For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,927)

दोहा सप्तक. . . संसार

दोहा सप्तक. . . संसार

औरों को देखा मगर, कब समझा  इंसान ।

संचित सब कुछ छोड़ता, जब होता  अवसान ।।

कहते हैं लगती नहीं, कभी कफन में जेब।

फिर भी धन की लालसा, देती उसे फरेब ।।

आने पर जैसे करें, जीव रूप सत्कार ।

पुष्पों से ढकते कफन ,जब छूटे संसार ।।

जीत क्षुधा मिटती नहीं, मिट जाती यह देह ।

नश्वर तन से जीव का, कब मिटता है नेह ।।

कर्मों का करता सदा, पीछे जगत बखान ।

रह जाती बस जीव की, अमिट यही पहचान…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 11, 2023 at 2:00pm — No Comments

ना जइयो परदेस सजनवा

ना जइयो परदेस सजनवा, बिन तेरे हिया ना लगे रे 

तोहरी राह तकते तकते हमरी, प्राण निकल ना जावे रे

जे तू हमरी सुध ना लेवे, ना हमारी पाती लौटावे रे 

तोहरी क़सम हम तोहरी खातिर भूख प्यास भी त्यागे रे

ना जइयो परदेस सजनवा, बिन तेरे हिया ना लगे…

Continue

Added by AMAN SINHA on September 9, 2023 at 11:57pm — No Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
शिक्षक दिवस - कुण्डलिया छंद // सौरभ

मिट्टी के लोंदे सभी, अनगढ़ था बर्ताव
हमें सिखा कर ककहरा, शिक्षित किया स्वभाव
शिक्षित किया स्वभाव, सभी का योगदान था
निर्मल नेह-दुलार, परस्पर भाव-मान था
कड़क किंतु व्यवहार, सटकती सिट्टी-पिट्टी
शिक्षक थे सब योग्य, सभी ने गढ़ दी मिट्टी
***
सौरभ

(मौलिक और अप्रकाशित) 

Added by Saurabh Pandey on September 5, 2023 at 9:30am — 4 Comments

भोर होने को है देखो

भोर होने को है देखो, छट रहा है अंधेरा 

किस संशय ने तुमको अब भी रखा है घेरा 

बढ़ा कदम दिखा ताक़त तू अपने बुलंद इरादो की

कौन सी है दीवार यहाँ जिसने तुझको रोखे रखा है 

तू अगर चलेगा तो, मंज़िल भी तुझ तक आएगी 

भला बता वो तुझसे…

Continue

Added by AMAN SINHA on September 2, 2023 at 7:33pm — No Comments

जब दंगों का मंजर देखा -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२/ २२२२


जब  दंगों  का  मंजर  देखा
सब आँखों में बस डर देखा।१।
*
जलती बस्ती  अनजानी थी
पर उसमें भी निज घर देखा।२।
*
मानव तो  मानव  जैसे ही
मंदिर मस्जिद अन्तर देखा।३।
*
अपने दुख  तब  से बौने हैं
औरों का दुख ढोकर देखा।४।
*
चीख उठीं दीवारें सारी
सन्नाटा जब छूकर देखा।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 31, 2023 at 5:40am — No Comments

सत्य ज्ञान

सत्य ज्ञान 

उषा अवस्थी

औरतों का जीना किया हराम

सरकार हो या विपक्ष 

इन्टरनेट मीडिया दुर्लक्ष 

पीटती ढोल सुबह -शाम

उन पर क्या बीतेगी?

लाज शर्म,किस तरह छीजेगी?

न लिहाज,न ईमान

बेशर्मी से करते बदनाम

सूचनाओं में विष घोल कर

शब्द-वाणों की शक्ति छोड़,बेईमान

चलाते, देश की इज्ज़त 

उछालने का अभियान

महिलाओं पर कर अनुसन्धान

ज्ञान का करते बखान

स्वयं के मन…

Continue

Added by Usha Awasthi on August 30, 2023 at 4:11pm — 4 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल

1212 2121 1212 122

चला जाऊँगा जहाँ से तुम्हें सँवार कर के

तुम्हारी इन ख़ामियों को कहीं निखार कर के

नवाज़ा मुझको ख़ुदा ने वो अज़्म धार कर के

बुलंदी बख़्शी है उस ने ग़ज़ल बहार कर के

बड़े बड़ो को दिखाया है आइना ख़ुदा ने

निकाल दी हैंकड़ी भी उन्हें सुधार कर के

वो चोर मौसेरे भाई हैं बागबाँ चहेते

उन्हें गिरा दो निगाह से दोस्त ख़ार कर के

बहार सावन की आयी कली- कली खिली है

कि हो…

Continue

Added by Chetan Prakash on August 28, 2023 at 2:30pm — No Comments

ताज़ा ग़ज़लः

221    2121    1221   212

अच्छा हो तुम पढ़ो ये ग़ज़ल दोस्त ध्यान से

मैंने कहा है इसको बड़े मान - कान से

हम राह में बढेंगे तो मंज़िल मिलेगी ही

मक़सद भी होगा पूरा जियें आन - बान से

हर शख़्स बदहवास अभी भागता शहर

हलकान ज़िन्दगी में है वो खान - पान से

अवसाद इस सदी की समस्या जनाब है

तनहाई मारती रही इनसान जान से

अनजान है ज़माना अभी शोध चाँद पर

आग़ाज भारती हुआ इस बार शान से

आदम…

Continue

Added by Chetan Prakash on August 24, 2023 at 9:18am — No Comments

वरिष्ठ नागरिक दिवस पर चन्द दोहे .....

