Added by गिरिराज भंडारी on December 4, 2013 at 7:00am — 25 Comments
- दोहावली -
संग हरि किये हरि हुये, दानव ,दानव संग
किंतु न मानव बन सके, कर मानव के संग
कह सुन खाली मन करें, बचे न कोई बात ।
मन को उजला कीजिये, जैसे उजली रात ।।
…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 2:30pm — 23 Comments
गर्म हवा है खूब यहाँ की
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2 2 2 2 2 2 2 2
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जो भी मुझसे सम्बंधित है
सुख पाने से वो वंचित है
मौन यहाँ है सबसे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 30, 2013 at 5:00pm — 22 Comments
!!!! टूटते विश्वास को !!!! नवगीत !!!!
किस तरह से
मै बचा लूँ
टूटते विश्वास को
लोग कहते,
भूल जाऊँ
आँख मून्दे ,
कान…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 27, 2013 at 11:30pm — 28 Comments
2122 2122 ( बिना रदीफ )
जो भरा है वो बहेगा
रिक्तता है तो भरेगा
डर हमे काहे सताये
प्राण जिसमें है मरेगा
कानों सुनके आँखों देखे
चुप भला कैसे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 25, 2013 at 7:00pm — 37 Comments
कालीदास
मौन शास्त्रार्थ में
खुले पंजे के जवाब में
मुक्का दिखाते हैं
विद्वान अर्थ लगाते हैं
उन्हें ख़ुद पता नहीं
वो शास्त्रार्थ जीत जाते हैं…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 22, 2013 at 1:00pm — 28 Comments
1222 1222 1222 1222
धनक से रंग लाये हैं तुम्हें जी भर लगायें हम
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तमन्नाओं की कश्ती में तुझे ऐ दिल बिठायें हम
तेरी इन डूबती सांसों की उम्मीदें जगायें हम
बहुत ठोकर मिली…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 18, 2013 at 1:30pm — 42 Comments
दुन्दुभी क्या? वो बाँसुरी होगी
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2122 1212 22
काई ज़ज़्बात पर जमी होगी
दूरी ,क्या यूँ ही बन गयी होगी ?
पूर्ण तो बस ख़ुदा ही होता है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 12, 2013 at 6:00pm — 31 Comments
2122 2122 2122 2122
ज़ख़्म सूखे हैं तो फिर क्यों दर्द फैला जा रहा है
क्यों मुझे वो दिन पुराना याद आता जा रहा है
भीड़ मे रहना मुझे फिर बोझ सा लगने लगा क्यों
और तनहा कोई कोना क्यों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 7, 2013 at 5:30pm — 34 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on November 1, 2013 at 1:00pm — 24 Comments
1222 1222 1222 1222
कभी फूलों मे कलियों में, कभी झरनों के पानी में
मुझे महसूस तू होता, हवाओं की रवानी में
कभी बेकस की आहों में ,निगाहे बेबसी में भी
कभी खोजा किया तुझको, किसी गमगीं कहानी में
मुदावा मेरी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 28, 2013 at 7:30am — 41 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on October 27, 2013 at 6:30pm — 23 Comments
2122 1212 22
ज़र्फ़ अंदर न पास है दिल में
आ गया हूँ ,अदब की महफ़िल में
वक़्त रद्दे अमल का आया तो
तुम रहम खोजते हो क़ातिल में
कुछ तड़प , दर्द और बेचैनी
और क्या खोजते हो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 24, 2013 at 7:00pm — 37 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on October 22, 2013 at 8:00am — 38 Comments
क्या कहूँ , क्या लिखूँ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 18, 2013 at 5:44pm — 22 Comments
2122 2122
खुश हुआ खुद को भुला कर
या कहूँ मै तुझको पा कर
खुद को भी मै ने सताया
दोस्ती को आजमा कर
ज़िंदगी का बोझ सर पे
चल रहा हूँ लड़खड़ा कर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 8:30am — 32 Comments
बोलो किसको राम कहूँ मै
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सबके दिल मे रावण देखा, बोलो किसको राम कहूँ मै !
धृतराष्ट्र से मोह मे अन्धे
अपना अपना बचा रहे है
चौक चौक मे दुर्योधन बन
चौसर द्युत सा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 12, 2013 at 9:30pm — 38 Comments
एक इशारा अधूरा सा
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छू कर
पहन कर
चख कर
देख लेते हैं
कभी खरीदते हैं
कभी यूँ ही लौट आते हैं
सब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 8, 2013 at 8:30pm — 30 Comments
फिर कहो तुम मूक मै कैसे रहूँ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 6, 2013 at 9:00am — 37 Comments
2122 1212 22
जुल्म को देख रहगुज़र चुप है
गाँव सारा नगर नगर चुप है
खामुशी चुप ज़ुबां ज़ुबां है चुप
दश्त चुप है शज़र शज़र चुप है
दोस्त चुप चाप दुश्मनी भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 4, 2013 at 8:00am — 39 Comments
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