एक गीत:
शेष है...
संजीव 'सलिल'
*
किरण आशा की
अभी भी शेष है...
*
देखकर छाया न सोचें
उजाला ही खो गया है.
टूटता सपना नयी आशाएँ
मन में बो गया है.
हताशा कहती है इतना
सदाशा भी लेश है...
*
भ्रष्ट है आचार तो क्या?
सोच है-विचार है.
माटी का तन निर्बल
दैव का आगार है.
कालिमा अमावसी में
लालिमा अशेष है...
*
कुछ न कहीं खोया…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 30, 2011 at 1:41am — No Comments
Added by rajkumar sahu on September 29, 2011 at 11:54pm — No Comments
Added by Anwesha Anjushree on September 29, 2011 at 4:46pm — 2 Comments
ज़ख्म खाने को सदा तैयार होना चाहिये
Added by Veerendra Jain on September 29, 2011 at 1:45pm — 5 Comments
प्रकृति और स्त्री
स्त्री और प्रकृति
कितना साम्य ?
दोनों में ही जीवन का प्रस्फुटन
दोनों ही जननी
नैसर्गिक वात्सल्यता का स्पंदन,
अन्तःस्तल की गहराइयों तक,
दोनों को रखता एक धरातल पर…
ContinueAdded by mohinichordia on September 29, 2011 at 10:35am — No Comments
Added by nemichandpuniyachandan on September 28, 2011 at 11:08pm — 1 Comment
तुमसे क्या उम्मीद करूँ, तुम दर्द बांटते रहते हो,
देश जले या लोग मरे, तुम माल काटते रहते हो!
तुम नेता हो, नवनिर्मित हो बस अपने सुख की सोचो तुम,…
ContinueAdded by Subhash Trehan on September 28, 2011 at 4:01pm — 3 Comments
ओ बी ओ सदस्य श्री अविनाश बागडे जी की रचना
खुश है जेल तिहाड़ का,मन में है विश्वास.
गृह-मंत्री भी आयेंगे,चलकर उसके पास.
कमल कर रहा कोलाहल,कीचड में है हाथ.
मध्यावधि- चुनाव के रौशन है हालात.
शीर्ष मंत्रियों में मची ऐसी ,काटम -काट.
दस- जनपथ का देखिये .चिंता भरा ललाट.…
Added by Admin on September 27, 2011 at 8:50pm — 7 Comments
शब्दों में खोकर कहते तुम
वाह ! यह कविता अच्छी है
या हँसकर कहते..
ओह ! क्या है यह? क्या तू बच्ची है ?
मेरे शब्दों में अपनी छवि
देख तुम इतराते !
नासमझ बनने की कोशिश में
बार बार हार जाते !
इन…
ContinueAdded by Anwesha Anjushree on September 27, 2011 at 4:37pm — 7 Comments
Added by rajkumar sahu on September 27, 2011 at 3:15pm — No Comments
पेट बडा है, भूख बड़ी है,
लोभ भरा है, सोच सड़ी है।
…
Added by Subhash Trehan on September 27, 2011 at 1:06pm — 5 Comments
एक हुए दोहा यमक:
संजीव 'सलिल'
*
लिए विरासत गंग की, चलो नहायें गंग.
भंग न हो सपना 'सलिल', घोंटें-खायें भंग..
*
सुबह शुबह में फर्क है, सकल शकल में फर्क.
उच्चारण में फर्क से, होता तर्क कु-तर्क..
*
बुला कहा आ धार पर, तजा नहीं आधार.
निरा धार होकर हुआ, निराधार साधार..
*
ग्रहण किया आ भार तो, विहँस कहा आभार.
देय - अ-देय ग्रहण किया, तत्क्षण ही साभार..
*
नाप सके भू-चाल जो बना लिये हैं यंत्र.
नाप सके भूचाल जो, बना न पाये…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 27, 2011 at 7:30am — 1 Comment
नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
---------------अंतिम अंक --------------------
"कौन है?" मैंने हड़बड़ाकर पूछा .
Added by satish mapatpuri on September 26, 2011 at 10:00pm — 2 Comments
एक गीत:
गरल पिया है...
संजीव 'सलिल'
*
तुमने तो बस गरल पिया है...
तुम संतोष करे बैठे हो.
असंतोष को हमने पाला.
तुमने ज्यों का त्यों स्वीकारा.
हमने तम में दीपक बाला.
जैसा भी जब भी जो पाया
हमने जी भर उसे जिया है
तुमने तो बस गरल पिया है...
हम जो ठानें वही करेंगे.
जग का क्या है? हँसी उड़ाये.
चाहे हमको पत्थर मारे
या प्रशस्ति के स्वर गुंजाये.
कलियों की रक्षा करने को
हमने पत्थर किया हिया है…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 26, 2011 at 9:30pm — 1 Comment
Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 26, 2011 at 12:05pm — 1 Comment
Added by Lata R.Ojha on September 25, 2011 at 11:42pm — 2 Comments
ये जंग की घड़ी नहीं,
न देश ये गुलाम है ..
फिर क्यों हम आम जनता ,
इस देश में फटेहाल है?
हम उलझे है अपनी चिंताओ में ,
देश की हम सोचे भी क्या ??
हमे मार दिया महंगाई ने ,
भ्रष्टो का कर पायेंगे क्या??
बीता वर्ष घोटालो का था,
नए वर्ष में अब होगा क्या ?
आज हर और जब घोटाला है,
तो फिर कैसी ये व्यवस्था है..
कैसा ये जनतंत्र है,
जिसमे पीस रही जनता है??
हम सबने सुने है नेताओं के कुचर्चे,
पर किसी ने उनका अंजाम सूना??
जब…
Added by सन्नी on September 25, 2011 at 10:51pm — 3 Comments
एक हुए दोहा यमक:
-- संजीव 'सलिल'
*
हरि से हरि-मुख पा हुए, हरि अतिशय नाराज.
बनना था हरि, हरि बने, बना-बिगाड़ा काज?
हरि = विष्णु, वानर, मनुष्य (नारद), देवरूप, वानर
*
नर, सिंह, पुर पाये नहीं, पर नरसिंहपुर नाम.
अब हर नर कर रहा है, नित सियार सा काम..
*
बैठ डाल पर काटता, व्यर्थ रहा तू डाल.
मत उनको मत डाल तू, जिन्हें रहा मत डाल..
*
करने कन्यादान जो, चाह रहे वरदान.
करें नहीं वर-दान तो, मत कर कन्यादान..
*
खान-पान कर…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 25, 2011 at 9:00am — 1 Comment
# साँई स्तवन #
जनम सफल कर ले, भवसागर तर ले,
छुट जायेंगे सारे फंदे, साँई चरण धर ले....
१. कौन सहारा देगा तुझको सोच ज़रा,
तुझे कहाँ ले जाएगा अभिमान तेरा,
अंत समय क्या तेरे साथ चलेगा जग ?…
Added by डॉ. नमन दत्त on September 25, 2011 at 8:17am — No Comments
Added by rajkumar sahu on September 25, 2011 at 1:13am — 1 Comment
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