पहाड़ की चोटी पर बैठा हुआ वह युवक अभी भी एंटीने से जूझ रहा था।
आज से कई साल पहले जब गाँव का सबसे ज़्यादा पढ़ा-लिखा युवक शहर से पहली बार टीवी लेकर आया था तो सब लोग बेहद ख़ुश थे। नारियल, अगरबत्ती और फूल-माला से स्वागत किया था सबने उसका। मगर जल्द ही, ‘‘ये टीवी ख़राब है क्या? इसमें हमारी ख़बर तो आती ही नहीं।’’ बुज़ुर्ग की बात से उस युवक के साथ-साथ बाकी गाँव वालों का भी माथा ठनका। ‘‘अरे हाँ! इसमें तो सिर्फ़ शहरों की ही ख़बरें आती हैं, गाँव का तो कहीं कोई नाम ही नहीं।’’ सबने तय किया कि शहर…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 2, 2018 at 6:00pm — 6 Comments
एथेन्स के प्रसिद्ध चैराहे पर सुकरात जोकर बन कर खड़ा था। जो भी आता उसके ठिगने कद, चपटी नाक, मैले-कुचैले पुराने कपड़े, निकली हुई तोंद और नंगे पैर को देख कर हँसे बिना न रह पाता। ‘‘कौन हो तुम?’’ भीड़ में से किसी ने पूछा।
‘‘एक दार्शनिक।’’ उसे लगा कि नाम बताने की अपेक्षा यदि वह दार्शनिक कहेगा तो लोग उसे कुछ गंभीरता से लेंगे मगर वह गलत था। चैराहा एक बार पुनः ठहाकों से गूँज उठा।
‘‘वो देखो, दार्शनिक उन्हें कहते हैं।’’ विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर्स को बाहर आते देख…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 16, 2018 at 5:22pm — 10 Comments
‘अगर मैंने पाँच का यह सिक्का पाखाने में ख़र्च कर दिया और मुझे आज भी काम नहीं मिला तो फिर मैं क्या करूँगा?’ सार्वजनिक शौचालय के बाहर खड़ा जमाल अपनी हथेली पर रखे उस पाँच के सिक्के को देखकर सोच रहा था। तभी उसके पेट में फिर से दर्द उभरा। वह चीख उठा, ‘‘उफ! अल्लाह ने पाखाने और भूख का सिस्टम बनाया ही क्यों?’’
जिस उम्र में जवानी शुरु होती है उस उम्र में उसके चेहरे पर बुढ़ापा था। लेबर चैराहे के कुछ अन्य मजदूरों की तरह पिछले कई दिनों से जमाल को भी कोई काम नहीं मिला था। घर भेजने के बाद जो…
Added by Mahendra Kumar on January 14, 2018 at 1:00pm — 12 Comments
अरकान : 2122 2122 2122 212
एक तरफ़ा इश्क़ मेरा बेअसर होने को है
ख़त्म यानी ज़िन्दगी का ये सफ़र होने को है
कहने को तो सर पे सूरज आ गया है दोस्तो
ज़िन्दगी में पर हमारी कब सहर होने को है
हर किसी ने हाथ में पत्थर उठाये देखिये
और फिर उनका निशाना मेरा सर होने को है
आपको चाहा था मैंने बेतहाशा टूट कर
अब यही तकलीफ़ मुझको उम्र भर होने को है
करना है कुछ आपको तो बस दुआएँ कीजिए
अब दवाओं का कहाँ मुझ पे असर होने को…
Added by Mahendra Kumar on December 26, 2017 at 10:00pm — 18 Comments
मृत्यु...
जीवन का वह सत्य
जो सदियों से अटल है
शिला से कहीं अधिक।
मृत्यु पूर्व...
मनुष्य बद होता है
बदनाम होता है
बुरी लगती हैं उसकी बातें
बुरा उसका व्यवहार होता है।
मृत्यु पूर्व...
जीवन होता है
शायद जीवन
नारकीय
यातनीय
उलाहनीय
अवहेलनीय।
मृत्यु पूर्व...
