(१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ )
कभी तन्हा अगर बैठें तो ख़ुद से गुफ़्तगू कीजे
खुदा मौजूद है अंदर उसी की जुस्तजू कीजे
***
नुज़ूमी चाल क़िस्मत की क्या हमारी बताएगा
पढ़ा किसने मुक़द्दर है भला क्या आरजू कीजे
***
कहाँ तक नफ़रतों का ज़ुल्म सहते जायेंगे यारों
मुहब्बत के शरर से रोशनी अब चार सू कीजे
***
तभी करना मुहब्बत जब निभा…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 30, 2019 at 10:00am — 8 Comments
(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )
दस्तूर इस जहाँ के हैं देखे अजीब अजीब
दुश्मन भी एक पल में बने देखिये हबीब
***
बनती बिगड़ती बात अचानक कभी कभी
बिगड़े नसीब वालों के खुल जाते हैं नसीब
***
वादा किया था हम से सजा लेंगे ज़ुल्फ़ में
लेकिन सजा है ज़ीस्त में क्यों आपके रक़ीब
***
नज़दीक आज लग रहा होता है दूर कल
जो दूर दूर रहता वो हो जाता है क़रीब
***
होता है पर कभी कभी ऐसा भी मो'जिज़ा
बनता ग़रीब बादशा और बादशा ग़रीब
***
हैरत है बातिलों…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 27, 2019 at 5:00pm — 4 Comments
समझ न आया कि पत्थर से प्यार कैसे हुआ
हसीन हादसे का मैं शिकार कैसे हुआ
***
कहा है तूने कि ये हादसा नहीं है गुनाह
हुआ गुनाह तो फिर बार बार कैसे हुआ
***
हुई है कोई ग़लतफ़हमी आपको मुंसिफ़
करे जो प्यार कोई गुनहगार कैसे हुआ
***
करेगा कौन यक़ीं गर मुकर भी जाओ तो
चला न तीर तो फिर आर पार कैसे हुआ …
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 26, 2019 at 2:30pm — 12 Comments
किसी रिश्ते में हों गर तल्ख़ियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
शजर पर गर हैं सूखी पत्तियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
**
बसाने को बसा लो ज़ुर्म की अपनी हसीं दुनिया
मगर बदनाम जो हों बस्तियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
***
नुमाइश कर रहे हो जिस्म की अच्छी नज़र चाहो
हुज़ूर ऐसी कभी ख़ुशफ़हमियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
***
मुसीबत, मुश्किलें, आफ़ात, चिंता और ग़म भी संग
घरोंदे में घुसी ये मकड़ियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
***
नहीं फ़र्ज़न्द को हासिल अगर कुछ काम थोड़े दिन
मिलें उसको…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 24, 2019 at 12:00pm — 12 Comments
11212 *4
बने हमसफ़र तेरी ज़ीस्त में कोई मेहरबाँ वो तलाश कर
जो हयात भर तेरा साथ दे कोई जान-ए-जाँ वो तलाश कर
***
तेरे सुर में सुर जो मिला सके तेरे ग़म में साथ निभा सके
तेरे संग ख़ुशियाँ मना सके कोई हमज़बाँ वो तलाश कर
***
कहीं डूब जाये न दरमियाँ कभी सुन के बह्र की धमकियाँ
चले नाव ठीक से ज़ीस्त की कोई बादबाँ वो तलाश कर
***
भला लुत्फ़ क्या मिले प्यार में नहीं गर अना रहे यार में
जो अदा से जानता रूठना कोई सरगिराँ वो तलाश कर
***
ये…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 20, 2019 at 3:00pm — 2 Comments
(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )
झूठ फैलाते हैं अक़्सर जो तक़ारीर के साथ
खेल करते हैं वतन की नई तामीर के साथ
***
ख़्वाब देखोगे न तो खाक़ मुकम्मल होंगे
ये तो पैवस्त* हुआ करते हैं ताबीर के साथ
***
जो बना सकते नहीं चन्द निशानात कभी
हैफ़* क्या हश्र करेंगे वही तस्वीर के साथ
***
ग़म भी हमराह ख़ुशी के नहीं रहते,जैसे
कोई शमशीर कहाँ रहती है शमशीर के…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 19, 2019 at 2:30am — 8 Comments
(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )
ख़त्म इकबाल-ए-हुकूमत* को न समझे कोई
और लाचार अदालत को न समझे कोई
***
मीर सब आज वुजूद अपना बचाने में लगे
आम जनता की ज़रूरत को न समझे कोई
