सृष्टि की महत्त्वपूर्ण रचना है नारी । यदि नारी नहीं होती तो आज हम इस सम्पूर्ण सृष्टि की कल्पना करने में भी असमर्थ होते । इस सृष्टि के विकास में नारी का महत्त्वपूर्ण योगदान है । वह मानव जीवन की संचालिका और मूलाधार है । मानव-जीवन उसके अनेक रूपों और उत्तरदायित्वों से भरा पड़ा है । वह माँ है, बहिन है, पत्नी है, प्रेयसी है, पुत्री है और कहीं-कहीं प्रेरणास्त्रोत भी है । यदि नारी अपने प्रेम और सौन्दर्य से मानव-जीवन को…
ContinueAdded by Savitri Rathore on March 8, 2013 at 5:30pm — 8 Comments
सुंदर छवि पा,
नयन भर आंसू , नारी क्यों रोती है ?
मधुपों की प्रियतमा,
जग में जो अनुपमा,
शशि की किरणों की बाँहें थाम
कमलिनी निशा में खिलती है –
सुंदर छवि पा,
नयन भर आंसू , नारी क्यों रोती है ?
सागर की उत्ताल तरंगें,
चट्टानों से टकराती लहरें,
होती हैं क्यों छिन्न-भिन्न !
क्या है यह नज़रों का भ्रम
क्षितिज की मृगतृष्णा लिये,
धरा गगन को छूती है –
सुंदर छवि पा,
नयन भर आंसू ,…
ContinueAdded by coontee mukerji on March 8, 2013 at 12:51am — 9 Comments
आज दि. 03/ 03/ 2013 को इलाहाबाद के प्रतिष्ठित हिन्दुस्तान अकादमी में फिराक़ गोरखपुरी की पुण्यतिथि के अवसर पर गुफ़्तग़ू के तत्त्वाधान में एक मुशायरा आयोजित हुआ. शायरों को फिराक़ साहब की एक ग़ज़ल का मिसरा --तुझे ऐ ज़िन्दग़ी हम दूर से पहचान लेते हैं-- तरह के तौर पर दिया गया था जिस पर ग़ज़ल कहनी थी. इस आयोजन में मेरी प्रस्तुति -
********
दिखा कर फ़ाइलों के आँकड़े अनुदान लेते हैं ।
वही पर्यावरण के नाम फिर सम्मान लेते हैं ॥
निग़ाहें भेड़ियों के दाँत सी लोहू*…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on March 3, 2013 at 8:00pm — 65 Comments
अखिल भारतीय साहित्यकला मंच
द्वारा
काठमाण्डु (नैपाल) में आयोजित
(अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समारोह - 8 जून 2013 से 11 जून, 2013 तक) …
Added by asha pandey ojha on March 5, 2013 at 1:30pm — 53 Comments
मैं प्रेम हूँ
तुम भी तो प्रेम ही हो
प्रेम से हट कर
क्या नाम दूँ
तुम्हें भी और मुझे भी ...
कितनी सदियों से
और जन्मो से भी
हम साथ है
जुड़े हुए एक-दूसरे के
प्रेम में
हर जन्म में तुमसे
मिलना हुआ
लेकिन मिल के भी मेल
ना हो सका
प्रेम फिर भी रहा
तुम में और मुझ में भी
चलते जा रहें है
समानांतर रेखाओं की तरह
साथ हो कर भी साथ…
ContinueAdded by upasna siag on February 28, 2013 at 3:30pm — 17 Comments
साथियों बड़े हर्ष के साथ सूचित करना है कि ओ बी ओ सदस्य डॉ सूर्या बाली "सूरज" को विगत दिनों होटल ताज नई दिल्ली में भारत के उप राष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी द्वारा पुरुस्कृत किया गया | यह पुरस्कार डॉ बाली की एक डाक्टर के तौर पर की गयी सामाजिक सेवाओं के लिए है जिसे आप…
ContinueAdded by Admin on February 25, 2013 at 4:30pm — 27 Comments
आँख जैसे लगी, ख़ाक घर हो गया
जुल्म का प्रेत कितना निडर हो गया ।
कुछ दरिन्दों ने ऐसी मचाई गदर
खौफ की जद में मेरा नगर हो गया ।
थी किसी की दुकाँ या किसी का महल
चन्द लम्हों में जो खण्डहर हो गया ।
है नजर में महज खून ही खून बस
आज श्मसान 'दिलसुखनगर' हो गया ।
थी ख़बर साजिशों की मगर, बेखबर !
ये रवैया बड़ा अब लचर हो गया ।
कौन सहलाये बच्चे का सर तब 'सलिल'
जब भरोसा बड़ा मुख़्तसर हो गया ।
------ आशीष 'सलिल'…
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 22, 2013 at 10:00pm — 24 Comments
मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
हृदयाश्रुओं का अर्घ्य दे
हर भाव को सामर्थ्य दे
विह्वल हृदय में गूँजती
मृदुनाद सी सुरधीत है....
मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
सूर्यास्त नें चूमा उदय
दे हस्त…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on February 15, 2013 at 8:00pm — 35 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 13, 2013 at 8:35am — 24 Comments
त्रिभंगी सलिला:
ऋतुराज मनोहर...
संजीव 'सलिल'
*
ऋतुराज मनोहर, प्रीत धरोहर, प्रकृति हँसी, बहु पुष्प खिले.
पंछी मिल झूमे, नभ को चूमे, कलरव कर भुज भेंट मिले..
लहरों से लहरें, मिलकर सिहरें, बिसरा शिकवे भुला गिले.
पंकज लख भँवरे, सजकर सँवरे, संयम के दृढ़ किले हिले..
*
ऋतुराज मनोहर, स्नेह सरोवर, कुसुम कली मकरंदमयी.
बौराये बौरा, निरखें गौरा, सर्प-सर्पिणी, प्रीत नयी..
सुरसरि सम पावन, जन मन भावन, बासंती नव कथा जयी.
दस दिशा तरंगित, भू-नभ…
Added by sanjiv verma 'salil' on February 12, 2013 at 8:30pm — 12 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 5, 2013 at 4:30pm — 23 Comments
शब्द,
तेरी गंध
बड़ी सोंधी है
तेरी देह,
बड़ी मोहक है
अपनी उपत्यका में
एक मूरत गढ़ने दोगे ?
देखो न,
तेरे ही आंचल का
वह विस्मित फूल
मोह रहा है मुझे
और मेरे बालों में
अंगुली फिराती
बदन पर हाथ फेरती
मुझे सिहराती
सजाती, सींचती
वो तुम्हारी लाजवंती की साख
जब
चांद के दर्पण में
कैद
मेरी प्रतिच्छाया को
आलिंगन में भींच लेती है,
और मैं…
Added by राजेश 'मृदु' on January 23, 2013 at 12:00pm — 14 Comments
मित्रों, कई दिन के बाद एक ग़ज़ल के चंद अशआर हो सके हैं, आपकी मुहब्बतों के नाम पेश कर रहा हूँ
वो हर कश-म-कश से बचा चाहती है |
वो मुझसे है पूछे, वो क्या चाहती है |
यूँ तंग आ चुकी है इन आसानियों से,
हयात अब कोई मसअला चाहती है |…
ContinueAdded by वीनस केसरी on February 5, 2013 at 10:00am — 17 Comments
ई-पत्रिका ओपेन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम (प्रचलित संज्ञा ओबीओ) अपने शैशवाकाल से ही जिस तरह से भाषायी चौधराहट तथा साहित्य के क्षेत्र में अति व्यापक दुर्गुण ’एकांगी मठाधीशी’ के विरुद्ध खड़ी हुई है, इस कारण संयत और संवेदनशील वरिष्ठ साहित्यकारों-साहित्यप्रेमियों, सजग व सतत रचनाकर्मियों तथा समुचित विस्तार के शुभाकांक्षी नव-हस्ताक्षरों को सहज ही आकर्षित करती रही है.
