For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मदिरा सवैया (महिला दिवस की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ)

 (१ )

भारत की हम नार, बढ़ें खुद आज लिए नव छत्र चलो|

जीवन में अब हार, सहें मत ख़ार लिखें इक पत्र  चलो|

ले कर में पतवार, करें तट पार रचें नव सत्र चलो|

साथ मिला कर हाथ, सधे हर काज बने शतपत्र चलो||

 

(2)

जीवन में नित प्यार, रहे दरकार बढ़े  नव प्रीत चलो|

वर्ण मिलाकर आज, चलें इक साथ रचें इक  गीत चलो||

पाँव बढ़े इक साथ, सभी नर नार बनें सत मीत चलो|

एक नया इतिहास, लिखें हम आज मिले नव जीत चलो||

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Added by rajesh kumari on March 5, 2014 at 10:00am — 24 Comments

हे माँ श्वेता शारदे , सरस्वती वन्दना (उल्लाला छंद पर आधारित )

सरस्वती वंदना  (उल्लाला छंद पर आधारित )

हे माँ श्वेता शारदे , विद्या का उपहार दे

श्रद्धानत हूँ प्यार दे , मति नभ को विस्तार दे

तू विद्या की खान है ,जीवन का अभिमान है

भाषा का सम्मान है ,ज्योतिर्मय वरदान है

नव शब्दों को रूप दे ,सदा ज्ञान की धूप दे

हे माँ श्वेता शारदे ,विद्या का उपहार दे

कमलं पुष्प विराजती ,धवलं वस्त्रं  शोभती

वीणा कर में साजती ,धुन आलौकिक…

Continue

Added by rajesh kumari on February 28, 2014 at 3:54pm — 13 Comments

उसने भुलाया हो न हो (ग़ज़ल) "राज"

२१२२  २१२२  २१२२  २१२

बारहा सजदा करेंगे खुश खुदाया हो न हो

इस अकीदत का कभी एजाज़ पाया हो न हो

 

जान रख दें उस ख़ुदा के सामने तेरे लिए  

सर किसी के सामने हमने झुकाया हो न हो

 

सींचते उसकी जड़ों को आज भी हम प्यार से

वक़्त हमने छाँव में उसकी बिताया हो न हो

 

याद में उसकी हमेशा हम लिखेंगे हर ग़ज़ल

हम भुला सकते नहीं उसने भुलाया हो न हो

 

काश जलकर  हम उजाला कर सकें उसके लिए  

दीप उसने आज घर अपने…

Continue

Added by rajesh kumari on February 22, 2014 at 7:30pm — 16 Comments

(दो कुण्डलियाँ) छोटा परिवार,सुखी परिवार

ढांचा सुधरे देश का ,सुदृढ़ हो आकार

खुशियाँ बसती हैं जहां ,छोटा हो परिवार

छोटा हो परिवार ,प्रेम से आँगन महके

पुत्री हो या पुत्र ,नीड़ में खुशियाँ  चहके

बूढों का सम्मान ,भरे जीवन का सांचा

हो  जाए उत्थान , देश का सुधरे ढांचा

**************************

           (२)|

पहले दो टुकड़े हुए ,और हुए फिर चार

टूक-टूक रोटी बटे,बढ़े अगर परिवार

बढ़े अगर परिवार, लड़ाई गुत्थम गुत्थी

खिचे बीच दीवार, रोज की माथापच्ची

रिश्तों बीच…

Continue

Added by rajesh kumari on February 6, 2014 at 11:00am — 16 Comments

तरही ग़ज़ल... क्यों लगे शह्र जैसे खजाना हुआ -- "राज “

212    212    212    212

गाँव से दूर जब से ठिकाना हुआ

बंदिशे काम उसका बहाना हुआ

 

आस में मुन्तज़िर आँखें दर पे टिकी

उसकी सूरत  को देखे ज़माना हुआ

 

गोद में खेल जिसकी पला था कभी

गाँव वो आज कैसे बेगाना  हुआ

 

जानते हैं सभी कबसे बदली नजर

जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

 

जो झुलाता तुझे प्यार से डाल पर

वो शज़र देख कितना पुराना हुआ

 

गाँव में क्या नहीं था तेरे वास्ते

क्यों…

Continue

Added by rajesh kumari on January 31, 2014 at 11:30am — 30 Comments

जीवन में कितने चक्रव्यूह

जीवन में कितने चक्रव्यूह

पर घबराना कैसा  

पग-पग मिले सघन अरण्य

खूंखार  एक  सिंह अदम्य

तुझे मिटाने  की खातिर

खेले  दांव  बहु  जघन्य

अहो  प्रतिद्वंदी  ऐसा

पर घबराना कैसा   

 

करके तराश  दन्त नक्श

जाना तू उसके समक्ष

नेस्तनाबूत करने को   

उसी हुनर में होना दक्ष

कर वार उसी पर वैसा  

पर घबराना कैसा 

शत्रु  हावी हो या पस्त

तू विजयी हो या परास्त

होंसलों की डोरी पकड़…

Continue

Added by rajesh kumari on January 28, 2014 at 12:20pm — 22 Comments

शीत मलयज लिए, बदरी मैं नीर भरी

(विजया घनाक्षरी) ८,८,८,८ पर प्रत्येक चरण में यति अंत में लघु गुरू या नगण

.

