अंधा कानून – लघुकथा –
"वक़ील साब, आप म्हारे गाँव के हो और जाति बिरादरी के भी हो, इसीलिये आप के पास बड़ी उम्मीद लेकर आये हैं"।
"बोलो सरजू भाई, बात क्या है"?
"चौधरी रामपाल के छोरे ने म्हारी छोरी की इज्जत लूट ली"।
"पूरी बात खुलकर बताओ। क्या हुआ,कैसे हुआ, कहाँ हुआ"?
"म्हारी छोरी बकरी चरा रही थी, चौधरी के आम के बगीचे के पास। नीचे ज़मींन पर दो चार कच्चे आम पड़े दिखे तो छोरी बीनने लग गयी। पीछे से चौधरी के छोरे ने उसे दबोच लिया और इज्जत लूट ली"।
"फ़िर क्या किया…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on February 23, 2018 at 8:30pm — 10 Comments
इंडिया गेट पर गुलाब सिंह अपने औटो से जा रहा था। तभी वहाँ तैनात हवलदार रोशन ने उसे रोक दिया।
"आज इधर से वाहनों के लिये मार्ग बंद है। केवल पैदल यात्री ही जा सकते हैं"।
"भाई, आज अचानक ऐसा क्यों"?
"इस में इतना चोंकने वाली क्या बात है। आज मंत्री जी की रैली है"।
"वह किसलिये"?
"मंत्री जी के दामाद को गिरफ़्तार ना किया जाय, इसलिये"।
"ऐसा क्या किया है उनके दामाद ने"?
"उनका दामाद दरोगा है, उसने अपने ही मातहत एक हवलदार की पत्नी के साथ बलात्कार किया…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on February 3, 2018 at 11:00am — 16 Comments
घुटन – लघुकथा -
"जुम्मन मियाँ, यह क्या हो गया हमारे शहर को। तिरंगा फ़हराने को लेकर दंगा फ़साद और मोतें"?
"सुखराम जी, यह केवल हमारे शहर का मसला नहीं है। ऐसी खतरनाक़ हवायें तो सारे देश में चल रहीं हैं। कहीं झंडे को लेकर, कहीं गाय को लेकर और कहीं मंदिर के बहाने"।
"अरे मियाँ, आजकल तो बलात्कार की भी बाढ़ सी आगयी है। वह भी नाबालिग बच्चियों के साथ। पता नहीं, ईश्वर कहाँ सोया पड़ा है"?
"सुखराम भाई, सब कुछ ईश्वर के भरोसे थोड़े ही चलता है। हमारी सरकार और प्रशासन की भी तो कोई…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 30, 2018 at 2:15pm — 16 Comments
लघुकथा - प्यास –
फ़ौज़ी सौदान सिंह रात के गस्त पर था। उसकी पीने के पानी की बोतल खाली हो गयी। उसे प्यास लगी थी| इधर उधर नज़र दौड़ाई। यूनिट की चौकी बहुत दूर थी।
अचानक उसकी नज़र एक किसान पर पड़ी जो खेत में सिंचाई कर रहा था। सौदान सिंह को लगा कि उसके पास पानी अवश्य मिलेगा। अतः वह उसके पास चला आया,
"भाई जी, क्या आपके पास पीने का पानी मिलेगा"?
"वीर जी, तुम्हारी कौम क्या है"?
"भाई जी, आपके इस सवाल का पानी से क्या ताल्लुक़ है"?
