जब से मजबूरी मेरी बढ़ने लगी
दोस्तों से दूरी भी बनने लगी
उनकी हाँ में हाँ मिलाया जब नहीं
बस मेरी मौजूदगी डसने लगी
कद मेरा उस वक्त से बढ़ने लगा
आजमाइस दुनिया जब करने…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on February 18, 2013 at 10:00pm — 21 Comments
ज़हर भर चुका है दिलों में हमारे
सभी सो रहे है खुदा के भरोसे
जुबां बंद फिर भी अजब शोर-गुल है
हैं जाने कहाँ गुम अमन के नज़ारे
धरम बेचते हैं धरम के पुजारी
हमें लूटते हैं ये रक्षक हमारे
भला कब हुआ है कभी दुश्मनी से
बचा ही नहीं कुछ लुटाते-लुटाते
बटा घर है बारी तो शमशान की अब
यूँ लड़ते हुये हम कहाँ तक गिरेंगे
धरम का था मतलब खुदा से मिलाना
खुदा को ही बांटा धरम क्या निभाते
Added by नादिर ख़ान on February 10, 2013 at 12:30am — 7 Comments
मेरे आने और तुम्हारे जाने के बीच
बस चंद कदमों का फासला रहा
न मै जल्दी आया कभी
न कभी तुमने इंतज़ार किया
ये फासला ही तो था
जिसे हमने
संजीदगी और ईमानदारी के साथ निभाया
फासले को…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on February 1, 2013 at 11:30am — 15 Comments
प्यार ने तेरे बीमार बना रखा है
जा चुके कल का अख़बार बना रखा है
फांसले दिल के अब मिटते नहीं हैं हमसे
चीन की खुद को दीवार बना रखा है
बेचकर गैरत अपनी सो चुके हैं कब के
हमने उनको ही सरदार* बना रखा है
शोर सा मेरे इस दिल में ऐसा मचा है
जैसे गठबंधन सरकार बना रखा है
चापलूसों का दरबार लगा है नादिर
झूठ को ही कारोबार बना रखा है
*सरदार = मुखिया
Added by नादिर ख़ान on January 24, 2013 at 5:30pm — 5 Comments
कोई सपना सुहाना चाहता हूँ
बच्चों का डर हटाना चाहता हूँ
तुमने खामोश आँखों से कहा जो
उन शब्दों को चुराना चाहता हूँ
डर ज़ुल्मों का भला क्यों-कर करें हम
जो सच है वो सुनाना चाहता हूँ
जिसने ले ली गरीबों की रोटी भी
फ़ांका उसको कराना चाहता हूँ
उलझे सब नालियों पर और कीचड़
मैं सागर से हटाना चाहता हूँ
नहीं “नादिर” शिकायत ज़िंदगी से
जिम्मेदारी निभाना चाहता हूँ
Added by नादिर ख़ान on January 18, 2013 at 5:00pm — 5 Comments
दामिनी तुम जिंदा हो
हर औरत का हौंसला बनकर
न्याय की आवाज़ बनकर
वक्त की ज़रूरत बनकर
आस्था की पुकार बनकर
एकता की मिसाल बनकर
तुम लाखों दिलों में जिंदा हो
न्याय की उम्मीद बनकर…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on January 1, 2013 at 10:25pm — 8 Comments
रोज़ होती रही चर्चायें
बैठकों पे बैठकें
कार्यालयों से लेकर चौपालों तक
कारखानों से लेकर शेयर बाज़ारों तक
हर जगह
कोशिशें जारी हैं
कैसे बढ़े
कितना बढ़े
कहाँ-कहाँ कितनी गुंजाईशें है
सभी लगे हैं
देश विकसित हो या विकासशील
या हो अविकसित
मगर चिंतायें
सबकी एक है
कैसे बढ़े विकास-दर
कैसे बढ़े व्यापार
बाज़ार भाव
कैसे बढ़े निर्यात
फिर चाहे
मौत का सामान ही क्यों न हो
व्यापार बढ़ना चाहिए
विकास-दर बढ़ती…
Added by नादिर ख़ान on December 28, 2012 at 11:00pm — 3 Comments
लड़की चीख़ी
चिल्लायी भी
मगर हैवानों के कान बंद पड़े थे
नहीं सुन पाये
उसकी आवाज़ का दर्द
वह रोयी बहुत
आँखों से उसके
झर-झर आँसू…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 21, 2012 at 12:24am — 2 Comments
आओ वालमार्ट
स्वागत है आपका
अपनी कमज़ोर हो रही
अर्थव्यवस्था को
मज़बूत करने
आओ
हमारी मज़बूत होती
अर्थव्यवस्था को
कमज़ोर करने
आओ
हमने आपके हथियार नहीं लिए
इस नुक्सान की भरपायी के लिए
नयी संभावनाओं को तलाशने
आओ
किसानों के पसीने निचोड़ने
गरीब जनता का ख़ून चूसने
आओ वालमार्ट
यूनियन कार्बाइड की याद
धुंधली पड़ चुकी है
तुम नयी यादें देने…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 14, 2012 at 11:00am — 3 Comments
हाँ प्यार से इकरार है
पर शिर्क से इंकार है
अब दिल में वो जज़्बा नहीं
बस प्यार का बाज़ार है
मेरा ठिकाना क्या भला
जब बिक चुका घर-बार है…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 10, 2012 at 5:00pm — 6 Comments
रेत में जैसे निशां खो गए
हमसे तुम ऐसे जुदा हो गए
रात आँखें ताकती ही रहीं
मेहमां जाने कहाँ सो गए
सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें
छोड़कर मझधार में खो गए…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 5, 2012 at 4:30pm — 11 Comments
दिल में खौफ़े खुदा भी लाया जाए
अच्छे बुरे का फर्क जाना जाए
कब्ल इसके उंगली उठाओ सब पर
अपने दिल को भी तो खंगाला जाए
यूँ तो उनकी की है फजीहत सबने
प्यार उनसे कभी जताया जाए
निकले बाहर गरीबों की आवाज़ें
उनको भी तो कभी सुन लिया जाए
पहले इसके बिगड़ जायें हालात
जुल्मों को वक़्त रहते रोका जाए
Added by नादिर ख़ान on November 30, 2012 at 10:35pm — 4 Comments
तैयार किए गए
कुछ रोबोट
डाले गए
नफरत के प्रोग्राम
चार्ज किए गए
हैवानियत की बैटरी से
फिर भेज दिये गए
इंसानों की बस्ती में
फैलने आतंक
ये और बात है
इंसानियत ज़िंदा रही
हार गए हैवान
नहीं डरा सके हमें
न हीं कमज़ोर कर सके
हमारा आत्मविश्वास
और…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on November 22, 2012 at 11:53am — 9 Comments
आज करना कुछ नया-सा चाहता हूँ
आस के जज़्बात भरना चाहता हूँ
ये ग़ज़ल मेरी अधूरी है अभी तक
बस तेरी ख़ुशबू मिलाना चाहता हूँ
शौक़ है ये और ज़िद भी है हमारी
दिल में दुश्मन के उतरना चाहता हूँ
ख़ौफ़जद है ज़िंदगी अब तो हमारी
प्यार के कुछ रंग भरना चाहता हूँ
दुश्मनों ने दोस्त बन कर जो किया था
गलतियाँ उनकी भुलाना चाहता हूँ
(मात्रा 2122 2122 2122 की कोशिश की है ।)
Added by नादिर ख़ान on November 20, 2012 at 11:00pm — 6 Comments
गिरती दीवारें सूने खलिहान है
गावों की अब यही पहचान है
चौपालों में बैठक और हंसी ठट्ठे
छोटे छोटे से मेरे अरमान है
जनता के हाथ आया यही भाग्य है
आँखों में सपने और दिल परेशान है
लें मोती आप औरों के लिये कंकड़
वादे झूठे मिली खोखली शान है
हम निकले हैं सफर में दुआ साथ है
मंजिल है दूर रस्ता बियाबान है
Added by नादिर ख़ान on November 16, 2012 at 4:30pm — 12 Comments
तेरा था कुछ और न मेरा था
दुनिया का बाज़ार लगा था
मेरे घर में आग लगी जब
तेरा घर भी साथ जला था
अपना हो या हो वो पराया
सबके दिल में चोर छिपा था
तुम भी सोचो मै भी सोचूँ
क्यों अपनों में शोर मचा था
टोपी - पगड़ी बाँट रहे थे
खूँ का सब में दाग लगा था
मै भी तेरे पास नहीं था
तू भी मुझसे दूर खड़ा था
Added by नादिर ख़ान on November 12, 2012 at 11:17pm — 1 Comment
मेरा बेटा
अभी बच्चा है
अक़्ल से कच्चा है
चीज़ों का महत्व
नहीं जानता
और न ही
बड़ी बातें करना जानता है
उसकी खुशियाँ भी
छोटी-छोटी हैं
चॉकलेट, खिलौनों से ख़ुश
पेट भर जाए तो ख़ुश
पर लालची नहीं है वो
उतना ही खाएगा
जितनी भूख़ है
कल के लिए नहीं सोचता
आज की फिक्र करता है
चीज़ें ज़्यादा हो जायें
दोस्तों में बाँट देगा
छोटा है न
कुछ समझता नहीं
लोग समझाते हैं
बाद के लिए रख लो
पर नहीं समझता…
Added by नादिर ख़ान on November 8, 2012 at 6:00pm — 4 Comments
मेरा बेटा
छोटा है
महज़ छ: साल का
मगर
खिलौने इकट्ठे करने में
माहिर है
और खिलौने भी क्या ?
दिवाली के बुझे हुये दिये
अलग-अलग किस्म की
पिचकारियाँ
हाँ कई रंग भी है
उसके मैंजिक बॉक्स में
लाल, हरे, पीले
मगर रंगों मे फर्क
नहीं जानता
बच्चा है न
नासमझ है
होली में
पूछेगा नहीं
आपको कौन सा रंग पसंद है
बस लगा देगा
बच्चा है न
नासमझ है
हरे और पीले का फर्क
अभी नहीं जानता
उसे तो ये भी नहीं पता
होली का…
Added by नादिर ख़ान on November 5, 2012 at 3:30pm — 7 Comments
सूखती नदी
उजड़ते मकान
अपना गाँव
कैसा विकास
लोगों की भेड़ चाल
सुख न शांति
गाँवों में बसा
नदियों वाला देश
पुरानी बात
सूखती नदी
बढ़ता गंदा नाला
मेरा शहर
बिका सम्मान
क्या खेत खलिहान
दुखी किसान
लोग बेहाल
गिरवी जायदाद
कहाँ ठिकाना
सड़े अनाज
जनता है लाचार
सोये सरकार
Added by नादिर ख़ान on October 30, 2012 at 6:00pm — 3 Comments
रूठ मै जाऊँ तो मनाना मुझको
जो गिरता हूँ तो उठाना मुझको
मैंने मोहब्बत ही सबसे की है
गर हो खता खुदा बचाना मुझको
तुम्हारी हरेक शर्त मंजूर है मुझे
हाथ पकड़ के कभी बिठाना मुझको
बड़ी ही नाज़ुक है यादें हमारी
दीवारों पर यूँ न सजाना मुझको
दिल के कमज़ोर होते हैं इश्क वाले
बुरी नज़र से सबकी बचाना मुझको
साथ माँ-बाप का किसे अच्छा नहीं लगता
मेरी मजबूरीयों से ए-रब बचाना…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on October 21, 2012 at 10:30am — 2 Comments
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