(१ )
भारत की हम नार, बढ़ें खुद आज लिए नव छत्र चलो|
जीवन में अब हार, सहें मत ख़ार लिखें इक पत्र चलो|
ले कर में पतवार, करें तट पार रचें नव सत्र चलो|
साथ मिला कर हाथ, सधे हर काज बने शतपत्र चलो||
(2)
जीवन में नित प्यार, रहे दरकार बढ़े नव प्रीत चलो|
वर्ण मिलाकर आज, चलें इक साथ रचें इक गीत चलो||
पाँव बढ़े इक साथ, सभी नर नार बनें सत मीत चलो|
एक नया इतिहास, लिखें हम आज मिले नव जीत चलो||
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by rajesh kumari on March 5, 2014 at 10:00am — 24 Comments
सरस्वती वंदना (उल्लाला छंद पर आधारित )
हे माँ श्वेता शारदे , विद्या का उपहार दे
श्रद्धानत हूँ प्यार दे , मति नभ को विस्तार दे
तू विद्या की खान है ,जीवन का अभिमान है
भाषा का सम्मान है ,ज्योतिर्मय वरदान है
नव शब्दों को रूप दे ,सदा ज्ञान की धूप दे
हे माँ श्वेता शारदे ,विद्या का उपहार दे
कमलं पुष्प विराजती ,धवलं वस्त्रं शोभती
वीणा कर में साजती ,धुन आलौकिक…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 28, 2014 at 3:54pm — 13 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
बारहा सजदा करेंगे खुश खुदाया हो न हो
इस अकीदत का कभी एजाज़ पाया हो न हो
जान रख दें उस ख़ुदा के सामने तेरे लिए
सर किसी के सामने हमने झुकाया हो न हो
सींचते उसकी जड़ों को आज भी हम प्यार से
वक़्त हमने छाँव में उसकी बिताया हो न हो
याद में उसकी हमेशा हम लिखेंगे हर ग़ज़ल
हम भुला सकते नहीं उसने भुलाया हो न हो
काश जलकर हम उजाला कर सकें उसके लिए
दीप उसने आज घर अपने…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 22, 2014 at 7:30pm — 16 Comments
ढांचा सुधरे देश का ,सुदृढ़ हो आकार
खुशियाँ बसती हैं जहां ,छोटा हो परिवार
छोटा हो परिवार ,प्रेम से आँगन महके
पुत्री हो या पुत्र ,नीड़ में खुशियाँ चहके
बूढों का सम्मान ,भरे जीवन का सांचा
हो जाए उत्थान , देश का सुधरे ढांचा
**************************
(२)|
पहले दो टुकड़े हुए ,और हुए फिर चार
टूक-टूक रोटी बटे,बढ़े अगर परिवार
बढ़े अगर परिवार, लड़ाई गुत्थम गुत्थी
खिचे बीच दीवार, रोज की माथापच्ची
रिश्तों बीच…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 6, 2014 at 11:00am — 16 Comments
212 212 212 212
गाँव से दूर जब से ठिकाना हुआ
बंदिशे काम उसका बहाना हुआ
आस में मुन्तज़िर आँखें दर पे टिकी
उसकी सूरत को देखे ज़माना हुआ
गोद में खेल जिसकी पला था कभी
गाँव वो आज कैसे बेगाना हुआ
जानते हैं सभी कबसे बदली नजर
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ
जो झुलाता तुझे प्यार से डाल पर
वो शज़र देख कितना पुराना हुआ
गाँव में क्या नहीं था तेरे वास्ते
क्यों…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 31, 2014 at 11:30am — 30 Comments
जीवन में कितने चक्रव्यूह
पर घबराना कैसा
पग-पग मिले सघन अरण्य
खूंखार एक सिंह अदम्य
तुझे मिटाने की खातिर
खेले दांव बहु जघन्य
अहो प्रतिद्वंदी ऐसा
पर घबराना कैसा
करके तराश दन्त नक्श
जाना तू उसके समक्ष
नेस्तनाबूत करने को
उसी हुनर में होना दक्ष
कर वार उसी पर वैसा
पर घबराना कैसा
शत्रु हावी हो या पस्त
तू विजयी हो या परास्त
होंसलों की डोरी पकड़…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 28, 2014 at 12:20pm — 22 Comments
(विजया घनाक्षरी) ८,८,८,८ पर प्रत्येक चरण में यति अंत में लघु गुरू या नगण
.
