ग़ज़ल
by
अज़ीज़ बेलगामी
हम समझते रहे हयात गयी
क्या खबर थी बस एक रात गयी
खान्खाहूँ से मैं निकल आया
अब वो महदूद काएनात…
Added by Azeez Belgaumi on December 19, 2010 at 4:00pm — 22 Comments
अमेरिकी वेबसाइट विकीलिक्स के क्या कहने, वह सब कुछ जानती है। किसने, किसके बारे में क्या कहा, उसे सब कुछ पता है। दुनिया में आज हर किसी की नजर जूलियन असांज की वेबसाइट पर टिक गई हैं, क्योंकि वह एक के बाद एक खुलासे करती जा रही है। बीते कुछ दिनों से ऐसा कुछ माहौल बन गया है कि जैसे कोई कुछ बता सकता है तो वह है, विकीलिक्स। यही कारण है कि मेरा भी ध्यान विकीलिक्स पर है कि अब वे क्या खुलासा करने वाली है ? वैसे विकीलिक्स, जो भी भीतर की बात बता रही है, उससे इन दिनों बड़े चेहरे माने जाने वाले कइयों की पाचन…
ContinueAdded by rajkumar sahu on December 19, 2010 at 1:09pm — No Comments
ग़ज़ल
रात - रात भर सोते - जगते, मैंने उसे मनाया है |
फिर भी खुदा न मेरा अब तक, सिर सहलाने आया है ||
कहते हैं- मालिक ने हमको, तुमको, सबको, जन्म दिया,
पर लगता है - कोई वो पागल था जिसने भरमाया है ||
एक …
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 19, 2010 at 12:00am — 2 Comments
लघुकथा:
काफिला
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कें... कें... कें...
मर्मभेदी कटर ध्वनि कणों को छेड़ते एही दिल तक पहुँच गयी तो रहा न गया.बाहर निकलकर देखा कि एक कुत्ता लंगड़ाता-घिसटता-किकयाता हुआ सड़क के किनारे पर गर्द के बादल में अपनी पीड़ा को सहने की कोशिश कर रहा था.
हा...हा...हा...
अट्टहास करता हुआ एक सिरफिरा भिखारी उस कुत्ते के समीप आया ... अपने हाथ की अधखाई रोटी कुत्ते की ओर बढ़ाकर उसे खिलाने और सांत्वना देने की कोशिश करने लगा. तभी खाकी…
Added by sanjiv verma 'salil' on December 19, 2010 at 12:00am — 5 Comments
नवगीत:
मुहब्बत
संजीव 'सलिल'
*
दिखाती जमीं पे
है जीते जी
खुदा की है ये
दस्तकारी मुहब्बत...
*
मुहब्बत जो करते,
किसी से न डरते.
भुला सारी दुनिया
दिलवर पे मरते..
न तजते हैं सपने,
बदलते न नपने.
आहें भरें गर-
लगे दिल भी कंपने.
जमाना को दी है
खुदा ने ये नेमत...
*
दिलों को मिलाओ,
गुलों को खिलाओ.
सपने न…
Added by sanjiv verma 'salil' on December 18, 2010 at 11:21pm — 1 Comment
..एक व्यथा ...कथा नहीं यह
नीलेश और रोमा आज कुछ जल्दबाजी में थे |कल रात को भी नीलेश अपनी ड्यूटी कुछ जल्दी छोड़कर घर आ गया था |और भोर से ही रोमा…
ContinueAdded by Abhinav Arun on December 18, 2010 at 10:00pm — 5 Comments
ग़ज़ल
मैं दर्दों का समंदर हूँ, ग़मों का आशियाना हूँ |
मैं जिंदा लाश हूँ , बीमार दिल , घायल फसाना हूँ ||
बदन पर ये हजारों ज़ख्म, तोहफे हैं ये अपनों के,
मैं जिनके प्यार का बीमार, आशिक हूँ , दिवाना हूँ ||…
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 18, 2010 at 9:30pm — 1 Comment
ग़ज़ल :- आदमी हो कि आदमी भी नहीं
तुझसे बर्दाश्त ये खुशी भी नहीं
घाट पर पूजा बंदगी भी नहीं |
जिसने बम फोड़ा उसका मकसद क्या
हम करें माँ की आरती भी नहीं |
स्वस्तिका पूछ रही है मरकर
आदमी हो की आदमी भी नहीं |
फाइलों की…
ContinueAdded by Abhinav Arun on December 18, 2010 at 8:30pm — 2 Comments
ग़ज़ल : - याद तेरी में
याद तेरी में गुनगुनाता हूँ
ज़िंदगी को करीब पाता हूँ |
शीत कहती मुझे तू छू कर देख
और मैं…
ContinueAdded by Abhinav Arun on December 18, 2010 at 8:00pm — 2 Comments
सराहे और पूजे जाने के लिए एक सोच है ,
दर्शन है एक ह्रदय है ,
समर्पण है ऐसी कोरी किताब नहीं,
कि गाहे -बगाहे. लिख दे कहानी कोई,
एक अंतर्मन है.जिसमे करते स्वयं प्रभु रमण हैं
उसके सीने में भी ,
दिल है धड़कता उसके जज्बातों में भी है कोई बसता,
एक मुकम्मल सा फ़रिश्ता,
जुड़ा-जुड़ा सा हो जिससे कोई…
ContinueAdded by anupama shrivastava[anu shri] on December 18, 2010 at 2:00pm — 5 Comments
ग़ज़ल
बहुत विषैला है विष यारो, दुनिया की सच्चाई का |
आखिर, कैसे दर्द सहें हम, दिल में फटी बिवाई का ||
बनकर इन्सां जीते - जीते खुद को हमने लुटा दिया,
फिर भी तमगा मिला न हमको एक अदद अच्छाई का ||…
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 18, 2010 at 2:00am — 2 Comments
!! वायु प्रवाह !! ©
(१)
वायु प्रवाह पर विचार !
अचानक उठा खयाल !
कितने होते हैं प्रकार ?
(२)
नाना हैं वायु प्रवाह !
कह चुकी संस्कृत भी !
वायु प्रकार के भेद भी !
मुख्य हैं तीन प्रकार !
उच्च निम्न मध्यम !
सप्तम सुप्त औसत स्वर !
(३)
भीषण मार सप्तम सुर…
Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 17, 2010 at 5:30pm — 3 Comments
चोर चुरावें मेरी निंदिया ||1
दधक दधक जियरा दधकै
बरसे छम छम बारिश बुंदिया ||2
धडक धडक धड्कावे दिल को
चकवा चितवे है चंदिया .3
डग मग डग मग डोल रही है ;
नय्या के अंग संग ही नदिया…
ContinueAdded by DEEP ZIRVI on December 16, 2010 at 10:30pm — 2 Comments
"मैं"
इक भावुक, बहुत ही भावुक लड़की
किसी ने कहा
भावुकता निश्छलता का प्रतीक है
तो किसी ने कहा पवित्रता का ..
'ना' भावुकता न तो निश्छलता का प्रतीक है
और न ही पवित्रता का ..
ये तो प्रतीक है
हर पल छले जाने की तत्परता का ..
'हाँ'
छली जाती हूँ मैं , हर दम, हर कदम
कभी अपनों के हाथों, तो कभी गैरों के
कभी साहिलों से, तो कभी लहरों से,
कई बार…
Added by Anita Maurya on December 16, 2010 at 7:30pm — 5 Comments
भारत ने दुनिया में एक विकासशील तथा लोकतांत्रिक देश के रूप में पहचान बनाई है और विकसित देशों के बीच भारत की सशक्त छवि भी कई अवसरों पर सामने आई है। पिछले दिनों अमेरिका के राष्टपति बराक हुसैन ओबामा ने भी अपनी यात्रा के दौरान दुनिया के शक्तिशाली देशों में शामिल करते हुए भारत की कई उपलब्धियों को लेकर प्रशंसा के कसीदे गढ़े। यह बात भी सही है कि भारत को सशक्त देश के तौर पर दुनिया में एक अरसे पहले बेहतर मुकाम नहीं मिल पाया था और भारतीय विदेश नीति पर आए दिन कई तरह के सवाल खड़े किए जाते रहे हैं, लेकिन…
ContinueAdded by rajkumar sahu on December 16, 2010 at 6:37pm — No Comments
Added by rajkumar sahu on December 16, 2010 at 6:28pm — No Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 16, 2010 at 12:30pm — 2 Comments
Added by रंजना सिंह on December 16, 2010 at 11:31am — 6 Comments
Added by Julie on December 15, 2010 at 9:00pm — 2 Comments
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