भ्रष्टाचारियों को भी नेता कहना पड़ता है

और दलालों को पत्रकार

गुंडों को रक्षक, और जो पकड़ा गया बस वो ही भक्षक

 

किसी ने कहा नाम में क्या रक्खा है

अरे भाई ! नाम का ही तो सारा काम है

और जिसका नाम नहीं उसकी जिंदगी हराम है

 

पांच सो का जूता दो हज़ार में बिकता है नाम की…

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Added by Bhasker Agrawal on April 11, 2011 at 3:07pm — 6 Comments

माँ

दुनियां के सभी रिश्तों में प्रमुख रिश्ता हैं माँ

सचमुच में हर प्राणी के लिए फरिश्ता हैं माँ।।

 

घने कोहरे में गर मंजिल नजर न आयें।

बंद हो सब रास्ते तो इक रास्ता हैं माँ।।

 

दुनियां के इस खौफनाक बियाबां में दोस्तों।

वहशियों से काबिले-हिफाजत पिता हैं माँ



सगे-संबंधी मित्र-बंधु सभी सुख के साथी।

लेकिन दु़ख में साथ निभाने वाली सहभागिता हैं…

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Added by nemichandpuniyachandan on April 11, 2011 at 10:00am — 3 Comments

प्रिय ,अभी

प्रिय ,अभी

वक्त कैसे बीत रहा हैं अब आप को क्या बताऊँ हर तरफ तुम्हारी ही यादें है .हर तरफ हर जगह तुम्ही दिख रहे हो .. तुम्हारी ओ मुस्कुराहट.. तुम्हारी आहट बन कर सताती है.......तुम्हें देखने की जो ललक  तब थी.. ओ…

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Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 10, 2011 at 2:30pm — No Comments

गजल

हर लम्हें में निहाँ हैं अक्स जिंदगी का।
ढूंढते रह जाओगे नक्श जिंदगी का ।।

 

रुठों को मनाने में लग जाते हैं जमाने।
ता-उम्र चलता रहता हैं रक्स जिंदगी का।।

 

रंजो-गम में जो साथ न छोडे।
सबसे बेहतर है वो शख्स जिंदगी का।।

 

राहें-मंजिल में जो कदम न लडखडाए।
हासिल कर ही लेते हैं वो लक्ष जिंदगी का।।

 

बनी पे लाखों निसार हो जाते है चंदन।
कोई नहीं होता बरअक्स जिंदगी का।।

 

नेमीचन्द पूनिया चंदन े  

Added by nemichandpuniyachandan on April 10, 2011 at 12:00pm — 1 Comment

सर जायेगा

नफरतों से जब कोई भर जायेगा 
काम कोई दहशती कर जायेगा 
 
इक गली,इक बाग़ कोई छोड़ दो
एक बच्चा खेल कर घर जायेगा
 
बागबाँ को क्यों खबर होती नहीं
फूल इक अहसास है मर जायेगा
 
रेत के सहरा को कब मालूम है
एक बादल तर-ब-तर कर जायेगा
 
अब यक़ीनन राह भूलेगा कोई
जब कोई यूँ कौम को…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on April 9, 2011 at 10:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल :- ज़िंदगी है या शगूफा या रब !

ग़ज़ल :- ज़िंदगी है या शगूफा या रब !

अब तो कम खुद पे भरोसा या रब ,

ज़िंदगी  है  या  शगूफा  या   रब |

 

लड़की रस्सी मदारी सब तू है ,

खेल नज़रों का है धोखा या रब…

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Added by Abhinav Arun on April 9, 2011 at 3:30pm — 2 Comments

बन्दे में है दम !

बन्दे में है दम और हम भी खड़े हैं संग,

ये   ललकार  तुम  तक  पहुंची  है जब,

अब तो सांस लेंगे शुद्ध, नहीं चैन है अब,

बन्दे में है दम और हम भी खड़े हैं संग,



नेता पूंछे हे प्रभु  अब ये  कैसी  है  जंग,…

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Added by Rajeev Mishra on April 9, 2011 at 2:53pm — 3 Comments