१)

शीत मलयज लिए,  बदरी मैं नीर भरी

भरती मैं रूप नए , धरती सी धीर  धरी

यत्त पंख चाक हुए , उड़ने से नहीं डरी

गरल के घूँट पिए , पीकर मैं नहीं  मरी

अगन संताप दिए, प्रत्यक्ष तस्वीर खरी

 बहु किरदार जिए , जगत की पीर  हरी

 परहित भाव लिए, संकल्प से नहीं टरी                                 

पुष्प गुँफ झर गए, डार कभी नहीं झरी  

(२)

जितनी भी बार…

Continue

Added by rajesh kumari on December 19, 2013 at 11:30am — 20 Comments

ढूँढो कहावतें ||दोहे||

कष्ट सहे जितने यहाँ,डाल समय की धूल|

अंत भला सो सब भला ,बीती बातें भूल||

 

विद्या वितरण से खुलें ,क्लिष्ट ज्ञान के राज|

कुशल तीर से ही सधे ,एक पंथ दो काज||

 

कृष्ण काग खादी पहन,भूला अपनी जात|

चार दिवस की चाँदनी,फिर अँधियारी रात||

 

जिसके दर पर रो रहा , वो है भाव विहीन|

फिर क्यों आगे भैंसके,बजा रहा तू बीन|| 

 

सफल करो उपकार में,जीवन के दिन चार|

अंधे की लाठी पकड़ ,सड़क करा दो पार||

  …

Continue

Added by rajesh kumari on December 11, 2013 at 2:30pm — 33 Comments

साथ क्या दोगे मेरा तुम उस ठिकाने तक (ग़ज़ल "राज")

२१२२   २१२२  २१२२  २



जब तलक पँहुचे लहर अपने मुहाने तक

साथ क्या दोगे मेरा तुम उस ठिकाने तक



हीर राँझे की कहानी हो  बसी जिसमे

ले चलोगे क्या मुझे तुम उस जमाने तक



प्यार का सैलाब जाने कब बहा लाया

हम सदा डरते रहे आँसू बहाने तक



थी बहुत मासूम अपने प्यार की मिटटी

दर्द ही बोते रहे अपने बेगाने तक



क्यों करें परवाह हम अब इस ज़माने की

हर कदम पे जो मिला बस दिल दुखाने तक  



छोड़ दी किश्ती भँवर में देख साथी रे

जिंदगी गुजरे फ़कत अब…

Continue

Added by rajesh kumari on December 7, 2013 at 10:00am — 29 Comments

वार्षिक रिपोर्ट (लघु कथा )

"देखो-देखो दमयंती, तुम्हारे शहर के कारनामे!! कभी कोई अच्छी खबर भी आती है, रोज वही चोरी, डकैती ,अपहरण ...और एक तुम हो कि शादी के पचास साल बाद भी मेरा शहर मेरा शहर करती नहीं थकती हो अब देखो जरा चश्मा ठीक करके टीवी में क्या दिखा रहे हैं" कहते हुए गोपाल दास ने चुटकी ली।

"हाँ-हाँ जैसे तुम्हारे शहर की तो बड़ी अच्छी ख़बरें आती हैं रोज, क्या मैं देखती नहीं थोडा सब्र करो थोड़ी देर में ही तुम्हारे शहर के नाम के डंके बजेंगे" दादी के कहते ही सब बच्चे हँस पड़े और उनकी नजरें टीवी स्क्रीन पर गड़ गई। …

Continue

Added by rajesh kumari on December 2, 2013 at 11:46am — 29 Comments

ज़रा बरसात हो जाती हिमालय भी निखर जाता---(ग़ज़ल राज)

१२२२    १२२२    १२२२   १२२२ (बह्र--हजज मुसम्मन सालिम)

ज़रा बरसात हो जाती हिमालय  भी निखर जाता

 बदन फिर से दमक जाता ज़रा पैकर निथर जाता

 

परिंदा लौट के आता शज़र के सूखते आँसू…

Continue

Added by rajesh kumari on November 25, 2013 at 11:30am — 41 Comments

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी--(गीत )

गाँव पँहुचने पर मैय्या जब पूछेगी मेरा हाल सखी

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी

मेरी  चिरैया कितना उड़ती

पूछे जब उन आँखों से 

पलक ना झपके उत्तर ढूंढें  

तब तू जाना टाल सखी…

Continue

Added by rajesh kumari on November 19, 2013 at 10:30am — 47 Comments

बेजुबाँ होते अगर तुम बुत बना देते (ग़ज़ल "राज")

२१२२   २१२२  २१२२  २

बह्र- "रमल मुसम्मन महजूफ"

.

