अपने बारे क्या बताऊँ
मैं गलती का पुतला हूँ
सही-गलत का ज्ञान नहीं
पर, दिल की अपने सुनता हूँ
अपने बारे क्या बताऊँ
मैं गलती का पुतला हूँ||
ऊँच -नीच का भेद नहीं
विश्वासघात ना करता हूँ
सीरत नहीं मैं, भाव देखता
प्रेम सभी से करता हूँ
अपने बारे क्या बताऊँ
मैं गलती का पुतला हूँ||
आस्तिक हूँ मैं धर्म…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 31, 2018 at 12:04pm — 2 Comments
मैं इठलाती,
मैं बलखाती,
मंद चाल से,
बढ़ती हूँ
शरद ऋतु जब,
वर्ष में आये
अपना जाल,
बिछाती हूँ||
कहीं थपेड़े,
पवन दिलाती
कहीं,
बर्फ पिघलाती हूँ
कहीं,
तरसते धूप
को सब जन
कहीं कपकपी,
खूब दिलाती हूँ
वर्षा ऋतू,
के बाद में आयी,
शरद ऋतू,
कहलाती हूँ||
कोई निकाले,
कम्बल अपने,
कोई,
रजाई खोज रहा
कोई जला…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 17, 2018 at 3:00pm — 8 Comments
बुलबुले सी होती जिंदगी
मिट्टी में मिल जानी है
जो भी करना आज ही कर ले
फिर लौट कर ना आनी है||
पंख लगा के अरमानों के
नभ में उड़ान तो भर
निर्भय होके बढ़ता चल
जो भी करना आज ही कर ले
कल की किसने जानी है||
कहीं किसी ने, बात बड़ी
इंतज़ार में तेरे, मौत खड़ी
इच्छा अपनी पूरी कर ले
ये, वक्त देने वाली है
बुलबुले सी होती जिंदगी
मिट्टी में मिल जानी है…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 14, 2018 at 3:30pm — 3 Comments
अवाक् रह गया, देख जाम को
खड़ा खड़ा मैं सोच रहा
जाम से मुक्त, सारे शहर को कर दूँ
ऐसा उपाय कोई खोज रहा ||
बस स्टैंड और प्लेटफॉर्म पर
जीवन, लोगों का बीत रहा
देश के सारे एयरपोर्ट पर
ना, दिन रात का भेद रहा
भगदड़ सी इस जिंदगी में
जैसे, इंसान खो सा गया
खड़ा खड़ा मैं सोच रहा
आश्चर्य से सब देख रहा ||
बस भीड़ से भरी पड़ी
रेलें भी सारी लधी पड़ी
मोटरबाइक की झड़ी लगी
और कार रोड़ पर पार्क…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 11, 2018 at 4:00pm — 3 Comments
हार हार का टूट चुका जब
तुमसे ही आश बाँधी है
मैं नहीं तो तुम सही
समर्थ जीवन की ठानी है||
मजबूर नहीं मगरूर नहीं मैं
मोह माया में चूर नहीं मैं
साथ…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 10, 2018 at 4:30pm — 1 Comment
सुन्दर सुन्दर शब्दों का
संग्रह मैंने तो कर डाला
उपयोग नहीं, प्रयोग न जानू
मैंने पी ली मधुशाला
कविता लिखने के चक्कर में
मैंने क्या क्या कर डाला
लय नहीं तो क्या हुआ
मैंने प्रयास कर डाला
कवि बनने की चाह नहीं
पर कविता लिखना चाहूँ मैं
गीत नहीं संगीत नहीं
पर कविता सुनना चाहूँ…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 19, 2016 at 9:56am — 10 Comments
दाँस्ता- आज के इंसान की
मेरा व्यक्तित्व क्या है बोलो
स्वार्थी चाहे दम्भी बोलो
अहंकारी, कुकर्मी बोलो
जो भी बोलो सोच के बोलो
मेरा व्यक्तित्व क्या है बोलो
स्वार्थसिद्धि की, ताक की में रहता
क्षणभर की ना देरी करता
भिन्न भिन्न अपने वेश बदल के
जन भावना की बातें करता
कौन हूँ मैं, तुम कुछ तो बोलो
जो भी बोलो सोच के बोलो
रोते को, मैं खूब…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 15, 2016 at 9:55am — 2 Comments
मैं स्वछन्द घूमती रहती
जिसको चाहे उसे ले जाती
भनक भी न उसे लगाती
दुखो से मुक्ति झट दे जाती
मृत्यु मैं जो कहलाती
जीवन का दस्तूर बताती
लालसा को परिपूर्ण कराती
बर्बरस्ता को यूँ मिटाती
पूर्ण आनंद का अनुभव कराती
मृत्यु मैं जो कहलाती
खुले क्षितिज में तुम्हे घुमाती
जीवन- मरण का भेद कराती
रिस्तो का तुम्हे बोध करा
सत्यता की दुनिया दिखाती
मृत्यु मैं जो कहलाती
फल बुराई का तुझे दिखाती
अंत समय जब मैं…
Added by PHOOL SINGH on January 8, 2016 at 11:30am — 3 Comments
हमने सुना है कि शिक्षक कि नजर में सभी बच्चे एक सामान होते है लेकिन इस कहानी को पढने के बाद शायद ये बात गलत ही साबित होती नजर आती है l
यह कहानी एक छोटे से गॉव कि है जहाँ एक विधालय में सभी जाति के बच्चे पढ़ते थे और हर एक कक्षा में लगभग ६०-८० बच्चे हुआ करते थे l उसमे रामू और उसके कुछ दोस्त जो निम्न जाति के थे, पढ़ते थे l इसी स्कुल में एक अध्यापक बाबु जो उच्च जाति से सम्बन्ध रखता था सदा निम्न जाति के बच्चो को हीन दृष्टि से देखता था और व्यव्हार से कंजूस व् लालची था l वह स्कूल में कम पढाई…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 11, 2012 at 11:20am — 5 Comments
कर्ण और राम दो मित्र थे l राम एक व्यापारी बन गया लेकिन कर्ण अभी भी बेरोजगार था जिसकी वजह से उसकी घर की हालत ठीक नहीं थी l समय समय पर राम भी अपने मित्र की मदद कर देता था कुछ समय तक ऐसे ही चलता रहा l और एक दिन कर्ण को एक अच्छी नौकरी मिल गई जिस कारण घर में किसी वस्तु की कमी नही रह गई थी और धीरे धीरे धन की समस्या भी समाप्त होने लगी थी l इस कारण अब वह अपनी जिंदगी सही से और शांति की जिन्दगी जी रहा था l व्यापार मैं व्यस्त होने की वजह से राम और कर्ण एक दुसरे से मिल नहीं पाए…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 5, 2012 at 5:01pm — 7 Comments
चारो ओर, खड़े है सैनिक
युद्ध में जीत दिलाने को
शोक करुणा से, अभिभूत है अर्जुन
देख, रक्त सम्बन्धी रिश्तेदारों को
खड़े हुए है अब कृष्णा
उसे शोक से मुक्त कराने को
देहान्तरं की प्रक्रिया कैसी
संक्षेप में ये समझाने को
अजर अमर है जीवात्मा
स्मरण रखना इस ज्ञान को
खड़ा हो जा धनुष उठा
अपना धर्म निभाने को
मरे हुओ को मार डालना
जग में नाम कराने को
अपने पराये से मुहँ मोड़ लो
पाप पुण्य की चिंता…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 3, 2012 at 5:42pm — 3 Comments
सरकार की अपना करो बखान
क्या खूब किया इसने इंसाफ
खाली कर दिया देश खजाना
बचाने को आतंकी मियां “कसाब”
हत्याओं की लगा कतार
फाँसी लटके खुद भी यार
पाप की सजा जो तुमने पाई
पाक की इज्जत खाक मिलाई
आतंकियों का बन शिरोमणि
ताज पर बमो की झड़ी लगाई
बेगुनाहों का मार के यारा
माफ़ी की फिर गुहार लगाई
जख्म भी ऐसे दिए जहाँ को
शैतान भी ले सर झुका
जेल में रह कर भी
पड़ा ना…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 22, 2012 at 11:30am — 6 Comments
आओ मिलकर दीप जलाये
दीप, लड़ियों से घर सजा
हर तरह का तम मिटा
जग को प्रकाश की सौगात दिलाये
आओ मिलकर दीप जलाये
प्रेम की ज्योति जला के हृदय
बैर से मुक्ति, जग दिलाये
उपहार में बाँट के सदभावना
मीठास की ऐसी रीत चलाये
आओ मिलकर दीप जलाये
क्रोध अग्नि को विजित कर
सयंम में खुद नियंत्रित कर
विन्रमता का सबको पाठ पढाये
देश में प्रेम की लहर चलाये
आओ मिलकर दीप…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 10, 2012 at 12:10pm — 4 Comments
