2122 2122 212
*********************
बस गया है लाल बाहर क्या करे
हो गया है खेत बंजर क्या करे
***
एक बूढ़ी माँ अकेली रह गई
काटने को दौड़ता घर क्या करे
***
चाँद लौटेगा नहीं अब, है पता
रात भर रोकर भी अम्बर क्या करे
***
ठोकरें खाना खिलाना भाग्य में
राह का टूटा वो पत्थर क्या करे
***
रीत तो थी, जिंदगी भर साथ की
दे गया धोखा जो सहचर क्या करे
***
हाथ आयी करवटों की बेबसी
मखमली…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2015 at 11:26am — 14 Comments
2122 1221 2212
************************
चाँद आशिक तो सूरज दीवाना हुआ
कम मगर क्यों खुशी का खजाना हुआ
****
बोलने जब लगी रात खामोशियाँ
अश्क अम्बर को मुश्किल बहाना हुआ
****
मिल भॅवर से स्वयं किश्तियाँ तोड़ दी
बीच मझधार में यूँ नहाना हुआ
****
जब पिघलने लगे ठूँठ बरसात में
घाव अपना भी ताजा पुराना हुआ
****
देख खुशियाँ किसी की न आँसू बहे
दर्द अपना भी शायद सयाना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2015 at 12:30pm — 23 Comments
2122 2122 2122 212
************************
अजनवी सी सभ्यता के बीज बोकर रह गए
सोचकर अपना, किसी का बोझ ढोकर रह गए
***
वक्त सोने के जगा करते हैं देखो यार हम
जागने के वक्त लेकिन रोज सोकर रह गए
***
लोरियाँ माँ की, कहानी नानियों की, साथ ही
चाँद तारे , फूल, तितली लफ़्ज होकर रह गए
***
कसमसाकर दिल जो खोले है पुरानी पोटली
याद कर बचपन को यारो नैन रोकर रह गए
***
मानता हूँ , है हसोड़ों की जरूरत, दुख मगर
आज नायक भी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2015 at 11:11am — 18 Comments
2122 2122 2122 212
******************************
चाँद देता है दिलासा कह पुरानी उक्तियाँ
पतझड़ों में गीत उम्मीदों के गाती पत्तियाँ /1/
कह रही हैं एक दिन जब गुल खिलेंगे बाग में
फिर उदासी से निकल बाहर हॅसेंगी बस्तियाँ /2/
स्वप्न बैठेंगे यहीं फिर गुनगुनी सी धूप में
बीच रिश्तों के रहेंगी तब न ऐसी सर्दियाँ /3/
सिर रखेगा फिर से यारो सूने दामन में कोई
आँख का आँसू हॅसेगा छोड़ कर फिर सिसकियाँ /4/
डस रहा है …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 24, 2014 at 11:05am — 18 Comments
2122 2122 2122
************************
जिंदगी का नाम चलना, चल मुसाफिर
जैसे नदिया चल रही अविरल मुसाफिर /1
***
दे न पायें शूल पथ के अश्रु तुझको
जब है चलना, मुस्कुराकर चल मुसाफिर /2
**
फिक्र मत कर खोज लेंगे पाँव खुद ही
हर कठिन होते सफर का हल मुसाफिर /3
**
मानता हूँ आचरण हो यूँ सरल पर
राह में मुश्किल खड़ी तो, छल मुसाफिर /4
**
रात का आँचल जो फैला है गगन तक
इस तमस में दीप बनकर जल मुसाफिर /5
**
है …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 26, 2014 at 12:30pm — 12 Comments
2122 2122 2122 212
*******************************
प्यार को साधो अगर तो जिंदगी हो जाएगी
गर रखो बैशाखियों सा बेबसी हो जाएगी /1
***
बात कड़वी प्यार से कह दोस्ती हो जाएगी
तल्ख लहजे से कहेगा दुश्मनी हो जाएगी /2
***
फिर घटा छाने लगी है दूर नभ में इसलिए
सूखती हर डाल यारो फिर हरी हो जाएगी /3
***
मौत तय है तो न डर, लड़, हर मुसीबत से मनुज
भागना तो इक तरह से खुदकुशी हो जाएगी /4
***
मन मिले तो पास में सब, हैं दरारें कुछ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 20, 2014 at 11:05am — 17 Comments
2122 2122 2122 212
*********************************
दिल हमारा तो नहीं था आशियाने के लिए
फिर कहाँ से आ गये दुख घर बसाने के लिए
***
हम ने सोचा था कि होंगी महफिलों में रंगतें
पर मिली वो ही उदासी जी दुखाने के लिए
***
था सुना हमने बुजुर्गो से कि कातिल नफरतें
प्यार भी जरिया बना पर खूँ बहाने के लिए
***
जब सभल जाएगा तुझको पीर देगा अनगिनत
