ग़ज़ल
दिलनशीं, सुन ले कि- मुझको, तुझ से कितना प्यार है |
तुझमें ही सारी दुनिया, और मेरा संसार है ||
प्यार है इतना नज़र से , दिल तलक तेरे वास्ते ,
ज़र्रे - ज़र्रे में तेरा ही अक्श एक दरकार है ||…
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 15, 2010 at 8:00pm — 2 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 15, 2010 at 5:00pm — 2 Comments
एक गीत
होता है...
संजीव 'सलिल'
*
जाने ऐसा क्यों होता है?
जानें ऐसा यों होता है...
*
गत है नीव, इमारत है अब,
आसमान आगत की छाया.
कोई इसको सत्य बताता,
कोई कहता है यह माया.
कौन कहाँ कब मिला-बिछुड़कर?
कौन बिछुड़कर फिर मिल पाया?
भेस किसी ने बदल लिया है,
कोई न दोबारा मिल पाया.
कहाँ परायापन खोता है?
कहाँ निजत्व कौन बोता है?...
*
रचनाकार छिपा रचना में
ज्यों सजनी छिपती सजना में.
फिर…
Added by sanjiv verma 'salil' on December 15, 2010 at 12:27am — 1 Comment
Added by sanjiv verma 'salil' on December 15, 2010 at 12:25am — 2 Comments
ग़ज़ल
मीत मेरे मैं तुम्हारी रूह का श्रृंगार हूँ |
प्यार हो तुम मेरे दिल का, मैं तुम्हारा प्यार हूँ ||
हर ख़ुशी और राह मेरी, मीत मेरे एक है,
तू मेरा आधार प्रियतम, मैं तेरा आधार हूँ ||
तू…
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 14, 2010 at 9:30pm — No Comments
ग़ज़ल
इस तरह तोड़ा हमारा दिल हमारे प्यार ने.|
जैसे हक जीने का हम से ले लिया संसार ने ||
जिंदगी को आज जकड़ा, इस तरह तूफ़ान ने,
ले लिया आगोश मैं मुझे दर्द के …
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 14, 2010 at 9:30pm — 2 Comments
Added by satish mapatpuri on December 14, 2010 at 1:30pm — 3 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 14, 2010 at 1:29pm — 1 Comment
भारत जैसे विशाल देश का समाज भी उतना ही बड़ा है। ऐसे में हर किसी का दायित्व बनता है कि वे स्वच्छ समाज के निर्माण में सकारात्मक योगदान दें। देखा जाए तो आधुनिक समाज में कई तरह की अपसंस्कृति हावी हो गई है, इन्हीं में से एक है, नशाखोरी। यह बात आए दिन कई रिपोर्टों से सामने आती रहती है कि नशाखोरी से व्यक्ति और समाज को किस तरह नुकसान है। बावजूद, लोग अपसंस्कृति के दिखावे में ऐसे कृत्य कर जाते हैं, जिससे समाज शर्मसार तो होता ही है, खुद उस व्यक्ति का भी भविष्य दांव पर लग जाता है। नशाखोरी की प्रवृत्ति के…
ContinueAdded by rajkumar sahu on December 14, 2010 at 11:25am — No Comments
संत विनोबा भावे का वास्तविक नाम था विनायक नरहरि भावे। उनकी समस्त जिंदगी साधु संयासियों जैसी रही, इसी कारणवश वह एक संत के तौर पर प्रख्यात हुए। वह एक अत्यंत विद्वान एवं विचारशील व्यक्तित्व वाले शख्स थे। महात्मा गॉंधी के परम शिष्य जंग ए आजा़दी के इस योद्धा ने वेद, वेदांत, गीता, रामायण, कुरान, बाइबिल आदि अनेक धार्मिक ग्रंथों का उन्होने गहन गंभीर अध्ययन मनन किया। अर्थशास्त्र, राजनीति और दर्शन के आधुनिक सिद्धांतों का भी विनोबा भावे ने गहन अवलोकन चिंतन किया। गया। जेल में ही विनोबा ने 46…
ContinueAdded by prabhat kumar roy on December 14, 2010 at 7:30am — 2 Comments
विराम चिह्न !! मेरे तुम्हारे नाम का ::: ©
मैं जानती हूँ के साथ मिला..
कह दी मुझसे तुमने हर बात..
