For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Abhinav Arun's Blog (149)

गज़ल:उसकी हद उसको..

उसकी हद उसको बताऊंगा ज़रूर,

बाण शब्दों के चलाऊंगा ज़रूर.



इस घुटन में सांस भी चलती नहीं,

सुरंग बारूदी लगाऊंगा ज़रूर.



यह व्यवस्था एक रूठी प्रेयसी,

सौत इसकी आज लाऊंगा ज़रूर.



सच के सारे धर्म काफिर हो गए,

झूठ का मक्का बनाऊंगा ज़रूर.



इस शहर में रोशनी कुछ तंग है,

इसलिए खुद को जलाऊंगा ज़रूर.



आस्था के यम नियम थोथे हुए,

रक्त की रिश्वत खिलाऊंगा ज़रूर.



आख़री इंसान क्यों मायूस है ,

आदमी का हक दिलाऊंगा… Continue

Added by Abhinav Arun on October 10, 2010 at 9:30am — 2 Comments

गज़ल:कोल्हू चाक..

कोल्हू चाक रहट मोट की आवाज़ें,

शहरों से आयातित चोट की आवाज़ें.



मान मनोव्वल कुशलक्षेम पाउच और नोट ,

सबके पीछे छिपी वोट की आवाज़ें.



लूडो कैरम विडियो गेम के पुरखे हुए ,

बच्चों के हांथों रिमोट की आवाज़ें.



ध्यान रहे इस ताम झाम में दबें नहीं ,

आयोजन में हुए खोट की आवाज़ें .



मजबूरी में बार गर्ल बन बैठी वो ,

सिसकी पर भारी है नोट की आवाज़ें.



बेटा नहीं नियम से आता मनी-ऑर्डर,

कौन सुनेगा दिल के चोट की आवाज़ें.



मेरी… Continue

Added by Abhinav Arun on October 9, 2010 at 8:30am — 7 Comments

ग़ज़ल:इतना गुलज़ार सा..

इस टिप्पणी के साथ कि चाहें तो इसे अ-कविता की तरह अ-ग़ज़ल मान लें-



इतना गुलज़ार सा जेलर का ये दफ्तर क्यूं है,

आरोपी छूट गया और गवाह अन्दर क्यूं है.



सुलह को मिल रहें हैं मौलवी और पंडित भी ,

सियासी पार्टियों में भेद परस्पर क्यूं है.



अगर गुडगाँव नोयडा हैं सच ज़माने के ,

कहीं संथालपरगना कहीं बस्तर क्यूं है.



रंग केसर के जहां बिखरे हुए थे कल तक ,

उन्हीं खेतों में आज फ़ौज का बंकर क्यूं है.



जबकि बेटों के लिए कोई नहीं है… Continue

Added by Abhinav Arun on October 6, 2010 at 4:00pm — 5 Comments

ग़ज़ल:माँ के आँचल सा

ग़ज़ल



माँ के आँचल सा खिलता है गुलमोहर,

मुझसे अपनों सा मिलता है गुलमोहर.



तुम अपने रेखा चित्रों में रंग भरो,

मेरे सपनों में हिलता है गुलमोहर.



खुशबू वाले चादर तकिये और गिलाफ ,

बूढ़ी आँखों से सिलता है गुलमोहर.



चौड़ी होती सड़कों से खुश होते हम,

बची हुई साँसे गिनता है गुलमोहर.



भक्काटा* के शोर में छोटे बच्चे सा ,

अपने मांझे को ढिलता है गुलमोहर .



चटख चाँदनी जब करती सोलह सिंगार ,

झोली में तारे बिनता है… Continue

Added by Abhinav Arun on September 29, 2010 at 4:00pm — 3 Comments

ग़ज़ल:आ रहा जब तक

ग़ज़ल



आ रहा जब तक पतन से अर्थ है,

आचरण पर बहस करना व्यर्थ है.



आपके चेहरे पे गड्ढे शेष हैं,

आईने पर धूल की एक पर्त है.