१)
शीत मलयज लिए, बदरी मैं नीर भरी
भरती मैं रूप नए , धरती सी धीर धरी
यत्त पंख चाक हुए , उड़ने से नहीं डरी
गरल के घूँट पिए , पीकर मैं नहीं मरी
अगन संताप दिए, प्रत्यक्ष तस्वीर खरी
बहु किरदार जिए , जगत की पीर हरी
परहित भाव लिए, संकल्प से नहीं टरी
पुष्प गुँफ झर गए, डार कभी नहीं झरी
(२)
जितनी भी बार…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 19, 2013 at 11:30am — 20 Comments
कष्ट सहे जितने यहाँ,डाल समय की धूल|
अंत भला सो सब भला ,बीती बातें भूल||
विद्या वितरण से खुलें ,क्लिष्ट ज्ञान के राज|
कुशल तीर से ही सधे ,एक पंथ दो काज||
कृष्ण काग खादी पहन,भूला अपनी जात|
चार दिवस की चाँदनी,फिर अँधियारी रात||
जिसके दर पर रो रहा , वो है भाव विहीन|
फिर क्यों आगे भैंसके,बजा रहा तू बीन||
सफल करो उपकार में,जीवन के दिन चार|
अंधे की लाठी पकड़ ,सड़क करा दो पार||
…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 11, 2013 at 2:30pm — 33 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २
जब तलक पँहुचे लहर अपने मुहाने तक
साथ क्या दोगे मेरा तुम उस ठिकाने तक
हीर राँझे की कहानी हो बसी जिसमे
ले चलोगे क्या मुझे तुम उस जमाने तक
प्यार का सैलाब जाने कब बहा लाया
हम सदा डरते रहे आँसू बहाने तक
थी बहुत मासूम अपने प्यार की मिटटी
दर्द ही बोते रहे अपने बेगाने तक
क्यों करें परवाह हम अब इस ज़माने की
हर कदम पे जो मिला बस दिल दुखाने तक
छोड़ दी किश्ती भँवर में देख साथी रे
जिंदगी गुजरे फ़कत अब…
Added by rajesh kumari on December 7, 2013 at 10:00am — 29 Comments
"देखो-देखो दमयंती, तुम्हारे शहर के कारनामे!! कभी कोई अच्छी खबर भी आती है, रोज वही चोरी, डकैती ,अपहरण ...और एक तुम हो कि शादी के पचास साल बाद भी मेरा शहर मेरा शहर करती नहीं थकती हो अब देखो जरा चश्मा ठीक करके टीवी में क्या दिखा रहे हैं" कहते हुए गोपाल दास ने चुटकी ली।
"हाँ-हाँ जैसे तुम्हारे शहर की तो बड़ी अच्छी ख़बरें आती हैं रोज, क्या मैं देखती नहीं थोडा सब्र करो थोड़ी देर में ही तुम्हारे शहर के नाम के डंके बजेंगे" दादी के कहते ही सब बच्चे हँस पड़े और उनकी नजरें टीवी स्क्रीन पर गड़ गई। …
Added by rajesh kumari on December 2, 2013 at 11:46am — 29 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ (बह्र--हजज मुसम्मन सालिम)
ज़रा बरसात हो जाती हिमालय भी निखर जाता
बदन फिर से दमक जाता ज़रा पैकर निथर जाता
परिंदा लौट के आता शज़र के सूखते आँसू…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 25, 2013 at 11:30am — 41 Comments
गाँव पँहुचने पर मैय्या जब पूछेगी मेरा हाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
मेरी चिरैया कितना उड़ती
पूछे जब उन आँखों से
पलक ना झपके उत्तर ढूंढें
तब तू जाना टाल सखी…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 19, 2013 at 10:30am — 47 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २
बह्र- "रमल मुसम्मन महजूफ"
.
मुन्तज़िर अरमाँ सभी हाथों से ढा देते
ऐ ख़ुदा हमको अगर पत्थर बना देते
इक समंदर हम नया दिल में बसा देते …
ContinueAdded by rajesh kumari on November 16, 2013 at 10:00am — 44 Comments
मुझको पता नहीं यह कैसे,गीत स्वयं लिख जाते हैं
कुछ भावों के बादल जैसे, उमड़-घुमड़ कर आते हैं
दिल में जन्म लिया शब्दों ने , बूँदें बन कर ज्यों बरसे
अंतर्मन से भाव निकल कर, गीतों में ढल जाते हैं
…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 11, 2013 at 11:00am — 31 Comments
नीरवता , सन्नाटा
शून्यता बस यही तो बचा था
जैसे अंतर के स्वर को
लील चूका हो बाह्य कोलाहल
रिक्त अंतर घट
कोई प्यास भी नहीं बाकी
सुप्त प्राय आत्मा…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 6, 2013 at 8:30pm — 18 Comments
जलाऊं दीपक कैसे
कुल बीते दिन चार ,चमन का खोया माली
रोते पुहुप हजार ,कहाँ कैसी दीवाली
व्यथित उत्तराखंड ,तबाही कैसे भूले
आँसू मिश्रित आग ,जलेंगे कैसे चूल्हे
बिना तेल के दीप ,जलेगी कैसे बाती…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 29, 2013 at 1:00pm — 28 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२
बहर---हजज मुसम्मन महजूफ
काफिया ---ना
रदीफ़ ----लगा
सुनाया दर्द जो तूने बुरा इतना लगा
तेरे इस दर्द के आगे मेरा अदना लगा
…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 14, 2013 at 3:00pm — 25 Comments
"अरे गप्पू ये तो अपने ही साहब हैं चल चल जल्दी.."
जैसे ही ट्राफिक लाईट पर गाड़ी रुकी, महज दस साल का टिंकू अपने छोटे भाई गप्पू के साथ दौड़ता हुआ कार की दाहिनी ओर आकर बोला,
“अरे साब आज आप इतनी जल्दी ?"
"रावण जलता देखना है ", साहब ने जल्दी से उत्तर दिया |
"अच्छा.. साहब गजरा.. ",
टिंकू के हाथ में गजरा देखते ही बगल में बैठी मेमसाहब बोली, "अरे ले लो, कितने का है ?"
"चालीस रूपये का..", टिंकू ने तुरंत जबाब दिया ।
सुनते ही साहब तुनक…
Added by rajesh kumari on October 9, 2013 at 11:00am — 51 Comments
2122 2122 2122 2122
बह्र----रमल मुसम्मन सालिम
.
हादिसों से आज जिंदगियाँ गुजरती जा रही हैं
शबनमी बूंदे जों ख़ारों से फिसलती जा रही हैं
लूट…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 5, 2013 at 8:30pm — 40 Comments
"देखो सुशीला ये रूल में नहीं है मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम दुबारा शादी कर चुकी हो फिर कैसे अपने मरहूम पति की पेंशन ले सकती हो मैं अभी नया आया हूँ ,जैसे चलता आया है सब वैसे ही नहीं चलेगा; मैं इस मामले में बहुत सख्त हूँ" बड़े बाबू की फटकार सुनते ही सुशीला की आँखे भर आई हाथ जोड़ कर बोली "साहब मेरे दो बच्चों पर रहम खाइए आप किसी को कुछ मत कहिये बड़े साहब को पता चलेगा तो" !!! और वो फफक कर रो पड़ी।…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 3, 2013 at 11:00am — 39 Comments
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