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केवल प्रसाद 'सत्यम''s Blog (210)

नवगीत-----झील चुप सी.......!

नवगीत--झील चुप सी.......!

झील चुप सी राह तकती,

नाव डगमग

भाव भर कर

राज सारे पूछती है।

रेत फिसली

तट सॅवर कर,

हाथ पल पल

धो रही नित,

मल घुला जल

विष भरे तन

मीन प्यासी कोसती है।।1



सूर्य किरनों से

पिए नित रक्त

नदियों के बदन का,

धर्म की

पतवार भी अब

तीर सम तन छेदती है।।2



वन-सरोवर

तन उचट कर

छॉंव गिर कर

दूर जाती।

प्रेम का

सम्बन्ध रचकर

सांझ तक मन सोखती…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 30, 2014 at 8:53am — 17 Comments

दोहे.....................मानव !

मानव

मानव इस संसार का, स्वयं बृह्म साकार।

दंगा आतंक द्वेष को, खुद देता आकार।।1

मानव मन का दास है, पल पल रचता रास।

अन्तर्मन को भूल कर, बना लोक का हास।।2

तंत्र-मंत्र मनु सीख कर, चढ़ा व्यास की पीठ।

करूणाकर सम बोलता, इन्द्रराज अति ढीठ।।3

स्वर्ग जिसे दिखता नहीं, वह है दुर्जन धूर्त।

मात-पिता के चरण में, चौदह भू-नभ मूर्त।।4

पाठ पढ़े हित प्रेम का, कर्म करे विस्तार।

ज्ञान सुने ज्ञानी बने, भाव भरें…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 29, 2014 at 8:30pm — 8 Comments

दोहा........राम हुए भव पार

दोहा........

कददू -पूड़ी ही सदा, शुभ मुहुर्त में भोग।

वर्जित अरहर दाल जब, शुभ विवाह का योग।।1

अन्तर्मन की आंख से, देखो जग व्यवहार ।

धोखा पर धोखा सदा, देता यह संसार ।।2

तन मन में सागर भरा, जीव प्राण आाधार।

सम्यक कश्ती साध कर, राम हुए भव पार ।।3

धर्म कर्म अति मर्म से, विषम समय को साध।

मन की माया जीत लें, मिले प्रेम आगाध ।।4

जैसी जिसकी नियति है, तैसा भाग्य लिलार।

लेकिन आत्मा राम नित, सदा करें…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2014 at 8:30pm — 6 Comments

रेत उड़ती रही धरा बेबस

रेत  उड़ती  रही  धरा  बेबस

गजल -  2122, 1212, 22

पथ के पत्थर कहे परी हो क्या?

ठोकरों से कभी बची हो क्या ?



रात  ठहरी  हुयी   सितारों  में,

दोस्तों, चॉंद की खुशी हो क्या ?



लूटते  रोशनी  अमावस  जो,

दास्तां आज भी सही हो क्या ?



आदमी धर्म - जाति का खंजर,

आग ही आग आदमी हो क्या ?



रोशनी आज भी नहीं आयी,

राह की भीड़ में फसी हो क्या ?



रेत  उड़ती  रही  धरा  बेबस,

अब हवा धूप आदमी हो क्या…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2014 at 7:20pm — 6 Comments

घनाक्षरी- (कलाधर) -छन्द........होली....!

घनाक्षरी- (कलाधर) -छन्द........होली....!
गुरू लघु गुणे 15 अन्त में एक गुरू कुल 31 वर्ण होते हैं।

अंग अंग में तरंग, बोलचाल में बिहंग, धूप सृष्टि में रसाल, बौर रूप आम है।
रूप रंग बाग लिए, अग्नि बाण ढाक लिए, शम्भु ने कहा अनंग, सौम्य रूप काम है।।
प्राण-प्राण में उमंग, रास रंग में बसंत, ऊंच - नीच, भेद - भाव, टूटता धड़ाम है।
प्रेम का प्रसंग फाग, रंग - भंग भी सुहाग, अंग से मिला सुअंग, हर्ष को प्रणाम है।।

के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 22, 2014 at 10:30am — 3 Comments

बीज मन्त्र..................!

बीज मन्त्र..................!

दोहा- बीज बीज से बन रहा, बीज  बनाता  कौन?

        बीज सकल संसार ही, बीज मन्त्र बस मौन।।

चौ0- निष्ठुर बीज गया गहरे में। संशय शोक हुआ पहरे में।।

        मां की आखों का वह तारा। दिल का टुकड़ा बड़ा दुलारा।।

        सींचा तन को दूध पिलाकर। दीन धर्म की कथा सुनाकर।।

        बड़े प्रेम से सिर सहलाती। अंकुर की महिमा समझाती।।

        शिशु की गहरी निन्द्रा टूटी। अहं द्वेष माया भी छूटी।।

        अंकुर ने जब ली…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 22, 2014 at 9:30am — 5 Comments

द्वार चार पर उड़े परिन्दे....

