For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Meena Pathak's Blog (58)

धरती की गुहार अम्बर से !!

प्यासी धरती आस लगाये देख रही अम्बर को |

दहक रही हूँ सूर्य ताप से शीतल कर दो मुझको ||



पात-पात सब सूख गये हैं, सूख गया है सब जलकल  

मेरी गोदी जो खेल रहे थे नदियाँ जलाशय, पेड़ पल्लव

पशु पक्षी सब भूखे प्यासे हो गये हैं जर्जर

भटक रहे दर-दर वो, दूँ मै दोष बताओ किसको

प्यासी धरती आस लगाए देख रही अम्बर को |



इक की गलती भुगत रहे हैं, बाकी सब बे-कल बे-हाल

इक-इक कर सब वृक्ष काट कर बना लिया महल अपना

छेद-छेद कर मेरा सीना बहा रहे हैं निर्मल जल…

Continue

Added by Meena Pathak on May 18, 2014 at 10:10pm — 20 Comments

उजाले की ओर एक कदम और (लघुकथा)

रात गहराती जा रही थी उसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी कमरे में अंघेरा इतना कि हाथ को हाथ सुझाई नही दे रहे थे |उसकी जिंदगी में अन्धेरा तो उसी दिन हो गया था जिस दिन उसने भूषन का हाथ थमा था पर फिर भी वो रौशनी की तलाश में अंधेरों से लड़ती रही | कभी उसका माथा फूट जाता, कभी आँखों के नीचे काला हो जाता तो कभी ठोकर खा कर गिरने से घुटना छिल जाता, अंधेरे में चलने से घाव तो लगने ही थे पर वो आगे बढ़ती रही |

अब वर्षों बाद इतनी दूर आ कर उसे थोड़ी सी रौशनी नसीब हुई तो अचानक ही उसे  फिर से ठोकर लगी और वो…

Continue

Added by Meena Pathak on May 13, 2014 at 4:00pm — 12 Comments

सिसकियाँ आस-पास की

आज सामाजिकता और नैतिकता का किस कदर पतन हो गया है कि देख कर दुःख होता है | आज कल आप कान लगा कर सुनिए कुछ कराहें सुनाई देंगी जो बेटों की माओं की हैं | मुंह में कपड़ा ठूंस कर कराह रहीं हैं, छुप कर आँसू बहा रहीं हैं क्यों की उन्हें डर है कि किसी ने उन्हें रोते या कराहते देख लिया तो उसका गलत अर्थ निकालेंगे और वो उपहास के पात्र बन जायेंगे | आज बेटे बाले डरे सहमे से हैं और ये वो मध्यमवर्गीय माता पिता हैं जिन्होंने अपने बेटों को बड़े संघर्ष से पढाया लिखाया है | एक नही कई ऐसे परिवार मै देख रही हूँ जहाँ…

Continue

Added by Meena Pathak on May 11, 2014 at 2:00pm — 18 Comments

हे स्त्री !!

उठो हे स्त्री !

पोंछ लो अपने अश्रु

कमजोर नही तुम

जननी हो श्रृष्टि की

प्रकृति और दुर्गा भी, 

काली बन हुंकार भरो

नाश करो!

उन महिसासुरों का

गर्भ में मिटाते हैं

जो आस्तित्व तुम्हारा, 

संहार करो उनका जो

करते हैं दामन तुम्हारा

तार-तार,

करो प्रहार उन पर

झोंक देते हैं जो

तुम्हें जिन्दा ही

दहेज की ज्वाला में,

उठो जागो !

जो अब भी ना जागी

तो मिटा दी जाओगी और

सदैव के लिए इतिहास

बन कर रह जाओगी…

Continue

Added by Meena Pathak on May 1, 2014 at 2:10pm — 19 Comments

प्रतीक्षा -- ( लघुकथा )

आज कल्पवास के आखरी दिन भी वो रोज की तरह पेड़ के नीचे बैठ चारो तरफ नजरें घुमा-घुमा कर किसी को ढूंड रही है जैसे किसी के आने की प्रतीक्षा हो उसे, पूरा दिन निकल गया शाम होने को है, सूर्य की प्रखर किरणें मद्धम पड़ चुकी हैं, पंक्षी अपने-अपने घोसलों में पहुँच गये हैं, बस् कुछ देर में ही दिन पूरी तरह रात्रि के आँचल में समा जाएगा पर अभी तक वो नही दिखा जिसका बर्षों से वो प्रतीक्षा कर रही है |

