Added by Veerendra Jain on June 19, 2011 at 11:46pm — 7 Comments
Added by dr a kirtivardhan on June 19, 2011 at 4:30pm — 1 Comment
Added by dr a kirtivardhan on June 19, 2011 at 4:30pm — 1 Comment
ऐ खुदा इस जहाँ में तेरे ,
कोई हँसता ,कोई रोता क्यों ,,
इन्सान -इन्सान सब एक समान हैं तो फिर
उंच -नीच जाति-भेद क्यों
इन्सान तो सब तेरी ही सन्तान हैं फिर ,
कोई वारिस कोई लावारिस क्यों ,,
तुने ये पेट तो सबको दिया हैं फिर ,
किसी को खाना कोई भूखा क्यों ,,
दुनिया में कुछ तेरा -मेरा नही फिर
कोई धनी कोई गरीब क्यों…
Added by Ajay Singh on June 19, 2011 at 11:44am — No Comments
Added by Ajay Singh on June 19, 2011 at 11:40am — No Comments
(१) यमुना साहित्य… |
Added by Admin on June 19, 2011 at 10:00am — 53 Comments
= ग़ज़ल =
जाने कब के बिखर गये होते.
ग़म न होता,तो मर गये होते.
काश अपने शहर में गर होते,
दिन ढले हम भी घर गये होते.
इक ख़लिश उम्र भर रही, वर्ना -
सारे नासूर भर गये होते.
दूरियाँ उनसे जो रक्खी होतीं,
क्यूँ अबस बालो-पर गये होते.
ग़र्क़ अपनी ख़ुदी ने हमको किया,
पार वरना उतर गये होते.
कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,
दिल न जाते, तो सर गये होते.
बाँध रक्खा हमें तुमने, वरना
ख़्वाब…
Added by डॉ. नमन दत्त on June 19, 2011 at 8:30am — 5 Comments
कभी तो मेरा प्यार तुम्हे याद आयेगा ,
कभी तो तुम्हारा दिल मेरे लिए तड़पेगा ,
जैसे की आज मै तड़पता हूँ, ,
सुबह को न सही, दोपहर को न सही ,
शाम को न सही ,रात को न सही ,
अपने मिलन की कोइ घडी तो याद आएगी ?
जब कोइ तुम्हारा दिल दुखायेगा ,
तब मेरा प्यार याद आयेगा ,
कभी तो तुम्हारा दिल तड़पेगा ?
जैसे आज मै तड़पता हूँ, ,
तुम मेरे बेगैर एक पल भी नहीं रह पाते थे ,
मुझे न देखने पर बेचैन हो जाते थे ,
अब ओ प्यार कहाँ गया…
ContinueAdded by Sanjay Rajendraprasad Yadav on June 18, 2011 at 4:00pm — 4 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on June 18, 2011 at 1:00pm — No Comments
Added by neeraj tripathi on June 18, 2011 at 12:59pm — 2 Comments
Added by smriti yadein on June 17, 2011 at 11:30am — No Comments
आदरणीय सम्पादक जी,
सादर नमस्कार.
OBO हेतु मेरी स्वरचित,अप्रकाशित,अप्रसारित एक ताज़ा रचना आपकी सेवा में प्रेषित कर रहा हूँ.कृपया निर्णय से अवगत करावें.
भवदीय--
-- अशोक पुनमिया.
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
आहट है किसी की,
कोई दस्तक दे रहा है…
ContinueAdded by अशोक पुनमिया on June 16, 2011 at 5:29pm — 6 Comments
जब इच्छा हो मदिरा पी लूँ, प्रतिपग मधुशालायें है,
किन्तु सुलभ सुरा का पान, मन का मद भी जाये है.
नैनो में प्राण बसे तू ही है मनमीत मेरा,
बनके बजती तू सरगम तू ही है संगीत मेरा,
तुझको दिवास्वप्न में देखूँ , देखूँ भोर के तारों में,
तेरी काया होती निर्मित, हिम पर्वत जलधारो में,
तू ही अतिथि अंर्तमन की दूजा कोई न भाये है
कथित चहुँ लोक में कोटि आकर्षक बालायें हैं
जब इच्छा हो मदिरा पी लूँ, प्रतिपग मधुशालायें हैं
किन्तु सुलभ सुरा…
ContinueAdded by इमरान खान on June 16, 2011 at 1:33pm — No Comments
Added by Hilal Badayuni on June 15, 2011 at 10:30pm — 1 Comment
वसीयत मे इमरोज़-ओ-अय्याम लिख दिए,
उसके लिए मैंने कई कलाम लिख दिए.
न रंज ही होता न दर्द ओ अलम था,
वो आ गया होता तो बेज़ार कलम था,
एहसान, ये उसी के तमाम लिख दिए.
उसके लिए मैंने कई कलाम लिख दिए.
मेरी ख्वाहिशें मुलजिम मेरी रूह गिरफ्तार,
मशकूक कर दिया हालात ने किरदार,
झूटी दफा के दावे मिरे नाम लिख दिए,
उसके लिए मैंने कई कलाम लिख दिए.
लिखूं अगर ग़ज़ल तो वो जान-ए-ग़ज़ल है,
अलफ़ाज़-ओ-एहसास मे उसका ही दखल…
ContinueAdded by इमरान खान on June 15, 2011 at 6:44pm — 2 Comments
Added by rajkumar sahu on June 15, 2011 at 4:37pm — No Comments
Added by Raj on June 15, 2011 at 2:00pm — No Comments
नवगीत/दोहा गीत:
पलाश...
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
बाधा-संकट हँसकर झेलो
मत हो कभी हताश.
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता यही पलाश...
*
समझौते करिए नहीं,
तजें नहीं सिद्धांत.
सब उसके सेवक सखे!
जो है सबका कांत..
परिवर्तन ही ज़िंदगी,
मत हो जड़-उद्भ्रांत.
आपद संकट में रहो-
सदा संतुलित-शांत..
शिवा चेतना रहित बने शिव
केवल जड़-शव लाश.
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on June 15, 2011 at 1:23pm — 2 Comments
नवगीत:-
टेसू तुम क्यों लाल हुए?
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
टेसू तुम क्यों लाल हुए?
फर्क न कोई तुमको पड़ता
चाहे कोई तुम्हें छुए.....
*
आह कुटी की तुम्हें लगी क्या?
उजड़े दीन-गरीब.
मीरां को विष, ईसा को
इंसान चढ़ाये सलीब.
आदम का आदम ही है क्यों
रहा बिगाड़ नसीब?
नहीं किसी को रोटी
कोई खाए मालपुए...
*
खून बहाया सुर-असुरों ने.
ओबामा-ओसामा ने.
रिश्ते-नातों चचा-भतीजों…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on June 15, 2011 at 1:00pm — 4 Comments
पिता जी से सुनी एक कहानी.
प्राचीन काल में एक ब्रह्मण देवता थे जो अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे.एक दिन वे गंगा स्नान के लिए जा रहे थे , रास्ते में एक गिद्धिनी मिली जो गर्भिणी थी .उसने ब्राह्मण से कहा कृपया मेरा एक उपकार कर दीजिये. गंगा किनारे गिद्धराज एकांत में बैठे होंगें जो मेरे पति हैं, उनसे कह दीजियेगा की आपकी पत्नी आदमी का मांस खाना चाहती है. ब्राह्मण ने देखा गंगा किनारे बहुत सरे गिद्ध बैठे हुए हैं उसमें एक…
ContinueAdded by R N Tiwari on June 15, 2011 at 9:18am — No Comments
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