मुन्तज़िर अरमाँ सभी हाथों से ढा देते

ऐ ख़ुदा हमको अगर पत्थर बना देते

 

इक  समंदर हम नया दिल में बसा देते …

Continue

Added by rajesh kumari on November 16, 2013 at 10:00am — 44 Comments

अंतर्मन से भाव निकल कर, गीतों में ढल जाते हैं (गीत )

मुझको पता नहीं यह कैसे,गीत स्वयं लिख जाते हैं 

कुछ भावों के बादल जैसे, उमड़-घुमड़  कर आते हैं 

 

दिल में जन्म लिया शब्दों ने , बूँदें बन कर ज्यों बरसे

अंतर्मन से भाव निकल कर, गीतों  में ढल जाते हैं

 …

Continue

Added by rajesh kumari on November 11, 2013 at 11:00am — 31 Comments

अभी पूर्णविराम नहीं!!!(अतुकांत )

नीरवता , सन्नाटा

शून्यता बस यही तो बचा था

जैसे अंतर के स्वर को

लील चूका हो बाह्य कोलाहल

रिक्त अंतर घट

कोई प्यास भी नहीं बाकी  

सुप्त प्राय आत्मा…

Continue

Added by rajesh kumari on November 6, 2013 at 8:30pm — 18 Comments

जलाऊं दीपक कैसे

जलाऊं दीपक कैसे

कुल बीते दिन चार ,चमन का खोया माली

रोते पुहुप हजार ,कहाँ कैसी दीवाली

व्यथित उत्तराखंड ,तबाही कैसे भूले

आँसू मिश्रित आग ,जलेंगे कैसे चूल्हे

बिना तेल के दीप ,जलेगी कैसे बाती…

Continue

Added by rajesh kumari on October 29, 2013 at 1:00pm — 28 Comments

सुनाया दर्द जो तूने बुरा इतना लगा (हास्य ग़ज़ल "राज")

१२२२     १२२२      १२२२ १२

बहर---हजज मुसम्मन महजूफ

काफिया ---ना

रदीफ़ ----लगा

सुनाया दर्द जो तूने बुरा इतना   लगा

तेरे इस दर्द के आगे मेरा अदना लगा

 …

Continue

Added by rajesh kumari on October 14, 2013 at 3:00pm — 25 Comments

“गजरा” (चुहल) (लघु कथा )

"अरे गप्पू ये तो अपने ही साहब हैं चल चल जल्दी.."

जैसे ही ट्राफिक लाईट पर गाड़ी रुकी, महज दस साल का टिंकू अपने छोटे भाई गप्पू के साथ दौड़ता हुआ कार की दाहिनी ओर आकर बोला,

“अरे साब आज आप इतनी जल्दी ?"

"रावण जलता देखना है ", साहब ने जल्दी से उत्तर दिया |

"अच्छा.. साहब गजरा.. ",

टिंकू के हाथ में गजरा देखते ही बगल में बैठी मेमसाहब बोली, "अरे ले लो,  कितने का है ?"

"चालीस रूपये का..", टिंकू ने तुरंत जबाब दिया ।



सुनते ही साहब तुनक…

Continue

Added by rajesh kumari on October 9, 2013 at 11:00am — 51 Comments

हादिसों से जिन्दगी ऐसे गुजरती जा रही हैं (ग़ज़ल --राज )

2122     2122    2122   2122  

बह्र----रमल मुसम्मन सालिम 

.

हादिसों से आज जिंदगियाँ गुजरती जा रही हैं

शबनमी बूंदे जों ख़ारों से फिसलती जा रही हैं  

 

लूट…

Continue

Added by rajesh kumari on October 5, 2013 at 8:30pm — 40 Comments

समझौता (लघु कथा )

"देखो सुशीला ये रूल में नहीं है मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम दुबारा शादी कर चुकी हो फिर कैसे अपने मरहूम पति की पेंशन ले सकती हो मैं अभी नया आया हूँ ,जैसे चलता आया है सब वैसे  ही नहीं चलेगा; मैं इस मामले में बहुत सख्त हूँ"  बड़े बाबू   की फटकार सुनते ही सुशीला की आँखे भर आई हाथ जोड़ कर बोली "साहब मेरे दो बच्चों पर रहम खाइए आप किसी को कुछ मत कहिये बड़े साहब को पता चलेगा तो" !!!  और वो फफक कर रो पड़ी।…

Continue

Added by rajesh kumari on October 3, 2013 at 11:00am — 39 Comments

Monthly Archives

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service