" वीर जी, ताल्लुक़ है तभी तो पूछा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 27, 2018 at 6:42pm — 10 Comments
बसंत - लघुकथा –
रजनी के पति का जन्म बसंत पंचमी को हुआ था इसलिये घरवालों ने उसका नाम बसंत ही रख दिया था। रजनी उसके जन्म दिन को खूब जोश के साथ मनाती थी। शादी को चार साल हुए थे लेकिन अभी तक उसकी गोद खाली थी। इसका एक मुख्य कारण उसके पति का सेना में होना भी था। चूंकि बसंत की तैनाती सीमा पर थी अतः परिवार साथ नहीं रख सकता था।
अभी कुछ दिन पहले एक फोन आया था कि बसंत लापता है, तलाश जारी है। रजनी के अरमानों पर तो मानो वज्रपात हो गया था। वह बसंत के जन्म दिन के लिये क्या क्या सपने बुन रही…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 22, 2018 at 6:20pm — 14 Comments
लघुकथा - गवाह –
नेताजी की हवेली में काम करने वाली चंपा की नाबालिग लड़की रूपा की नेताजी के लड़के ने ज़बरन इज्जत लूट ली। नेताजी ने साम, दाम, दंड और भेद सब हथकंडे अपना लिये, लेकिन चंपा किसी भी तरह मामले को रफ़ा दफ़ा करने को राजी नहीं हुयी।
आखिरकार नेताजी अपनी औक़ात पर आ गये। चंपा को बोल दिया,"जा जो तेरी मर्जी हो कर ले"।
चंपा भी इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं थी। चीख चीख कर सारी बस्ती इकट्ठा कर ली। चंपा के दो चार पुराने शुभ चिंतकों ने मशविरा दे डाला कि सब जुलूस लेकर थाने चलो…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 20, 2018 at 8:54pm — 8 Comments
मृत्यु भोज - लघुकथा –
राघव के स्वर्गीय पिताजी का तीसरा संपन्न हुआ था अतः सारे परिवार के सदस्य आगे क्या करना है, इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे थे।
"क्यों राघव, तेरहवीं का क्या सोचा है? हलवाई बगैरह तय कर दिया या मैं किसी से बात करूं"?
"ताऊजी, आपको तो पता ही है कि पिताजी इन सब पाखंडों के खिलाफ़ थे। और मृत्यु भोज तो उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं था। इसीलिये माँ की मृत्यु पर उन्होंने हवन किया और अनाथालय के बच्चों को भोजन कराया था"।
"देख बेटा, तेरे पिता तो चले गये। उनके रीति…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 12, 2017 at 6:49pm — 14 Comments
प्रश्न चिन्ह - लघुकथा –
आज छुट्टी थी तो सतीश घर के पिछवाड़े लॉन में अपने दोनों बच्चों के साथ बेडमिंटन खेल रहा था।
"सतीश,…. सतीश,…. पता नहीं बाहर क्या कर रहे हो? दो तीन बार आवाज़ दी, सुनते ही नहीं हो"?
"क्या हुआ क्यों चिल्ला रही हो सुधा जी। कोई इमरजेंसी आ गयी क्या"?
"हाँ, यही समझ लो"।
"क्या हुआ| कुछ बोलो भी"?
"पैथोलोजी लैब वाला आया था, मम्मी की ब्लड रिपोर्ट दे गया है"।
सतीश ने उत्सुकता से पूछा,"क्या लिखा है"?
"ब्लड कैंसर लिखा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 9, 2017 at 11:33am — 10 Comments
लघुकथा – गप्पी पुत्तू -
वैसे असल नाम तो उसका पुरुषोताम दास था , मगर वह गप्पी इतना तगड़ा था कि सारा गाँव उसे गप्पी पुत्तू कह कर बुलाता था। माँ बाप उसकी इस आदत से इतने परेशान थे कि पूछिये मत।
हर दूसरे दिन स्कूल से माँ बाप को बुलावा आता रहता था। पहली बात तो यह कि वह स्कूल जाता ही बड़ी मुश्किल से था। और कोई ना कोई बहाना बना कर भाग आता था। सारे अध्यापक उसकी आदतों से दुखी थे।
पूरे गाँव में ऐसा कोई नहीं था जो उससे खुश हो। हर कोई उसकी गप्प बाज़ी का शिकार बन चुका था। क्योंकि वह झूठ…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 5, 2017 at 11:43am — 8 Comments
लघुकथा -– आँखें -
"सुबोध, यह क्या हिमाक़त है। मुझे पता चला है कि तुमने एक अंधी लड़की से शादी करने का फ़ैसला किया है"?
"जी पिताजी, आपने बिलकुल सही सुना है"।
"तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया। तुम एक अरबपति व्यापारी की इकलौती संतान हो। साथ ही जाने माने डाक्टर भी हो। तुम्हारे लिये कितने बड़े घरानों से रिश्ते आ रहे हैं, कुछ पता है"?
