तन्हाई में जब जब तेरी यादों से मिला हू
महसूस हुआ है तुम्हे देख रहा हू
ऐसा भी नहीं है तुम्हे याद करू मैं
ऐसा भी नहीं है तुम्हे भूल गया हू
शायद ये तकब्बुर की सजा मुझको मिली है
उभरा था बड़े शान से अब डूब रहा हू
ए रात मेरी सम्त ज़रा सोच के बढ़ना
मलूँ नहीं तुम्हे क्या मैं अलीम जिया हू
तकब्बुर - घमंड
सम्त - मेरी तरफ , जानिब
जिया -रौशनी उजाला
Added by aleem azmi on May 20, 2010 at 10:05pm —
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ओ दिल्ली वालो ,
हमें इतना बताओ ,
हिन्दुस्ता पे जो खाज परे हैं ,
उसको कब मिटाओगे ,
अफजल गुरु को ,
फासी कब चढाओगे ,
हिन्दुस्ता पे बहुत ऐसे खाज हैं ,
उसको मिटाना जरुरी आज हैं ,
मेहमान बनाके कब तक ,
पैसा लुटाओगे ,
अफजल गुरु को ,
फासी कब चढाओगे ,
मेरी नहीं ये ,
देश की मांग हैं ,
आपको तो भोट दीखता ,
हमें हिंदुस्तान हैं ,
हिंद में ख़ुशी का ,
दिन कब लावोगे ,
अफजल गुरु को ,
फासी कब चढाओगे ,
हिन्दू ,…
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Added by Rash Bihari Ravi on May 20, 2010 at 2:10pm —
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माओबादी के झंडा तले फुकने मत दो हिंदुस्तान ,
जनता माफ़ नहीं करेगी बोलेगी शैतान ,
जनता के नाम पर हिंदुस्तान को जला रहे हो ,
बिदेसी पैसा ले ले कर मौज मस्ती मन रहे हो ,
कब तक डरेगी जनता जिसे तू डरा रहे हो ,
जिस दिन डरना बंद करेगी हो जाओगे परेशान ,
माओबादी के झंडा तले फुकने मत दो हिंदुस्तान ,
झारखण्ड , छत्तीसगढ़ बंगाल में हाहाकार मचाये ,
बिहार में भी तुमने करोरो का तेल जलाये ,
मारते हो आम आदमी को जिसदिन ओ जागेगा ,
नजर नहीं आओगे मिट जायेगा नमो निसान…
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Added by Rash Bihari Ravi on May 20, 2010 at 1:41pm —
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दियार-ऐ-इश्क़* से गुजर जाने से पहले,
थे होशमंद, न थे दीवाने से पहले
*इश्क का शहर
सब्ज़ बाग़, सुर्ख गुल हम देख ही न पाये,
खिजां आ गई बहार आने से पहले
बज़्म* में उनकी मुहब्बत एक तमाशा है,
मालूम न था हमें, वहां जाने से पहले
*बज़्म- महफिल
मेरा नाखुदा* तो नाशुक्रा निकला,
रज़ा भी न पूछी, डुबाने से पहले
*नाखुदा- मल्लाह, नाविक
कैस, फरहाद, रांझा तो बीते दिनों की बात है,
राब्ता* रखिये जनाब, नए ज़माने से पहले
*राब्ता-…
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Added by दुष्यंत सेवक on May 20, 2010 at 1:05pm —
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गिला उनको हमसे हमीं से है राहत .
खुदा जाने कैसी है उनकी ये चाहत .
उनके लिए मैं खिलौना हूँ ऐसा .
जिसे टूटने की नहीं है इज़ाज़त .
इन्सां से नफ़रत हिफाज़त खुदा की .
ये कैसा है मज़हब ये कैसी इबादत .
बदन पे लबादे ख्यालात नंगे .
यही आजकल है बड़ों की शराफत .
सज-धज के मापतपुरी वो हैं निकले .
कहीं हो ना जाए जहाँ से अदावत .
गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाइल -9334414611
Added by satish mapatpuri on May 20, 2010 at 1:00pm —
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घिर आये स्याह बादल सरे शाम
स्याह*-काले
और उदास ये जेहन क्यूँ हुआ
जेहन*-मन
पोशीदाँ अहसास क्यूँ उभर आये
पोशीदाँ*-छुपा हुआ
ये दिल तनहा दफ्फअतन क्यूँ हुआ
दफ्फअतन*-अचानक
यूँ तो अब तक चेहरे की ख़ुशी छुपाते थे
ग़म छुपाने का ये जतन क्यूँ हुआ
कोई चोट तो गहरी लगी होगी
ये संगतराश यूँ बुतशिकन क्यूँ हुआ
संगतराश*-मूर्तिकार, बुतशिकन*-मूर्तिभंजक
दुष्यंत......
Added by दुष्यंत सेवक on May 20, 2010 at 12:30pm —
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वह मेरा मेहमान भी जाता रहा
दिल का सब अरमान भी जाता रहा
अब सुनाउगा किसे मै हाले दिल
हाय वह नादान भी जाता रहा
हुस्न तेरा बर्क के मानिंद है
उफ़ मेरा ईमान भी जाता रहा
वह बना ले गए हमे अपना अज़ीज़
अब तो यह इमकान भी जाता रहा
दिन गए अलीम जवानी के मेरे
आँख पहले कान भी जाता रहा
Added by aleem azmi on May 19, 2010 at 9:43pm —
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तुमने अत्याचार का कैसे समर्थन कर दिया
मौन रह कर दुष्ट का उत्साहवर्धन कर दिया
धैर्य की सीमा का जब दुख ने उल्लंघन कर दिया
आँसुओं ने वेदना का खुल के वर्णन कर दिया
जिस विजय के वास्ते सब कुछ किया तुमने मगर
उस विजय ने ही तुम्हारा मान मर्दन कर दिया
चेतना की बिजलियों ने रोशनी तो दी मगर
एक मरुस्थल की तरह से मन को निर्जन कर दिया
मन तथा मस्तिष्क के इस द्वंद मे व्यवहार ने
कर दिया इसका कभी उसका समर्थन कर दिया.
Added by fauzan on May 19, 2010 at 12:14am —
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अब क्यूँ अपना रूप सजाऊं ,किसके लिए सिंगार करूँ .
दिल का गुलशन उजड़ गया तो ,फिर से क्यूँ गुलज़ार .
जब से गए -तन्हाई में मैं ,तुमको ही सोचा करती हूँ .
देख न ले कोई अश्क हमारा ,छिप -छिप रोया करती हूँ .
प्यार भी अपना -गम भी अपना ,क्यों इसका इज़हार करूँ .
दिल का -------------------------------------------
शीशा जैसे टूट गए जो, माना की वो सपने थे .
सच है आज पराये हो गए, पर कल तक तो अपने थे .
आज भी याद है कल की बातें, क्यों इससे इनकार करूँ .
दिल का…
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Added by satish mapatpuri on May 17, 2010 at 11:29am —
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तीन चीजे कभी छोटी न समझे --शत्रु ,कर्जा,बीमारी.
तीन चीजे किसी की प्रतीक्षा नहीं करती--समय,मृत्यु,ग्राहक.
तीन चीजे भाई भाई को दुसमन बना देती है--जर,जोरू,जमीन.
तीन चीजे याद रखना चाहिए--सच्चाई,कर्त्तव्य,मृत्यु.
तीन चीजे असल उद्देश्य से रोकती है--बदचलनी,क्रोध,लालच.
तीन चीजे कोई चुरा नहीं सकता--बुद्धि ,चरित्र,हुनर.
तीन चीजे निकल कर वापस नहीं आती--तीर कमान से,बात जबान से,प्राण शारीर से.
तीन व्यक्ति वक़्त पर पहचाने जाते है--स्त्री,भाई और मित्र.
