अपना क्या है इस दुनिया में है जो कुछ भी धरती का
आग, हवा ये, फूल, समन्दर, चिड़िया, पानी धरती का।१।
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क्या सुन्दरवन क्या आमेजन कोलोराडो क्या गौमुख
ये हरियाली, रेत के टीले, सोना, चाँदी धरती का।२।
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हिमशिखरों की चमक चाँदनी बारामूदा का जादू
पीली नदिया, हरा समन्दर ताजा बासी धरती का।३।
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बाँध न गठरी लूट धरा को अपना माल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 9, 2020 at 4:20am — 7 Comments
जमाने की नजर में यूँ बताओ कौन अच्छा है
भले ही माँ पिता के वास्ते हर लाल बच्चा है।१।
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हदों में झूठ बँध पाता नहीं है आज भी लोगों
जुटाली भीड़ जिसने बढ़ लगे वो खूब सच्चा है।२।
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लगे बासी भरा जो भोर को घर में जिन्हें सन्ध्या
मगर बोतल में जो पानी कहा करते वो ताजा है।३।
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महज चाहत का रिस्ता है यहाँ हर चीज से मन का
सुना है नेह से मिलता …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 6, 2020 at 5:11pm — 2 Comments
अछूतों से भी मत करना कभी व्यवहार अछूतों सा
समय तुम को न इस से दे कहीं दुत्कार अछूतों सा।१।
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कहोगे भार जब उनको तुम्हें कोसेगा अन्तस नित
कहोगे तब स्वयम् को ही यहाँ पर भार अछूतों सा।२।
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करोना वैसा ही लाया करें व्यवहार जैसा हम
उसी का भोगता अब फल लगे सन्सार अछूतों सा।३।
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पता पाओगे पीड़ा का उन्हें जो नित्य डसती है
कहीं पाओगे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2020 at 6:30am — 10 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
रात से बढ़कर दिन में जलना कितना मुश्किल होता है
सच कहता हूँ निज को छलना कितना मुश्किल होता है।१।
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जब रिश्तों के बीच में ठण्डक हद से बढ़कर पसरी हो
धूप से बढ़कर छाँव में चलना कितना मुश्किल होता है।२।
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पेड़ हरे में जो भी मुश्किल सच में हल हो जाती पर
ठूँठ बने तो धार में गलना कितना मुश्किल होता है।३।
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साथ समय तो लक्ष्य सरल पर समय हठीला होने से
सच में धारा संग भी चलना कितना मुश्किल होता है।४।
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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 4, 2020 at 5:00pm — 8 Comments
सुनो सखी इस सावन में तो झूलों पर भी रोक लगी
जिससे लगता नेह भरी सब साँसों पर भी रोक लगी।१।
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घिरघिर बदली कड़क दामिनी मन को हैं उकसाती पर
भरी उमंगों से यौवन की पींगों पर भी रोक लगी।२।
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कितने मास करोना का भय देगा कारावास हमें
मिलकर हम सब कैसे गायें गीतों पर भी रोक लगी।३।
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सूखी तीज बितायी सब ने कैसी होगी राखी रब
कोई कहे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 27, 2020 at 1:15pm — 8 Comments
ठूँठ हुआ पर छाँव में अपनी नन्हा पौधा छोड़ गया
कैसे कह दूँ पेड़ मरा तो मानव चिन्ता छोड़ गया।१।
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वैसे तो था जेठ हमेशा लेकिन जाने क्या सूझी
अब के मौसम हिस्से में जो सावन आधा छोड़ गया।२।
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"दिखे टूटता तो फल देगा", चाहे ये किवँदन्ती पर
आशाओं के कुछ तो बादल टूटा तारा छोड़ गया।३।
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या रोटी की रही विवशता या सीमा की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 23, 2020 at 12:08pm — 6 Comments
भाव अब तो पाप - पुण्यों के बराबर हो गये
देवता क्योंकर जगत में आज पत्थर हो गये।१।
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थी जहाँ पर अपनेपन की लहलहाती खेतियाँ
स्वार्थ से कोमल ह्रदय के खेत ऊसर हो गये।२।
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न्याय की जब से हुई हैं कच्ची सारी डोरियाँ
तब से जुर्मोंं के महावत और ऊपर हो गये।३।
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दूध, लस्सी, घी अनादर का बने पहचान अब
पैग व्हिस्की मय पिलाना आज आदर हो गये।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 20, 2020 at 5:30pm — 10 Comments
पनघट पोखर बावड़ी, बरगद पीपल पेड़
उनकी बातें कर न अब, बूढ़े मन को छेड़।१।
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जिस पनघट व्याकुल कभी, बैठे थे हर शाम
पुस्तक में ही शेष अब, लगता उस का नाम।२।
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पनघट सारे खा गया, सुविधाओं का खेल
फिर भी सुख से हो सका, नहीं हमारा मेल।३।
