वेदना कुछ दोहे :
गली गली में घूमते , कामुक वहशी आज।
नहीं सुरक्षित आजकल, बहु-बेटी की लाज।।
इतने वहशी हो गए, जाने कैसे लोग।
रिश्ते दूषित कर गया, कामुकता का रोग।।
पीड़ित की पीड़ा भला, क्या समझे शैतान।
नोच-ंनोच वहशी करे, नारी लहूलुहान।।
बेटे से बेटी बड़ी, कहने की है बात।
बेटी सहती उम्र भर , अनचाहे आघात।।
नारी का कामी करें, छलनी हर सम्मान।
आदिकाल से आज तक, सहती वो अपमान ।।
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 5, 2020 at 4:00pm — 8 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
जमीं पर बीज उल्फत के कोई बोता नहीं दिखता.
लगाता प्रेम सरिता में कोई गोता नहीं दिखता.
करे अपराध कोई और ही उसकी सजा पाए,
वो कहते हैं हुआ इंसाफ़, पर होता नहीं दिखता.
झरोखे हैं न आँगन है, न दाना है न गौरैया,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on October 5, 2020 at 9:30am — 12 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
झण्डे बैनर टँगे हुए हैं और निशसतें ख़ाली हैं
भाषण देने वाले नेता सारे यार मवाली हैं
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इन के दिन की बातें छोड़ो रातें तक मतवाली हैं
जनसेवक का धार विशेषण रहते बनकर माली हैं
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कहते तो हैं नित्य ग़रीबी यार हटाएँगे लेकिन
जन के हाथों थमी थालियाँ देखो अबतक ख़ाली हैं
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देश की जनता तरस रही है देखो एक निवाले को
पर ख़र्चे में इन की आदतें हैराँ करने वाली हैं
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काम न करते कभी सदन में देश को उन्नत करने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 4, 2020 at 11:01am — 6 Comments
ख़ूब इतराते हैं हम अपना ख़ज़ाना देख कर
आँसुओं पर तो कभी उन का मुहाना देख कर.
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ग़ैब जब बख्शे ग़ज़ल तो बस यही कहता हूँ मैं
अपनी बेटी दी है उसने और घराना देख कर.
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साँप डस ले या मिले सीढ़ी ये उस के हाथ है,
हम को आज़ादी नहीं चलने की ख़ाना देख कर.
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इक तजल्ली यक-ब-यक दिल में मेरे भरती गयी
एक लौ का आँधियों से सर लड़ाना देख कर.
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ऐसे तो आसान हूँ वैसे मगर मुश्किल भी हूँ
मूड कब…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 3, 2020 at 12:37pm — 8 Comments
अवसरवादी - लघुकथा –
आज शहर के लोक प्रिय नेताजी का जन्मदिन बड़े जोर शोर से मनाया जा रहा था। इस बार इतने सालों बाद बहुत खोज बीन के बाद ये पता चला कि नेताजी की असली जन्म तिथि दो अक्टूबर ही है।किसी को कोई आश्चर्य भी नहीं हुआ क्योंकि नेताजी जिस जमाने में पैदा हुए थे उस वक्त स्कूल में दाखिले के समय कोई जन्म तिथि का प्रमाण पत्र माँगता भी नहीं था।बनवाने का रिवाज़ भी नहीं था।मुँह जुबानी जो भी तारीख बोल दी वही लिख दी जाती थी।
कैसा विचित्र संयोग था कि नेता जी का जन्म दिन भी बापू जी और…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 2, 2020 at 7:25pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on October 2, 2020 at 1:57pm — 6 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on October 1, 2020 at 1:00pm — 2 Comments
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