For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Ram shiromani pathak's Blog (143)

कब तलक (नज़्म)

कब तलक लोगों को लूटते जाओगे ,

वो दिन कब आएगा जब पछताओगे !

जिनकी दुआओं से राजा बन बैठे हो ,

उनकी ही नज़र से एक दिन गिर जाओगे !

मंदिर मज़्जिद के नाम पे खूब लूटा ,

एक दिन वहां भी दरवाज़ा बंद पाओगे !

रूह भी छोड़ देगी इस गंदे जिस्म को ,

फिर इस जिस्म को लेकर कहाँ जाओगे!

सिकंदर भी ना ले जा पाया जहाँ से 

खाली हाँथ आये थे खाली हाँथ जाओगे !!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक "

मौलिक व्…

Continue

Added by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 5:03pm — 10 Comments

"रक्षाबंधन"

पावन पर्व
पवित्र धागे संग
प्रेम से भरा

भाई बहन
बाटें प्यार ही प्यार
रक्षाबंधन

रेशमी डोर
भाई की कलाई में
गुँथा है प्यार

कच्चे धागों में
झोली भर खुशियाँ
नेह बौछार

पवित्र रिश्ता
पावन गंगा जल
कभी न टूटे

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

मौलिक व् अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 1:01pm — 19 Comments

आकर्षण

अधरों का कम्पन
पुष्प से कोमल कपोल
मनमोहक मादक अदा
मद मस्त अगड़ाई
गीले बालों का झरना
तिरछी मदभरी पलके
केश रूपी लतिका की
ओट से निहारना
हाय !उनका अनछुआ स्पर्श

अंग अंग से टपकती कामुकता
प्रेम की बहती शीतल बयार
नसों का रुधिर वेग बेकाबू
आलिंगन को मै बेकल 
वातावरण जैसे 
अदभुत जादुई ग्रह हो
पुर्णतः पाषाण शिला सा मैंने
निःशब्द  प्रेम का आह्वान किया

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on August 6, 2013 at 7:00pm — 10 Comments

"स्पंदन "

बेजान कमरे में

टूटी खटिया पे लेटा

करवट लेते हुए

आँखों के पूरे सूनेपन के साथ

कभी कभी खिड़की के

बाहर देखता हूँ

कैसी है दुनियां

क्या वैसी ही है

जैसी पहले हुआ करती थी

दर्द के समंदर में

निस्पंद जड़ सा

सोचता रहा

अपने ही अपने नहीं रहे

ये गुमशुदी का जीवन कब तक

एक चिंता जाती

तो दूसरी उत्पन्न

देखता रहता हूँ

सजीव कंकाल सा

इधर उधर

बस जिंदा हूँ

औपचारिक

राम शिरोमणि…

Continue

Added by ram shiromani pathak on July 28, 2013 at 8:00pm — 16 Comments

दो शब्द (राम शिरोमणि पाठक)

१-सहनशीलता

उत्पीडन की क्रीडा से उत्पन्न श्रान्ति से

पिंग बने टहल रहे

अकारण ही रंज रुपी हरिका खे रहे

मोषक को पोषक कहते

वाह!सहनशीलता की पराकाष्ठा

शायद!

खुद को काकोदर के मुख में फसा

मंडूक मान बैठे है

२-लिखता रहा

हृदयतल के तड़ाग से

अनकहे शब्द

अकुलाहट के साथ

बुलबुले बन

निकलते रहे निकलते रहे

पीड़ा है क्या ? नहीं तो

प्रेम है

विरह है

पता नहीं

फिर भी मै …

Continue

Added by ram shiromani pathak on July 26, 2013 at 8:30pm — 20 Comments

प्रकृति और मानव (दोहा)

घर मकान की आड़ में , बचा नहीं कुछ शेष!

मानव मद में डूबकर,बदल दिया परिवेश !!१

जल थल दूषित हो रहे, मानव फिर क्यों मौन ?

नयन खोल जब सो रहा , इसे जगाये कौन!!३

बूँद बूँद संचय करो, पौधे भी दें रोप!

स्नेह करेगी फिर धरा,झेलेगा न…

Continue

Added by ram shiromani pathak on July 23, 2013 at 10:30pm — 14 Comments

क्षणिकाएं (राम शिरोमणि पाठक )

गुजरती नहीं रात

संघर्ष करता रहा नींद से,

जब भी लेता हूँ करवट

चुभने लगते है कांटे

यादों के.//1

*****************************************

बहुत आभारी हूँ आपका 

जिंदा तो छोड़ा पागल बनाकर ही सही//2

*******************************************

दिल बहलाने का सामान 

थोडा बहुत इनाम

बस इतने के लिए क्या?