"मगर मेरा फ़ैसला अटल है"।
"ऐसी क्या वज़ह है जो तुम परिवार के मान सम्मान और प्रतिष्ठा को दॉव पर लगा कर उस मामूली से परिवार की लड़की से…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 2, 2017 at 6:16pm — 10 Comments
लघुकथा - गिरगिट –
"गुरूजी, आपकी इस अपार सफलता का भेद क्या है? पिछले बाईस साल से राजनीति में आपका एक छ्त्र राज है"?
गुरूजी ने दाढ़ी खुजलाते हुए, गंभीर मुद्रा बनाने का नाटक करते हुए उत्तर दिया,
"मित्रो, राजनीति बड़ी बाज़ीगरी का धंधा है। अपनी लच्छेदार बातों से लोगों को मंत्र मुग्ध करना होता है| इसमें सफल होना इतना सरल नहीं जितना दिखता है"।
"गुरूजी, हम तो आपके अंध भक्त हैं, कुछ गुरूमंत्र दीजिये जो भविष्य में हमारे काम आ सके"?
"पहली चीज़ तो यह गाँठ बाँध लो कि इसमें…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 11, 2017 at 10:53am — 14 Comments
लघुकथा - क़लम की ताक़त –
देश के मशहूर लेखक श्रीधर को सरकार की ओर से कुछ विशेष लेखन कार्य हेतु निमंत्रण पत्र आया। चूँकि सरकारी मामला था अतः श्रीधर उसकी अवहेलना नहीं कर सके और दरबार में हाज़िर हो गये।
सरकार के प्रधान ने श्रीधर से एकांत में चर्चा की,
"श्रीधर जी, हम चाहते हैं कि देश के समस्त नामचींन समाचार पत्र और पत्रिकाओं में आप हमारे बारे में लिखें। हमारी उपलब्धियों का बखान करें"।
"सर जी, यह तो बहुत मामूली कार्य है। इसे तो कोई भी ऐरा गैरा नत्थू खैरा पत्रकार कर…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 26, 2017 at 12:00pm — 17 Comments
Added by TEJ VEER SINGH on October 8, 2017 at 12:02pm — 10 Comments
लघुकथा - ज़िद - -
गाँव के सरपंच बंशीलाल के बेटे शुभम की शादी शहर में रहने वाले परिवार की लड़की सुजाता से हुई।
सुजाता ने गाँव में पहली बार में कुछ परेशानियों का सामना किया तो गौने पर विदा कराने गये शुभम और उसके साथियों को बैरंग लौटा दिया। कहला दिया कि जब तक घर में शौचालय की व्यवस्था नहीं होगी, वह गांव नहीं आयेगी। शुभम भी गुस्से में धमकी देकर चला आया कि अब वह कभी भी उसे लेने नहीं आयेगा।
लेकिन धीरे धीरे सरपंच जी को अपनी भूल का अहसास हुआ और सामाजिक दबाव के देखते हुए शौचालय…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 2, 2017 at 8:02pm — 10 Comments
इंतज़ार – लघुकथा -
"नीरू बिटिया, आजा मेरी बच्ची, क्यों दरवाजे पर टकटकी लगाये बैठी है। रज्जन अब कभी नहीं लौट कर आनेवाला" स्वर्गीय रज्जन की अम्मा ने अपनी पुत्र वधू निर्मला को साँत्वना देने के लहज़े में पुकारा |
"अम्मा, यह बात तो हम भी जानते हैं। बार बार क्यों दोहराते हो? वह जब फ़ौज़ में गया था तभी हम अपना मन पक्का कर लिये थे। पर ऐसे उसका अंत होगा कि मृत शरीर भी देखने को नहीं मिलेगा , यह कभी नहीं सोचा था"।
"बिटिया, आतंकियों ने बम से चिथड़े चिथड़े कर दिये मेरे बच्चे के। शायद…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 30, 2017 at 2:42pm — 8 Comments
इंतज़ार – लघुकथा -
"नीरू बिटिया, आजा मेरी बच्ची, क्यों दरवाजे पर टकटकी लगाये बैठी है। रज्जन अब कभी नहीं लौट कर आनेवाला" स्वर्गीय रज्जन की अम्मा ने अपनी पुत्र वधू निर्मला को साँत्वना देने के लहज़े में पुकारा |
"अम्मा, यह बात तो हम भी जानते हैं। बार बार क्यों दोहराते हो? वह जब फ़ौज़ में गया था तभी हम अपना मन पक्का कर लिये थे। पर ऐसे उसका अंत होगा कि मृत शरीर भी देखने को नहीं मिलेगा , यह कभी नहीं सोचा था"।
"बिटिया, आतंकियों ने बम से चिथड़े चिथड़े कर दिये मेरे बच्चे के। शायद…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 30, 2017 at 2:41pm — 4 Comments
परोथन – लघुकथा -
"अरे छुटकी, देख तो कौन है दरवाजे पर"?
