For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

April 2020 Blog Posts (86)

कुछ भी निजी कदापि नहीं होता

कुछ भी निजी कदापि नहीं होता 
तुम्हारा मांसाहारी  होना 
या हमारा  शाकाहारी होना 
स्वंय तक कभी सीमित नहीं होता 
कुछ भी निजी कदापि नहीं होता 
तुम्हारा भरपेट से ज़्यादा खाना 
किसी की थाली आधी रह जाना 
स्वंय तक कभी सीमित नहीं होता   
कुछ भी निजी कदापि नहीं होता 
तुम्हारा मंज़िल दर  मंज़िल बढ़ाते जाना 
किसी की झुग्गी का…
Continue

Added by amita tiwari on April 17, 2020 at 9:00am — 2 Comments

हाँ बहुत कुछ याद है

अकेले तुम नहीं यारा

तुम्हारे साथ और भी बात

मुझे हैं याद



कि जैसे फूल खिला हो

तुम हसीं, बिलकुल महकती सी

चहकती सी

 मृदुल किरणों में धुलकर आ गई

और छा गई

जैसे कि बदली जून की

तपती दोपहरी से धरा को छाँव देती

ठाँव देती हो मुसाफिर को



कि जैसे झील हो गहरी

कि ये भहरी…

Continue

Added by आशीष यादव on April 17, 2020 at 7:09am — 2 Comments

इच्छा नहीं

तर्क यदि दे सको तो

बैठो हमारे सामने

व्यर्थ  के उन्माद में , अब

पड़ने की इच्छा नहीं

यदि हमारी संस्कृति को

कह वृथा , ललकारोगे

ऐसे अज्ञानी मनुज से 

लड़ने की इच्छा नहीं

सर्व ज्ञानी स्वयं को

औरों को समझें निम्नतर

जिनके हृद कलुषित , है उनको

सुनने की इच्छा नहीं

व्यर्थ के उन्माद में , अब

पड़ने की इच्छा नहीं

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on April 15, 2020 at 8:32pm — 8 Comments

ग़ज़ल मनोज अहसास

221   2121   1221   212

आँखों में बेबसी है दिलों में उबाल है.

कैसा फरेबी वक्त है चलना मुहाल है.

जो हर घड़ी करीब हैं उनका नहीं ख़्याल,

जो बस ख़्याल में है उसी का ख़्याल है.

रहता हूं जब उदास किसी बात के बिना,

तब खुद से पूछना है जो वो क्या सवाल है

.

पहुँचें हैं जिस मकाम पर उससे गिला हो क्या,

बस रास्तों की याद का दिल में मलाल है.

कुछ लोग बदहवास हैं सोने के भाव से,

कुछ लोग मुतमईन हैं रोटी है दाल…

Continue

Added by मनोज अहसास on April 14, 2020 at 11:59pm — 7 Comments

भूल गया मैं लिखना कविता

जब से तुमको, देखा सविता।

भूल गया मैं, लिखना कविता।।

भाता मुझको, पैदल चलना।

तुम चाहो, अंबर में उड़ना।

सैर-सपाटा, बँगला-गाड़ी।

फैशन नया, रेशमी साड़ी।

सखियाँ तेरी, इशिता शमिता।

भूल गया मैं, लिखना कविता।।

तुमको प्यारे, गहने जेवर।

नखरे न्यारे, तीखे तेवर।

होकर विह्वल, संयम खोती।

हँसती पल में, पल में रोती।

आँसू बहते, जैसे सरिता।

भूल गया मैं, लिखना कविता।।

नारी धर्म, निभाया तूने।

माँ बनकर,…

Continue

Added by Dharmendra Kumar Yadav on April 14, 2020 at 4:30pm — 1 Comment

रिवायतें तो सनम सब निभाई यारी की (८६ )

(1212 1122 1212 22 /112 )

रिवायतें तो सनम सब निभाई यारी की

तमाम तोड़ हदें हमने दुनिया-दारी की

**

करोगे बात किसी की गर इंतजारी की

जुड़ेगी इस से कहानी भी बेक़रारी की

**

जब आब सर से हमारे लगा गुज़रने तब

निराश होके सनम हमने दिलफ़िगारी की 

**

रक़ीब से जो मिले आप बे-हिज़ाब मिले

हमीं से सिर्फ़ लगातार पर्दे-दारी की

**

जूनून और गुमाँ में हुज़ूर भूल गए

क़सम भी कोई निभानी है राज़-दारी…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 14, 2020 at 11:00am — 5 Comments

गंतव्य(लघुकथा)

अकस्मात गांव में भीड़ बढ़ गई। कालू, खखनु आदि ही नहीं शंकर सेठ वगैरह भी सपरिवार गांव आ गए हैं।सुना है और लोग भी आनेवाले हैं। अभी कुछ दिनों तक ये सब यहीं रहेंगे। बुधु यह सोचकर परेशान है कि जो लोग खास मौकों पर भी गांव आने से कतराते थे,वे आज धड़ल्ले से क्यों मुंह उठाए भागे आ रहे हैं,वो भी पूरे बाल बच्चों के साथ।कहते थे कि इनके बच्चे एसी कूलर के बिना सो नहीं सकते।बिजली के बिना क्या तो, रोने लगते हैं।अब यह कौन करिश्मा हुआ है भाई?