स्वाभिमान बेच दूँ//3

*******************************************

डर की निद्रा में विलीन 

रात ही रात …

Continue

Added by ram shiromani pathak on July 10, 2013 at 6:30pm — 20 Comments

खुद्दार (सच्ची घटना )

ऑफिस के बाहर खड़ा मै फोन पे बात कर रहा था,तभी अचानक एक लड़का मेरे पास आकर खड़ा हो गया ! कुछ देर देखने के बाद मैंने उससे पूछा क्या?

तो उसने मेरे पैरों की तरफ इशारा किया...मै समझा नहीं फिर मै उसके कपड़े जो बहुत ही पुराने और फटे थे ,देखने लगा!!

इतने में उसने अपने थैले से बूट पोलिश करने का ब्रश और एक डिबिया निकाल ली...फिर तो मै समझ गया यह क्या कह रहा था !!

मुझे भी दया आ गयी कहा चालो भाई अब पोलिश कर ही दो...



मैंने जूते निकाले और वो अपने काम में मस्त…

Continue

Added by ram shiromani pathak on July 5, 2013 at 7:00pm — 16 Comments

आधुनिक नेता (घनाक्षरी )

आत्मा देखो मर गयी ,ह्रदय पाषाण हुआ !

मानवता मार चुके ,दिखते कसाई है !!

लूट पाट चोरी डाका ,इनका है काम यही !

लोगों का निचोड़ें खून ,चाटते मलाई हैं !!



भुखमरी से मरते,लोग बिलखाते जहाँ !

लाज शर्म पी चुके हैं ,भेजते दवाई हैं !!

ऐसे पापियों से…

Continue

Added by ram shiromani pathak on July 1, 2013 at 7:52pm — 10 Comments

दोहा (हास्य )

खा खाकर मोटी हुई,जैसे मोटी भैंस !

मै दुबला होता गया ,मेरे धन पे ऐश !!

सुबह शाम गाली सुनूँ ,हरदम करती चीट !

धोबी का सोटा उठा ,अक्सर देती पीट !!

मै घर का नौकर बना ,झेलूँ बस उपहास !

रूठ विधाता भी गये,जाऊं किसके पास !!…

Continue

Added by ram shiromani pathak on June 25, 2013 at 8:30pm — 48 Comments

आधुनिक नेता( किरीट सवैया = भगण X ८)

ताकत झांकत लूटत पाटत,छीनत बीनत नोट फटा फट !

लोगन की परवाह नहीं अरु ,चाट रहे सब देश चटा चट!!

दौड़त भागत घूम रहे अरु, खाइ रहे सब कोष गटा गट !

बन्दर बांट करें फिर झूमत ,आपन लूट बढ़ाइ झटा झट !!



राम शिरोमणि पाठक"दीपक

मौलिक…

Continue

Added by ram shiromani pathak on June 8, 2013 at 5:30pm — 21 Comments

"प्रकृति क्रीडा "

अडिग खड़ा है

चिर स्थिर

पुष्प से लदा

धरा से आलिंगन करता

तरुवर की निः स्वार्थ सेवा

सम भाव

वाह!

 

सब को देखने दो कुछ क्षण

रजत जड़ी ओस की डाल

चंचल है

हिला देती है बयार

तुम भी आओ मधुप

प्रतीक्षारत है कली

मृदुल होंठो के मकरंद पी लो

 

अरे ! ये क्या ?

मेघ भी उतर रहे हैं

हँसते हुए

शांत सरोवर

सरिता

बूदों संग मिलकर

अद्भुत संगीत सुनायेंगे

 

दादुर की व्याकुलता तो देखो…

Continue

Added by ram shiromani pathak on June 4, 2013 at 10:00pm — 21 Comments

गंजे का दर्द (घनाक्षरी )

बाल सभी झड़ गये,बुढ्ढा अब  दिखता हूँ !

हमउम्र औरतें भी,चाचा कह देती हैं !!

पत्नी भी मारे है ताना,भाग्य मेरे फूट गये !

कभी कभी वो भी मुझे,बुढ्ढा कह देती है !!



अपने ही जब कभी,अपना मज़ाक ले लें  !