वरिष्ठ नागरिक दिवस के अवसर पर चन्द दोहे : ....

दृग जल हाथों पर गिरा, टूटा हर अहसास ।

काया  ढलते ही लगा, सब कुछ था आभास ।।

जीवन पीछे रह गया, छूट गए मधुमास ।

जर्जर काया क्या हुई, टूट गई हर  आस ।।

गिरी लार परिधान पर, शोर हुआ घनघोर ।

काया पर चलता नहीं, जरा काल में जोर ।।

लघु शंका बस में नहीं, थर- थर काँपे हाथ ।

जरा काल में खून ही , छोड़ चला फिर साथ ।।

वृद्धों को बस दीजिए , थोड़ा सा सम्मान ।

अवसादों को…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 21, 2023 at 2:45pm — 4 Comments

सावन गीत....कजरी

मोरा साजन छूटो जाय

सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..

पपीहा करत है पी हू पी हू

मोहे जोबन विरह हो जाय

सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!

कोयल बोलै कुूहू कुहू बागन में

मोरा सावन सूखौ जाय

सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!

नाचत मोर बदरिया बरसत है

मोरा आँगन बिसरौ जाय

सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..!

मरौ ददुरवा बूँद  पी  रह जाय

लो सोवत रहत साल भर वो तो

मो पै बिन पिया…

Continue

Added by Chetan Prakash on August 21, 2023 at 2:30pm — 1 Comment

फोन आया

फोन आया, 

कई सालों के बाद 

फिर उसका फोन आया 

पहले जब 

घंटी बजती थी, 

दिल की धड़कन भी बढ़ती थी 

लेकिन आज फोन बजा 

तो धड़कन ने इशारा नहीं…

Continue

Added by AMAN SINHA on August 19, 2023 at 9:00pm — 1 Comment

लघुकथा -सीख

सीख ......

"पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की टाँगें दबाते हुए पूछा ।

"कुछ मत पूछ बेटा । हर तरफ मार काट, भागम-भाग ,     हर तरफ चीखें  ही चीखें  थी । हमने थोड़े से गहने  और सामान बाँधा और सब कुछ छोड़ कर निकल लिए ।" पापा ने कहा ।

"आप सुरक्षित कैसे निकले "। सुशील ने पूछा ।

"ह्म्म । बेटे!सन् 1947 के विभाजन में  सम्भव नहीं था वहाँ से सुरक्षित निकलना । उसी कौम का  एक  इंसान फरिश्ता बन कर हमारी मदद को आया और किसी तरीके से बचते बचाते…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 19, 2023 at 4:49pm — 7 Comments

दोहा त्रयी : मजबूर

दोहा त्रयी. . . . मजबूर

आँखों से ही दूर है, अब  आँखों का नूर ।
बदले इस परिवेश में, ममता है मजबूर ।।

वर्तमान ने दे दिया, माना धन भरपूर ।
लेकिन कितना कर दिया, मिलने से मजबूर ।।

धन अर्जन करने चला, सात समंदर पार ।
मजबूरी ने कर दिया, सूना घर संसार ।।

सुशील सरना / 18-8-23

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on August 18, 2023 at 3:08pm — 4 Comments

ग़ज़ल (महब्बतों से बने रिश्ते यूँ बिखरने लगे)

1212 - 1122 - 1212 - 112/22

महब्बतों से बने रिश्ते यूँ बिखरने लगे 

मुझी से कट के मेरे मेह्रबाँ गुज़रने लगे

*

मशाल इल्म की फिर से बुझा गया कोई 

फ़सादी सारे जिहालत में रक़्स करने लगे

अवाम जिनको समझती रही भले किरदार 

मुखौटे उन के भी चेहरों से अब उतरने लगे

ख़ुलूस और महब्बत के पैरोकार भी अब

धरम के नाम पे आपस में वार करने लगे 

*

सिला ये हमको मिला उन से दिल लगाने का

जुनून-ए-इश्क़ में हर…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 18, 2023 at 8:31am — 4 Comments