हो रहा बेचैन तू भी किस जमाने के लिए
***
जब बहाने थे नये तो दिल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2014 at 10:48am — 14 Comments
2122 2122 2122 2122
****
हौसला देते न जो ये पाँव के छाले सफर में
हर सफर घबरा के यारो, छोड़ आते हम अधर में
****
एक भटकन है जो सबको, न्योत लाती है यहाँ तक
कौन आता है स्वयं ही, यार दुख के इस नगर में
****
एक वो है पालती जो, काजलों के साथ आँसू
कौन रख पाता भला अब, सौतने दो एक घर में
****
आशिकी की इंतहाँ ये, खुदकुशी का शौक मत कह
हॅसते-हॅसते डाल दी जो किश्तियाँ उसने भवर में
****
खो गया चंचलपना सब,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 8, 2014 at 12:00pm — 8 Comments
1222 1222 1222 1222
******************************
रहे अरमाँ अधूरे जो, लगे मन को सताने फिर
चला है चाँद दरिया में हटा घूँघट नहाने फिर /1/
***
नसीहत सब को दें चाहे बताकर दिन पुराने फिर
नजारा छुप के पर्दे में मगर लेंगे सयाने फिर /2/
***
उन्हें मौका मिला है तो, करेंगे हसरतें पूरी
सितारे नीर भरने के गढे़ंगे कुछ बहाने फिर /3/
***
छुपा सकता नहीं कुछ भी खुदा से जब करम अपने
रखूँ मैं किस से पर्दा तब बता तू ही…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 7, 2014 at 10:30am — 8 Comments
2222 2222 2222 222
*******************************
रिश्ते उधड़े खुद ही सिलना सच कहता हूँ यारो मैं
औरों को मत रोते दिखना सच कहता हूँ यारो मैं
***
अपना हो या बेगाना हो सुख में ही अपना होता
जब भी मिलना हॅसके मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
***
चाहे भाये कुछ पल लेकिन आगे चलकर दुख देगा
उम्मीदों से जादा मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
***
दुख से सुख का सुख से दुख का मौसम जैसा नाता है
हर मौसम को अपना कहना सच कहता हूँ यारो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 3, 2014 at 12:00pm — 13 Comments
2122 2122 2122
*************************
सिंधु मथते कर पड़ा छाला हमारे
हाथ आया विष भरा प्याला हमारे
***
धूर्तता अपनी छिपाने के लिए क्यों
देवताओं दोष मढ़ डाला हमारे
***
भाग्य सुख को ले चला जाने कहाँ फिर
डाल कर यूँ द्वार पर ताला हमारे
***
हर तरफ फैले हुए हैं दुख के बंजर
खेत सुख के पड़ गया पाला हमारे
***
राह देखी सूर्य की भर रात हमने
इसलिए तन पर लगा काला…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2014 at 11:14am — 10 Comments
2122 1221 2212
************************
नीर पनघट से भरना, बहाना गया
चाहतों का वो दिलकश जमाना गया
***
दूरियाँ तो पटी यार तकनीक से
पर अदाओं से उसका लुभाना गया
***
पेड़ आँगन से जब दूर होते गये
सावनों का वो मौसम सुहाना गया
***
आ गये क्यों लटों को बिखेरे हुए
आँसुओं का हमारे ठिकाना गया
***
नाम उससे हमारा गली गाँव में
साथ जिसके हमारा जमाना गया
***
गंद शहरी जो गिरने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2014 at 10:00am — 25 Comments
2222 2222 2222 222
*******************************
देता है आवाजें रूक-रूक क्यों मेरी खामोशी को
थोड़ा तो मौका दे मुझको गम से हम आगोशी को
***
कब मागे मयखाने साकी अधरों ने उपहारों में
नयनों के दो प्याले काफी जीवन भर मदहोशी को
***
देखेगी तो कर देगी फिर बदनामी वो तारों तक
अपना आँचल रख दे मुख पर दुनियाँ से रूपोशी को
***
बेगानों की महफिल में तो चुप रहना मजबूरी थी
अपनों की महफिल में कैसे अपना लूँ बेहोशी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 20, 2014 at 11:21am — 24 Comments
1222 1222 1222 1222
*********************************
जहन की हर उदासी से उबरते तो सही पहले
जरा तुम नेह के पथ से गुजरते तो सहीे पहले