“वर्षों पहले इसी कुम्भ में कल्पवास के लिए छोड़ गया था ये कह कर की कल्पवास समाप्त होने पर आ के ले जाऊँगा पर…

Continue

Added by Meena Pathak on April 28, 2014 at 7:00pm — 21 Comments

उत्तर दो ! (कविता)

सुन कर द्रोपदी की चित्कार

कलेजा धरती का फटा क्यों नहीं

देख उसके आँसुओं की धार  

अंगारे आसमां ने उगले क्यों नहीं

चुप क्यों थे विदुर व भीष्म

नेत्रहीन तो घृतराष्ट्र थे

द्रोण ने नेत्र क्यों बंद कर लिए

नजरें क्यों चुरा लिए पाँचों पांडवों ने  

कहाँ था अर्जुन का गांडीव

बल कहाँ था महाबली भीम का

क्या कोई वस्तु थी द्रोपदी

जिसे दाँव पर लगा दिया  

ये कौन सा धर्म था धर्मराज ?



कहाँ थे कृष्ण,

वो तो थी सखी तुम्हारी …

Continue

Added by Meena Pathak on April 11, 2014 at 2:00pm — 23 Comments

एक दूसरे के प्रति त्याग और समर्पण ही सच्चा प्रेम है

एक स्त्री का जब जन्म होता है तभी से उसके लालन पालन और संस्कारों में स्त्रीयोचित गुण डाले जाने लगते हैं | जैसे-जैसे वो बड़ी होती है उसके अन्दर वो गुण विकसित होने लगते है | प्रेम, धैर्य, समर्पण, त्याग ये सभी भावनाएं वो किसी के लिए संजोने लगती है और यूँ ही मन ही मन किसी अनजाने अनदेखे राज कुमार के सपने देखने लगती है और उसी अनजाने से मन ही मन प्रेम करने लगती है | किशोरा अवस्था का प्रेम यौवन तक परिपक्व हो जाता है, तभी दस्तक होती है दिल पर और घर में राजकुमार के स्वागत की तैयारी होने लगती है | गाजे…

Continue

Added by Meena Pathak on April 9, 2014 at 6:40pm — 18 Comments

ताँका

1-

हुआ प्रभात

उपासना मे लीन

ऋषी तल्लीन

कर जल अर्पण

हुआ प्रशन्न चित

2-

ऋतु बसंत

खिले कमल दल

स्वर्णिम धरा

पुष्प-पुष्प भ्रमर

करते रसपान

3-

रति-अनंग

नृत्य प्रेम मगन

शिव प्रचंड

भष्मित तन-मन

भयभीत हैं गण

४-

पाँव पखारें

कृष्ण गोपियों संग

देखते रास

शूल विधे असंख्य

नारी वेश में शिव

५-

कर श्रृंगार

नाग,देव,असुर

हरी में हर

नृत्य हुआ…

Continue

Added by Meena Pathak on February 15, 2014 at 7:55pm — 6 Comments

खुशियों का तोहफा

आज सुबह पूजा कर के कल्याणी देवी कमरे मे बैठ गयीं | ठण्ड कुछ ज्यादा थी तो कम्बल ओढ़ कर आराम से कमरे मे गूंज रही गायत्री मन्त्र का आनंद ले रही थी | आँखे बंद कर के वो पूरी तरह से गायत्री मन्त्र मे डूब चुकी थीं तभी अचानक खट-खट की आवाज से उन्होंने आँखे खोली | कोई दरवाजा खटखटा रहा था | बहू रसोई मे थी और पतिदेव पूजा कर रहे थे सो उनको ही मन मार कर कम्बल से निकलना पड़ा | अच्छे से खुद को शाल मे लपेटते हुए उन्होंने गेट खोला तो चौंक गईं | एक मुस्कुराता हुआ आदमी सुन्दर सा गुलाब के फूलों का गुलदस्ता लिए खड़ा…

Continue

Added by Meena Pathak on February 14, 2014 at 5:18pm — 15 Comments

अब वो भोर कहाँ !

वो मुर्गे की बांग

वो चिडियों की चीं-चीं

वो कोयल की कूक

अब वो भोर कहाँ ..



वो जांत का घर्र-घर्र

वो चूड़ी की खन-खन

वो माई का गीत

अब वो भोर कहाँ ..



वो कंधे पर हल

वो बैलों की जोड़ी

वो घंटी का स्वर

अब वो भोर कहाँ ..



वो पहली किरन

वो अर्घ-अचवन

वो पार्थी की पूजा

अब वो भोर कहाँ ..



वो माई की टिकुली

वो पीला सिन्दूर

वो पायल की छम-छम

अब वो भोर कहाँ ..



