बस दो घूंट पियूँ , और सारा जाम भूल जाऊँ
कि तुझे याद करूँ, और तेरा नाम भूल जाऊँ
जीवन के सफ़र में कहीं, तू मिले जो दुबारा,
तेरा हाल पूछूँ, और क्या था काम भूल जाऊँ,
मिलने को तुझसे, जब भी सजाऊँ कोई रात,
मारे ख़ुशी के मैं तो वही, शाम…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 11, 2012 at 12:00pm — 8 Comments
सावन आया झूम झूम के बाबाजी
बजे नगाड़े धूम धूम के बाबाजी
छोरे ने छोरी के गाल भिगो डाले
चूम चूम के, चूम चूम के बाबाजी
घाट घाट का पानी पीने वालों ने
कपड़े पहने लूम लूम के बाबाजी
आँगन,वेह्ड़ा और वरांडा मत ढूंढो…
Added by Albela Khatri on July 10, 2012 at 9:00pm — 18 Comments
"स्वप्न"
सूदखोर नहीं मानते
आते हैं हाथ जोड़ के
देते हैं कर्ज
चंद दिनों के बाद
दोगुना वसूल करते हैं
सूद
ले जाते हैं लूट के सारे सुन्दर स्वप्न
छाती फुला के अकड़…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 10, 2012 at 7:07pm — 6 Comments
मै
इक आवाज हूँ.
जब किसी मजलूम के
मुँह से निकलूँ,
मुझे इल्जाम मत देना.
मै...
जब किसी की
सिसकी बन
आँखों से छलकूँ
मुझे इल्जाम मत देना.
मै...
जब किसी के
दर्द में
कराह बन जाऊं,
मुझे इल्जाम मत देना.
मै...
जब किसी के
दिल से
आह बन टपकूँ,
मुझे इल्जाम मत देना.
मै...
जब किसी के
चहरे पर
ख़ुशी बन चमकूँ,
मुझे इल्जाम मत देना.
मै..................
वीणा…
Added by Veena Sethi on July 10, 2012 at 5:00pm — 12 Comments
वो ख़्वाब उज़ागर क्यूँ किये हमने
सौ दर्द ज़िगर को क्यूँ दिए हमने||
जब करनी थी बातें कई हज़ार
वो लब चुपके से क्यूँ सिये हमने||
ख़्वाब बुनते रहे वो ही गलीचा
तलवे ये जख्मी क्यूँ किये हमने ||
ता उम्र करते रहे उन से वफ़ा
ये जफ़ा के घूँट क्यूँ पिए हमने ||
दे के जहान भर की दुआ उनको
मिटा दिए सुख के क्यूँ ठिये हमने
अश्क तो पलकों में ज़ब्त हो…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 10, 2012 at 12:30pm — 22 Comments
क्या बतलाऊं हाल देश का बाबाजी
झगड़ा, टंटा, हठ, क्लेश का बाबाजी
माल स्वदेशी कौन ख़रीदे भारत में
सबको चस्का है विदेश का बाबाजी
कालिख भ्रष्टाचार की किस दिन जायेगी
धोला हो गया रंग केश का बाबाजी
पाखंडियों ने इतना…
Added by Albela Khatri on July 10, 2012 at 12:15pm — 18 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on July 10, 2012 at 11:24am — 9 Comments
मेरी आँखों में जो देखा गया है ...
तेरे ही अक़स को पाया गया है ...
मुझे आइन-ए-तहज़ीब समझा ...
वो शायद इस लिये शर्मा गया है ...
वही जिसने मुझे दीवाना समझा ...
जहाने दिल पे मेरे छा गया है ...
निगाहों से न बच पाया मैं उसकी ...
मुझे इस तोवर से ढूंढा गया है ...
उसे हुस्ने-सरापा कह दिया था ...
उसी दिन से वो बस इतरा गया है ...
ये किसके लम्स का झोंका था आख़िर ...
