तो रो दिया .......
मौन की गहन कंदराओं में
मैनें मेरी मैं को
पश्चाताप की धूप में
विक्षिप्त तड़पते देखा
तो रो दिया ।
खामोशी के दरिया पर
मैंने मेरी मैं को
तन्हा समय की नाव पर
अपराध बोध से ग्रसित
तिमिर में लीन तीर की कामना में लिप्त
व्यथित देखा
तो रो दिया
क्रोध के अग्नि कुण्ड में
स्वार्थघृत की आहूति से परिणामों को
जब धू- धू कर जलते देखा
तो रो दिया
सच , क्रोध की सुनामी के बाद जब…
ContinueAdded by Sushil Sarna on September 30, 2021 at 10:41pm — 12 Comments
वज़्न-2122 1122 1122 22/112
अज़्म से जो भी समेटेगा हदफ़* के गौहर [ हदफ़ - लक्ष्य
ज़िंदगी में वही पाएगा शरफ़* के गौहर [ शरफ़ - सम्मान
इश्क़ है उनको भी हमसे ये हमें है मालूम
हमने देखे हैं उन आँखों में शग़फ़* के गौहर [शग़फ़ - दिलचस्पी
हाथ में हाथ ले तुमने जो उठाए थे कभी
मेरे दिल में हैं अभी तक वो…
Added by Anjuman Mansury 'Arzoo' on September 30, 2021 at 5:00pm — 12 Comments
रगो मे खून बनकर तेरे, यूँ “जुनून” बहता है
बिना मंज़िल के ना रुकना, ये सुकून कहता है
हुआ क्या राहों मे तेरे, जो बस पत्थर ही पत्थर है
चूमेंगे पाँव वो तेरे ये “जुनून” तुझसे कहता है
है मुश्किल सफर तेरा ये, गलियां तुझसे कहती है
चुनी ये राह जिसने भी, गुमान दुनिया करती है
तू देख कर चट्टानों को कभी हिम्मत नहीं खोना
पल भर की नाकामी पर तू भूल कर भी नहीं रोना
पहाड़ो मे सुराख कर दे, ये हिम्मत बस तुझी मे…
ContinueAdded by AMAN SINHA on September 30, 2021 at 10:00am — 7 Comments
2122 2122 2122 2122
इक भी आंसू क्यों गिरे जब आंख शोला-बार हो तो
कैसे कोई ख़ुश रहे जब दिल ही में आज़ार हो तो
आपसे है जंग तो मंज़ूर है ये सरफ़रोशी
क्या करें जब आपके ही हाथ में तलवार हो तो
लग रही है ज़िंदगी भी कुछ दिनों से अजनबी सी
लौट आना तुमको मुझसे थोड़ा सा भी प्यार हो तो
क्या किसी के सामने अब राज़े-ज़ख़्मे-पिन्हां खोलें
आपका ग़म-ख़्वार ही जब दुश्मनों का यार हो तो
तूने गरचे तोड़ डाले सारे नाते एक पल में
एक वहशी…
Added by Zaif on September 29, 2021 at 7:30pm — 2 Comments
Added by Zaif on September 28, 2021 at 6:46pm — 8 Comments
जो समझते हैं
वे जमे पड़े हैं ,
ये ख्याल है उनका ,
सच में तो वे
केवल पड़े हैं। .........1 .
छत पड़ी भी नहीं
और बुनियाद खिसक रही है ,
वो महल बनाने चले थे
कितनों की झोपड़ी भी उजड़ गई ,
लोग फिसल रहे हैं या उनके
पैरों के नीचे जमीन खिसक रही है। ......... 2 .
यूँ ही सफर में ही गुजर जाए , जिंदगी
अच्छा है ,
जिनकी तलाश हो
वो मंजिलों पे मिला नहीं करते ll ......... 3 .
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Dr. Vijai Shanker on September 27, 2021 at 8:30pm — 13 Comments
पहाड़ की ऊंची चोटी पर
अपने चारों तरफ
हरियाले वृक्षों से घिरा
मैं ठूँठ सा तन्हा खड़ा हूँ ।
कुछ वर्ष पूर्व
आसमानी बिजली ने
हर ली थी मेरी हरियाली
यह सोच कर कि
वो मेरे तन-बदन को
जर्जर कर मेरे अस्तित्व को
नेस्तनाबूद कर देगी ।
मगर
वक्त के साथ
अपने नंगे बदन पर
मैं मौसम के प्रहार सहते-सहते
एक मजबूत काठ में
परिवर्तित होता गया ।
आज मैं
आसमान से
अपनी विध्वंसक शक्ति का डंका…
Added by Sushil Sarna on September 27, 2021 at 1:30pm — 8 Comments
वो जहां पर असमा और धरा मिल जाते है
छोर मिलते ही नहीं पर साथ में खो जाते है
है यही वो स्थान जिसका अंत ही नहीं
मिल गया या खो गया है सोचते है सब यही
सबको है चाह इसकी पर राह का पता नहीं
बिम्ब या प्रतिबिम्ब है ये भ्रम सभी को है यही
कामना को पूर्ण करने श्रम छलांगे भरता है
मरीचिका के जाल में जैसे मृग कोई भटकता है
है धरा का अंत वही जिस बिंदु से शुरुआत है
यात्रा अनंत इसकी कई युगों की बात है
ओर ना है छोर इसका शुन्य सा आकाश है
जिसका जग को…
Added by AMAN SINHA on September 27, 2021 at 10:36am — 3 Comments
१२२/१२२/१२२/१२
न दे साथ जग तो अकेला बना
नया अपने दम पर जमाना बना।१।
*
थका हूँ जतन कर यहाँ मैं बहुत
कि घर मेरा तू ही शिवाला बना।२।
*
तुझे अपना कहते बितायी सदी
न ऐसे तो पल में पराया बना।३।
*
यहाँ सच की बातें तो अपराध हैं
यही सोच खुद को न झूठा बना।४।
*
बड़ों के दिलों में भरा दोष अब
स्वयं को तनिक एक बच्चा बना।५।
*
बहुत दम है साथी कहन में मगर
नहीं अपने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 27, 2021 at 6:45am — 7 Comments
122 2122 2122 2122 2
तेरी तस्वीर होठों से लगा लूँ, जो इजाजत हो।
उसे आगोश में लूँ, चूम डालूँ, जो इजाजत हो।
बहुत नायाब दौलत है तुम्हारे हुस्न की दौलत
तुम्हारा हुस्न तुमसे ही चुरा लूँ जो इजाजत हो ।
नशीले नैन लाली होंठ की यूँ मुझ पे छाई…
ContinueAdded by आशीष यादव on September 24, 2021 at 3:30pm — 8 Comments
वक्त के सिरहाने पर .........
वक्त के सिरहाने पर बैठा
देखता रहा मैं देर तक
दर्द की दहलीज पर
मिलने और बिछुड़ने की
रक्स करती परछाइयों को
जाने कितने वादे
कसमों की चौखट पर
चरमरा रहे थे
अरसा हुआ बिछड़े हुए
मगर उल्फ़त के
ज़ख्म आज भी हरे हैं
तुम्हारी बात
शायद ठीक ही थी कि
मोहब्बत अगर बढ़ नहीं पाती
माहताब की मानिंद घटते-घटते
एक ख़्वाब बनकर रह जाती है
और
वक्त…
Added by Sushil Sarna on September 22, 2021 at 8:30pm — 7 Comments
Added by Ashok Kumar Raktale on September 22, 2021 at 8:00pm — 9 Comments
कुछ बदला-बदला सा ये जहां नज़र आता है,
राह अब भी है वही पर, अजनबी सा नज़र आता है
तन तो हमेशा ही अपना था मगर,
न जाने क्यों अब पराया सा नज़र आता है
ज़िंदगी को हमने कुछ यूं गुज़रते देखा
जैसे रेत को बंद मुट्ठी से फिसलते देखा
ज़ोर जितना भी लगाया रोकने मे उसे
छोटे से छेद से जिंदगी को निकलते देखा
एक आहट सी हुई किसी के आने की जैसे
साँसो मे घुल सी गयी किसी की खुशबू जैसे
इस खुशबू से मेरा वास्ता एक अरसे से रहा
रूह…
ContinueAdded by AMAN SINHA on September 22, 2021 at 10:00am — 5 Comments
मेरी ज़िंदगी ग़म का जंगल रही है
खुशी तेरे पैरों की चप्पल रही है
कहीं कोई तो बात है साथ उसके
कमी बेवफ़ा की बड़ी खल रही है
इसी ग़म का तो बोझ है मेरे जी पे
इसी ग़म से तो शायरी फल रही है…
ContinueAdded by Rahul Dangi Panchal on September 21, 2021 at 10:42pm — 4 Comments
Added by Saurabh Pandey on September 21, 2021 at 5:03pm — 12 Comments
दर्द है तो दिखने दो, आँख से आँसू बहने दो
किसने रोका है तुमको, जो रोना है तो रो लेने दो
कब तक तुम रोके रखोगे, उन भूली बिसरी यादों को
दिल के कोने मे दबी है जो, न रोको उस चिंगारी को
रोकोगे दिल भर जाएगा, घुट-घुट के दम घुट जाएगा
गुब्बारे सा है दिल अपना, भर गया जो फिर फट जाएगा
अरमानों की कोई गठरी हो, या तेज़ घोर दोपहरी हो
चिंता मे तुम जो ना घिरे, तुम अपने जाल के मकड़ी हो
बस कर खुदको दोष न दे, जो गुम है खुदको होश…
ContinueAdded by AMAN SINHA on September 21, 2021 at 10:20am — 4 Comments
तुम्हारे इन्तज़ार में ........
देखो न !
कितने सितारे भर लिए हैं मैंने
इन आँखों के क्षितिजहीन आसमान में
तुम्हारे इन्तज़ार में ।
गिनती रहती हूँ इनको
बार- बार सौ बार
तुम्हारे इन्तज़ार में ।
तुम क्या जानो
घड़ी की नुकीली सुइयाँ
कितना दर्द देती हैं ।
सुइयों की बेपरवाह चाल
हर उम्मीद को
बेरहमी से कुचल देती है।
अन्तस का ज्वार
तोड़ देता है
घुटन की हर प्राचीर को
और बहते- बहते ठहर जाता है
खारी…
Added by Sushil Sarna on September 20, 2021 at 11:46am — 4 Comments
बेबसी ........
निशा के श्यामल कपोलों पर
साँसों ने अपना आधिपत्य जमा लिया ।
झींगुरों की लोरियों ने
अवसाद की अनुभूतियों को सुला दिया ।
स्मृतियाँ किसी खिलौने की भाँति
बेबसी के पलों को बहलाने का
प्रयास करने लगीं ।
आँखों की मुंडेरों पर
बेबसी की व्यथा तरल हो चली ।
आँखों के बन्द करने से कब दिन ढला है ।
मुकद्दर का लिखा कब टला है ।
मृतक कब पुनर्जीवित हुआ है ।
प्रतीक्षा की बेबसी के सभी उपचार
किसी रेत के महल से ढह गए…
Added by Sushil Sarna on September 17, 2021 at 5:55pm — 4 Comments
बयालीस हैं जा चुके,बीत रहा है काल।
सुखदुख चलते साथ में,जीवन इक जंजाल।।
यारों की ये कामना,रहे सदा ही साथ।
यार सलामत हों सदा, हे नाथों के नाथ।।
उन्यासी उन्नीस सौ,माह सितंबर जान।
सोलहवीं तारीख थी, जब जन्मे 'कल्याण'।।
गुरु आभे ने लिख दई,यही जन्म तारीख।
गुरु न देते ज्ञान तो, फिरूं मांगता भीख।।
मौलिक एवम् अप्रकाशित
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 17, 2021 at 12:01pm — No Comments
खाली हो गई हूँ
इच्छाओं से, आशाओं से
व्यर्थ विचारों से
निरर्थक प्रवाहों से
अस्थिर लगावों से
अनर्गल खिंचावों से
आधुनिक चकाचौंध से
कौन जाने, मौत
कब दरवाजा खटखटा दे
साथ ले जाने को
किन्तु वह क्या साथ
ले जा पाएगी ?
वह तो पंच तत्वों में
तन को मिलाएगी
मुझे ना मार पाएगी
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on September 16, 2021 at 10:59pm — 6 Comments
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