एक ताज़ा ग़ज़ल

212 1222 212 1222

दिलजले लगे हैं फिर घर नया बसाने में

रह गये हैं वो खुद पीछे हमें उठाने में

रतजगे कई होते दोस्त घर बनाने में

भारती बहा है खूँ फिर इसे बसाने में

राह भटके रहबर अब ख़ुदगर्ज़ हुए हैं वो

बेलगाम होकर याँ व्यस्त घर लुटाने में

बाँट कर हुकूमत ने साधे स्वार्थ अपने हैं

पर लगे ज़माने उसको हमें जगाने में

भुखमरी ग़रीबी हटती नहीं हटाने से

बढ़ रही अमीरी उल्टा उसे भगाने…

Continue

Added by Chetan Prakash on August 16, 2023 at 8:30am — 2 Comments

स्वतंत्रता में साहित्यकारों का अतुलनीय योगदान

रचनात्मक योगदान से समृद्ध स्वाधीनता का साहित्य'

स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में सृजनशील लेखनधर्मियों का अतुल्यनीय योगदान.......

स्व की भावना से प्रेरित आजादी का आंदोलन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जन-जन के अवचेतन मन को जाग्रत करने आंदोलन चलाये गए। देशी रियासतों पर राज करते हुये उनके जीवन मूल्यों पर हस्तक्षेप करना, क्रूरता पूर्वक नरसंहार के विरूद्ध चेतना जगाने में साहित्यकारों का योगदान अविस्मरणीय हैं। महासंग्राम की धधकती ज्वाला की प्रचंड रूप प्रदान करने में सृजनकारों ने अपने ओजपूर्ण…

Continue

Added by babitagupta on August 15, 2023 at 3:14pm — No Comments

एक जनम मुझे और मिले

एक जनम मुझे और मिले मैं देश की सेवा कर पाऊं 

दुध का ऋण उतारा अब तक, मिट्टी का ऋण भी चुका पाऊं 

 

मुझको तुम बांधे ना रखना अपनी ममता के बंधन में 

मैं उसका भी हिस्सा हूँ तुमने है जन्म लिया जिसमे  

 

शादी बच्चे घर संसार, ये सब मेरे पग को बांधे है 

लेकिन मुझसे मिट्टी मेरी बस एक बलिदान ही मांगे है 

 

सब ही आंचल मे छुपे तो देश को कौन सम्हालेगा 

सीमा पर शत्रु सेना से फिर कौन कहो लोहा लेगा 

 

तुमने दुध पिलाया मुझको…

Continue

Added by AMAN SINHA on August 15, 2023 at 1:30pm — No Comments

आजादी का मान रखो



जब आजादी पायी है तो, आजादी का मान रखो।

देश, तिरंगे, लोकरीति की, सबसे ऊँची शान रखो।।

*

पुरखों ने बलिदान दिया था, खुली हवा हम पायें।

मस्त गगन में विचरें, खेलें, मिलकर लय में गायें।।

राजनीति की चकाचौंध में, कभी नहीं भरमायें।

भले-बुरे की, सोचें समझें, तब निर्णय पर आयें।।

*

सिर्फ स्वार्थ की अति से बेबश, पुरखे दास बने तब।

स्वार्थ न फिर सिर चढ़े हमारे, सोते जगते ध्यान रखो।

*

भूमि एक थी, धर्म एक तब, किन्तु एकता टूटी।

इस कारण ही सब ने आकर, इज्जत…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 15, 2023 at 6:42am — 2 Comments

रोला छंद

*रोला छंद*

बहुत दिखाते ज्ञान, तनिक उस पर क्या चलते

बोल कर्म के साथ, मिलें तो क्यों घर जलते

कोरी है बक़वास, शास्त्र की बातें करना

अपना ही व्यवहार, परे उससे यदि धरना।

रहें हजारों साथ, अकेले या वे रह लें

सच को कितना झूठ, झूठ को या सच कह लें

दुष्टों के क्या कृत्य, सही फल दे पातें हैं

कुटिल सदा ही मात, सुजन से खा जातें हैं।

धरती का दिल आज, देख कर जाए घटता

चहुँदिक दे आवाज़, शीश मानव का कटता

कुढ़ता शुद्ध विचार, शील पर चलती…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 14, 2023 at 7:41pm — 3 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल

1212 1212 1212 1212

सुनो पुकार राष्ट्र की बढ़े चलो सुजान से

मिटेंगे अंथकार के निशाँ बढ़ो सुजान से

निशाना चूक जाए ना बचे रहो सुजान से

वो सारा देश देखता तुम्हें, चलो सुजान से

रहेगा नाम वीरों का किताबों में रिसालों में

मरो तो देश के लिये सखा जियो सुजान से

हमें जहाँ को देना है नहीं किसी से लेना है

ऐसा विचार हो कहीं सही पढ़ो सुजान से

निशान छोड़ जाओ कोई वक़्त की शिलाओं…

Continue

Added by Chetan Prakash on August 14, 2023 at 2:30pm — 2 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service