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पीपल देखे गाँव का, बीते कितने साल
कैसा होगा क्या पता, अब पनघट का हाल।४।
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पथिक ढूँढ नव राह तू, अगर बुझानी प्यास
पनघट ही जब ना रहे, क्या गोरी की आस।५।
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सब मिल पनघट थीं कभी, बतियाती चित खोल
घर- घर नल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 16, 2020 at 9:59am — 13 Comments
हम जरूरत के लिए विश्वास जैसे हैं
नाम पर सेवा के लेकिन दास जैसे हैं।१।
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सेज पर बिछने को होते फूल जैसे पर
वैसे पथ के पास उगते घास जैसे हैं।२।
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है हमारा मान केवल जेठ जैसा बस
कब तुम्हारे वास्ते मधुमास जैसे हैं।३।
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दूध लस्सी धी दही कब रहे तुमको
कोक पेप्सी से बुझे उस प्यास जैसे हैं।४।
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रोज हमको हो निचोड़ा आपने लेकिन
स्वेद भीगे हर किसी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 14, 2020 at 10:01am — 10 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२१/२
लिखना न मेरा नाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में
आयेगा कुछ न काम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।१।
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सबको पता है धूल से बढ़कर न मैं रहा कभी
ऊँचा भले ही दाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।२।
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सूरज न उगता भोर का तारों भरी न रात हूँ
ढलती हुई सी शाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।३।
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रावण बना दिया है मुझे प्यास ने हवस की यूँ
करना न मुझको राम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।४।
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चाहत न कोई नाम की रिश्ता अगर बना कोई
चलना मुझे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2020 at 6:45am — 13 Comments
नगर खिन्न हो देखता, खुश होता देहात
हरियाली उपहार में, देती है ब रसात।१।
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हलधर सोया खेत में, तन पर ओढ़े धूल
रूठी बदली देखिए, जा बैठी किस कूल।२।
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धरती के दुख से हुई, अँधियारी हर भोर
बादल बिजली चीखते, मत आना इस ओर।३।
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जब से आयी गाँव में, फिर रिमझिम बरसात
सौंधी मिट्टी की महक, उठती है दिन-रात।४।
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वसन धरा के जो सुना, तपन ले गयी चोर
बौराए घन नापते, पलपल नभ का छोर।५।
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मेंढक जी तो हैं सदा, बरखा के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2020 at 10:51pm — 4 Comments
१२२२ × ४
कहीं पर भूख पसरी है फटे कपड़े पुराने हैं
भला मैं कैसे कह दूँ ये सभी के दिन सुहाने हैं।१।
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वो गायें गीत फूलों के जिन्हें गजरे सजाने हैं
मगर हम स्वेद के गायें हमें पत्थर उठाने हैं।२।
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पुछें हर आँख से आँसू हमारा ध्येय इतना हो
न सोचो चन्द साँसों हित यहाँ सिक्के कमाने हैं।३।
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बसाना हो तो दुश्मन का बसा दो चाहे पहले पल
पहल अपने से ही करना अगर घर ही जलाने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2020 at 8:30am — 7 Comments
मन को इतना दे गये, अपने ही अवसाद
नाम पते सड़कें गली, क्या रक्खें अब याद।१।
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जीवन जिसको रेतघर, बादल क्या दे नीर
उसको तो हर हाल में, मिलनी है बस पीर।२।
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भूखा बेघर रख रहा, क्या कम यहाँ अभाव
उस पर करता रात - दिन, मँहगाई पथराव।३।
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थकन बढ़ी है पाँव की, छालों के आसार
मिले कहाँ आराम को, तरुवर छायादार।४।
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भले उजाले का हुआ, बहुत जगत भर शोर
दीपक नीचे क्यों रहा, तमस भरा घनधोर।५।
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आँसू अपने डाल दो, उस आँचल में और
हर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2020 at 7:09pm — 8 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
लेके आया फिर से बचपन शायरी का सिलसिला
मौत से कह दो न रोके जिन्दगी का सिलसिला।१।
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रोक तेजाबों घुएँ की गन्दगी का सिलसिला
इन हवाओं में भरो कुछ ताजगी का सिलसिला।२।
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कोशिशें दस्तक जो देंगी शब्द तोड़ेगे कभी
मौन की गहरी हुई इस तीरगी का सिलसिला।३।