मनुष्य, मनुष्य नहीं होता
हैवान होता है
हैवान, जो हैवानियत की सारी हदें
पार कर देना चाहता…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on October 22, 2017 at 9:33am — 18 Comments
बह्र : 2122-1122-1122-112/22
फिर मुहब्बत से लिया नाम तुम्हारा उसने
वार मुझ पर है किया कितना करारा उसने
मेरी कश्ती को समन्दर में उतारा उसने
और फिर कर दिया तूफ़ाँ को इशारा उसने
डूबते वक़्त दी आवाज़ बहुत मैंने मगर
बैठ कर दूर से देखा था नज़ारा उसने
आप कहते थे इसे बख़्श दो, देखो ख़ुद ही
मुझ में ख़ंजर ये उतारा है दुबारा उसने
ग़ैर भी कोई गुज़ारे न किसी ग़ैर के साथ
वक़्त…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on September 26, 2017 at 10:00am — 30 Comments
Added by Mahendra Kumar on September 12, 2017 at 6:34pm — 29 Comments
Added by Mahendra Kumar on September 3, 2017 at 12:39pm — 6 Comments
"तेरे पिता उस संगठन से जुड़े हैं जो इन्हें देखना तक नहीं चाहता और तू कहता है कि इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता?" कार्तिक आज भी उसी रेस्टोरेंट में बैठा था जहाँ सुमित ने कभी उससे ये बातें कही थीं। उसके हाथ में परवीन शाकिर की किताब थी तो ज़ेहन में ये ग़ज़ल, तुझसे कोई गिला नहीं है, क़िस्मत में मेरी सिला नहीं है।
"क्या ख़ूब ग़ज़ल सुनाई तुमने। किसकी है?" न्यू ईयर की पार्टी में लोगों ने ज़ोया से पूछा जिसने अभी हाल ही में ऑफिस ज्वाइन किया था।
"परवीन शाकिर की।" यह पहली बार था…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 8, 2017 at 10:30am — 7 Comments
Added by Mahendra Kumar on April 9, 2017 at 10:05am — 6 Comments
Added by Mahendra Kumar on March 8, 2017 at 8:30pm — 14 Comments
Added by Mahendra Kumar on February 19, 2017 at 11:30am — 23 Comments
Added by Mahendra Kumar on January 6, 2017 at 3:30pm — 7 Comments
Added by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 7:00pm — 19 Comments
मैं भुला देना चाहता हूँ
झिलमिल सितारों को
झूमती बहारों को
सावन के झूलों को
महकते हुए फूलों को
मौसमी वादों को
पक्के इरादों को
नर्म एहसासों को
बहके जज़्बातों को
सोंधी सी ख़ुशबू को
कोयल की कू को
नाचते हुए मोर को
नदियों के शोर को
चाँदनी रातों को
मीठी-मीठी…
Added by Mahendra Kumar on December 28, 2016 at 1:30pm — 10 Comments
आएगा नया साल
खिलेंगे नये फूल
उगेगा नया सूरज
फैलेगी नयी रौशनी
छंटेगा अँधेरा
सजेगी महफ़िल
गायेंगी वादियाँ
बजेंगी चूड़ियाँ
झूमेगा आसमाँ
नाचेगी धरती
उड़ेगा आँचल
हँसेगा बादल
सच होंगे सपने
मिलेंगी ख़ुशियाँ
मुड़ेंगी राहें
आएगी मंज़िल
मगर...
सिर्फ औरों के लिए
मेरे लिए
तो अब भी वही साल है
कई सालों बाद भी
सड़न और सीलन से युक्त
दुर्गन्ध से भरा हुआ
तड़पता
उदास
बीमार
और बोझिल…
Added by Mahendra Kumar on December 26, 2016 at 9:00pm — 6 Comments
Added by Mahendra Kumar on December 21, 2016 at 10:30am — 10 Comments
Added by Mahendra Kumar on December 18, 2016 at 8:31am — 8 Comments
Added by Mahendra Kumar on December 6, 2016 at 3:52pm — 18 Comments
Added by Mahendra Kumar on December 3, 2016 at 7:00pm — 12 Comments
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