यही सब सोचते वह पोखर से लौट रहा था कि लक्खू मास्टर जी मिल…

Continue

Added by Manan Kumar singh on April 14, 2020 at 7:58am — No Comments

मैं क्या लिखूं

चाहता हूँ कुछ लिखूं , पर सोचता हूँ क्या लिखूं ,

दिल में  है जो वो लिखूं,या लब पे है जो वो लिखूं

 

सोये हुए जज्बातो को, एक लफ्ज़ दूँ जो बयान हो

टूटे हुए अरमानो को, एक शक्ल दूँ दरमायान हो

 

बिखरी हुई सी चाह को,बैठा हुआ मैं बटोरता

भूले हुए से राह पर, मैं बेलगाम  सा दौड़ता

 

बंद एक संदूक में, मैं अन्धकार को तरेरता

खुद के तलाश में अपने ही,अक्स को मैं कुरेदता

 

चल जाऊं जो मैं चल सकूं,ले आऊं मैं जो ला सकूं

बीते…

Continue

Added by AMAN SINHA on April 13, 2020 at 3:40pm — No Comments

सहज शान्ति भरपूर

सीख अनर्गल दे रहे , बढ़-चढ़ बारम्बार

हमको भी अधिकार है , करने का प्रतिकार

केवल जिभ्या चल रही , करें न कोई काज

नित्य करें अवमानना , सारी लज्जा त्याग

अस्थिरता फैला रहे , करते व्यर्थ प्रलाप

गिद्ध दृष्टि बस वोट पर , अन्य न कोई बात

जब है विश्व कराहता , बढ़े भयंकर रोग

केवल बस आलोचना , नहीं कोई सहयोग

शान्थि समर्थक को समझ पत्थर , रगड़ें आप

प्रकटेगी शिव रोष की अगनि , भयंकर ताप

उसमें  सारा भस्म…

Continue

Added by Usha Awasthi on April 13, 2020 at 12:08pm — 2 Comments

ग़ज़ल मनोज अहसास

221  2121  1221  212

इतने दिनों के बाद भी क्यों एतबार है.

मिलने की आरज़ू है तेरा इंतज़ार है.

ये ज़िस्म की तड़प है या मन का खुमार है,

लगता है जैसे हर घड़ी हल्का बुखार है.

मैं तेरी रूह छू के रूहानी न हो सका,

वो तेरा ज़िस्म छू के तेरा पहला प्यार है.

अब भी मेरे बदन में घुला है तेरा वजूद,

किस्मत की उलझनों से नज़र बेकरार है.

छुप कर तेरे ख़्याल में आती है जग की पीर,

दुनिया के गम से भी मेरा दिल सोगवार है…

Continue

Added by मनोज अहसास on April 13, 2020 at 11:43am — 1 Comment

न सीखी होशियारी

न  सीखी  होशियारी

सर्वसामान्य का संवाग रचाते

मानव में है मानो चिरकाल से

उथल-पुथल गहरी भीतर

पग-पग पर टकराहट बाहर

आदर्श, व्यवहार और विवेक में

असामंजस्य…

Continue

Added by vijay nikore on April 13, 2020 at 10:00am — 2 Comments

बस जुगनू भर को छोड़ देते

जिस मार्ग पे तुम अब चल निकले हो 

उस मार्ग से परिचय नहीं है  …

Continue

Added by amita tiwari on April 13, 2020 at 2:00am — 1 Comment

मज़ाक था वो मगर हमने प्यार मान लिया(८५ )

 ( 1212 1122 1212 22 /112 )

मज़ाक था वो मगर हमने प्यार मान लिया

कि ख़ुद को तीर-ए-नज़र का शिकार मान लिया

**

ग़मों को क़ल्ब का हमने क़रार मान लिया

ख़िज़ाँ के रूप में आई बहार मान लिया

**

ख़ुशी ने बारहा इतना दिया फ़रेब हमें

ख़ुशी को ज़िंदगी से अब फ़रार मान लिया

**

समझने सोचने की ताब खो चुके हैं हम

दिमाग़ में है हमारे दरार मान लिया

**

पिलाई साक़िया ने चश्म से हमें वो मय

हयात भर को चढ़ा…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 12, 2020 at 9:30pm — No Comments

आइये फिर आरज़ू का जलजला दिल में उठा(८४ )

(2122 2122 2122 212 )

आइये फिर आरज़ू का जलजला दिल में उठा

आइये फिर दिल की वादी में चली बाद-ए-सबा

**

आइये फिर वस्ल का पैग़ाम ले आई हवा

आइये फिर से क़मर भी बादलों में छुप गया

**

आइये फिर से जवाँ है रात भी माहौल भी

आइये फिर आसमाँ पे छा गई काली घटा

**

आइये फिर मरमरी बाँहों में हमको लीजिये

आइये फिर ख़ुशबुओं ने दिल मुअत्तर कर दिया

**

आइये फिर कश्तियाँ ग़म की डुबोने के…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 11, 2020 at 10:00am — No Comments