तीन चीजे जीवन में…
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Added by Ratnesh Raman Pathak on May 16, 2010 at 5:00pm —
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न जीने की खवाहिश ज़हर चाहता हू
तुमाहरे ही हातों मगर चाहता हू
वो मिल जाए मुझको है जिसकी तमन्ना
मै अपनी दुआ में असर चाहता हू
कही मर न जाऊ यह लेकर तमन्ना
तुम्हरी झलक एक नज़र चाहता हू
है मुद्दत से कतए ताल्लुक हमारा
तुझे आज भी मै मगर चाहता हू
तेरा साथ काफी ए मेरे अलीम
न माल और दौलत न घर चाहता हू
katye means ------chod dena
Added by aleem azmi on May 16, 2010 at 4:03pm —
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है कयामत या है बिजली सी जवानी आपकी
खूबसूरत सी मगर है जिंदगानी आपकी
तीर आँखों से चलाना या पिलाना होंठ से
भूल सकता हु नहीं मैं हर निशानी आपकी
आप मोहसिन है हमारे आपका एहसान है
हमसफ़र हमको बनाया मेहेरबानी आपकी
रूठ कर नज़रें चुराना मुस्कुराना फिर मगर
याद है सब कुछ मुझे बातें पुरानी आपकी
तुमसे वाबस्ता है मेरी जिंदगानी का हर वरक
ज़िन्दगी मेरी है कहानी आपकी
Added by aleem azmi on May 16, 2010 at 1:42pm —
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लड़की / अमरजीत कौंके
बचपन से यौवन का
पुल पार करती
कैसे गौरैया की तरह
चहकती है लड़की
घर में दबे पाँव चलती
भूख से बेखबर
पिता की गरीबी से अन्जान
स्कूल में बच्चों के
नए नए नाम रखती
गौरैया लगती है लड़की
अभी उड़ने के लिए पर तौलती
और दो चार वर्षों में
लाल चुनरी में लिपटी
सखिओं के झुण्ड में छिपी
ससुराल में जाएगी लड़की
क्या कायम रह पायेगी
उसकी यह तितलिओं सी शोखी
यह गुलाबी मुस्कान
गृहस्थ की…
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Added by DR. AMARJEET KAUNKE on May 16, 2010 at 9:22am —
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लालटेन / डॉ. अमरजीत कौंके
कंजक कुँआरी कविताओं का
एक कब्रिस्तान है
मेरे सीने के भीतर
कविताएँ
जिनके जिस्म से अभी
संगीत पनपना शुरू हुआ था
और उनके अंग
कपड़ों के नीचे
जवान हो रहे थे
उनके मरमरी चेहरों पर
सुर्ख आभा झिलमिलाने लगी थी
तभी अतीत ने
उन्हें क्रोधित आँखों से देखा
वर्तमान ने
तिरछी नज़रों से घूरा
और भविष्य ने त्योरी चढ़ाई
इन सुलगती हुई निगाहों से डर कर
मैंने उन कविताओं को
अपने मन…
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Added by DR. AMARJEET KAUNKE on May 16, 2010 at 6:34am —
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पतंग सा शोख मन
लिए
चंचलता अपार
छूना चाहता है
पूरे नभ का विस्तार
पर्वत,सागर,अट्टालिकाएं
अनदेखी कर
सब बाधाएं
पग आगे ही आगे बढाएं
ज़िंदगी की थकान को
दूर करने के चाहिए
मन की पतंग
और सपनो का आस्मां
जिसमे मन भेर सके
बेहिचक,सतरंगी उड़ान
पर क्यों थमाएं डोर
पराये हाथों मैं
हर पल खौफ
रहे मन मैं
जाने कब कट जाएँ
कब लुट जाएँ
चंचलता,चपलता
लिए देखे मन
ज़िन्दगी के…
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Added by rajni chhabra on May 15, 2010 at 2:00pm —
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धनी बहुत थे मगर अब फ़क़ीर कितने हैं
