मैं कैसे बताऊँ बिटिया
हमारे ज़माने में माँ कैसी होती थी
तब अब्बू किसी तानाशाह के ओहदे पर बैठते थे
तब अब्बू के नाम से कांपते थे बच्चे
और माएं बारहा अब्बू की मार-डांट से हमें बचाती थीं
हमारी छोटी-मोटी गलतियां अब्बू से छिपा लेती थीं
हमारे बचपन की सबसे सुरक्षित दोस्त हुआ करती थीं माँ
हमारी राजदार हुआ करती थीं वो
इधर-उधर से बचाकर रखती थीं पैसे
और गुपचुप देती थी पैसे सिनेमा, सर्कस के लिए
अब्बू से हम सीधे कोई…
ContinueAdded by anwar suhail on September 29, 2013 at 9:30pm — 5 Comments
एक धमाका
फिर कई धमाके
भय और भगदड़....
इंसानी जिस्मों के बिखरे चीथड़े
टीवी चैनलों के ओबी वैन
संवाददाता, कैमरे, लाइव अपडेट्स
मंत्रियों के बयान
कायराना हरकत की निंदा
मृतकों और घायलों के लिए अनुदान की घोषणाएं
इस बीच किसी आतंकवादी संगठन द्वारा
धमाके में लिप्त होने की स्वीकारोक्ति
पाक के नापाक साजिशों का ब्यौरा
सीसीटीवी कैमरे की जांच
मीडिया में हल्ला, हंगामा, बहसें
गृहमंत्री, प्रधानमन्त्री से स्तीफे…
Added by anwar suhail on September 28, 2013 at 8:00pm — 6 Comments
ये क्या हो रहा है
ये क्यों हो रहा है
नकली चीज़ें बिक रही हैं
नकली लोग पूजे जा रहे हैं...
नकली सवाल खड़े हो रहे हैं
नकली जवाब तलाशे जा रहे हैं
नकली समस्याएं जगह पा रही हैं
नकली आन्दोलन हो रहे हैं
अरे कोई तो आओ...
आओ आगे बढ़कर
मेरे यार को समझाओ
उसे आवाज़ देकर बुलाओ...
वो मायूस है
इस क्रूर समय में
वो गमज़दा है निर्मम संसार में...
कोई नही आता भाई..
तो मेरी आवाज़ ही सुन लो
लौट आओ
यहाँ दुःख बाटने की परंपरा…
Added by anwar suhail on September 25, 2013 at 7:30pm — 7 Comments
इससे पहले कभी
कहा नही जाता था
तो बम के साथ हम
फट जाते थे कहीं भी
और उड़ा देते थे चीथड़े
इंसानी जिस्मों के...
अब कहा जा रहा है
मारे न जायें अपने आदमी
सो पूछ-पूछ कर
जवाब से मुतमइन होकर
मार रहे हैं हम...
बस समस्या भाषा की है
उन्हें समझ में नही आती
हमारी भाषा
हमें समझ में नही आती
उनकी बोली
हेल्लो हेल्लो
क्या करें हुज़ूर..
एक तरफ आपका फरमान
दूजे टारगेट की…
ContinueAdded by anwar suhail on September 24, 2013 at 6:30pm — 7 Comments
ऐसा नही है
कि रहता है वहाँ घुप्प अन्धेरा
ऐसा नही है
कि वहां सरसराते हैं सर्प
ऐसा नही है
कि वहाँ तेज़ धारदार कांटे ही कांटे हैं
ऐसा नही है
कि बजबजाते हैं कीड़े-मकोड़े
ऐसा भी नही है
कि मौत के खौफ का बसेरा है
फिर क्यों
वहाँ जाने से डरते हैं हम
फिर क्यों
वहाँ की बातें भी हम नहीं करना चाहते
फिर क्यों
अपने लोगों को
बचाने की जुगत लागाते हैं हम
फिर क्यों
उस आतंक को घूँट-घूँट पीते हैं…
Added by anwar suhail on September 20, 2013 at 7:00pm — 7 Comments
तुमने ठीक कहा था
तुम्हारे बिना देख नही पाऊंगा मैं
कोई भी रंग
पत्तियों का रंग
फूलों का रंग
बच्चों की मुस्कान का रंग
अज़ान का रंग
मज़ार से उठते लोभान का रंग
सुबह का रंग....शाम का रंग
मुझे सारे रंग धुंधले दीखते हैं
कुहरा नुमा...धुंआ-धुंआ...
