पुश्तैनी घर में होने वाले रोज़-रोज़ के झगड़े से तंग आ चुका था और मंशा थी की अपना एक अलग घोसला बनाया जाए |श्री वर्मा जी जो की मेरे शिक्षक,मार्गदर्शक एवं प्रेरणाश्रोत रहे हैं उनसे इस सिलसिले में मिलने पहुँचा |
मिलते ही उन्होंने प्रश्न किया-सबसे पहले यह बताओ की कितनी नकद राशि है और घर लेने की क्या योजना है |
“पैसे तो छह-सात लाख के आसपास हैं बाकि पैसे लोन करा लूँगा |सोच रहा हूँ की कोई जड़ सहित मकान या फ़्लोर मिल जाए |”मैंने हिचकिचाते हुए कहा
“लेकिन या परंतु बाद में ---सबसे पहले…
ContinueAdded by somesh kumar on July 2, 2018 at 9:59am — 4 Comments
इश्क मे दरिया मे उतरता चला गया l
जितना डूबा दिल निखरता चला गया ll
हमने तो की कोशिशे की जुदा न हो l
फिर भी कैसे बिछड़ता चला गया ll
उसने लहज़ा बदल दिया तभी l
नज़रों से उतरता चला गया ll
उसकी बातों मे फिसल गये सभी l
मैं भी फिर बहकता चला गया ll
वो जितना सुलझते चले गये l
उतना ही मैने उलझता चला गया ll
इश्क भी आसा न था करना यहाँ "यश" l
काँटों पर…
ContinueAdded by yogesh shivhare on July 2, 2018 at 7:54am — 5 Comments
Added by Mohan Begowal on July 1, 2018 at 10:13pm — 4 Comments
२१२२ २१२२ १२
बूँद जो थी अब नदी हो गयी
दिल्लगी दिल की लगी हो गयी
जिंदगी का अर्थ बस दर्द था
तुम मिले आसूदगी हो गयी
आ गया जो मौसमे गुल इधर
शाख सूखी थी हरी हो गयी
बिन तुम्हारे एक पल यूँ लगा
जैसे पूरी इक सदी हो गयी
जिंदगी गुलपैरहन सी हुई
आप से जो दोस्ती हो गयी
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Neeraj Neer on July 1, 2018 at 6:32pm — 7 Comments
2122 2122 2122 212
जो नहीं मँझधार में थे, साहिलों के पास थे
मुद्दतों से पाँव उनके दलदलों के पास थे
जीत के सारे हुनर तो हौसलों के पास थे
पैतरे ही थे फ़क़त जो बुज़दिलों के पास थे
मैं कहाँ चूका बता इस ज़िंदगी की दौड़ में
लोग जो दौड़े नहीं वो मंज़िलों के पास थे
बर्क़ ने कुछ न बिगाड़ा जो थे ज़ेरे आसमाँ
वो परिंदे मर गये जो…
Added by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 6:30pm — 9 Comments
1212 1212 1212 1212
दिलों की आग बुझ गई, जिगर में अब धुआँ नहीं
कि तुम भी अब जवाँ नहीं, कि हम भी अब जवाँ नहीं
सितारे गुम हुए सभी, रुपहली कहकशाँ नहीं
ज़मीने दिल पे अब तेरी वफ़ा का आसमाँ नहीं
सफ़र भी ज़िंदगानी का हुआ कभी अयाँ नहीं
जहाँ पे रहगुज़र मिली वहाँ पे कारवाँ नहीं
वो मुझसे बोलता नहीं, वो मुझसे सरगिराँ नहीं
वफ़ा की आग क्या…
Added by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 6:00pm — 16 Comments
बह्र-ए-मीर पर आधारित ग़ज़ल
कमबख्त कहाँ से आये इतनी रात गये
उनकी यादों के साये इतनी रात गये
आज उभर के आया है इक दर्द पुराना
बेलौस हवा सहलाये इतनी रात गये
कश्ती कागज की गहरे यादों के दरिया
अब नींद कहाँ से आये इतनी रात गये
गीली मिटटी की सौंधी सौंधी सी खुशबू
अंतस में आग लगाये इतनी रात गये
किस प्रियतम के लिए हुआ बैचैन पपीहा
जो घड़ी घड़ी चिल्लाये इतनी रात गये
दूर उफ़क़ से आती हैं ग़मगीन…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 1, 2018 at 4:30pm — 8 Comments
शैतानों की देखो दावत करता है
पापी है पर जन्नत जन्नत करता है ।
*******
कोई तुझे न देखे अच्छी नज़रों से
क्यों तू ऐसी वैसी हरकत करता है ।
*******
क्या होता है हाथों की रेखाओं में
मिहनत कर क्यों क़िस्मत क़िस्मत करता है ।
*******
काली काली बदली जब भी छाये तो
दहक़ाँ फिर बारिश की हसरत करता है ।
********
भेद नहीं है कोई उसकी नज़रों में
फिर क्यों तू औरों से नफ़रत करता है ।
*******
अता किया सबकुछ क़ुदरत ने उसको पर
वो तो…
Added by Mohammed Arif on July 1, 2018 at 4:22pm — 13 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |