हमारे हौसले अब भी उन्हें छू कर निकलते हैं
उन्हें शक है मुहोब्बत में कई शोले पिघलते हैं ।।
कोई अनजान सा गम है जुदाई के पलों का भी
ये कैसी आग है जिसमे बिना जल कर सुलगते हैं ।।
खफा होती हुयी जब भी दिखाई दी हमें चाहत
खता कुछ भी नहीं रहती बिना कारण चहकते हैं ।।
सुना है आज कल उनकी गली में हुश्न तनहा है
घडी भर दीद करने को भला क्यूँ कर हिचकते हैं…
Added by Manoj Nautiyal on October 19, 2012 at 7:16am — 2 Comments
कजरी गीत:
गौरा वंदना
संजीव 'सलिल'
*
गौरा! गौरा!! मनुआ मानत नाहीं, दरसन दै दो रे गौरा!
*
गौरा! गौरा!! तुम बिन सूना है घर, मत तरसाओ रे गौरा!
*
गौरा! गौरा!! बिछ गये पलक पाँवड़े, चरण बढ़ाओ रे गौरा!
*
गौरा! गौरा!! पीढ़ा-आसन सज गए, आओ बिराजो रे गौरा!
*
गौरा! गौरा!! पूजन-पाठ न जानूं, भगति-भाव दो रे गौरा!
*
गौरा! गौरा!! कुल-सुहाग की बिपदा, पल में टारो रे गौरा!
*
गौरा! गौरा!! धरती माँ की कैयाँ हरी-भरी हो रे गौरा!…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2012 at 11:00am — 1 Comment
दर्द को होंठों की मुस्कान बना देती है,
मौत को जीने का सामान बना देती है.
याद करता हूँ मैं जब भी "माँ" को दिल से,
हर मुसीबत को आसान बना देती है.
(नवरात्री की शुभकामनाएँ)
Added by लतीफ़ ख़ान on October 18, 2012 at 10:30am — 1 Comment
अहा!अब भी चाँद चमकता है
तुम अब भी प्यारी लगती हो.
यूँ अब भी प्यार भटकता है
तुम दुनिया सारी लगती हो !
वो कल के बीते ताने-बाने
तुम आज कहानी लगती हो
वो सुन्दर खाब के अफसाने
तुम जानी पहचानी लगती हो!
देखो,वो सरगम वो साज सभी
तुम मेरी निशानी लगती हो.
मुझे बीता कल सब याद अभी
तुम परियों की रानी लगती हो !! .
Added by Raj Tomar on October 17, 2012 at 11:00pm — No Comments
महंगाई
महंगाई ने कुछ ऐसा रंग दिखाया है
आम सी दाल को भी खास बनाया है
जो दाल रोटी खा प्रभु के गुण गाते थे
प्रभु को भूल आज,वो दाल की पूजा कर जाते हैं
फास्ट फ़ूड खाने वाला आज दाल भी शौक से खाता है
सूट पहनकर इतराता हुआ खुद के रौब दिखाता है
धरती की दाल को आसमान…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on October 17, 2012 at 10:44pm — 4 Comments
देखा है कई बार
अनीति के बढ़ते क़दमों को
शिखर तक जाते हुए
देखा है कई बार
दुष्टों को....सूर्य पर मंडराते हुए
किन्तु कभी नहीं सोचा
कि होकर शामिल उनमें
मैं भी पाऊं सामीप्य गगन का/
ना ही सोचा कि मैं छोडूं
धरा नीति की
और विराजूं उड़ते रथ में/
है भीतर कुछ ऐसा बैठा
देता नहीं भटकने पथ में/
हे ईश् मेरे कहीं वो तुम तो नहीं
देखा है कई बार
सत्य को युद्धरत/
क्षत विक्षत...आहत/
सांस तक लेने के…
Added by Pushyamitra Upadhyay on October 17, 2012 at 10:23pm — 4 Comments
चारागर की ख़ता नहीं कोई.
दर्दे-दिल की दवा नहीं कोई.
आप आये न मौसमे-गुल में,
इससे बढ़कर सज़ा नहीं कोई.
ग़म से भरपूर है किताबे-दिल,
ऐश का हाशिया नहीं कोई.
देख दुनिया को अच्छी नज़रों से,
सब भले हैं बुरा नहीं कोई.
सच का हामी है कौन पूछा तो,
वक़्त ने कह दिया नहीं कोई.
है सफ़र दश्ते-नाउम्मीदी का,
मौतेबर रहनुमा नहीं कोई.
अपने ही घर में हैं पराये हम,
बेग़रज़ राबता नहीं कोई.
इस…
Added by लतीफ़ ख़ान on October 17, 2012 at 6:00pm — 8 Comments
कुहरीले जंगल में हंसती
हरी हवा सी चलती हूं
मुक्त गगन से गिरी ओस हूं
तृण टुनगों पर पलती हूं
हू हू करता आंख दिखाता
रे तमस किसे भरमाता है
देख मेरा बस एक नाद ही
कैसे तुझे जलाता है
अभी जरा निष्पंद पड़ी हूं
कहां अभी तक हारी हूं
भूल न करना मरी पड़ी हूं
अबला,बाल,बेचारी हूं
अरे कुटिल यह चाप तुम्हारा
वृथा चढ़ा रह जाएगा
तेरा ही तम कहीं किसी दिन
तुझको भी डंस…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on October 17, 2012 at 5:02pm — 3 Comments
हमने चुना था सोंचकर, इनमे उनके वंश का ही खून है
वे स्वर्ग से बहाते आंसू, लजाया इसने मेरा ही खून है |
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 17, 2012 at 4:51pm — No Comments
यह मेरा दर्द है,आँखों से छलक आता है
यूँ ही पैमाना,बदनाम हुआ जाता है
लाख कह ले यह ज़माना,न जीना आया हमें
वक़्त अच्छा हो बुरा हो,गुज़र तो जाता है
सबको हँसता हुआ देख लूँ,मैं चला जाऊँगा
यूँ भी "दीपक" जलनें से कहाँ बच पाता है
मैं न अपनों को याद आऊँ,न गैरों को
प्यार उस हद तक मेरा मुझको,नज़र आता है…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 17, 2012 at 1:00pm — 3 Comments
================गायत्री छंद=====================
यह इस छंद पर सिर्फ एक प्रयोग है अंतरजाल के माध्यम से मिली जानकारी के अनुसार
२४ वर्णों के इस छंद में इसमें तीन चरण होते हैं
इस छंद का इक विधान जो गायत्री मंत्र की तरह ही है
विधान -\\१ भगण १रगण १ मगण १ तगण......१ भगण १ यगण १ रगण १ जगण\\…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 17, 2012 at 12:00pm — No Comments
Added by Rekha Joshi on October 17, 2012 at 11:57am — 7 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 17, 2012 at 11:44am — 3 Comments
वही हँसाता है हमें, वही रुलाता है
गम ओर ख़ुशी देकर आज़माता है
अपनों की अहमियत भी सीखाता है
बिछुडों को फिर वही मिलाता है
यकीं खुदा का तो बड़ा सीधा है
मारता है वही,वही जिलाता है
इसका उसका क्या है जग में
सबका हिस्सा तो वही बनाता है
नेमतें उसकी तो बड़ी निराली है
छीनता है कभी,कभी दिलाता है
मेरे घर में कभी तुम्हारे घर में
खुशियाँ भी तो वही पहुँचाता है
आखिर भूले…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on October 17, 2012 at 11:15am — No Comments
यह हिन्दोस्तान है प्यारे
Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 17, 2012 at 10:52am — No Comments
आप सभी को शारदीय नवरात्र की अनेकानेक शुभकामनाएं
"गायत्री छंद"
विधान -\\१ भगण १रगण १ मगण १ तगण......१ भगण १ यगण १ रगण १ जगण\\
२ १ १ - २ १ २ - २ २ २ - २ २ १ , २ १ १ - १ २ २ - २ १ २ - १ २ १
माँ कमला सती दुर्गा दे दो भक्ति, हो तुम अनंता माँ महान शक्ति ||…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 17, 2012 at 10:30am — No Comments
लेख:
हमारे सोलह संस्कार
संजीव 'सलिल'
*
अर्थ:
'संस्कारो हि नाम संस्कार्यस्य गुणकानेन, दोषपनयेन वा' अर्थात गुणों के उत्कर्ष तथा दोषों के अपकर्ष की विधि ही संस्कार है।
शंकराचार्य के ब्रम्ह्सूत्र के अनुसार किसी वस्तु, पदार्थ या आकृति में गुण, सौंदर्य, खूबियों को आरोपित करना / बढ़ाना तथा उसकी त्रुटियों, कमियों, दोषों को हटाने / मिटने का नाम संस्कार है।
संस्कृत भाषा में प्रयुक्त क्रिया (धातु) 'कृ' के पूर्व सम उपसर्ग तथा पश्चात् 'आर' कृदंत के संयोग से बने इस शब्द…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 16, 2012 at 10:09pm — 1 Comment
आँखों मे उम्मीदों के चिराग रख गया कोई
फिर जलने का असबाब रख गया कोई
पकड़कर मेरा चोरी से देखना उसको
राज़-ए-दिल बेनकाब रख गया कोई
करके वादा सफर मे साथ देने का
हौसले बेहिसाब रख गया कोई
झुकाकर शर्म से अपनी पलकें
मेरे सवाल का जवाब रख गया कोई
मेरी नींदों से महरूम आँखों मे
जिंदगी के ख्वाब रख गया कोई
शरद
Added by शरद कुमार on October 16, 2012 at 3:29pm — No Comments
==========ग़ज़ल===========
बहरे - रमल मुसम्मन मह्जूफ़
वज्न- २ १ २ २- २ १ २ २ - २ १ २ २- २ १ २
पीर है खामोश भर के आह चिल्लाती नहीं
वो सिसकती है ग़मों में नज्म तो गाती नहीं
बाद दंगों के उडी हैं इस कदर चिंगारियाँ
आग है सारे दियों में तेल औ बाती नहीं
जिन सफाहों पर गिराया हर्फे-नफ़रत का जहर
हैं सलामत तेरे ख़त वो दीमकें खाती नहीं
चाँद को पाने मचलता जब समंदर…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 16, 2012 at 2:00pm — 14 Comments
जिम्मेदारियाँ
हो राज या समाज
धर्म निभाना
जिम्मेदारियाँ
खुद का आंकलन
जाँच परख
जिम्मेदारियाँ
जब भी हो चुनाव
खरा ही लेना
जिम्मेदारियाँ
धरती या आकाश
प्यार ही बाँटे
Added by नादिर ख़ान on October 16, 2012 at 12:44pm — 3 Comments
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