***
ख़ून के रिश्ते भुला देती है जो इक पल में
हैफ़ !भारत की सियासत को न समझे कोई
***
जिस्म को छू लिया और इश्क़ मुकम्मल समझा
इतना आसाँ भी महब्बत…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 14, 2019 at 12:30pm — 11 Comments
(२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ )
***
पांचों घी में रहती है जब सरकारी कारिन्दों की
कौन सुने फ़रियाद अँधेरी नगरी के बाशिन्दों की
***
टूटी है मिजराबें फिर भी साज़ बजाना पड़ता है
बे-सुर होते सुर तो इसमें ग़ल्ती क्या साजिन्दों की
***
फेंक दिया करते कचरे में क्या क्या लोग पुलिंदों में
असली कीमत आज समझते कचराबीन पुलिंदों की …
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 9, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
(१२१२ ११२२ १२१२ २२/११२ )
***
न हसरतों से ज़ियादा रखें लगाव कभी
वगरना क़ल्ब में मुमकिन है कोई घाव कभी
***
इमारतें जो बनाते जनाब रिश्तों की
उन्हें भी चाहिए होता है रखरखाव कभी
***
हयात का ये सफर एक सा कहाँ होता
कभी ख़ुशी तो मिले ग़म का भी पड़ाव कभी
***
न इश्क़ की भी ख़ुमारी सदा रहे…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 8, 2019 at 7:00pm — 17 Comments
प्रस्तुत है कुछ पुच्छल दोहे
=====================
प्रेम और उत्साह जब ,पैदा करें तरंग |
छोड़ कुसुम के तीर तब , विहँसे तनिक अनंग ||
मिलन का क्षण ही ऐसा |
***
देश प्रेम की हर समय ,उठती रहे हिलोर |
उन्नति की फिर देश में ,निश्चित होगी भोर ||
यही हो लक्ष्य हमेशा |
***
ह्रदय सभी के आ सकें ,थोड़े से भी पास |
फिर निश्चित इस देश में ,छा जाये…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 6, 2019 at 2:30pm — 5 Comments
++ग़ज़ल ++(1222 1222 1222 1222 )
हज़ारों बार क़ुदरत ने इशारा तो किया होगा
कभी नाहक कोई तूफ़ान शायद ही उठा होगा
***
जुनूनी है जिसे मंज़िल नज़र भी साफ़ आती है
वही अक़्सर अचानक नींद से उठकर खड़ा होगा
***
समझ रक्खे कोई तो इश्क़ की गलियाँ नहीं देखे
क़दम पहला उठाया वो यक़ीनन सरफिरा होगा
***
नफ़ा-नुक़्सान उल्फ़त में लगाए कौन छोडो…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 5, 2019 at 4:30pm — 4 Comments
( २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ )
.
लगता है इस साल सनम कटनी तन्हाई मुश्किल है
बीते लम्हों के सहरा से हैफ़* ! रिहाई मुश्किल है (*हाय-हाय ,अफ़सोस )
***
ख्वाब तसव्वुर ख़त मौसम ये चाँद बहाने कितने हैं
तेरी यादों के लश्कर से यार जुदाई मुश्किल है
***
माना ग़म की मार पड़ी है चारों खाने चित्त हुआ
कैसे भी हों मेरे अब हालात गदाई* मुश्किल…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 4, 2019 at 3:30pm — 7 Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
.
बना हूँ ज़ीस्त में मर्ज़ी से मेरी आबिर* भी (*राहगीर )
फ़क़ीर मीर कभी और कभी मुसाफ़िर भी
*
किया शुरू'अ जहाँ से सफ़र न सोचा था
उसी जगह पे सफर होगा मेरा आखिर भी
*
ये दौड़भाग तो पीछा कभी न छोड़ेगी
ज़रा सा वक़्त निकालो ना ख़ुद की ख़ातिर भी
*
किसी ग़रीब की हालत का ज़िक़्र क्या…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 3, 2019 at 10:00am — 10 Comments
कैसा होगा नया साल यह, कहना शायद मुश्किल है
मनोकामना सम्भव है पर , अच्छी हो सबकी ख़ातिर |
***
लिखा नियति ने जो इस पर है निर्भर क्या हो अगले पल |
कृपा बरस जाये प्रभु की या जीवन से हो जाये छल |
लेकिन अच्छा सोचोगे तो होगा जीवन में अच्छा
बुरा अगर सोचा तो वैसा सम्भव है हो जाये कल |
ज्योतिष-ज्ञान सभी की ख़ातिर रखना शायद मुश्किल…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 1, 2019 at 10:00pm — 8 Comments
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