समय के साय
समय पास आकर, बहुत पास
कोई भूल-सुधार न सोचे
अकल्पित एकान्तों में सरक जाए
झटकारते कुछ धूमैले साय अपने
गहरे, कहीं गहरे बीच छोड़ जाए
कुछ ऐसे घबराय बोझिल…
ContinueAdded by vijay nikore on January 30, 2020 at 2:30pm — 4 Comments
नियति का आशीर्वाद
हमारे बीच
यह चुप्पी की हलकी-सी दूरी
जानती हो इक दिन यह हलकी न रहेगी
परत पर परत यह ठोस बनी
धातु बन जाएगी
तो क्या नाम देंगे हम उस धातु को ?…
ContinueAdded by vijay nikore on January 27, 2020 at 12:30pm — 4 Comments
प्रथम मिलन की शाम
विचारों के जाल में उलझा
माथे पर हलका पसीना पोंछते
घबराहट थी मुझमें --
मैं कहीं अकबका तो न जाऊँगा
यकीनन सवाल थे उगल रहे तुम में भी
कैसा होगा हमारा यह प्रथम…
ContinueAdded by vijay nikore on January 23, 2020 at 8:30am — 4 Comments
समय पास आ रहा है
बहता रहा है समय
घड़ी की बाहों में युग-युग से
पुरानी परम्परा है
घड़ी को चलने दो
समय को बहना है, बहने दो
हँसी और रुदन के बीच भटक-भटक…
ContinueAdded by vijay nikore on January 20, 2020 at 10:30pm — 7 Comments
प्रतीक्षा
आँधी में पेड़ों से पत्तों का गिरना
पेड़ों की शाख़ों के टूटे हुए खण्ड गिनना
उड़ते बिखरे पत्तों से आंगन भर जाना
यह नज़ारा कोई नया नहीं है
फिर भी लगता है हर आँधी के बाद
नदियों पार “हमारे” उस पुल को चूमकर आई
यह आँधी मुझसे कुछ बोल गई
गिरे पत्तों की पीड़ा मुझमें कुछ घोल गई
हर आँधी की पहचान अलग, फैलाव नया-सा
कि जैसे अब की आँधी में नि:संदेह
कुलबुलाहट नई है, कोलाहल कुछ और है
मेरी ही गलती है हर गति…
ContinueAdded by vijay nikore on January 17, 2020 at 2:30pm — 4 Comments
प्रकृति-सत्य
मेरे पिछवाड़े के पेड़ों के पत्ते
पतझर में अब पीले नहीं होते
ऋतु परिवर्तन से पहले ही, डरे-डरे
तन-मन हारे मारे-मारे उढ़ते फिरते
कि जैसे यह अकुलाते पत्ते नहीं हैं
हज़ारों घायल पक्षी…
ContinueAdded by vijay nikore on January 13, 2020 at 8:00am — 4 Comments
नियति-निर्माण
नियति मेरी, पूछूँ एक सवाल
इतना तो बता दो मुझको
वास्तव में यह हिंसक नहीं है क्या
घोर अन्याय नहीं है क्या ...
कि हाथों में तुम्हारे रही है हमेशा
मेरे भविष्य की डोर
और मैं ...
ज़िन्दगी की इमारत की
किसी भी मंज़िल पर पहुँचा तो जाना
जागते सोचते हर धूलभरे कमरे में पाया
उदासीन खालीपन
और मेरी छाती में रहीं गिरफ़्तार
कितने अधबने अनबुने नामहीन
सनातन…
ContinueAdded by vijay nikore on January 9, 2020 at 9:30pm — 4 Comments
स्वप्न-मिलन
रात ... कल रात
कटने-पिटने के बावजूद
बड़ी देर तक उपस्थित रही
नींद के धुँधलके एकान्त में
पिघलते मोम-सा
कोई परिचित सलोना सपना बना…
ContinueAdded by vijay nikore on January 7, 2020 at 6:30am — 8 Comments
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