वो…

Continue

Added by Meena Pathak on February 12, 2014 at 3:00pm — 17 Comments

फिर याद आई !!

लो,फिर याद आई
आँसुओं की बाढ़ आई
थी उनके करीब इतने
वो थे मुझमे मै थी उनमे |

कहा था कभी
चली जायेगी ससुराल  
कैसे रहूँगा तुम बिन,
खुद छोड़ गये साथ
ये भी ना सोचा  
कैसे रहूँगी उन बिन |

बरसों बीत गये
निहारते हुए राह
ना कोई सन्देश ना कोई तार
खड़ी हूँ अब भी वहीं
संभाले दर्द का सैलाब  
छोड़ गये थे पापा जहाँ |

मीना पाठक 

मौलिक/अप्रकाशित 
  
 
   

Added by Meena Pathak on February 5, 2014 at 3:00pm — 16 Comments

बदलता परिवेश - लघुकथा

कितना कहा था कि घरेलू लड़की लाओ...पर मेरी कोई सुने तब ना...सब को पढ़ी-लिखी बी-टेक लड़की ही चाहिए थी...अब ले लो कमाऊ बहू...मुंह पर कालिख मल के चली गई, अरे...उसे किसी और से प्रेम था तो मेरे बेटे की जिंदगी क्यों खराब की ...पहले ही मना कर देती तो ये दिन तो ना देखना पड़ता हमें..अब मै किसी को क्या मुंह दिखाऊँगी...सब तो यही कहेंगे ना कि सास ही खराब होगी ..उसी के अत्याचार से तंग आ कर बहू ने घर छोड़ा होगा..हे राम ! अब मै कहाँ जाऊँ...क्या करूँ...अरे...कोई उसे समझा-बुझा के घर ले आओ...मै उसके पाँव पकड़ लेती…

Continue

Added by Meena Pathak on February 3, 2014 at 7:00pm — 6 Comments

अब तो प्रभु दर्शन दे दो ......

तरसे दरशन को ये नैना

थकी राह निहार दिन रैना,

तुम बिन इक पल मिले न चैना

अब तो प्रभु दर्शन दे दो

बीती जाये उमरिया ||



हृदय दीप सांसों की बाती

ज्योति जलाय निहारूँ झाँकी

असुअन पुष्प चढ़े दिन राती

अब तो प्रभु दर्शन दे दो

बीती जाये उमरिया ||



प्रीत तेरी रम गई ऐसी

सुधि न रही अब तन,मन,धन की

लाज शरम तजि हुई बावरिया ||

अब तो प्रभु दर्शन दे दो

बीती जाये उमरिया ||



टेर-टेर विकल भई काया …

Continue

Added by Meena Pathak on January 31, 2014 at 2:30pm — 20 Comments

समृद्ध महिला - (लघुकथा )

आज कुन्ती के पाँव जमीन पर नही पड़ रहे थे | खुशी इतनी थी कि उसका मन भर-भर आ रहा था | अपने पति के प्रति अथाह आदर भाव और प्रेम तो पहले से ही था उसके हृदय में, आज वो कई गुना और बढ़ गया था | उसका दिल खुशी से धाड़-धाड़ धड़क रहा था खुशी की अधिकता के कारण वो काँप रही थी | किसी तरह वो तैयार हो कर आईने के सामने खड़ी हो कर खुद को निहारने लगी | हल्के गुलाबी रंग की रेशमी साड़ी में वो कितनी जंच रही थी जो इसी विशेष अवसर के लिए पति ने खरीद कर तैयार करवाई थी | स्टूल पर बैठ कर कुन्ती सिर पर पल्लू रख कर अपनी मांग में…

Continue

Added by Meena Pathak on January 27, 2014 at 2:30pm — 34 Comments

वंदना

वंदना

हे शारदे माँ, हे शारदे माँ

विद्द्या का मुझको भी वरदान दे माँ

करूँ मै भी सेवा तेरी उम्र भर

मुझमे भी ऐसा कोई ‘भाव’ दे माँ

हे शारदे माँ , .......

चलूँ मै भी हरदम सत्यपथ पर

कभी भी न मुझसे कोई चूक हो माँ

हे शारदे माँ ,...........

दिखें जो दुखी-दीन आगे मेरे

कुछ सेवा उनकी भी मै कर सकूं माँ

हे शारदे माँ ,...............

जिह्वा जो खोलूँ तू वाँणी मे हो

चले जो कलम तो तू शब्द दे माँ

हे शारदे…

Continue

Added by Meena Pathak on January 15, 2014 at 5:00pm — 13 Comments

आने वाले साल का हर दिन हो शुभ !