हमारे युग मे बताओ कबीर कितने हैं
जो युध भूमि मैं छाती को ढाल करते हों
तुम्हारे पास बताओ वो वीर कितने हैं
सती प्रथा पे करो टिप्पणी वरन सोचो
बिना चिता के सुलगते शरीर कितने हैं
जो देखीं सिलवटें मुख पर युवा भिखारॅन के
समझ गया हूँ यहाँ दानवीर कितने हैं
मिले हैं बन के अपरिचित सदा इसी कारण
उन्हे पता ना चले हम अधीर कितने हैं
Added by fauzan on May 14, 2010 at 9:19pm —
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जब अपने वश मे अहंकार कर लिया मैने
तब अपनी हार को स्वीकार कर लिया मैने
उसे घमंड कि उसने मुझे मिटा डाला
मुझे ये गर्व कि एक वार कर लिया मैने
तुम्हे भी याद रहे मेरा सुर्खरु होना
लो अपने रक्त से श्रृगार कर लिया मैने
जो मेरे मित्र ने भेजा था प्यार से तोहफा
उसी कफ़न हि को दस्तार कर लिया मैने
बड़े ही प्रेम से जीवन के हर मरुस्थल को
तुम्हारा नाम लिया पार कर लिया मैने
Added by fauzan on May 14, 2010 at 9:16pm —
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तुम्हारे नाम की ऐसी हंसी एक शाम कर देंगें .
रहोगे बेखबर कैसे तुम्हें बदनाम कर देंगें .
मोहब्बत में दिलों को हारने वाले बहुत होंगे .
मगर दिल चीज़ क्या हम ज़िन्दगी तेरे नाम कर देंगें .
तेरा दावा है तेरा संग दिल हरगिज़ ना पिघलेगा .
हमारी जिद्द है की एक दिन तुम्हें गुलफाम कर देंगे .
सुना है प्यार से मेरा नाम लेतो हो अकेले में .
यकीं होता नहीं की आप भी ये काम कर देंगें .
वफ़ा मापतपुरी मिलती है अब ग़ज़लों में शेरों में .
मगर हम बेवफा कैसे तुम्हें ऐलान कर…
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Added by satish mapatpuri on May 14, 2010 at 4:20pm —
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आत्म हत्या के नयाब तरीका ,
कोई केश नहीं बनेगा ,
पकडे जाने पर मुकदमा नहीं चलेगा ,
अब तो आप जानना चाहेंगे ,
आत्म हत्या के नयाब तरीका ,
दोस्ती से सुरु होती हैं,
आन बान शान तक जाती हैं ,
कभी जान कर ,
तो कभी अनजाने में ,
लोग अपनाते हैं ,
आत्म हत्या के नयाब तरीका ,
आइये आपकी इंतजार ख़तम करे ,
तो सबसे पाहिले ,
तम्बाकू सेवन करे ,
इससे काम न बने तो ,
शराब को अपनाये ,
साथ में सिगरेट या ,
सिंगर जलाये ,
और जल्दी हो तो…
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Added by Rash Bihari Ravi on May 13, 2010 at 5:13pm —
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ओपन बुक्स ऑनलाइन पे आपका स्वागत हैं ,
ओपन बुक्स ऑनलाइन तो आप का अपना घर है ,
सुबह से साम तक रहता आपका इंतजार हैं ,
ओपन बुक्स ऑनलाइन पे आपका स्वागत हैं ,
गजले योगराज प्रभाकर, आशा पाण्डेय, अलीम के ,
इनका भी जबाब कहा भाई विवेक, सतीश मपतपुरी हैं ,
आइये ओपन बुक्स ऑनलाइन पे आपका स्वागत हैं ,
कविता पे राज करे बहन रजनी छाबरा ,
संग राजू की रचना बिरेश, अर्पण की मस्ती हैं,
आइये ओपन बुक्स ऑनलाइन पे आपका स्वागत हैं ,
लेख रतनेश और अभिषेक , अमरेंदर…
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Added by Rash Bihari Ravi on May 13, 2010 at 3:46pm —
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