चौक पर कबिरा मुनादी कर रहा,

आइये देखें क्या उसकी शर्त है.



सत्य आँखों की परिधि से दूर था ,

आज न्यायालय में जीता तर्क है.



मार्क्स गाँधी गोर्की को भूलकर ,

पीढी क्या जानेगी क्या संघर्ष है .



क़त्ल भाषा धर्म जाति के सबब,

सभ्यता का क्या यही उत्कर्ष है.



दोष अपना मेरे ऊपर मढ़ गया… Continue

Added by Abhinav Arun on September 29, 2010 at 3:30pm — 2 Comments

अथ से इति तक !

जब तक अथ से इति तक

ना हो सब कुछ ठीक ठाक ,

सुख की पीड़ा से अच्छा है

पीड़ा का सुख उठाना.

जब तक सुनी ना जाएँ आवाज़े

सिलने वाले हो हज़ार सूइयों वाले

और होंठों पर पहरे पड़े हों ,

चुप्प रहने से अच्छा है,

शब्दों की अलगनी पर खुद टंग जाना .

जब तक जले न पचास तीलियों वाली माचिस

या ख़ाक न हो जाएँ सडांध लिए मुद्दे

हल वाले हांथों का बुरा हो हाल

मेंड़ पर बैठने से अच्छा है बीज बन जाना .

जब तक मदारी का चलता हो खेल

और एक से एक मंतर हो रहें हो… Continue

Added by Abhinav Arun on September 29, 2010 at 3:00pm — 2 Comments

गज़ल:ज़मीर इसका ..

ज़मीर इसका कभी का मर गया है ,
न जाने कौन है किस पर गया है.

दीवारें घर के भीतर बन गयीं हैं,
सियासतदां सियासत कर गया है.

तरक्की का नया नारा न दो अब ,
खिलौनों से मेरा मन भर गया है.

कोई स्कूल की घंटी बजा दे,
ये बच्चा बंदिशों से डर गया है.

बहुत है क्रूर अपसंस्कृति का रावण ,
हमारे मन की सीता हर गया है.

शहर से आयी है बेटे की चिट्ठी,
कलेजा माँ का फिर से तर गया है.

Added by Abhinav Arun on September 25, 2010 at 3:30pm — 8 Comments

गज़ल:खुदाई जिनको

खुदाई जिनको आजमा रही है,

उन्हें रोटी दिखाई जा रही है.



शजर कैसे तरक्की का हरा हो,

जड़ें दीमक ही खाए जा रही है.



राम उनके भी मुंह फबने लगे हैं,

बगल में जिनके छुरी भा रही है .



कहाँ से आयी है कैसी हवा है ,

हमारी अस्मिता को खा रही है.



तिलक गांधी की चेरी जो कभी थी ,

सियासत माफिया को भा रही है.



हाई-ब्रिड बीज सी पश्चिम की संस्कृति ,

ज़हर भी साथ अपने ला रही है .



शेयर बाज़ार ने हमको दिया क्या ,

गरीबी और बढती… Continue

Added by Abhinav Arun on September 25, 2010 at 3:00pm — 6 Comments

एक शायर की अभिलाषा !!

आग हूँ कुछ पल दहक जाने की मोहलत चाहता हूँ ,



दर्द को पीकर बहक जाने की मोहलत चाहता हूँ.





फिर बिखर जाऊँगा एक दिन पिछले मौसम की तरह ,



फूल हूँ कुछ पल महक जाने की मोहलत चाहता हूँ,





पहले कीलें ठोकिये पहनाईए काँटों का ताज ,



फिर मैं सूली पर लटक जाने की मोहलत चाहता हूँ.





आपकी इन बूढ़ी आँखों का सहारा बन सकूं ,



इसलिए बाबा शहर जाने की मोहलत चाहता हूँ.





कतरा कतरा चूसकर हर शख्स मीठा हो गया… Continue

Added by Abhinav Arun on September 12, 2010 at 10:38pm — 14 Comments

Monthly Archives

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service