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अबला जीवन तेरी हाय यही कहानी!

8 मार्च -अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष



जंग ए आजादी के दौर में राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त ने आंख के आंसूओं में अपनी कलम डूबाकर इन पंक्तियों की रचना की थी

अबला जीवन तेरी हाय यही कहानी !

आंचल में है दूध और आंखों में पानी

आज़ादी के दौर में यह कहानी बहुत कुछ बदल चुकी है। देश की महिलाएं  सातवें आसमान में देश का झंडा गाड़कर कल्पना चावला बन रही हैं। किरन बेदी बनकर अपराधियों से लोहा ले रही हैं। अरुणा राय और मेधा…

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Added by prabhat kumar roy on March 7, 2011 at 7:00am — No Comments

नकल का कलंक और नकेल

कई तरह के माफिया की बातंे जिस तरह अक्सर होती हैं, कुछ उसी तरह छत्तीसगढ़ में पिछले बरसांे मंे षिक्षा माफिया भी सक्रिय रहे। छत्तीसगढ़ के कई जिले नकल के लिए ही बदनाम हुए और नकल के कलंक को आज भी ढो रहे हैं। हालांकि आज स्थिति कुछ बदली हुई नजर आती हैं। सरकार और षासन की नीतियांे में बदलाव का ही परिणाम है कि फिलहाल इस बरस की बोर्ड कक्षाआंे में नकल पर नकेल होना, नजर आ रहा है। पिछले दो बरस में हुई परीक्षा की स्थिति भी कुछ ऐसी ही रही। इस सख्ती का सीधा असर छात्रांे की संख्या पर देखी जा सकती है। कई जिलांे में… Continue

Added by rajkumar sahu on March 7, 2011 at 12:46am — No Comments

मैंने प्यार किया था...............

तुमसे कितना प्यार किया ऐ कभी समझा नहीं                  

                 तुम्हारे न आने पर हम कितने उदास होते थे                   

 तुम्हें हम कितना याद करते थे,                                    

               आपने ओ कभी महसूस नहीं किया                                                  

 आप पे हमने कितना…

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Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 6, 2011 at 8:00pm — No Comments

कहावत है की प्यार जहाँ, दर्द, वहाँ , आखिर ऐसा क्यूँ ?

कहावत है की प्यार जहाँ, दर्द, वहाँ ,  आखिर  ऐसा क्यूँ ?



प्यार, दर्द, एहसास, सच और झूठ सब मिलकर ' छुपा -छुपी ' का खेल खेलने का फैसला किया ! और जैसे ही दर्द ने छुपाने को कहा सब अपने-अपने जगह छुप गए, फिर दर्द ने गिनती सुरु की और सब पकडे भी गए, पर प्यार पकड़ा नहीं गया, क्यूंकि प्यार गुलाब की झाड़ियों में जा छुपा था, सब ने मिलकर प्यार को खोज निकाला, फिर दर्द ने प्यार को खीचा, गुलाब की झाड़ियों में छुपे होने से दर्द को जोर लगाकर खीचने से गुलाब के कांटे प्यार की…

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Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 6, 2011 at 7:30pm — No Comments

अभिराजभी..................................

 

अभिराजभी..................................

तुम्हारा चेहरा जब आँखों के सामने होता है

जो कभी मेरे इस ह्रदय के राजदार थे

आज तेरे वियोग में ह्रदय मेर तड़पता है

तेरे ओ वादे इरादे तेरी ओ कसमे

आज  मेरे ह्रदय के यादगार है,

गलत मै हूँ जो तुम्हें भुला न सका

 तुम तो किये लाख बहाने

दिल लगाने से पहले तैयार थी 

तुम्हारी…

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Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 6, 2011 at 12:53pm — No Comments

यादें,,,,,,,,,,,,,,

 

हम जब कभी बारिश की पहली बूंद में भीगे थे
वह बात आज भी तन मन को छू कर जाती है
तो तुम्हें याद करता हूँ,तुम्हें महसूस करता हूँ
इन आँखों में तुम्हारी एक तस्वीर उभर आती है
जब तुमें मै याद करता हूँ,
तुम छोड़ हमें चाहे जाओ कितनी ही दूर
मेरी आँखों का चैन चुरा बन जाओ
किसी का…
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Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 6, 2011 at 12:00pm — No Comments

मै तो एक पागल कवि हूँ

                                                        मै  तो एक पागल  कवि हूँ
क्या फर्क पड़ता है 
मै तो एक पागल कवि हूँ 
तम को काटता रवि हूँ
कौन किसलिए जीता है 
कौन किसलिए पीता है 
ज़िन्दगी तो सीता है 
कर्मो की गीता है 
भाग्य विपरीता है 
यहाँ तो हर कोई 
बस अपने लिए जीता है  
मै तो राम की सीता हूँ 
गीतों की गीता हूँ 
पर…
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Added by arvind yogi on March 5, 2011 at 11:43pm — 3 Comments

गहरा प्यार.......................



