For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जितेन्द्र पस्टारिया's Blog (67)

भूख....(लघुकथा)

“ हे. भगवान..बस! एक पोते की कामना थी,  वो भी पूरी नहीं हो पाई इस बार. तीन-तीन पोतियों की लाइन लग गई ” अपनी बहु के कमरे से बाहर, खले की ओर जाते हुए मन में बडबडा ही रही थी, कि

“ माँ!! मैं बाजार जा रहा हूँ, कुछ लाना हो बता दो ” बेटे ने पूछा

“ हाँ! बेटा.. गुड़ ले आना, वो बूढी गाय न जाने कब जन जाए, अब की बार बछिया ले आये तो आगे भी घर का दूध मिल जाया करेगा “

      जितेन्द्र पस्टारिया

   (मौलिक व् अप्रकाशित)    

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on February 5, 2015 at 10:54am — 24 Comments

आसरा....(लघुकथा)

"अरे!!  तुम्हारे जैसे गरीब अनाथ के झोपड़े में महात्मा गाँधी की तस्वीर...”

 

“हाँ! साहब,  अभी कुछ दिन पहले ही लोगों ने चौराहे पर इस तस्वीर को लगाकर.. मालायें पहनाई, खूब  जोर-शोर से भाषण-बाजी की. फिर इसे सब,  वहीं छोड़कर चले गये.. ये वहां बे-सहारा थे,  तो इन्हें अपने घर ले आया...”

 

 

     जितेन्द्र पस्टारिया

 

 (मौलिक व् अप्रकाशित)   

 

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on January 24, 2015 at 7:33pm — 22 Comments

सच! विगत वर्ष की तरह.. (अतुकांत)

वर्ष फिर बीत गया

यूँ दे गया, अनुभव

जीने के

लड़ने के,  अंधेरों से

रौशनी के लिए

सत्य से सत्य को

छीन लिया

असत्य से असत्य

 

छोड़े भी और मांग भी लिए

अधिकारों को

थोड़ी सी घुटन में

राहों में चलते रहे

अपनों के साथ

अपनों के ही लिए

 

जान लिया, पहचाना भी

समझ भी तो गये

अँधेरा और दुःख

दोनो ही तो, चाहिए

रौशनी और सुख के साथ-साथ

बड़ा अच्छा लगता है

इनके बीच…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on January 1, 2015 at 7:28am — 10 Comments

धर्म....(लघुकथा)

जानकीप्रसाद जी सेवानिवृत्ति के पश्चात कई वर्षों से अपनी पत्नि के साथ, बड़े प्यार से अपना बचा हुआ जीवन व्यतीत कर रहे है. दीपावली के आते ही घर में रंगरोगन का काम शुरू होने वाला है. जानकीप्रसाद जी ने अपने पडौसी से कहकर, दीवारों पर रंग करने के लिए एक पुताई वाले को बुलवाया है. उस पुताई वाले  नौजवान को देख अकेले रह रहे बुजुर्ग दंपति बहुत खुश है. क्युकी दो-तीन दिनों के लिए एक मेहमान आया है

 

“बेटा! तुम्हारा क्या नाम है..? “ जानकीप्रसाद जी ने बड़े ही स्नेह से पूछा

 

प्रश्न…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on November 8, 2014 at 10:23am — 24 Comments

आवरण....(लघुकथा)

रामकिशन अपनी फसल से बहुत ज्यादा  प्यार करता था. पौधों को अपने बच्चों के जैसा समझता. खेतों की साफ़-सफाई, हर काम शुरू करने से पहले पूजा-पाठ, यहाँ तक की अपनी भावुकता के कारण नन्हें-नन्हें पौधों पर कीटनाशकों का छिडकाव भी नहीं करता था. उसे यही लगता था कि इन मासूमों पर जहर का इस्तेमाल कैसे करूँ..?   किन्तु ख़राब मौसम के कारण जन्मे कीट उसकी फसल को चट कर जाते. अपने हाथ कुछ न लगना और गाँव के लोगों द्वारा उसकी  हंसी उड़ाना , एक दिन उसे समझ आ गया. अब रामकिशन अपनी फसलों से आमदनी का भरपूर फायदा ले रहा…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on November 4, 2014 at 1:05am — 14 Comments

यथार्थ ....(लघुकथा)

