,,,,,,,,,ख़ुदा जानॆं ,,,,,,,,
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क्या था कल क्या आज है, ख़ुदा जाने !!
छुपा दिल मॆं क्या राज़ है, ख़ुदा जाने…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 6, 2012 at 6:00pm — 3 Comments
मंदार माला सवैया :-
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राजा वही जॊ प्रजा कॊ दुखी दीन, संताप हॊनॆ न दॆता कभी !!
बाजी लगा दॆ सदा जान की आन,ईमान खॊनॆ न दॆता कभी !!
आनॆ लगॆं आँधियाँ राज मॆं आँख,आँसू भिगॊनॆ न दॆता कभी…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 5, 2012 at 12:00pm — 12 Comments
मत्तगयंद सवैया :-
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आज हुयॆ मतदान सभी चुनि, बैठ गयॆ चढ़ि आसन चॊटी,
भारत कॆ यह राज-मणी सब, फ़ॆंक रहॆ अब खॊटम खॊटी,
नागिन सी फ़ुँफ़कार भरॆं सब, छीनत हैं जनता कइ रॊटी,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 5, 2012 at 10:00am — 10 Comments
महाभुजंगप्रयात सवैया :-
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नहीं रास आईं वफ़ायॆं किसीकॊ, अनॆकॊं चलॆ हैं उसी राह राही !!
किनारॆ खड़ॆ दॆखतॆ हैं तमाशा,हमारी वफ़ा का सिला यॆ तबाही !!
पुकारा कई बार था नाम लॆकॆ,खुदाकी…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 4, 2012 at 2:00pm — 4 Comments
तीन दुर्मिल सवैया छंद :-
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(1)
चित चॊर चकॊर मरॊर दई, झकझॊर दई पँसुरी पँसुरी,
कस माखनचॊर गही बहियां, चटकाइ दई अँगुरी अँगुरी,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 2, 2012 at 1:30pm — 14 Comments
आगॆ बढ़ कॆ बता,,,,
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हिम्मत है तॊ आगॆ बढ़ कॆ बता ॥
बिहार वाली ट्रॆन मॆं चढ़ कॆ बता ॥१॥
बिना टिकट गांव चला जायॆगा,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 23, 2012 at 1:30pm — 28 Comments
इतनी रात गयॆ,,,
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इतनी रात गयॆ सपनॊं की नगरी मॆं, एकांकी आना ठीक नहीं ॥
आयॆ हॊ तॊ ठहरॊ रात गुज़रनॆ दॊ, अब वापस जाना ठीक नहीं ॥
मिलना चाहा तुमसॆ पर,आस अधूरी रही…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 22, 2012 at 6:30pm — 12 Comments
दिल कितनॆ करीनॆ सॆ रखतॆ हैं,,,
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ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on March 13, 2012 at 6:30pm — 16 Comments
साहिल पॆ जिसनॆ मुझकॊ,,,,,,,
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आँचल हया का सर सॆ सरकनॆ नहीं दिया ॥
चॆहरॆ पॆ दिल का ग़म भी झलकनॆ नहीं दिया ॥
तॆबर अना कॆ, उनकॆ, कभी ख़म नहीं हुयॆ,…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on March 11, 2012 at 1:42am — 15 Comments
मॆरी बात तॊ समझॊ,,,,,,,,,
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उछलॊ मत यार ज़रा,हालात तॊ समझॊ ॥
मैं कह रहा हूं कि, मॆरी बात तॊ समझॊ ॥१॥…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 6, 2012 at 10:00pm — 3 Comments
वक्त,,,,
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किसी किसी कॊ भला खासा, बना दॆता है वक्त ॥
किसी की ज़िंदगी का तमाशा,बना दॆता है वक्त ॥१॥
कभी चुल्लू भर पानी सॆ, भर दॆता है समंदर कई,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 5, 2012 at 11:30am — 4 Comments
बात करियॆ,,,,
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साफ़गॊई सॆ आप यूं, सब सॆ बात करियॆ ॥
जिस सॆ भी करियॆ, अदब सॆ बात करियॆ ॥१॥
बॆ-वज़ह बात करना, भी मुनासिब नहीं,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 3, 2012 at 7:30pm — 9 Comments
ज़िन्दगी कॆ रंग,,,,,,,,
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ज़िंदगी कॆ रंग पिचकारी,सॆ सब छूट गयॆ ॥
कैसॆ बतायॆं हम लाचारी, सॆ सब छूट गयॆ ॥१॥
घर, कुआं, खॆत,बगीचा,सब हमारॆ भी…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on January 30, 2012 at 1:59am — 1 Comment
बहती गंगा मॆं,,,,,
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स्वार्थ की चादर, तानकर सॊयॆ हैं सब ॥
न जानॆ कौन सॆ, भ्रम मॆं खॊयॆ हैं सब ॥१॥
समय किसी का, उधार रखता नहीं है,…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on January 25, 2012 at 9:23pm — 1 Comment
इशारॊं-इशारॊं सॆ
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इशारॊं-इशारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥
आज सितारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥१॥
गुलॊं सॆ मॊहब्बत, है हर एक कॊ,
क्यूं न ख़ारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥२॥
यह हवॆली महफ़ूज़, है या कि नहीं,
इन पहरॆदारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥३॥
रॊटी की कीमत, समझ मॆं आ जायॆ,
जॊ बॆरॊजगारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥४॥
उस की आबरू, नीलाम हॊगी कैसॆ,
चलॊ पत्रकारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥५॥
किसकी सिसकियां, हैं उन खॆतॊं मॆं,
"राज"जमींदारॊं…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 24, 2012 at 3:13pm — 4 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 19, 2012 at 11:09am — 3 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 18, 2012 at 2:52am — 2 Comments
रिश्तॆ,,,,,, -----------------
दूर जब सॆ दिलॊं कॆ मॆल हॊ गयॆ ।
रिश्तॆ जैसॆ राई का तॆल हॊ गयॆ ॥१॥
जिननॆ दी रिश्वत नौकरी मिली,
डिग्रियां लॆ खड़ॆ थॆ फ़ॆल हॊ गयॆ ॥२॥
इरादॆ बहुत नॆक मगर क्या करॆं,
मंहगाई मॆं दब कॆ गुलॆल हॊ गयॆ ॥३॥
बॆमानी भ्रष्टाचार न मरॆंगॆ कभी,
बढ़ रहॆ हैं जैसॆ अमरबॆल हॊ गयॆ ॥४॥
बात की बात मॆं बदल जातॆ लॊग,
वादॆ जैसॆ बच्चॊं, कॆ खॆल हॊ गयॆ ॥५॥
नर और नारी रचॆ थॆ नारायण…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on January 18, 2012 at 2:50am — 3 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 17, 2012 at 7:32pm — 3 Comments
समझ सॆ परॆ हैं हम,,,,,
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यॆ मत सॊच कि इतनॆ गिरॆ हैं हम ॥
फ़क्त तॆरॆ इक वायदॆ पॆ मरॆ हैं हम ॥१॥
हॊशियारी की हरियाली न दिखावॊ,
ऎसॆ तॊ तमाम सारॆ खॆत चरॆ हैं हम ॥२॥
दिल मॆं कैद कर लॆं तुम्हॆं क्यूं कर,
कानूनी अदालत कॆ कटघरॆ हैं हम ॥३॥
हमारी हस्ती कॊ तॊलतॆ हॊ तराजू पॆ,
क्या समझॆ बॆज़ान सॆ बटखरॆ हैं हम ॥४॥
नॆकियॊं का दामन नहीं छॊड़ा कभी,
चाहॆ ला्खॊं मु्सीबत मॆं घिरॆ हैं हम ॥।५॥
शैतान की परवाह नहीं है जी…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on January 16, 2012 at 9:01pm — 3 Comments
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