नवगीत



जनसंख्या औ

मंहगार्इ बहने,

लम्बी गर्दन में

पहने गहने।।

तंत्र यंत्र सम

चुप्पी साधें,

स्रोत आयकर

रिश्वत मांगें।

शिवा-सिकन्दर

प्याज हुर्इ अब,

साड़ी पर साड़ी है पहने।।1

शासक वर की

पहुंच बड़ी है,

कन्या धन की

होड़ लगी है।

सैलाबों में

त्रस्त हुए शिव,

बेबस जन के टूटे टखने।।2

चोरी-दंगा

व्यभिचारों की,

उत्साहित

बारात सजी…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 5, 2014 at 8:51pm — 8 Comments

देश सोने की चिरैया----

गजल- देश सोने की चिरैया----

जब बुजुर्गों की कमी होने लगी।

गर्म खूं में सनसनी होने लगी।।

नेक है दुनियां वजह भी नेक है,

दौर कलियुग का बदी होने लगी।

धर्म में र्इमान में सच्चे सभी,

घूस-चोरी अब बड़ी होने लगी।

प्यार हमदर्दी करें नेता यहां

सारी बातें खोखली होने लगी।

सिक्ख, हिन्दू और मुस्लिम भार्इ हैं,

घर में दीवारें खड़ी होने लगी।

देश सोने की चिरैया थी कभी,

खा गए चिडि़या गमी होने…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 5, 2014 at 7:37pm — 8 Comments

चॉंद मुस्काता रहा हर रात में

तरही गजल- 2122 2122 212

आग में तप कर सही होने लगी।

प्यार में मशहूर भी होने लगी।।

जब कभी यादों के मौसम में मिली,

राज की बातें तभी होने लगी।

तुम बहारों से हॅंसीं हस्ती हुर्इं,

आँंख में घुलकर नमी होने लगी।

उम्र से लम्बी सभी राहें कठिन,

पास ही मंजिल खुशी होने लगी।

तुम नजर भी क्या मिलाओगी अभी,

शाम सी मुश्किल घड़ी होने लगी।

चॉंदनी अब चांद से मिलती नहीं,

खौफ हैं बादल…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 1, 2014 at 6:53pm — 6 Comments

राह के कांटें हुए बलवान भी

"राह  के  कांटें  हुए  बलवान  भी"

आप की खातिर है हाजिर जान भी।

हाथ  का  पंजा  हुआ  हैरान  भी।।



कोरे कागज का कमल खिलता नहीं,

आज कल भौंरे करें पहचान भी।



अब चुनावी दौर का मंजर यहां,

बढ़ रही है रैलियों की शान भी।



भुखमरी-बेकारी सिर चढ़ बोलती,

हर किसी रैली में जन वरदान भी।



खो गर्इ है शान-शौकत-आबरू,

बो रहे हैं लोभ-साजिश-धान भी।



अब भरोसा भी नहीं उस्ताद पर,

गिरगिटों के रंग में…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 24, 2014 at 9:00pm — 13 Comments

दान की लिखता कथा

दान की लिखता कथा

धर्म रेखा

खींच कर

जाति बंधन से बॅधें,

प्रेम सा 

उपकार करते

साधना 

सत्कार से।

उपहास होता कर्म का

अति…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 24, 2014 at 7:59pm — 6 Comments

दोहा...........पूजा सामाग्री का औचित्य

दोहा...........पूजा सामाग्री का औचित्य

रोली पानी मिल कहें, हम से है संसार।

सूर्य सुधा सी भाल पर, सोहे तेज अपार।।1

चन्दन से मस्तक हुआ, शीतल ज्ञान सुगन्ध।

जीव सकल संसार से, जोड़े मृदु सम्बन्ध।।2

अक्षत है धन धान्य का, चित परिचित व्यवहार।

माथे लग कर भाग्य है, द्वार लगे भण्डार।।3

हरी दूब कोमल बड़ी, ज्यों नव वधू समान।

सम्बन्धों को जोड़ कर, रखती कुल की शान।।4

हल्दी सेहत मन्द है, करती रोग-निरोग।

त्वचा खिले…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 11, 2014 at 6:28pm — 12 Comments

दोहा-----------बसन्त

दोहा-----------बसन्त

आम्र वृक्ष की डाल पर, कोयल छेड़े तान।

कूक कूक कर कूकती, बन बसंत की शान।।1

वन उपवन हर बाग में, तितली रंग विधान।

चंचल मन उदगार है, प्रीति-रीति परिधान।।2

क्षितिज प्रेम की नींव है, कमल भवन, अलि जान।

दिन भर गुन गुन गान है, सांझ  ढले  रस  पान।।3

मन मन्दिर है प्रेम का,  जिसमें  रहते   संत।

विविध रंग अनुबंध में, खिल कर बनों बसंत।।4

पुरवार्इ मन रास है,  सकल  बहार  उजास।

किरनें जल…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 7, 2014 at 9:30pm — 9 Comments

हे शारदे मां.....! हे शारदे मां !

हे शारदे मां.....! हे शारदे मां !



जगत की जननी

कल्याणकारी

संयम उदारी

अति धीर धारी

व्याकुल सुकोमल, बालक पुकारे।..... हे शारदे मां.....!