प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराज प्रभाकरजी की निगरानी तथा…
Added by Saurabh Pandey on January 31, 2013 at 8:30pm — 12 Comments
गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत:
लोकतंत्र की वर्ष गांठ पर
संजीव 'सलिल'
*
लोकतंत्र की वर्ष गांठ पर
भारत माता का वंदन...
हम सब माता की संतानें,
नभ पर ध्वज फहराएंगे.
कोटि-कोटि कंठों से मिलकर
'जन गण मन' गुन्जायेंगे.
'झंडा ऊंचा रहे हमारा',
'वन्दे मातरम' गायेंगे.
वीर शहीदों के माथे पर
शोभित हो अक्षत-चन्दन...
नेता नहीं, नागरिक बनकर
करें देश का नव निर्माण.
लगन-परिश्रम, त्याग-समर्पण,…
Added by sanjiv verma 'salil' on January 26, 2013 at 8:00am — 12 Comments
स्वागत गणतंत्र
प्रो. सरन घई, संस्थापक, विश्व हिंदी संस्थान
स्वागतम सुमधुर नवल प्रभात,
स्वागतम नव गणतंत्र की भोर,
स्वागतम प्रथम भास्कर रश्मि,
स्वागतम पुन:, स्वागतम और।
जगा है अब मन में विश्वास,
कि सपने पूरे होंगे सकल,
कुहुक कुहुकेगी कोयल कूक,
खिलेगा उपवन का हर पोर।
युवा होती जायेगी विजय,
सुगढ़ होता जायेगा तंत्र,
फैलती जायेगी मुस्कान,
विहंसता जायेगा…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on January 25, 2013 at 8:52am — 8 Comments
मकर संक्रान्ति का पर्व हिन्दुओं के अन्यान्य बहुसंख्य पर्वों की तरह चंद्र-कला पर निर्भर न हो कर सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है. इस विशेष दिवस को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं.
पृथ्वी की धुरी विशेष कोण पर नत है जिस पर यह घुर्णन करती है. इस गति तथा पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर वलयाकार कक्ष में की जा रही परिक्रमा की गति के कारण सूर्य का मकर राशि में प्रवेश-काल बदलता रहता है. इसे ठीक रखने के प्रयोजन से प्रत्येक…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on January 14, 2013 at 4:00am — 45 Comments
रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर जो पार करा दे l
निश्छल प्रण से, शून्य स्मरण से
मूरत गढ़ना मृदु सिंचन से,
भाव महक हो चन्दन चन्दन
जो सोया चैतन्य जगा दे l
रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on January 6, 2013 at 11:00am — 59 Comments
ईश की अनुपम कृति मानव
और उसकी जननी तुम
फिर क्यों हो प्रताड़ित , अपमानित
पराधीन, मूक , गुमसुम ?
खुश होना तो कोई पाप नहीं
मुस्कुराने की इच्छा स्वार्थ नहीं!
नए विचारों की उड़ान भरो
शिक्षा का स्वागत करो !
जीवन न जाय व्यर्थ यूँ ही...
सदियों के बंधन से मुक्ति चाहिए ?
विद्रोह तो होगा, न घबराओ
निर्भय बनो, मानसिक सबलता लाओ !
रात बहुत गहरी हो चुकी
भोर का संदेसा दे चुकी !
मुस्कुराओ, पंख फैलाओ
उड़ने को तैयार हो जाओ
क्योंकि
इस आसमान पर…
Added by Anwesha Anjushree on January 7, 2013 at 6:00pm — 5 Comments
भोर के पंछी
तुम ...
रहस्यमय भोर के निर्दोष पंछी
तुमसे उदित होता था मेरा आकाश,
सपने तुम्हारे चले आते थे निसंकोच,
खोल देते थे पल में मेरे मन के कपाट
और मैं ...
मैं तुम्हें सोचते-सोचते, बच्चों-सी,
नींदों में मुस्करा देती थी,
तुम्हें पा लेती थी।
पर सुनो!
सुन सकते हो क्या ... ?
मैं अब
तुम्हें पा नहीं सकती थी,
एक ही रास्ता…
Added by vijay nikore on January 2, 2013 at 2:30pm — 28 Comments
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