मुट्ठी से रेत की तरह

फिसल गया ये साल भी

पिछले साल की तरह,

वही तल्खियाँ, रुसवाइयाँ,

आरोप, प्रत्यारोप,बिलबिलाते दिन

लिजलिजाती रातें, दर्द, कराहें

दे गया सौगात में |



सोचा था पिछले साल भी

होगा खुशहाल, बेमिशाल

लाजवाब आने वाला साल,

भर लूँगी खुशियों से दामन

महकेगा फूलों से घर आँगन

खुले केशों से बूँदें टपकेंगी

दूँगी तुलसी के चौरा में पानी

बन के रहूँगी राजा की रानी |



हो गया फिर से आत्मा का चीरहरण…

Continue

Added by Meena Pathak on January 7, 2014 at 1:15pm — 31 Comments

आजादी आखिर कितनी ?

स्त्री को आजादी वैदिक काल से ही मिली हुई है फर्क सिर्फ इतना है कि आज उस आजादी में कुछ निजी स्वार्थ समा गया है | वर्षों पहले से स्त्री को हर तरह की आजादी मिली हुई है अपने मन मुताबिक़ कपड़े पहनने की आजादी.अपने मन मुताबिक़ पति चुनने की आजादी,अपने मर्जी से शिक्षा क्षेत्र चुनने की आजादी यहाँ तक कि वो रण क्षेत्र में भी अपनी मर्जी से जाती थी | उन्हें कोई रोक-टोक नही थी इसके बावजूद वो अपनी पारिवारिक जिम्मदारियां भी बखूबी निभाती थीं और अपने पति के पीछे उनकी प्रेरणा बन के खड़ी रहती थी तो आज ऐसा क्यों नही…

Continue

Added by Meena Pathak on December 23, 2013 at 2:00pm — 20 Comments

काश !!.... मीना

सोचती हूँ होती मेरी भी एक बिटिया
पढ़ती वो भी बिन कहे दिल की पतिया
भीगती जब असुअन से मेरी अखियाँ
पूछती माँ क्यूँ भीगी तेरी अखिंयाँ
बनाती बहाना चुभ गया कुछ बिटिया
कहती,समझती हूँ माँ तेरे दिल की बतियाँ !!
 

काश होती मेरी भी एक बिटिया
वो पढ़ लेती मेरे दिल की पतियाँ
होती मेरी हमसाया,हमराज,सखी
कहती ना कभी ऐसी बतियाँ
उड़ा देती जो मेरी रातों की निंदियाँ
माँ तुममे भी है कुछ कमियाँ !!

मीना पाठक 
मौलिक/अप्रकाशित 

Added by Meena Pathak on December 17, 2013 at 5:15pm — 19 Comments

आहत माँ का दर्द

मै जीना चाहती हूँ माँ !!



कैसे जियेगी तू मेरी बच्ची ?

समय के साथ ये सब

श्रद्धांजलि और प्रदर्शनों

के आडम्बर शांत हो जायेंगे

सब कुछ भूल, लग जायेंगे

सभी अपने अपने काम में

पर तेरा जीवन नही बदलेगा !!

   

जो बच गई

जीवन तेरा और भी नर्क हो जाएगा

तू जब भी निकलेगी घर से

तेरी तरफ उठेंगी सौकड़ों आँखे  

तू भूलना भी चाहेगी तो

दिखा – दिखा उंगुली    

लोग तुझे भूलने नही देंगे

जानना चाहेंगे सभी ये कि  

कैसे हुआ ये…

Continue

Added by Meena Pathak on December 16, 2013 at 7:00pm — 36 Comments

चीख -- (लघुकथा)

हॉस्पिटल से आने के बाद दिया ने आज माँ से आईना माँगा | माँ आँखों में आँसू भर कर बोली “ना देख बेटा आईना, देख न सकेगी तू |” पर दिया की जिद के आगे उसकी एक न चली और उसने आईना ला कर धड़कते दिल से दिया के हाथ में थमा दिया और खुद उसके पास बैठ गई | दिया ने भी धड़कते दिल से आईना अपने चेहरे के सामने किया और एक तेज चीख पूरे घर में गूँज गई, माँ की गोद में चेहरा छुपा कर फूट-फूट कर रो पड़ी दिया | माँ ने अपने आँसू पोंछे और उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए बोली कि “मैंने तो पहले ही तुझसे बोला था कि मत देख…

Continue

Added by Meena Pathak on December 9, 2013 at 3:11pm — 25 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service