गहरा प्यार.......................
जब तुम्हें कभी हो यह महसूस   

की प्यार किसी का कम हो रहा है 

आशाओं के तुम्हारे जीवन में

निराशाओं का कुहरा छाने लगे 

प्रेम पथ की गति जब कभी थमने लगे 

खुशियों के दामन में 
जब मायूसी  झाने लगे        
तुम लौट आना-तुम लौट आना

दफ़न किये जो मेरे प्यार को 

अर्थ…
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Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 5, 2011 at 5:00pm — No Comments

तुम तो हो न प्रभु

 



हमेशा कई स्वर उभरे
'पैसा बहुत ज़रूरी चीज है
इतना पैसा होना चाहिए कि सुख में कोई कमी न रहे ...'
मैंने हमेशा कहा - 'पैसा ज़रूरी है पर पैसा सुख नहीं ,
'प्यार' में ज़िन्दगी है , वहाँ कोई कमी नहीं होती ... '
ऐसा कहते ... मैं…
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Added by rashmi prabha on March 5, 2011 at 3:38pm — 1 Comment

ek ghazal

एक ग़ज़ल 
 
रिरिया रहे है लोग 
घिघिया रहे है लोग
 
उद्घोष होना चाहिए 
मिमिया रहे है लोग
 
बेदर्द क़त्ल है ये 
बतिया रहे है लोग
 
है वक़्त पूनियों सा 
कतिया रहे है लोग
 
संवेदना मरी है
खिसिया रहे है लोग
 
धोखे की टट्टियों को 
पतिया रहे है…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 5, 2011 at 10:55am — 5 Comments

कोई सुनेगा

पाषाण समाज के सीने पे पडी नन्ही अश्रु की बूँद गाती है अनसुना गीत ,सुनाती है अजन्मी कहानी .|

उसकी गिरेबां को पकडे रोती ,बिलखती , कोसती, झकझोरती , सवाल करती , पता पूछती हैं उस भ्रूण हत्यारे का|

फिर सहसा आंसू पोछती .सोचती कहती की अच्छा हुआ जन्म  से पहले मिटा दी  गयी पैदा होती तो जाने क्या हश्र होता |…

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Added by Anand Vats on March 5, 2011 at 10:21am — 3 Comments

(: शुभप्रभात :)

बहुत मुमकिन है  ख़्वाबों को हकीकत नाम मिल जाए

किसी बेकार को शायद बहुत सा काम मिल जाए ..
बसेरा हो दिलों में प्यार का तो गम है क्या करना ..…
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Added by Lata R.Ojha on March 5, 2011 at 9:03am — 2 Comments

एक रेलगाड़ी और हम- एक सपना मेरा - जाने क्यों - डॉ नूतन ०4-०3-२०11

  मैंने देखा था इक सपना  

एक रेलगाड़ी और हम  

पिताजी टिकट ले कर आते हुवे 

और लोग स्टेशन का पता पूछते हुवे…

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Added by Dr Nutan on March 5, 2011 at 1:00am — 4 Comments

VISHWA-CUP

विश्व-कप में
टीम इंडिया आई
आस जगाई.....१


इंतजार में 
जोरदार तैयारी
है बेक़रारी ...२

माही! तुम में
ज़ज्बा है हिम्मत भी
सामने आओ ...३

देश का मान
विश्व-कप जीत के 
भारत लाओ ....४

 
अब सचिन! 
शतकों के शतक  
का इंतजार  .....५.

विश्व-कप में 
चासनी घोलता है 
दे भी जाओ न......६ 

 

खेलो न  पूरे
जी जान से निराली
टीम इंडिया ....७

BRIJESH

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on March 4, 2011 at 10:00pm — No Comments

अपने औदें पर इतना अक़ड़ता क्यूं हैं...........