**
हमारी चाहतों की माप लेते खुद ही गहराई
जिगर की खोह में थोड़ा उतरते तो सही पहले
**
ये मिट्टी भी हमारी ही महक देती खलाओं तक
हमारे नाम पर थोड़ा सॅवरते तो सही पहले
**
तुम्हें भी धूप सूरज की बहुत मिलती दुआओं सी
घरों से आँगनों में तुम उतरते तो सही पहले
**
गलत फहमी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2014 at 9:30am — 18 Comments
2122 2122 212
**********************
जन्म से ही यार जो बेशर्म है
पाप क्या उसके लिए, क्या धर्म है
**
छेड़ मत तू बात किस्मत की यहाँ
साथ मेरे शेष अब तो कर्म है
**
बोलने से कौन करता है मना
सोच पर ये शब्द का क्या मर्म है
**
चाँद आये तो बिछाऊँ मैं उसे
एक चादर आँसुओं की नर्म है
**
शीत का मौसम सुना है आ गया
पर चमन की ये हवा क्यों गर्म है
**
( रचना - 30 जुलाई 2014 )
मौलिक…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 11, 2014 at 11:00am — 15 Comments
2122 2122 212
**
मयकदे को अब शिवाले बिक गये
रहजनों के हाथ ताले बिक गये
**
घर जलाना भी हमारा व्यर्थ अब
रात के हाथों उजाले बिक गये
**
जो खबर थी अनछपी ही रह गयी
चुटकले बनकर मशाले बिक गये
**
न्याय फिर बैसाखियों पर आ गया
जांच के जब यार आले बिक गये
**
दुश्मनों की अब जरूरत क्या रही
दोस्ती के फिर से पाले बिक गये
**
सोचते थे नींव जिनको गाँव की
वो शहर में बनके माले बिक गये
**
मौलिक और…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2014 at 10:39am — 15 Comments
2122 2122 2122 212
*******************************
एक सरकस सी हमारी आज संसद हो गयी
लोक हित की इक नदी जम आज हिमनद हो गयी
**
जुगनुओं से खो गये लीडर न जाने फिर कहाँ
मसखरों की आज इसमें खूब आमद हो गयी
**
‘रेप’ को जोकर सरीखों ने कहा जब बचपना
जुल्म की जननी खुशी से और गदगद हो गयी
**
दे रहे ऐसे बयाँ, जो जुल्म की तारीफ है
क्योंकि सुर्खी लीडरों का आज मकसद हो गयी
**
जुल्म की सरहद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 3, 2014 at 9:00am — 26 Comments
1222 1222 1222 1222
**********************************
दुखों से दोस्ती रख कर सुखों के घर बचाने हैं
मुझे अपनी खुशी के रास्ते खुद ही बनाने हैं
**
परिंदों को पता तो है मगर मजबूर हैं वो भी
नजर तूफान की कातिल नजर में आशियाने हैं
**
पलों की कर खताएँ कुछ मिटाना मत जमाने तू
किसी का प्यार पाने में यहाँ लगते जमाने हैं
**
न जाने कौन सी दुनिया बसाकर आज हम बैठे
गलत मन के इरादे हैं गलत तन के निशाने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 27, 2014 at 9:43am — 10 Comments
2122 2122 2122
**************************
घाट सौ-सौ हैं दिखाए तिश्नगी ने
कौन छोड़ा इस हवस के आदमी ने
**
करके वादा रोशनी का हमसे यारो
रोज लूटा है हमें तो चाँदनी ने
**
राह बिकते मुल्क के सब रहनुमा अब
क्या किया ये खादियों की सादगी ने
**
रात जैसे इक समंदर तम भरा हो
पार जिसको नित किया आवारगी ने
**
झूठ को जीवन दिया है इसतरह कुछ
यार मेरे सत्य को अपना ठगी ने
**
पास आना था हमें यूँ भी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 21, 2014 at 7:46pm — 10 Comments
2122 2122 2122 2122
********************************
चल पड़ी नूतन हवा जब से शहर की ओर यारो
गाँव के आँगन उदासी, भर रही हर भोर यारो
**
अब बुढ़ापा द्वार पर हर घर के बैठा है अकेला
खो गया है आँगनों से बचपनों का शोर यारो
**
ढूँढते तो हैं शिरा हम, गाँव जाती राह का नित
पर यहाँ जंजाल ऐसा मिल न पाता छोर यारो
**
हो गये कमजोर रिश्ते, अब दिलों के धन की खातिर
मंद झोंके भी चलें तो टूटती हर डोर …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 15, 2014 at 11:08am — 11 Comments
2025
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |