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लक्ष्मण रामानुज लडीवाला's Blog (188)

दुष्टो की है देह (दोहे)

 
 नहीं रहा अब गाँव में, भाईचारा भाव,
खेतो में बढ़ने लगे, नित क्लेश के भाव ।
 
 
नहीं रहा अब शहर में, जीना यूँ आसान,
जगते है अब चाय से, रात जाम की शान ।
 
मोल झूंठ का बढ रहा, संत जगत भी मौन,
सच सस्ते में बिक रहा, सच बोले अब…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 4, 2012 at 7:00pm — 13 Comments

जागरूक कर जाय

लूट व् भ्रष्टाचार से, भरा पड़ा अखबार,
ह्त्या, बलात्कार से, ख़बरों की भरमार ।
 
घोटालों की भरमार, जनता को सब भान
जाँच करा लिपापोती, सरकार की ये शान ।
 
सुर्खियों में रहना ही, नेता समझे शान,
चर्चा में हरदम रहे,  नेता उसको जान…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 1, 2012 at 1:30pm — 14 Comments

पत्नी का खतरनाक बाउंसर (हास्य व्यंग

सचिन तेंदुलकर बोंले -

पत्नी का गुस्सा तेज है

पत्नी के आगे निस्तेज है

हमने कहाँ पत्नी के आगे

सभी पति निस्तेज है

वे बोंले -

बाँल से भी खतरनाक है

बेलन बाँल से क्या कम

खरतनाक है ?

बाँल तो दूर से आती है

बेलन तो हाथ में रखती है ।

पत्नी के बाउंसर से -

हर पति डरता है,

कमाई ला झट से -

हाथ में धर देता है ।

फिर जरुरत पड़ने पर

हाथ फैलाना पड़ता है ।

यह कोई नयी बात नहीं है

हर युग में होता आया है

कृष्ण ने राधिका… Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 25, 2012 at 5:57pm — 6 Comments

बदल गयी तरकीब

काकी आई शहर से, सुनो शहर का हाल,

फ़ार्म हाउस बन रहे, धनवानों की चाल ।



धनवानों की चाल है, खेती का क्या काम

बचजाये बस आयकर,ये ही उनका काम ।



फार्म हाउस में हो रहे, कैसे कैसे काम,

नेता बने किसान है, छलक रहे है जाम ।



किसान खेतहीन हुए, जमींदार सब नाथ,

बँट में खेत जोत रहे, घरवाली के साथ ।



घरवाली को साथ ले, खेतो में जुट जाय,

दुपहरी की रोटी भी, छाँव तले ही खाय ।



जनता के इस राज में, बदल गयी तरकीब,

नेता सब मालिक बने, देखा… Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 24, 2012 at 10:00am — 13 Comments

पल्लम पेल -ठल्लम ठेल

देश में चल रही रेस 
जो जीता,नायक उसका-
बना नरेश,
जो हारा झटके से 
उसको लगती भारी ठेस ।
नेताओ ने बदला भेष, 
शेर की खाल में-
देखो गीदड़ की चेस ।
हावी हो रहे हैवान,
बढ़ते जा रहे शैतान ; 
जनता सब है हैरान,
नहीं रहे अब कद्रदान…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 23, 2012 at 1:08pm — 12 Comments

जन्मदिन की शुभकामनाओ पर तहे दिल से धन्यवाद आभार (19 नवम्बर,2012)

ओबीओ ही मात्र मंच, जहाँ मिले प्यार कुछ ख़ास 
सड़सठ पार बसंत पर, हुआ अहसास कुछ ख़ास ।
 
हुआ अहसास कुछ ख़ास, घर में ख़ुशी मनाई,
दूरभाष पर मित्र ने रह रह  घंटी खूब बजाई ।
 
धन्यवाद किस विधि मै करू, शब्द नहीं है पास,
धन्यवाद प्रभु आपका, जीवन में भरी मिठास ।
 
ओबीओ में प्रभु कृपा से,…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2012 at 11:00am — 2 Comments

छियासी वर्षीय मराठी नेता को श्रद्धांजली

बाला साहेब ठाकरे अब नहीं रहे 
उन्हें हजारे लोग श्रद्धांजली देते रहे 
किसी ने उन्हें महाराष्ट्र का शेर कहा 
किसी ने उन्हें शिवाजी के बाद का 
मराठी सेवक कह कर नवाजा है ।
देश के बड़े कार्टूर्निष्टों में से एक थे
"सामना"में छपे उनके लेख बताते- 
स्पष्ट-वक्ता बेबाक टिपण्णी करनेवाले, 
जिनके साथ लाखो लोग यात्रा में चल रहे 
हजारे…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 18, 2012 at 4:36pm — 4 Comments

बचपन की यादो का चिटठा- लक्ष्मण लडीवाला

रह रह कर बचपन  याद आता है मुझे 
क्यां अल्हड मस्ती थी मेरे गाँव में 
सब बह गया लगता है अब- 
शहर के इस सीमेंट कंक्रीट की छाव में 
खूब खेलते थे मस्ती से सब मिल-
गाँव के खेत में, पेड़ की छाँव में ।
 
यदा कदा बेबस ही बचपन याद आता है,
देखते थे रम्भाती गायों को  साँझ में,
नाचते मोरों के झुंडो को खेत में,
सुनते थें कोयल की कुहू कुहू,
सारी यादे हवा हो गयी अब- 
शाद बह…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 15, 2012 at 10:30am — 2 Comments

नमन करो सोंधी मिटटी को

कुम्हार की लक्ष्मी के भी 
देखे मैंने हाथ सने 
चढ़ी चाक पर मिटटी फिर से 
फिर से दीप बने 
 
रम्भा रहे थे गधे भी 
कैसे मूक बने 
आज समय उल्लूजी का 
देशाटन को -
लक्ष्मी वाहन वही बने 
 
लक्ष्मी हुई ओझल
उल्लूजी बैठे…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 13, 2012 at 7:18pm — 6 Comments

जीवन ज्योतिर्मय करदे (गीत)

दीप-ज्यौति के पावन पर्व पर

मुझको, माँ लक्ष्मी ऐसा वर दे |

उज्जवल वस्त्र, सुरभित तन-मन,

सुगन्धित मधुवन सा घर-आँगन दे |

सरस-मलाई मधुमय-व्यंजन दे |

तिमिर छट जाये जीवन में.

जीवन ज्योतिर्मय हो जाये |

आगंतुक का स्वागत करने

पलक पावडे बिछे नयनों में,

दिल में अपनापन हो,

ऐसा मुझको मन-मयूर दे |

सरस्वती के साधक

"लक्ष्मण" पर माँ शारदे,

तेरा वरदहस्त रखदे ।

ध्यान करू मै तेरा और-

आनंदित करू जन-जन को,

कोकिल कंठी स्वर देकर,

मेरे मन गीतों…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 12, 2012 at 10:00am — 6 Comments

अभी बच्चा है,देश का भविष्य है

सात साल का मेरा पोता-

 है अभी छोटा 
जिसे चाहिए खिलौना 
नित नया, 
खोलकर या तोड़कर 
देखने को, 
क्या है उसमे नया ।
कंप्यूटर पर जब मै 
थक जाता, पर 
कनेक्ट नहीं कर पाता, 
तो पोता कहता, 
कहता ही क्या- 
झट कनेक्ट कर जाता ।
उसकी टीचर से…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 6, 2012 at 6:24pm — 10 Comments

तृष्णा हर ले साकी

 
 
मुग्ध हुआ देख तेरे चितवन नयनों का प्याला,
मेरे नयनों में लेलु थोड़ी,तेरी मुग्ध…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 4, 2012 at 5:30pm — 5 Comments

आज के दिन दिनांक 3 नवम्बर,1688 को जयपुर के संथापक सवाई जय सिंह का जन्म हुआ था, उन्हें काव्यमय श्रद्धांजलि -

 

वेध शालाओ के संथापक -
धर्म ज्योतिष व् संस्कृति के मसीहा,
राजाओ में राजा एक हुए तनहा 
राजनीतिज्ञ,कुशल प्रशासक 
जयपुर के संस्थापक
अश्वमेघ यज्ञ के अंतिम चक्रवर्ती
जाकी शोभा जगत में…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2012 at 11:23am — 2 Comments

श्रद्धांजलि

31 अक्टुबर,1984 को भारत की प्रथम महिला प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की न्रशंस हत्या हुई |
भारत में नारी को सम्मान की नजरों से देखा जाता है | उन्हें काव्यात्मक श्रद्धांजलि -
 
दूरदर्शी, पक्के इरादें…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2012 at 9:30pm — No Comments

इस बदलते मौसम में अपनी हिफाजत खुद करे (हास्य व्यंग)-लक्ष्मण लडीवाला

भाई राज दवा नवी की  डायरी के चालीसवे पन्ने ने बदलते मौसम से बेखबर से मुझे खबर कर दिया |
गर सीलिंग फेन की गडगडाहट बंद होती है, तो रियाज करते मच्छरों की आहंग (संगीत,आवाज) या 
गुनगुनाहट हलकी नींद को उड़ा देती है | डेंगू जैसा मच्छर  काट गया तो मै भी करोडो अनजाने लोगो
से सैकड़ो जाने पहचाने डेंगू मरीजों में शुमार हो…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 26, 2012 at 3:00pm — 13 Comments

तो देव लोक का स्वामी रावण ही होता

वह तपस्वी रावण जिसे मिला था-

ब्रह्मा से विद्वता और अमरता का वरदान
शिव भक्ति से पाया शक्ति का  वरदान |     
                                                                              …
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 24, 2012 at 5:00pm — 12 Comments

सीर की हवेली

 

द्रष्टव्य विशालकाय,
हर सदस्य असहाय 
एक दूजे पर भार-
साझेदार, या 
संयुक्त परिवार |
अपनेपन के आभाव में 
घावों में सिमटे 
लटकती तलवार तले,…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 22, 2012 at 6:54pm — 7 Comments

जनता का संयम

हमने चुना था सोंचकर, इनमे उनके वंश का ही खून है 

वे स्वर्ग से बहाते आंसू, लजाया इसने मेरा ही खून है |

 
हमने चुना था सुनकर, उनने किये थे जो पक्के वादे,
हमें क्या पता था मन में,उनके थे कुछ और ही  इरादे|…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 17, 2012 at 4:51pm — No Comments

शब्द कचोटते रहते है --

पिता की मृत्यु के चार वर्ष बाद बड़े लड़के निर्मल की शादी के समय छोटा भाई सबल 13 वर्ष का था । नयी बहु आये दिन साँस से झगडती रहती थी | निर्मल अन्दर से परेशान | भाई भाभी के बेरुखे व्यव्हार से और गलत संगत के कारण सबल देर रात तक आने लगा |एक दिन निर्मल ने अपने जीजा को कहने लगा "जीजाजी मेरी पत्नी को न मै समझा सकता हूँ, और न ही उसको डांटकर अशांति फैलाना चाहता हूँ" | परेशान हो माँ ने अलग रसोई करने का निर्णय स्वीकार कर लिया |



माँ को अल्प पारिवारिक पेंशन से अपना और छोटे लड़के सबल का निर्वाह…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 13, 2012 at 3:30pm — 7 Comments

पाप कर्म (दोहे)

पाप का ना भागी बन,मौन रहा क्यों साध,
मौन साध हामी भरे, वह भी है अपराध |

अपराध अगर यूँ करे, कौन करेगा माफ़,
वक्त लिखेगा एक दिन, दोषी तुझको साफ |

जान बूझ गलती करे, उसको दोषी मान
दोषी वह उतना नहीं,जिसे नहीं था भान |

मानव में न भेद करे, प्रभु सभी के साथ,
प्रभु सभी के साथ है,पकड़ कर्म का हाथ |

कर्म का फल देना ही, प्रभु के लेख माय,
प्रभु करेगा भला ही, गुरु भी यही बताय |

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 4, 2012 at 8:00pm — 12 Comments

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