जीत

जो हौसला बलंद है नफस नफस कमंद है

हमारी हर ख़ुशी हमारे हौसलों में बंद है



वो बेकसी अतीत है यही हमारी जीत है

हर एक देशवासी के लबों पे ये ही गीत है



ये एकता मिसाल है हमारा ये कमाल है

वतन के लब पे आज भी मगर वही सवाल है



है कौन दूध का धुला अभी तलक नहीं खुला

अभी तक इस पियाले में ज़हर का घूँट है घुला



भरें सभी तिजोरियां हैं कैसी कैसी चोरियां

सुला रहे हैं हम ज़मीर को सुना के लोरियां

 

उठो के वक़्त आ गया उठाओ हर क़दम…

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Added by Mumtaz Aziz Naza on April 9, 2011 at 1:00pm — 2 Comments

साथ जुड़ते जाइये

साथ जुड़ते जाइये



यह जीत नहीं सिर्फ अन्ना की
यह जीत हमारी है
हम हैं दुश्मन उन सबके
जो भ्रष्टाचारी हैं
गाँधी बाबा आ गए फिर से
अब होगा इन्साफ
किरण बेदी साथ…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 9, 2011 at 11:30am — 2 Comments

'अन्ना की लहर

आज नहीं चेते तो आखिर कब जागेंगे..??
कब हम आखिर हक़ से ,अपना हक़ मांगेंगे..??
कबतक देखेंगे राह किसी नयी आंधी की..??
बाट जोहेंगे कबतक हम एक नए गाँधी की ?
आओ आगे हाथ मिलाके साथ हों खड़े..
अन्ना हमारी खातिर आमरण अनशन पे हैं अडे..
नीव हिला दें दुनिया को दिखा दें..
'एक स्वर एक बात ' से भ्रष्टाचार मिटा दें.


आइये इस 'अन्ना की लहर ' को सुनामी बना दें ..
देश से भ्रष्टाचार की गुलामी हटा दें..

Added by Lata R.Ojha on April 8, 2011 at 4:57pm — 4 Comments

उंगलियाँ सब पर उठातें रहें है हम............

उंगलियाँ सब पर उठातें रहें है हम,

आईनों से चेहरा छिपातें रहें है हम,



भ्रष्टाचार को हमनें जरुरत बना लिया,

मुल्क को अपनें ड़ुबातें रहें है हम,



रोंशनी से तिलमिलाती है आंखें हमारी,

बेईमानी से नज़रें मिलातें रहें है हम,



सियासत के बकरों का पेट नही भरता,

देश को चारे में खिलातें रहे है हम,



कितने ही बच्चें सोतें हैं यहाँ भूखें,

और सांपों को दुध पिलातें रहें हैं हम,



'अन्ना जी' का बहुत बहुत शुक्रियां,

वर्ना तो धोखा ही… Continue

Added by अमि तेष on April 8, 2011 at 2:00pm — 14 Comments

अब और नहीं

अब और नहीं

गाँधी बादी नेता प्यारे
इक ताकत है अन्ना हजारे
कोई रोक सकेगा कैसे
सत्यवादी साथ हैं सारे
भ्रष्टाचारी हिल जाएँगे
ईमानदार सब मिल जाएँगे
इतिहास बदल जायेगा हिन्द का
पाप के बादल छँट जायेंगे
गद्दारों को सज़ा मिलेगी
घोटालों पर रोक लगेगी
यकीन है दीपक "कुल्लुवी" को
पापियों की अब दाल ना गलेगी
तिहाड़ में कितनें आएँगे
बाकी जेल भी भर जाएँगे

दीपक शर्मा कुल्लुवी
०९१३६२११४८६
०८-०४-२०११.

Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 8, 2011 at 12:59pm — 2 Comments

ग़ज़ल : वो जो रुख़-ए-हवा समझते हैं

वो जो रुख़-ए-हवा समझते हैं
हम उन्हें धूल सा समझते हैं ॥१॥

चाँद रूठा ये कहके उसको हम
एक रोटी सदा समझते हैं ॥२॥

धूप भी तौल के बिकेगी अब
आप बाजार ना समझते हैं ॥३॥

तोड़ कर देख लें वो पत्थर से
जो हमें काँच का समझते हैं ॥४॥

जो बसें मंदिरों की नाली में
वो भी खुद को ख़ुदा समझते हैं ॥५॥

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 7, 2011 at 11:26pm — 3 Comments

क्यूँ आज हम इतने बड़े हो गए

"ओ भी क्या दिन थे..............
नानी की गोद में,
नाना के कंधे पे,
बेतहास मस्तियों में झूम रहे थे,
ना पढाई की सोच,
ना लाईफ के फंडे थे
ना कल की चिंता थी
ना भविष्य के सपने थे,
आज है कल की फिकर,
अधूरे है सपने,
मुड़कर जो देखा,
दूर बहुत है अपने,
मंजिल को ढूंढते ,
आज हम कहाँ खो गए,
क्यूँ आज हम इतने बड़े हो गए.....................,

Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 7, 2011 at 2:00pm — 4 Comments

बात समझा करो इशारे में...