पूरे मोहल्ले में केवल बब्लू के घर की ही पक्की छत थी, बाकि सारे मकान कच्चे थे. बब्लू को बचपन से ही पतंगबाजी का बड़ा शौक था. हमेशा छत पर चढ़कर  पतंग उड़ाकर वो मोहल्ले के लोंगो, जो कि अपने आँगन से पतंगबाजी करते थे, सभी की पतंग काट दिया करता था. अभी  चार माह पहले ही पतंग उड़ाते हुए ,छत से बुरी तरह से नीचे जमीन पर गिर जाने के बाद भी बब्लू का पतंग उड़ाने का शौक तो नही गया, किन्तु अब छत की हद को बार-बार ध्यान में रखता हैऔर एक दिन में कई पतंगें कटवा देता…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on October 13, 2014 at 8:00am — 20 Comments

सच! में..आज बहुत बदसूरत है

बहुत सुंदर है

मीठा है बहुत,

बिलकुल मिश्री की तरह

मिल जाता है, कहीं भी

कभी भी, हर तरफ

खोखलापन लिए, समा जाये इसमें

कोई भी,कितना भी.

सच! ही तो है

असत्य जो है

कितना आसान है

इसे पाना, स्वीकारना

खुश हो लेना

चलायमान तो इतना

कि रुकता ही नहीं

अनेकों राहें, उनमे भी कई राहें

पूर्ण सामयिक ही बन बैठा  है.

और वो देखो !.. सत्य

वहीं खड़ा है, अनंत काल से

न हिलता न…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on October 8, 2014 at 10:02am — 18 Comments

आटा या नमक....(लघुकथा)

“नमस्कार बाबू जी..! मुझे इस खसरे की नकल जल्द से जल्द निकलवाना है, यह रहा मेरा आवेदन”   रमेश ने सरकारी दफ्तर में फाइलों के बीच सिर दिए बाबू से कहा

“ अरे भाईसाहब..! जिसे देखो उसे जल्दी है. यहाँ इतना काम फैला पड़ा है और स्टाफ भी कम है, अपना आवेदन दे जाइए और आप १५ दिनों के बाद आइयेगा. आपको नकल मिल जायेगी. हाँ..!  अगर जरुरी काम हो ,जल्दी चाहिए तो थोड़ा सेवा-शुल्क कर दीजिये. कल ले जाना अपनी नकल” बाबू ने रमेश का आवेदन लेकर फ़ाइल कवर में रखते हुए कहा

“ अरे बाबू जी..! कैसी…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on October 4, 2014 at 11:59am — 14 Comments

हम फिर...! संघर्ष करेंगे.

चार माह की

तपती धरा पर

जैसे ही बारिश की बूँदे बरसी

बो दिये , नन्हे-नन्हे अंकुरों को

कई कतारों में

सभी ने मिलकर

नन्हें -नन्हे  से हाथो को

ऊँचा उठाकर

दूर कर दी , मिट्टी की चादर  

धीरे से झाँक ने लगे

इस सुंदर सी दुनिया को

दो से चार और फिर छै:

धीरे-धीरे पत्तियां बढ़ने लगी

ढांकने लगी

अपनी ही छाँव से,

नाजुक जड़ों को

धूप में भी बनाये रखी

अपने-अपने हिस्से की नमी

अपनी  एकता की…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on September 29, 2014 at 10:30pm — 14 Comments

उच्च-शिक्षा....(लघुकथा)

मध्यम वर्गीय परिवार में पला-बड़ा मुकेश, अपने  छोटे से शहर से अच्छे प्राप्तांक से स्नातक की डिग्री लेकर बड़े शहर में प्रसिद्द निजी शिक्षण संस्था से प्रबंधन की डिग्री लेना चाहता है.  आर्थिक समस्या के कारण उसे संस्था में प्रवेश नही मिल पा रहा है उसने कई बार संस्था के प्रबंध-समूह  से शुल्क में कमी करने की गुजारिश की, लेकिन शिक्षा भी तो व्यापार ही सिखाती है. अपने ही शहर के दो और छात्रों को उसी प्रसिद्द निजी संस्था की गुणवत्ता बताकर, प्रवेश दिलवाने से मुकेश के पास अब एक वर्ष के रहने और खाने के पूँजी…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on September 19, 2014 at 11:34pm — 6 Comments

मनोकामना....(लघुकथा )

" भाई! रामौतार.. यह साल तो खेती के हिसाब से बहुत ही बढ़िया रहा. काश! ऐसा हर साल ही होता  रहे "     दिनेश ने अपनी हथेली पर तंबाकू मे चूना लगाकर , रगड़ते हुए कहा

" हाँ भाई! दिनेश.. सच इस बार, हर साल की तुलना मे अतिवृष्टि से थोड़ी कम फसल ज़रूर हुई लेकिन लोक-सभा और विधान- सभा चुनाव के रहते सरकारों ने खूब मुआवज़ा भी दिया और फसल बीमा को भी मंज़ूरी  दिलवाई , तो देखो न! दोगुने से भी ज्यादा बचत हो गई " रामौतार ने दिनेश की हथेली पर से मली हुई तंबाकू अपने मुंह में दबाते हुए…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2014 at 8:30pm — 12 Comments

शुरुआत....(लघुकथा)

रमेश अपने बेटे व् त्यौहार पर आई हुई अपनी बहन के बेटे को, लेकर बाजार गया था, उसकी बहन कल अपने घर जाने वाली है. सोचा शायद उसके बेटे को कुछ दिलवा दिया जाये, उसे कुछ सस्ते से कपडे  एक दुकान से दिला लाया है. बहन के बेटे ने भी निसंकोच उन्हें स्वीकार कर लिया.  बाजार में रमेश का बेटा जिद करता रहा पर ,  उसने   अपने बेटे को कुछ नही दिलवाया है ...

“ पापा..!! मुझे तो वो ही वाले ब्रांड के कपडे चाहिए जो मैंने पसंद किये थे, कुछ भी हो उसी दुकान से दिलवाना पड़ेगा आपको..” रमेश के बेटे ने,  रमेश…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on August 29, 2014 at 2:08pm — 8 Comments

कमाई...(लघुकथा)

मंदबुद्धि और भोला रामदीन वर्षों से अपने परिवार व् गाँव  से  दूर , दूसरे गाँव  में काम करके अपने परिवार में अपनी पत्नी व् बेटे का पालन करते-करते, विगत कुछ महीनों से बहुत थक चुका है. शरीर से बहुत कमजोर भी हो गया है , आखिर उम्र भी पचपन-छप्पन के लगभग जो हो गई.  अब तो कभी-कभी खाना ही नही खा पाता. पहले कई वर्षों तक रामदीन का मालिक उसके परिवार तक उसकी पगार पंहुचा दिया करता था. अब रामदीन का बेटा बड़ा हो गया है, कमाने भी लगा है अपने ही गाँव में. कुछ महीनों से उसकी पगार लेने भी आता जाता…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on August 20, 2014 at 1:12am — 42 Comments

अवसरवादी....(लघुकथा)

देखो ! न.. बेचारा नरेश बड़े शहर में नौकरी कर, अपनी पत्नि व् छोटे से बेटे के साथ-साथ गाँव में अपनी बूढी विधवा माँ और दो कुवांरे निकम्मे भाइयों का भी पालन करता रहा. उसने कई बार अपने दोनों भाइयो को काम-धंधे से लगवाया, किन्तु दोनों की मक्कारी और माँ के लाड़-प्यार  ने उन्हें हमेशा से कामचोर भी बना रखा था.

हाँ भाई ! अभी पिछले माह ही तो सड़क दुर्घटना में नरेश की मौत हुई थी और देखो तो बेचारे  नरेश की विधवा पत्नी और बेटे को घर से बाहर निकाल दिया, दोनों हरामी भाइयों ने. कम से कम ,माँ को तो…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on August 11, 2014 at 1:59am — 12 Comments

नव-निर्माण..(लघुकथा)

सुरेश रात-दिन कितनी भी शरीर-तोड़ मेहनत कर ले, अपनी पत्नि रजनी और दोनों बच्चों के खर्च के साथ-साथ मोबाईल, मोटर-साइकिल,मकान का किराया सब कुछ वहन नहीं कर सकता. अब पेट काटकर धीरे-धीरे अपना घर बनाना शुरू तो कर दिया पर कभी सीमेंट ख़त्म, तो कभी लोहा.

लेकिन.. जब से सुरेश से कहीं ज्यादा कमाने वाले मित्र, अशोक का उसके यहाँ आना-जाना शुरू हुआ है, तब से घर का काम दिन दोगुना -रात चौगुना चल रहा है. आजकल तो सुरेश अपने घर के बंद दरवाजे के बाहर अशोक के जूतों को देख, अपने नए बन रहे घर कि ओर चला…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on August 3, 2014 at 12:30pm — 30 Comments

पहचान...(लघुकथा)

बचपन से देवेश को एक तिरष्कार, जो कभी मोहल्ले के दूसरे बच्चों या उनके पालकों द्वारा झिड़की भरे अंदाज से मिलता रहा था. इस वजह से देवेश का बचपन हमेशा एक डर और निरंतर टूटे  हुए आत्मबल में गुजरा. इन्ही मापदंडों के अनुसार अपनी पहचान को तरसते, आज वो बड़ा हो चुका है. निकला है एक सामजिक कार्यक्रम में शामिल होने को, अपनी एक पहचान और बहुत सारा आत्मबल लेकर.... भीड़ में जो उसे पहचानते है वो लोग उसे अनदेखा कर रहे थे . और जो उसे नही पहचानते , वो लोग जानने की कोशिश में लगे हुए है.....

“अरे..!…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on July 29, 2014 at 11:16am — 24 Comments

कर्तव्य...(लघुकथा)

“ अरे! बेटा..तैयार हो रहे हो. अगर बाहर तक  जा रहे हो तो अपने पिता कि दवाई ले आओ, कल कि ख़त्म हुई है”

“ अरे! यार मम्मी!!   मैं जब भी बाहर निकलता हूँ , आप टोंक देती हो. आपको  पता है न, हमारी पूरी एन.जी.ओ. की टीम पिछले हफ्ते से गरीब और असहाय लोगों कि सहायता के लिए गाँव-गाँव घूम रही है. शायद ! आप जानती  नही हो, अभी  मेरी  सबसे बढ़िया प्रोग्रेस  है पूरी टीम में ”

 

        

जितेन्द्र ‘गीत’

 (मौलिक व् अप्रकाशित)    

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on July 26, 2014 at 1:30pm — 26 Comments

व्यवस्था...(लघु-कथा)

" अरे..! आओ बेटा रजनी, और सुनाओ कैसी  हो..? . बड़े दिनों बाद आना हुआ..  अरे हाँ तुमने अपने बेटे , बिट्टू को नही लाई. वो वहां तुम्हारे बिन रोयेगा तो.." राधेश्याम जी ने अखबार के पन्नो की घड़ी करते हुए कहा

" प्रणाम चाचाजी....सब कुछ कुशल है..    बिट्टू  तो बहुत परेशान करने लगा था , दिन भर मम्मी मम्मी ..!! .  मैंने उसे टेलीविजन का ऐसा शौक लगाया है की, उसे मेरी बिलकुल भी जरुरत नहीं. शाम तक आराम से जाउंगी.."   रजनी ने बड़ी चैन की सांस लेते हुए…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on July 16, 2014 at 8:26pm — 20 Comments

दस्तख़त...(लघु-कथा)

“बेटा..! ऐसा मत कर, फेंक दे ये ज़हर की बोतल I ले हमने जमीन के कागज़ पर दस्तख़त कर दिए हैं. जा, अब मर्ज़ी इसे बेच या रख। बस अपनी पत्नी और बच्चों के साथ ख़ुशी से रह । हमारा क्या है बेटा, हम कुछ दिन के मेहमान हैं,जी लेंगे जैसे-तैसे...” माँ रुंधे हुए गले से कहा.

सभी निगाहें बेटे पर केंद्रित थीं जो जहर की बोतल को आँगन में ही फेंक दस्तखत किये हुए कागजों को  समेटने में व्यस्त था. लेकिन उसी बोतल को उठाकर अपनी कोठरी में ले जाते बापू पर किसी की भी नज़र नही पडी थी.

   …

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on July 11, 2014 at 11:30am — 30 Comments

हाँ..! कुछ तो बाकी है (अतुकांत)

आज कुछ....

आहट सी हुई, उस बंद

वीरान अन्धेरें से कोने में

जहाँ कभी

खुशियों की रौशनी थी

क्यों..?

आज उस बेजान लगने वाली

बंजर भूमि में

नमी सी आ गई

और दिखने लगा

एक आशा का अंकुरण

उस अंकुर में

जो कभी

हमने मिल कर

बोया था

हमारे वर्तमान और भविष्य

की छाँव

और फल के लिए

हाँ..! कुछ तो बाकी है

जो अमिट रहा

शायद....!

यही  तो रिश्ता होता…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on July 2, 2014 at 2:05am — 10 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service