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हैं बहुत कानून अपनी पोथियों में यूँ मगर
रुक न पाया भ्रष्ट होते आदमी का सिलसिला।४।
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एक जुगनू ने कहा ये भर तमस के काल में
डर न तम से मैं रखूँगा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2020 at 12:25pm — 10 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
पाँवों में छाले देख के राहें नहीं खिली
दिनभर थकन से चूर को रातें नहीं खिली।१।
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सुनते हैं खूब रख रहे पहलू में अजनबी
यार ए सुखन से आपकी आँखें नहीं खिली।२।
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थकते न थे जो दूरी का देते उलाहना
उनकी ही मुझको देख के बाँछें नहीं खिली।३।
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लोटा है साँप फिर से जो उसके कलेजे पर
कहता है कौन घर मेरे रातें नहीं खिली।४।
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लाया करोना दर्द तो राहत भी साथ में
ताजी हवा में कौन सी साँसें नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 29, 2020 at 9:20am — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
मारा करे हैं लोग जो गम को शराब से
लाते खुशी को देखिए कितने हिसाब से।१।
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खुशबू है भारी भूख पे सुनते जहान में
गेहूँ रहा अलीक न यूँ ही गुलाब से।२।
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लाता नहीं है होश भी अपने ही साथ क्यों
शिकवा है हमको एक ही यारो शबाब से।३।
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साधी है हमने यूँ नहीं हर एक तिश्नगी
गुजरा है अपना दौर भी यारो सराब से।४।
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उनको तो कुर्सी चाहिए पापों की नींव पर
मतलब न रखते आज भी सेवक सवाब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2020 at 11:11am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
छलकी बहुत शराब क्यों राजन तुम्हें पता
उसका नहीं हिसाब क्यों राजन तुम्हें पता।१।
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हालत वतन के पेट की कब से खराब है
देते नहीं जुलाब क्यों राजन तुम्हें पता।२।
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हम ही हुए हैं गलमोहर इस गम की आँच से
बाँकी हुए गुलाब क्यों राजन तुम्हें पता।३।
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हर झूठ सागरों सा है इस काल में मगर
सच ही हुआ हुबाब क्यों राजन तुम्हें पता।४।
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सुनते थे इन का ठौर तो बस रेगज़ार में
सहरा में भी सराब क्यों राजन तुम्हें…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 5, 2020 at 10:30am — 13 Comments
...............
गंगा जी ने जिस दिवस, धरे धरा पर पाँव
माने गंगा दशहरा, मिलकर पूरा गाँव।१।
**
विष्णुपाद से जो निकल, बैठी शंकर भाल
प्रकट रूप में फिर चली, गोमुख से बंगाल।२।
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करती मोक्ष प्रदान है, भवसागर से तार
भागीरथ तप से हुआ, हम सबका उद्धार।३।
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गोमुख गंगा धाम है, चार धाम में एक
जिसके दर्शन से मिटें, मन के पाप अनेक।४।
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अमृत जिसका नीर है, जीवन का आधार
अंत समय जो ये मिले, खुले स्वर्ग का द्वार।५।
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अद्भुत गंगाजल कभी, पड़ें…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 1, 2020 at 1:39pm — 4 Comments
रहेगा साथ सूरज यूँ सदा उम्मीद क्या करना
जलेगा साँझ होते ही दिया उम्मीद क्या करना।१।
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जो बरसाता रहा कोड़े सदा निर्धन की किस्मत पर
करेगा आज थोड़ी सी दया उम्मीद क्या करना।२।
**
बनाये दूरियाँ ही था सभी से गाँव में भी जो
नगर में उससे मिलने की भला उम्मीद क्या करना।३।
**
चला करती है उसकी जब इसी से खूब रोटी सच
वो देगा छोड़ छलने की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 1, 2020 at 5:00am — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
जिसके लिए स्वयं को यूँ पाषान कर गये
दो फूल उसके आपको भगवान कर गये।१।
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कारण से कुछ के मस्जिदें बदनाम हो गयीं
मन्दिर को लोग कुछ यहाँ दूकान कर गये।२।
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करता रहा था जानवर रखवाली रातभर
बरबाद दिन में खेत को इन्सान कर गये।३।
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अपनी हुई न आज भी पतवार कश्तियाँ
क्या खूब दोस्ती यहाँ तूफान कर गये।४।
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दिखते नहीं दधीचि से परमार्थी सन्त अब
मरकर भी अपनी देह जो यूँ दान कर गये।५।
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माटी भी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2020 at 9:30am — 18 Comments
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