हंसा सवारी

मंशा तुम्हारी

तू ज्ञान दाती

लय ताल भाती

है हाथ पुस्तक, वीणा तु धारे।... हे शारदे मां.....!



संसार सारं

नयना विशालं

हृदयार्विन्दं

करूणा निधानं

अखण्ड सुविधा, सरगम उचारे।.... हे शारदे मां.....!



माता हमारी

बृहमा कुमारी

है मुक्तिदाती

यश कीर्ति…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 4, 2014 at 9:41pm — 4 Comments

बनो दिनमान से प्रियतम..

!!! बनो दिनमान से प्रियतम !!!

बनो दिनमान से प्रियतम,

नित्य ही नम रहे शबनम।।

उजाला हो गया जग में,

रंग से दंग हुर्इ सृष्टि।

लुभाता रूप यौवन तन,

गंध के संग हुर्इ वृष्टि।

समां भी हो गया सुन्दर, जलज-अलि का हुआ संगम।। 1

पतंगी डोर सी किरनें,

बढ़ी जाती दिशाओं में।

मधुर गाती रही चिडि़या,

नाचते मोर बागों में।

कल-कल ध्वनि करें नदिया, लहर पर नाव है संयम।। 2

किनारों पर बसी बस्ती,

सुबह औ शाम की…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 4, 2014 at 8:00pm — 8 Comments

नवगीत--(उदासी गर्इ भौंरा फिर गुनगुनाया)

हॅसी रूप कलियों का जब मुस्कुराया,

उदासी गर्इ भौंरा फिर गुनगुनाया।।

बहारों की रानी,

राजनीति पुरानी।

नर्इ-नर्इ कहानी,

जवानी-दीवानी।

महगार्इ बढ़ाकर,

नववधू घर आती।

दिशाएं भी छलती,

गरीबी की थाती।

अमीरों का राजा, अल्ला-राम आया।। 1

सजाते हैं संसद,

समां बर्रा छत्ता।

परागों को जन से,

चुराती है सत्ता।

अगर रोग-दु:ख में,

पुकारे भी जनता।

शहर को जलाकर,

कमाते हैं भत्ता।

चुनावों…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 3, 2014 at 10:30pm — 14 Comments

!!! नवगीत !!!

!!! नवगीत !!!

अंधेरों सी घुटन में, जमीं के टूटते तारे।

सहम कर बुदबुदाते, बिफर कर रो रहे सारे।।

उजालों ने दिए हैं, घोटालों की निशानी।

दिए हैं झूठ के रिश्ते, फरेबी तेल की घानी।

जली है अस्मिता बाती, हुए हैं ताख भी कारे।

नजर की ओट में रहकर, नजर की कोर भी पारे।।1

सलोना  चॉद सा मुखड़ा,  चॉदनी पाश के पट में।

छले जनतन्त्र अक्सर अब, नदी तरूणी लुटे पथ में।

तड़फती रेत सी समता, पवन में खोट है सारे।

जमे हैं पाव…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on January 7, 2014 at 11:37am — 6 Comments

दुर्मिल सवैया !! मां शारदे !!

दुर्मिल सवैया !! मां शारदे !!

सहसा प्रतिभा समभाष करें, तुम आदि-अनादि अनन्त गुणी।
तप से, वर से नित धन्य करें, कवि-लेखक संग महन्त गुणी।।
गुण-दोष समान विचार रखें, नित नूतन कल्प भनन्त गुणी।
भव सागर में जब याद करें, पतवार लिए तुम सन्त गुणी।।

के0पी0सत्यम मौलिक व अप्रकाशित

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on January 7, 2014 at 11:00am — 7 Comments

शान ज्यों माणिक मुक्ता

कुण्डलियां-1


कुत्ता प्यारा जीव है, वफादार बलवान।
घर की  नित रक्षा करे, रख पौरूष अभिमान।।
रख पौरूष अभिमान, गली का शेर कहाए।
चोर और अंजान, भाग कर जान बचाए।।
द्वार रहे गर श्वान, शान ज्यों माणिक मुक्ता।
पर मानव मक्कार, अहम वश कहता कुत्ता।।


के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 19, 2013 at 7:00pm — 23 Comments

!!! चाल ढार्इ घर चले अब !!!

!!! चाल ढार्इ घर चले अब !!!

बन फजल हर पल बढ़े चल,

दासता के देश में अब।

रास्ते के श्वेत पत्थर

मील बन कर ताड़ते हैं

दंग करती नीति पथ की,

चाल ढार्इ घर चले अब।1

भूख पीड़ा सर्द रातें

राह पर अब कष्ट पलते

भ्रूण हत्या पाप ही है

राम के बनवास जैसा

साधु पहने श्वेत चोला

चाल ढार्इ घर चले अब।2

रोजगारी खो गर्इ है

रेत बनकर उड़ चुकी जो

फिर बवन्डर घिर रहा है

घूस खोरी सी सुनामी

दर-बदर अस्मत हुर्इ पर

चाल…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 18, 2013 at 7:08pm — 15 Comments

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