ओ. बी. ओ. परिवार के सम्मानित सदस्यों को सहर्ष सूचित किया जाता है की इस ब्लॉग के जरिये बह्र को सीखने समझने का नव प्रयास किया जा रहा है|
इस ब्लॉग के अंतर्गत सप्ताह के प्रत्येक रविवार को प्रातः 08 बजे एक गीत के बोल अथवा गज़ल दी जायेगी, उपलब्ध हुआ तो वीडियो भी लगाया जायेगा, आपको उस गीत अथवा गज़ल की बह्र को पहचानना है और कमेन्ट करना है अगर हो सके तो और जानकारी भी देनी है, यदि…
ContinueAdded by वीनस केसरी on February 6, 2011 at 5:00pm — 7 Comments
'पापा'
आपका जाना
दे गया
इक रिक्तता
जीवन में,
असहनीय पीड़ा
मेरे मन में..
'माँ'
आज भी
बातें करती है
लोगों से,
लेकिन उसकी
बातों में
होता है
इक 'खालीपन'
आज भी
उसकी निगाहें
देखती हैं
चहुँ ओर
'पर'
उसकी आँखों में हैं
इक 'सूनापन'...
माँ के, दीदी के
छोटू के, भैया के ..
सबके मन में
आपकी याद बसी है
'वो'…
ContinueAdded by Anita Maurya on February 6, 2011 at 4:18pm — 5 Comments
तभी तो कारवां ये बदगुमां है
निगाहे शौक से देखे अगर वो
ज़हां में आशियां ही आशियां है
उठाओ हाथ में खंज़र उठाओ
मेरी आँखों के आगे इक मकां है
छुटा है कुछ अभी आलिंगनों से
न जाने कौन अपने दर्मियां है
वहीँ होगी दफ़न अपनी कहानी
हर इक तारीख में अँधा कुआं है
दिखाओ सर्द मौसम को दिखाओ
जमीं की आग सा मेरा बयां है
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 5, 2011 at 3:30pm — 1 Comment
मिमिया रहे है लोग
ये कौन क़त्ल हो गया
बतिया रहे है लोग
पूनियों सा वक़्त को
कतिया रहे है लोग
संवेदना की मौत पर
खिसिया रहे है लोग
धोखे की टट्टियों को
पतिया रहे है लोग
कुर्सी पे बैठे बैठे
गठिया रहे है लोग
आदम नहीं गधे सा
लतिया रहे है लोग
मौके भुना रहे है
हथिया रहे है लोग
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 5, 2011 at 3:30pm — No Comments
ग़ज़ल : - मत पढ़ो सच का ककहरा
ज़ख्म हो जाएगा गहरा ,
मत पढ़ो सच का ककहरा |
गड़ रहा आँखों में परचम ,
मैं हूँ गूंगा और बहरा…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 5, 2011 at 8:30am — 7 Comments
ग़ज़ल : - वो धुआं था रोशनी को खा गया
छत से निकला आसमां पे छा गया ,
वो धुआं था रोशनी को खा गया |
सब ज़बानें मजहबी खँजर हुईं ,
क्या पुनः दंगों का मौसम आ गया |
टहनियों पर तितलियों…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 5, 2011 at 8:30am — 13 Comments
ग़ज़ल :- मिस्र वालों ने दिखाई हिम्मत
कैद बेशक है आज पिंजर में ,
हौसला है मगर अभी पर में |
मिस्र वालों ने दिखाई हिम्मत ,
जी रहे हम न जाने किस डर में |
हत परिंदों को बचाता है कौन…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 5, 2011 at 8:00am — 7 Comments
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on February 4, 2011 at 7:00pm — 2 Comments
एक
जब से हुई है बंद दुकानें उधार की
रंगत बिगड़ गई है फसले बहार की
सावन के रंग अब के फीके लगा किये
ये उम्र है नहीं अब सोलह सिंगार की
बौने है किस कदर ये आदम बड़े बड़े
हद देख ली है हम ने सब के मयार की
हो पायेगा उन्हें क्या जाने यहाँ अता
मन्नत जो मानते है उजड़े मजार की
बाजार से गुजर के वो शख्स रो पड़ा
कीमत बढ़ी हुई है मुश्ते गुबार की
किस्सा-ए-तोता-मैना यों याद था उन्हें
लिखी गयी कहानी उनसे शिकार…
ContinueAdded by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 4, 2011 at 6:30pm — 3 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on February 4, 2011 at 6:00pm — 1 Comment
Added by आशीष यादव on February 4, 2011 at 7:47am — 12 Comments
बींदने की
बेपनाह कोशिश की है
उसे नियन्त्रित करने की
मशक्कत की है कि, जैसा तुम चाहो
मैं वैसा सोचूँ..
तुमने मुझे एक से बढ़ कर एक
रंगीन जाल दिखाया
बनाये अनोखे तिलिस्म और चाहा
कि जैसा तुम दिखाना चाहते हो
मैं बस वो ही देखूँ..
तुमने मेरी उंगलियों को
छेद छेद कर, पिरोने…
ContinueAdded by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on February 4, 2011 at 4:30am — 9 Comments
बड़े कवि
बड़े कवि
बड़ी कविता लिखते है
जिसे बड़े कवि पढ़ते है
फिर परस्पर पीठ खुजलाते हुए
कला साहित्य के
नए प्रतिमान गढ़ते है
बड़े कवि
ख़ारिज कर देते है
किसी को भी
तुक्कड़ या लिक्खाड़
कह कर
बड़े कवि
गंभीरता का लबादा ओढ़े
किसी नोबेल विजेता की
शान में कसीदे पढ़ते है
विदेशी कवियों को'कोट ' करते है
फिर उस 'कोट' के
भार…
ContinueAdded by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 3, 2011 at 10:30pm — 6 Comments
कल ऐब की बस्ती में ख्वाबों का घर देखा
अदावत की सोहबत देखी शैदा बेघर देखा
दर्द नहीं मिट पाया यादों को तज़ा करके भी
जहाँ फकत फजीहत देखी माजी उधर देखा
हासिल हुई बेगारी मुझे मंजिल के…
Added by Bhasker Agrawal on February 3, 2011 at 4:55pm — 2 Comments
(आचार्य जी ने काफी व्यस्तता के वावजूद यह कृति इस परिवार हेतु भेजी है , बहुत बहुत धन्यवाद ...एडमिन)
षडऋतु - दर्शन…
ContinueAdded by Admin on February 3, 2011 at 9:51am — 3 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on February 2, 2011 at 6:00pm — 5 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on February 2, 2011 at 5:30pm — 1 Comment
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on February 2, 2011 at 5:00pm — 1 Comment
उरों के इस अंजुमन में द्वन्द ना है
(मधु गीति सं. १४७९, दि. २५ अक्टूवर, २०१०)
उरों के इस अंजुमन में द्वन्द ना है, स्वरों के इस समागम में व्यंजना है;
छंद का आनन्द उद्गम स्रोत सा है, लय विलय का सुर तरे भव भंगिमा है.
…
ContinueAdded by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:56pm — 1 Comment
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