हो गया ख़ाक इक शरारे में,

कुछ ना बाकी रहा बेचारे में.

 

देखो हालात क्या कराते हैं,

खुद शिकारी बंधा है चारे में.

 

हार खुद हम ही मान बैठे थे,…

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Added by Akhilesh Krishnawanshi on April 7, 2011 at 1:41pm — 6 Comments

अधेड़

कोई भरी जवानी में भी,

दिल को नहीं भाता है,

कोई अधेड़ कह कर भी,

उमंगें छोड़ जाता है,



उम्र, खुद ही,

अपने मायने तलाश रही है,

अधेड़ कह कर,

अपने ही दिलों में,

तसल्ली के राग,

गा रही है,



ये संस्कार हैं हमारे,

या सामाजिक बंधन,

कि अपने ही कान,

अपने ही दिल को,

नहीं सुनते...

पर लाख कोशिशों,

के बावजूद,

क्या आप अब भी,

सपने नहीं बुनते.....



और जैसा मैंने पहले भी,

कहा है,

पतझड़ के आने… Continue

Added by neeraj tripathi on April 7, 2011 at 11:35am — 2 Comments

मै मरघट में जब जाता हूँ .

 

मै   मरघट  में  जब  जाता  हूँ  ,

 मै  मर-घट  में  मर  जाता  हूँ  ,

 जब  मर  और  घट  न  घट  पाए..

  तो  खुद  ही  मै  घट  जाता  हूँ .//

 

मै  मरघट   को  समझाता  हूँ ,

 कि  …

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Added by Rajeev Kumar Pandey on April 7, 2011 at 10:39am — 1 Comment

व्यंग्य - बेचारा भ्रष्टाचार !

देश, भ्रष्टाचार की आग में तप रहा है और भ्रष्टाचारी एसी की ठंडकता का मजा ले रहे हैं। इस छोर से लेकर उस छोर तक केवल भ्रष्टाचार ही छाया हुआ है। भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार हो रहे हैं और हम हाथ पर हाथ धरे चुप बैठे हैं। देश में इतने बड़े पैमाने पर पहली बार भ्रष्टाचार होने की बात उजागर हुई है, उससे भ्रष्टाचार का रूतबा बढ़ना स्वाभाविक लगता है, मगर जिनके कारण भ्रष्टाचार का जन्म हुआ है, उन्हें तो हम भुला दे रहे हैं ? केवल भ्रष्टाचार पर ही ठिकरा फोड़ रहे हैं, जबकि सब किया धराया तो उन सफेदपोशों का है, जो देश के… Continue

Added by rajkumar sahu on April 6, 2011 at 11:44pm — No Comments

"मेरी एक याद....पत्र "

 

" जब बात चुक जाए और वक्त रेत की तरह हांथो से  फिसल जाए , तो दिल से शिर्फ़ हाय ही निकलती है ! और पश्च्याताप के शिवा कुछ भी हाँथ नहीं लगता, फिर जिंदगी उस पश्च्याताप की आग में जलने लगती है , आप जब मेरे जीवन में आये तो यह येसी भावना से आये तो टूटी-फूटी झोपड़ी में.रुखा-सुखा खा के जीवन ब्यतीत करने के इरादे से आये थे ! लेकिन जहां मेरी जगह होनी चाहिए थी वहां आप ऊँचे-ऊँचे महलों के ख्वाब पाले थे.यह समझने में मुझे बहुत वक्त लग गया,जब बात हमें समझ में आती तब-तक बहुत देर हो चुकी थी,और आप अपने लिए…

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Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 6, 2011 at 4:24pm — No Comments

तितली

तितली के इतने रूपों को

कभी न देखा 

कभी न जाना परखा मैंने ..

देखा तो बस मैंने इतना

रंगबिरंगी उडती तितली

पलक झपकते पर सिकोड़ती और…

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Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on April 5, 2011 at 10:13am — 5 Comments

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