मेरे कमरे को जो महका गया है ... …
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on July 9, 2012 at 6:30pm — 6 Comments
छोड़ कर उल्फत की गलियां, मैं तेरे बिन निकल आया,
जलाया जब रातों में मुझको, इक नया दिन निकल आया,
दिल में दफनाई थी यादें, आज जो फुर्सत में खोदीं,
बे-दर्द जिन्दा जख्मों का, वही पल-छिन निकल आया,
सोंचकर रात भर जागे, सबेरा कल नया होगा,
मगर बीता वही समय उठ के , प्रतिदिन निकल…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 9, 2012 at 4:30pm — 13 Comments
हे भगवान, यह प्यार भी क्या चीज है. कुछ अच्छा नहीं लगता है. न जाने क्या हो जाता है. रातों की नींद और दिन का चैन गायब सा हो जाता है. अक्ल भी बहुत होती है, फिल्में भी बहुत देखी जाती है. प्यार करने वाले कभी डरते नही. प्यार कुर्बानी मांगता है. वह देने को तैयार हो जाते है. अपने घर-परिवार की. आखिर घर वालों ने क्या ही किया है और जो भी किया है वह तो उनका फर्ज था, जो उन्होंने पूरा किया. सबसे अहम बात यह है कि सच्चा प्यार जिंदगी में सिर्फ एक बार ही मिलता है, फिर जब सच्चा प्यार मिल रहा है तो…
ContinueAdded by Harish Bhatt on July 9, 2012 at 2:00am — 11 Comments
रिमझिम बरस जाती हैं बूंदे
जब याद तुम्हारी आती है ।
बिन मौसम ही मेरे घर में
वो बरसात ले आती है ।
जब पड़ी मेह की बूंदे
मुस्कुराते उन फूलों पर
हर्षित फूलों पर वो बूंदे
तेरा चेहरा दिखाती है ।
नाता तो गहरा है
इन बूंदो का तुझसे
चाहे तेरी याद हो या
ये बरसात हो मुझे तो
दोनों भिगो जाती हैं ।
- दीप्ति शर्मा
Added by deepti sharma on July 8, 2012 at 8:30pm — 31 Comments
ख़ुशी से हंसते-हंसते लब, मुस्कुराना भूल आये हैं,
आज हम अपने ही घर का, ठिकाना भूल आये हैं,
यादों के सब लम्हे , यादों से मिटाकर हम,
उसके साथ वो गुजरा, जमाना भूल आये हैं,
बुझाकर रख गई जब वो, सुहाने साथ बीते पल,
सुलगता यादों का वो पल छिन, जलाना भूल आये…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 8, 2012 at 1:30pm — 10 Comments
पुणे से पत्नी को लिखा पत्र
प्यारी बिन्नी,
वो गांव ही अच्छा था जहाँ हम रहा करते थे
जहाँ के पेड पौधे, खेत खलिहान और
कुत्ते भी हमसे बातें किया करते थे
वो गांव क्या था पूरा परिवार था
हर आदमी इक दूसरे के प्रति
कितना जिम्मेवार था
सबकी खुशियाँ हमारी खुशियाँ थीं और
हमारे दुःख में हर कोई हिस्सेदार था
गांव के चौधरी यही तो कहा करते थे
वो गांव ही अच्छा था जहाँ हम रहा करते…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on July 8, 2012 at 1:00pm — 5 Comments
पूरा हो या अधूरा अरमाँ निकल ही जाता है
करीब आ के दूर कारवाँ निकल ही जाता है
जो न बदलें हालात तो खुद को बदल डालो
जंगलोंसे निकलो आस्माँ निकल ही जाता है
रहेंगे कबतक मुन्हसिर गुंचे खिलही जाते हैं
कभीतो ज़िंदगीसे बागवाँ निकल ही जाता है
पत्थरोंसे भी मिट जाती हैं इबारतें समय पे
हो गहरा दिल का निशाँ निकल ही जाता है
मसीहा आते हैं इम्तेहा-ए-गारतपे हर दौर में
दौरेज़ुल्मियत से ये जहाँ निकल ही जाता…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on July 8, 2012 at 12:56pm — 2 Comments
मरना क्या है?