"कोई भिखारिन जैसी लड़की है अम्मा"।
"बिटिया, एक कटोरा गेंहू दे दे उसे”|
“अम्मा, वह तो बोल रही है कि उसे केवल आटा ही चाहिये”।
"अरे तो क्या हुआ छुटकी, एक कटोरा आटा ही दे दे बेचारी को"।
"पर अम्मा, आटा तो एक बार के लिये ही था तो सारा गूँथ लिया"।
"एक कटोरा भी नहीं बचा क्या"?
"ऐसे तो है, एक कटोरा, पर वह परोथन के लिये है"।
"अरे तो वही देदे मेरी बच्ची। हम लोग एक दिन बिना परोथन की, हाथ…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 26, 2017 at 12:28pm — 24 Comments
मुझे भी कुछ कहना है – लघुकथा -
"माँ, मुझे कुछ पल अकेला छोड़ दो। मुझे एकांत चाहिये"।
"ठीक है नीरू, पर तू अंधेरे में क्या कर रही है? तेरे दिमाग में कुछ ऐसा वैसा तो नहीं चल रहा"।
"माँ, आपकी बेटी इतनी कमजोर नहीं है"।
"मैं जानती हूँ। इसीलिये तो डर लगता है। तू यह लिखना छोड़ क्यों नहीं देती"?
"माँ, आप कैसी बात कर रहे हो? वह मेरी गुरू थी। मेरी आदर्श थी। उसे गोलियों से उड़ा दिया। और मैं चुप हो कर बैठ जाऊँ। असंभव"।
"बेटी, मुझे तेरी जान की चिंता है। जिस काम…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 8, 2017 at 11:06am — 10 Comments
ईद का तोहफ़ा – लघुकथा –
"चलो ना बाबा, देर हो रही है। मेरा दोस्त इंतज़ार कर रहा होगा, उसके लिये तोहफ़ा भी लेना है"
रघु के छह साल के नाती ने जैसे ही रघु के सामने अपने दोस्त के घर ईद की बधाई देने जाने की ज़िद की तो उसके सामने पचास साल पहले की वह घटना चलचित्र की तरह घूम गयी।
रघु उस समय छटी कक्षा में था। असलम भी उसी के साथ पढ़ता था। उस दिन ईद के कारण स्कूल की छुट्टी थी। शाम को सब बच्चे खेल रहे थे कि तभी इंदर ने सुझाव दिया कि चलो असलम को ईद की बधाई देकर आते हैं। सब इकट्ठे होकर…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 28, 2017 at 11:15am — 14 Comments
दीवार के कान - लघुकथा –
शंकर सिंह एक अनुशासन प्रिय और जिम्मेवार अधिकारी थे। कारखाने में और कोलोनी में उनकी अच्छी छवि थी। लेकिन कल कारखाने में उनके साथ जो घटना हुई थी, उसने उनको विचलित कर दिया था। एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से मामूली वार्तालाप ने एक उग्र झड़प का रूप ले लिया। यूनियन लीडर्स के बीच में आने से मामला कुछ ज्यादा ही तूल पकड़ गया। मि० सिंह से हाथापाई तक हो गयी। मैनेजमेंट ने तुरंत मि० सिंह को घर भेज दिया था। उनके आने के बाद प्रेस वाले, मीडिया वाले भी कारखाने तक आगये…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 16, 2017 at 2:34pm — 4 Comments
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