अपने औदें पर इतना अक़ड़ता क्यूं हैं

तू बात बात पर यूं बिगड़ता क्यूं हैं



क्या संसद का पानी पी आया हैं

तू बार बार यूं रंग बदलता क्यूं हैं



लिबास तो बड़ा ही सफ़्फ़ाख है…

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Added by अमि तेष on March 4, 2011 at 3:30pm — 4 Comments

प्रेम की अभिव्यक्ति खातिर

सोचता था कि सितारों, पर ज़मीं को साफ़ करके,

और चंदा को टिकाकर, मैं गगन के आसरे से,

कुछ चमन खाली बनाऊं, प्रेम कि अभिव्यक्ति खातिर.



चाहता था खोद डालूं , वृक्ष के भूतल किनारे,

कर दूँ समतल इस धरा के, मस्त से परबत ये सारे,

सोख कर सारा समंदर, और नदियों की रवानी,

कुछ धरा खाली सजाऊं, प्रेम की अभिव्यक्ति खातिर.



किन्तु चंदा और तारे, वृक्ष औ पर्वत हमारे,

सारी नदियाँ सागर सारे, ये दिशायें ये किनारे,

घोल लेते हैं हमें, हैं प्रेम की अभिव्यक्ति सारे.…

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Added by neeraj tripathi on March 4, 2011 at 2:25pm — 4 Comments

कुछ मुक्तक

यही सत्य है इस दुनिया का, कहते अक्षर काले हैं !

जिसने बांटे दर्द सभी के, मिलते उसको छाले हैं !

एक पिता का हाल देखिए, इस नफरत की दुनिया में,

 जिसने धन दौलत तक दे दी, रोटी तक के लाले हैं !

 

अब प्यार के जहाँ में पैगाम नहीं मिलते !
इस भावना को ऊंचे आयाम नहीं मिलते !
मिलती हैं हर तरफ चीखें तो द्रौपदी की,
पर चीर जो बढ़ा दे, घनश्याम नहीं मिलते !

Added by gaurav uphar on March 4, 2011 at 1:00pm — 2 Comments

ek ghazal

कैसे किस्से सामने आने लगे 
लोग कुछ बेबात शर्माने लगे
 
कल जिन्होंने पीठ में घोंपा छुरा 
हमदर्द बन वो घाव सहलाने लगे
 
ये सहर चूजे सी जाये किस जगह 
हर तरफ है बाज मंडराने लगे
 
वाल्मीकि है नहीं कोई यहाँ 
क्रौंच-वध कर लोग इतराने लगे
 
पेट मोटे हो गए बेबात जो 
भूख के वो अर्थ समझाने लगे
 
है…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 4, 2011 at 9:20am — No Comments

जहाँ फ़ैल रहा प्रकाश वहाँ, क्यों फैला रहे अंधेरा



जहाँ फ़ैल रहा प्रकाश वहाँ, क्यों फैला रहे  अंधेरा,

खुशियों को छीन लो ना उनसे, होने दो वहाँ सवेरा,



जालिम कहर तुम्हारी, बरसे जहाँ जहाँ पर ,

रहते थे शान्ति के पुजारी,बंजर है अब वहाँ पर,

कितनो के चमन उजाड़ दिए, कितनो का लूटोगे डेरा,

खुशियों को छीन लो ना उनसे, होने दो वहाँ सवेरा.



अन्दर तुम्हारे है क्या , लेते सदा सहारा,

खुद की जमीं बचा न सके तो, दूसरों का घर उजाड़ा,



कब तक बनोगे सांप तुम,नचाएगा तुम्हे संपेरा,

खुशियों…

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Added by Dhananjay Pathak on March 4, 2011 at 12:00am — No Comments

यादें.................

यादें.................



मन की उदासी को ह्रदय में,

बसा के रख लिया ,

आप की बेवफाई को,

जीवन अंग समझ लिया !

मैंने की बेहद मुहब्बत मगर,

आपको क्या फर्क पडा,

तुमने लिए जो फैसले प्यार में,

उस दर्द से दिल मेरा रो पडा !

मिलेंगे तुम्हें हज़ारो दौलतमंद पर,

प्रीत की होगी वहां न भनक,

राह भूल मेरे अनमोल प्रेम को,

तोड़ देगी पैसे की खनक !

अपने सारे गमो को मै छुपा लूंगा,

एक तुम्हारी ख़ुशी के लिए

अब ना आयेंगे…

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Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 3, 2011 at 7:30pm — 2 Comments

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"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
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Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
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"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
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"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
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"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
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