जब मेरे दादा मरे थे तो मैं बहुत छोटा था, मुझे मालूम न हो सका कि मरना क्या है
कुछ अजीब सा माहौल था मगर फिर सब अच्छा लगा
घर में भोज हुआ और खाने पीने को अच्छा मिला.
जब मेरे चाचा मरे तो मैं कुछ बड़ा हो चुका था, माहौल ग़मगीन था, लोग रो रहे थे, सन्नाटा था
मगर फिर सब अच्छा लगा
घर में भोज हुआ और खाने पीने को अच्छा मिला.
जब मेरे पिता मरे तो पहली बार दुःख हुआ, लगा…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on July 8, 2012 at 12:49pm — 10 Comments
मैं मंजिल के करीब आकर बिखर न जाऊं
सोचता हूँकि आज रात अपने घर न जाऊं
मुझे भी है इन्तेज़ार उम्रदराज़ हो जाने का
दिनभर बेरोज़गार रहूँ और दफ्तर न जाऊं
लहरोंको देख तेरी नज़रों की याद आती है
मैंने सोचा हैकि फिर कभी समंदर न जाऊं
गली में कुहराम मचा है और मैं बच्चा हूँ
माँ ने कहा है कि मैं घर से बाहर न जाऊं
छोड़ गया है अपना कुनबा बीवीकी खातिर
अब्बा कहतें हैंकि मैं बड़े भाई पर न जाऊं
रोक…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on July 8, 2012 at 12:32pm — 2 Comments
....तो तुम होती
रातों में तन्हाई नहीं होती
तो तुम होती
दुखों की परछाई नहीं होती
तो तुम होती
ज़िंदगी में बेपर्वाई नहीं होती
तो तुम होती
खुदा ने मेरी किस्मत बनाई नहीं होती
तो तुम होती
ये अयालदारी, ये जीस्तेकुनबाई नहीं होती
तो तुम होती
खामखाह हमने बात बढ़ाई नहीं होती
तो तुम होती
पैदाइशेखल्क के मरकज़ में जुदाई नहीं होती
तो तुम होती
हममें तुममें तश्वीशेआबाई नहीं…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on July 8, 2012 at 12:20pm — 2 Comments
शब्दों में जो लिखा है....
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शब्दों में जो लिखा है
अपना भोगा यथार्थ गढ़ा है
तराशी हैं मन की सभी छोटी बड़ी बातें
जो कभी किसी कोने में दुबका सिकुड़ा है
और जो कभी आकाश से भी उन्नत और बड़ा है
शब्दों में लिख लिख के सश्रम
उसके ही परिहास और वंचनाओं को गढ़ा है
बदल गए अपनों की व्यथाएं
आँखों से झांकती क्लांत आशाएं
संबंधों की अपरिभाषित सीमाएं
कुछ करने न करने की…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on July 8, 2012 at 8:30am — No Comments
बहुत सालों पहले की मेरी डायरी के पन्नो पर अंकित कुछ पंक्तियाँ आपके समक्ष रख रहा हु .भावो को समेटने की कोशिश की है इन शब्दों के गुलदस्ते में, पसंद आये तो सूचित करियेगा और मुझे अवगत करायें मेरी त्रुटियों से । आपका अपना सबका छोटा भाई योगेश...
उन गहन अँधेरे कमरों में ,सन्नाटा ही अब रहता है
मैं दरवाजे खोलू कैसे .तेरी याद…
ContinueAdded by yogesh shivhare on July 8, 2012 at 12:00am — No Comments
बस नींद भरी रात उधार मांगता हूँ,
दिल के लिए जज़्बात उधार मानता हूँ,
कोई तोड़ जाये जो होंठो से मेरे चुप्पी,
कुछ लफ़्ज़ों की सौगात उधार मानता हूँ,
मुमकिन नहीं है फिर तसल्ली के वास्ते,
गूंगे लबों…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2012 at 3:39pm — 2 Comments
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