किससे कहूँ कितनी,पीड़ा मुझे होती है…

Continue

Added by ram shiromani pathak on June 2, 2013 at 1:30pm — 25 Comments

निवेदन (घनाक्षरी छंद )

कहते हो देशभक्त ,यदि अपने को आप !

लोग दे उदहारण ,ऐसा कर जाइये !!

तन मन धन सब ,लगाओ देश सेवा में !

लोग आप से ले सीख ,कुछ तो बताइये !!

देश का भी हो विकास ,खुद भी विकास करो !

जग में हो नाम ऐसे ,मान को बढ़ाइये!!

मात्र भाषणों से काम,…

Continue

Added by ram shiromani pathak on May 31, 2013 at 1:00pm — 11 Comments

बेचारा मजनू

नाच नचाइ रही सबको अरु ,झूठ फरेब लिए बहु रंगे!

प्रेम क पाठ पढ़ाइ सबै फिर, भाग गयी वह दूसर संगे !!

रूप बिगाड़ फिरे मज़नू बन ,लागत हो जइसे भिखमंगे !

आपन बाल उखाड़ रहे अब ,आवत देखि दया…

Continue

Added by ram shiromani pathak on May 29, 2013 at 3:30pm — 12 Comments

प्रेम का कड़वा अनुभव ( घनाक्षरी छंद )

बन गया हूँ भिखारी ,लगी थी प्रेम बीमारी !

थोड़ी दया दिखाकर ,मुझको बचाइये !

मुझको ऐसा निचोड़ा ,अब कहीं का ना छोड़ा !

जान बच जाय ऐसी ,युक्ति तो बताइए !!



माना गलती हो गयी ,थोड़ी देर कर गया !

बालक समझकर ,कष्ट से उबारिये !

कान पकड़कर अब ,माफ़ी…

Continue

Added by ram shiromani pathak on May 13, 2013 at 9:47pm — 10 Comments

"क्षणिकाएं "

१-अँधेरा

जिधर देखो उधर अँधेरा ही अँधेरा

तुम नजर उठाओ तो सही

गाँव ,शहर ,या घर में भी

काली रातें, घोर अन्धेरा

और कहीं

कुछ दिखता है क्या ?

बहुत अंधकार दिख रहा है ना

क्या कोई दीपक जल रहा है

तो उसे जलने दो

२-बूढ़ा बाप-

बेजान कमरे में !

मेरा दम घुटने लगा है

यहाँ से नहीं निकाल सकते तो

कम से कम मार ही डालो मुझे

३-दर्द

न दिखने वाले दर्द से दब गया हूँ

इसलिए रो रहा हूँ की

थोड़ा…

Continue

Added by ram shiromani pathak on April 23, 2013 at 2:46pm — 27 Comments

हास्य घनाक्षरी

भारी भरकम काया,है बड़ी विचित्र माया ,

खुद खाती ठूसकर ,मुझपे चिल्लाती है !

हुआ वजन सौ किलो ,फिर भी दम ना लेती ,

गुंडई तो देखो इसे ,डाइटिंग बताती है !!

खर्राटे जब लेती है,मानो भूकंप आ गया ,

पड़ोसियों की भी तब ,नींद टूट जाती है !

अपने को…

Continue

Added by ram shiromani pathak on April 18, 2013 at 4:00pm — 18 Comments

"हास्य घनाक्षरी"

1-

लड़ती पीट तालियाँ, हज़ार देती गालियाँ,

अच्छे भले दिमाग का, दही कर देती है |

हर पल तंग करे, उल्टे पुल्टे कर्म करे,

मंगल जैसे ग्रह को, शनि कर देती है |

यदि देख लिया पैसा, पूछे नही कि है कैसा,

झट-पट बटुए को, खाली कर देती है…

Continue

Added by ram shiromani pathak on April 16, 2013 at 6:13pm — 6 Comments

घनाक्षरी प्रथम प्रयास

सीस झुके है सबके ,करते हुए वन्दना

लोग न अघाते माता, माता बोले जाते है!

जिस ओर देखो उस, ओर दिखती है भीड़,

मन में कामना लिए, ध्यान किये जाते है!!

पल भर अपने को ,सब भूल जाते यहाँ ,

पूजन में लीन सब, कष्ट भूल जाते है !

जान…

Continue

Added by ram shiromani pathak on April 12, 2013 at 1:00pm — 13 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service