दास्ताँ है यें जीव की
वस्त्र ढ़के, मृत शरीर की
वृद्ध होते ही छोड़ चलें
नींव लिखने, नई तकदीर की
प्रीती जाती जब, हृदय जग
दो तनो कर, एक मन
बीज से जाता पराग बन
भू धरा पर ले जन्म
पंचतत्वो का कर संगम
पाया जग में मानव तन
शिशु से किशोर तक
रूप बनाया मन भावन
अटखेलियाँ कर कर के
हर्षित करता सबका मन
शिक्षा का वो कर अध्ययन
ज्ञान से करता जग रोशन
अध्यन का समय हुआ…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 9, 2012 at 5:32pm — 2 Comments
नये जीवन की शुरुआत करें हम
मृत्यु से ना कभी डरे हम
कर्मभूमि बना धरा को
स्थापित प्रमाण अपने करें हम
गीता उपदेश को ध्यान रख
समाहित धर्म कर्म को कर
ज्ञान बीज की उपज करें हम
कर्म को पूजा मान के अपनी
चेतना वृक्ष तैयार करें हम
आओ नए जीवन की शुरुआत करें हम
आसक्त ना हो भौतिक जगत से
अपने अंतर्मन से ध्यान धरे हम
कौन हूँ मैं, कहा से आया
किस मनसा से जग में आया
क्या खोया, और…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 8, 2012 at 10:37am — 5 Comments
विरह की बेला चुप सी आती
कर्मभूमि और गृहस्ती में
होले होले कदम बढाती
सुख समृधि को, मिटा
अंतर्मन में भेद करा
मन की शांति, भंग कर जाती
काल चक्र सा एक रचा
रह रह कर
भ्रम जाल में हमें फंसाती
ढंग बेढंग के करतब करा
इन्सान से हमको,
पशु बनाती
वक़्त की नजाकत को समझ
नट बना, इंसान नचाती
ऐसा अपना रंग दिखाती
जब तक समझ में
आता कुछ भी
तब तक सब कुछ
धुल में सब कुछ ये मिलाती
पल भर में ये नेत्र भिगो
हमारे अस्तिव का बोध कराती
लहर…
Added by PHOOL SINGH on November 5, 2012 at 2:30pm — 1 Comment
वचन दिया जो तुमने प्रीतम
जीवन भर साथ निभाने का
पवित्र अग्नि को साक्षी मान
परिस्तिथियों से ना घबराने का
साथ फेरों का बंधन दे
अपना बनाया मेरा मन
हर ख़ुशी कर, मुझे अर्पण
प्रेम की ज्योति चित जगा
कदम मिलाकर चलूंगी में भी
बन संगनी तेरी हमदम
सूर्योदय से सूर्यास्त तक
तुझे निहारूं
लम्बी उम्र की दुआ मैं मांगूं
नेत्र में तेरा अक्स बना
तुझे मैं चाहूं उम्र भर
हर पल और जीवन…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 3, 2012 at 1:07pm — No Comments
सबका अस्तिव और अहसास
हृदय में जगाता
श्रद्धा, आशा और विश्वास
मीठे स्वर का पान कर
स्वर्ग ले आता भू धरा पर
बिना शर्त के बिना नियम के
संचालित कर हर डगर को
सुब्द्ता से मुक्त कर
मार्ग देता सुगम बना
अंतर्मनो को जोड़ने का
प्रेम करता है प्रयास
मित्र को शत्रु, शत्रु को मित्र
गैर को अपना, अपने को गैर
फूल माला सी डोर बना
राग, द्वेष…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on October 30, 2012 at 3:12pm — 2 Comments
Added by PHOOL SINGH on October 26, 2012 at 3:12pm — 2 Comments
कौन अपने है कौन पराये
बात हमे ये
भ्रमित और झकजोर
क्यूँ जाए
विरह के जब
मेघ मंडराए
एकल बैठ के
हम अश्रु बहाए
वेदना ने
बेहाल किया जब
असहाए तब
स्वयं को पाए
जग की रीत
है बड़ी पुरानी
हर पीड़ित की
यही कहानी
व्यथा दे जब
हमें सताये
समक्ष स्वयं के
कोई न पाए
जीवन देता
सबक सिखायें
सत्य का तब
बोध करायें
अपना…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on September 26, 2012 at 12:07pm — 2 Comments
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