यत्र-तत्र-सर्वत्र करा दिया भान..
मुझ ही को मेरे होने का..
नाव पतवार के बहाने..
तो कभी..
तप्त ओस भाप-बादल के बहाने..
सूखे से जीवन में हरियाली सा..
ढाक-पत्तों…
Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 14, 2010 at 1:00am — 1 Comment
मुक्तिका:
ख्वाब में बात हुई.....
संजीव 'सलिल'
*
ख्वाब में बात हुई उनसे न देखा जिनको.
कोई कतरा नहीं जिसमें नहीं देखा उनको..
कभी देते वो खलिश और कभी सुख देते.
क्या कहें देखे बिना हमने है देखा किनको..
कोई सजदा, कोई प्रेयर, कोई जस गाता है.
खुद में डूबा जो वही देख सका साजनको..
मेरा महबूब तो तेरा भी है, जिस-तिस का है.
उसने पाया उन्हें जो भूल सका है तनको..
उनके ख्यालों ने भुला दी है ये दुनिया…
Added by sanjiv verma 'salil' on December 13, 2010 at 7:34pm — 4 Comments
Added by Abhinav Arun on December 13, 2010 at 1:54pm — 4 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on December 13, 2010 at 2:07am — 3 Comments
ग़ज़ल
आ जाओ हमारी बांहों में, कुछ प्यार मोहब्बत हो जाये |
ये प्यार इबादत होता है, आओ ये इबादत हो जाये ||
दुनिया से भला क्या घबराना, जलता है कोई तो जलने दो.
आ जाओ मिला लें दिल से दिल, दुनिया से…
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 13, 2010 at 12:30am — 1 Comment
महल्ला का गुंडा , देश का गुंडा , दुनिया का गुंडा .
देश की सीमा कि तरह गुंडो का भी अधिकार क्षेत्र होता है। जैसे महल्ले का गुंडा ,…
Added by madan kumar tiwary on December 12, 2010 at 10:00pm — No Comments
अवकलन समाकलन
फलन हो या चलन-कलन
हरेक ही समीकरन
के हल में तू ही आ मिली
घुली थी अम्ल क्षार में
विलायकों के जार में
हर इक लवण के सार में
तु ही सदा घुली मिली
घनत्व के महत्व में
गुरुत्व के प्रभुत्व में
हर एक मूल तत्व में
तु ही सदा बसी मिली
थीं ताप में थीं भाप में
थीं व्यास में थीं चाप में
हो तौल या कि माप में
सदा तु ही मुझे मिली
तुझे ही मैंने था पढ़ा
तेरे सहारे ही बढ़ा
हुँ आज भी वहीं खड़ा
जहाँ मुझे थी तू…
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 12, 2010 at 6:33pm — 3 Comments
जब शब्द पड़ गए कम तो मैंने लिखना छोड़ दिया
जब आँखें न हुई नम तो मैंने लिखना छोड़ दिया
पूछा गया के तुमने महफिल में दिखना छोड़ दिया
हम बोले की हमने बिकना छोड़ दिया
न लडखडाये उस वक्त जब राहों में रुकना छोड़ दिया
उड़ने लगे जो आसमां में हम तो कदमों ने दुखना छोड़ दिया
पीते थे जिस जाम में उस जाम को मैंने तोड़ दिया
लिखते लिखते लिख पड़ी कलम के मैंने लिखना छोड़ दिया
Added by Bhasker Agrawal on December 12, 2010 at 4:31pm — 2 Comments
ग़ज़ल
महबूब मेरे सूरत तेरी, मुझे इतनी प्यारी लगती है |
सौ जन्मों से भी पहले की, तेरी - मेरी यारी लगती है ||
तेरा प्यार मेरी रग़ - रग़ में बसा है, बन के नशा हमराज़ मेरे,
एक पल की भी तन्हाई मुझे, कातिल …
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 12, 2010 at 1:30pm — No Comments
ग़ज़ल
छोटे से दिल में दुनिया का, दर्द छुपाये फिरता हूँ |
आंसू के फूलों से अपनी, लाश सजाए फिरता हूँ ||
अपना बनकर दिल को लूटना, है दस्तूर ज़माने का,
मैं ऐसे ही कुछ रिश्तों पे, खुद को लुटाये फिरता हूँ…
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 12, 2010 at 1:00pm — 1 Comment
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