ज़िन्दान-ए-हिज्र से अरे आज़ाद हो ज़रा (८३ )

( 221 2121 1221 212 )

ज़िन्दान-ए-हिज्र से अरे आज़ाद हो ज़रा 

नोहे* तू क़त्ल-ए-इश्क़ के दुनिया को मत सुना 

**

अक़्स-ए-रुख़-ए-सनम तेरे आएगा रू ब रू

माज़ी के आईने पे लगी धूल तो हटा 

**

दुनिया में जीने के लिए हैं और भी सबब

चल नेकियों के वास्ते कुछ तू समय लगा

**

फिर साज़-ए-दिल पे छेड़ कोई राग पुरसुकूँ

दुनिया के वास्ते नया पुरअम्न गीत गा

**

हैं इंतज़ार में तेरी दुनिया की…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 10, 2020 at 2:00pm — No Comments

दूरियां

जब नहीं था

समय

तब तुम घूमती थी

और मंडराती थी

हमारे इर्द-गिर्द

करती थी परिक्रमा

और मैं देता था झिडक  

 

अब मैं

हूँ घर पर मुसलसल

साथ तुम भी हो

व्यस्तता भी अब नहीं कोई   

कितु मेरे पास तुम आती नहीं

परिक्रमा तो दूर की है बात

ढंग से मुसक्याती नहीं    

 

 

नहीं होता

यकीं इस बदलाव पर  

नहीं आ सकतीं

किसी बहकावे में तुम

और फिर अफवाह की भी बात क्या…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 10, 2020 at 1:51pm — 2 Comments

असाधारण सवाल

असाधारण सवाल

यह असाधारण नहीं है क्या

कि डूबती संध्या में

ज़िन्दगी को राह में रोक कर

हार कर, रुक कर

पूछना उससे

मानव-मुक्ति के साधन

या पथहीन दिशा की परिभाषा

असाधारण यह भी नहीं है कि

ज़िन्दगी के पाँच-एक वर्ष छिपाते

भीगते-से लोचन में अभी भी हो अवशेष

नूतन आशा का संचार

चिर-साध हो जीवन की

सच्चे स्नेह की सुकुमार अभिलाषा

पर असाधारण है,…

Continue

Added by vijay nikore on April 10, 2020 at 5:00am — 2 Comments

आज के दोहे :

कोरोना के चक्र की, बड़ी वक्र है चाल।

लापरवाही से बने, साँसों का ये काल।।

निज सदन को मानिए, अपनी जीवन ढाल।

घर से बाहर है खड़ा ,संकट बड़ा विशाल।।

मिलकर देनी है हमें, कोरोना को मात।

काल विभूषित रात की, करनी है प्रभात।।

निज स्वार्थ को छोड़कर, करते जो उपकार।

कोरोना की जंग के ,वो सच्चे किरदार।।

हाथ जोड़ कर दूर से, कीजिये नमस्कार।

हर किसी पर आपका, होगा ये उपकार।।

सुशील सरना

मौलिक एवं…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 9, 2020 at 8:00pm — 2 Comments

संस्कार - लघुकथा -

संस्कार - लघुकथा -

"रोहन यह क्या हो रहा है सुबह सुबह?"

"भगवान ने इतनी बड़ी बड़ी आँखें आपको किसलिये दी हैं?"

रोहन का ऐसा बेतुका उत्तर सुनकर मीना का दिमाग गर्म हो गया। उसने आव देखा न ताव देखा तड़ातड़ दो तीन तमाचे धर दिये रोहन के मुँह पर।सात साल का रोहन माँ से इस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं कर रहा था।

वह फ़ट पड़ा और जोर जोर से दहाड़ मार कर रोने लगा। उसका बाप दौड़ा दौड़ा आया।

रोहन को गोद में उठाकर पूछा,"क्या हुआ?"

"माँ ने मारा।"

रोहन के पिता ने मीना…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on April 9, 2020 at 10:47am — 4 Comments

सलाखों में क़फ़स के गर लगा ज़र(८२ )

(1222 1222 122 )

सलाखों में क़फ़स के गर लगा ज़र

रहेंगे क्या उसी में ज़िंदगी भर ?

**

किसी की ज़िंदगी क्या ज़िंदगी है

अगर ता-उम्र उसका ख़म रहे सर ?

**

तुम्हारी ज़िंदगी से कौन खेले

किसानों ख़ुदक़ुशी की रह दिखा कर ?

**

सियासत के मिलेंगे ख़ूब मौक़े

ज़रा हालात को होने दो बेहतर

**

तलातुम आजकल ख़बरों के आते

भरोसा कीजिए मत हर ख़बर पर

**

महामारी सुबूत अब दे…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 9, 2020 at 8:00am — No Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service