और कभी मटमैला सा कुछ....
ये तुमने कैसा श्राप दिया है
तुम ही मुझे श्राप-मुक्त कर सकते हो..
कुछ करो...
वरना पागल हो जाऊंगा मैं.....
(मौलिक अप्रकाशित)
Added by anwar suhail on September 18, 2013 at 7:00pm — 12 Comments
अजीब विडम्बना है
कि अपने दुखों का कारण
अपने प्रयत्नों में नहीं खोजते
बल्कि मान लेते हैं
कि ये हमारा दुर्भाग्य है
कि ये प्रतिफल है
हमारे पूर्वजन्मों का...
अजीब विडम्बना है
जो मान लेते हैं हम
ब-आसानी उनके प्रचारों को
कि तंत्र-मन्त्र-यंत्र,
तावीजें-गंडे
शरीर में धारण कर लेने मात्र से
दूर हो जाएंगे हमारे तमाम दुःख !
अजीब विडम्बना है
लम्बी-लम्बी साधनाओं का
तपस्या का
मार्ग जानते हुए भी
हम…
Added by anwar suhail on September 15, 2013 at 8:24pm — 3 Comments
एक बार फिर
इकट्ठा हो रही वही ताकतें
एक बार फिर
सज रहे वैसे ही मंच
एक बार फिर
जुट रही भीड़
कुछ पा जाने की आस में
भूखे-नंगों की
एक बार फिर
सुनाई दे रहीं,
वही ध्वंसात्मक धुनें
एक बार फिर
गूँज रही फ़ौजी जूतों की थाप
एक बार फिर
थिरक रहे दंगाइयों, आतंकियों के पाँव
एक बार फिर
उठ रही लपटें
धुए से काला हो…
ContinueAdded by anwar suhail on September 10, 2013 at 8:34pm — 10 Comments
जिसने जाना नही इस्लाम
वो है दरिंदा
वो है तालिबान...
सदियों से खड़े थे चुपचाप
बामियान में बुद्ध
उसे क्यों ध्वंस किया तालिबान
इस्लाम भी नही बदल पाया तुम्हे
ओ तालिबान
ले ली तुम्हारे विचारों ने
सुष्मिता बेनर्जी की जान....
कैसा है तुम्हारी व्यवस्था
ओ तालिबान!
जिसमे…
Added by anwar suhail on September 6, 2013 at 8:14pm — 3 Comments
कोई तोड़ दे
उसका सर
जोर से
मार कर पत्थर
हो जाए ज़ख़्मी वो
कोई दे उसे
चीख-चीख कर
गालियाँ बेशुमार
कि फट जाएँ उसके कान के परदे
घर या दफ्तर जाते समय
टकरा जाए उसकी गाडी
किसी पेड़ या खम्भे से
चकनाचूर हो जाए उसकी गाडी
और अस्पताल के हड्डी विभाग में
पलस्तर बंधी उसकी देह गंधाये...
और एक दिन
सुनने में आया
कि किसी ने उसके सर पर
....मार दिया…
ContinueAdded by anwar suhail on September 5, 2013 at 11:00pm — 5 Comments
जैसे टूटता तटबंध
और डूबने लगते बसेरे
बन आती जान पर
बह जाता, जतन से धरा सब कुछ
कुछ ऐसा ही होता है
जब गिरती आस्था की दीवार
जब टूटती विश्वास की डोर
ज़ख़्मी हो जाता दिल
छितरा जाते जिस्म के पुर्जे
ख़त्म हो जाती उम्मीदें
हमारी आस्था के स्तम्भ
ओ बेदर्द निष्ठुर छलिया !
कभी सोचा तुमने
कि अब स्वप्न देखने से भी
डरने लगा इंसान
और स्वप्न ही तो हैं
इंसान के…
ContinueAdded by anwar suhail on September 2, 2013 at 9:00pm — 14 Comments
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