आप खुश रहना................
है दिए जो जख्म आपने दिल को,
भर दे उसे कोई किसी में है ओ प्रीत कहाँ,
बहते मेरे लावारिस अश्को को कोई थामले,
है एक तेरे सिवा दूसरा मन्मित कहाँ,
है किये जो घोर अँधेरा मेरे जीवन में,
आक़े करे कोई रोशन है यैसी तक़दीर कहाँ,
जब ह्रदय की आशाएं बंद हो चली हो,
फिर इस बेचैन दिल को मिलता है करार कहाँ,
जब तुम कर चले बेदरंग इस जीवन को,
फिर इस जीवन में किसी और प्रीत रंग की है आश…
Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 3, 2011 at 12:00pm — 2 Comments
Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 2, 2011 at 5:37pm — 1 Comment
शब्दों के जाल में फँस कर उलझ गया हूँ ,
मैं बस शब्द बन कर रह गया हूँ ,
सोचता हूँ निकल जाऊ इस जाल से ,
मगर वो कर नहीं पाता, कारण ?
जब भी कोशिश करता हूँ ,
और भी उलझता ही जाता हूँ ,
पहले बेटा फिर भाई ,
फिर काका बन गया ,
आगे चल कर पति ,
फिर पिता और अब ,
दादा बन गया हूँ ,
अगर अब भी नहीं निकल पाया ,
तो ये मेरी बदनसीबी हैं ,
हे प्रभु बुद्धि दे ,
मेरी सुधि ले ,
कि मैं इस मकड़ जाल से निकल सकूँ ,
और इन शब्द जाल से निकल…
Added by Rash Bihari Ravi on March 2, 2011 at 4:00pm — 3 Comments
वक़्त की अठखेलियों से फिर जनाज़े हाय निकले;
एक पिंजरे में कुरेदा तो अनोखे भाव निकले;
कितने अरमान गूंजते थे जुगनुओं से रास्तों में;
सुर्ख थे नींदों में सारे जब जगा तो स्याह निकले.
जब जलज की पंखुड़ी पर अश्रु थामे तुम खड़े थे;
दुःख तो थोड़े थे हमारे किन्तु तुम कितने बड़े थे;
नीर था चारों तरफ फिर नाव क्यों चलती नहीं थी;
हम किनारे पर डुबे थे तुम तो दरिया पार निकले.
सोचता हूँ इस…
Added by neeraj tripathi on March 2, 2011 at 11:12am — 5 Comments
Added by राजेश शर्मा on March 2, 2011 at 9:00am — 7 Comments
Added by Akhileshwar Pandey on March 1, 2011 at 4:30pm — 3 Comments
कभी मेरी नज़रों से देखो ,
Added by Veerendra Jain on February 28, 2011 at 11:30pm — 13 Comments
Added by rashmi prabha on February 28, 2011 at 7:30pm — 18 Comments
Added by Bhasker Agrawal on February 28, 2011 at 12:36am — 7 Comments
Added by R N Tiwari on February 27, 2011 at 8:30pm — 7 Comments
Added by Abhinav Arun on February 27, 2011 at 7:00pm — 4 Comments
Added by rashmi prabha on February 27, 2011 at 4:00pm — 10 Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 27, 2011 at 1:00pm — 5 Comments
ओ. बी. ओ. परिवार के सम्मानित सदस्यों को सहर्ष सूचित किया जाता है की इस ब्लॉग के जरिये बह्र को सीखने समझने का नव प्रयास किया जा रहा है| इस ब्लॉग के अंतर्गत सप्ताह के प्रत्येक रविवार को प्रातःएक गीत के बोल अथवा गज़ल दी जायेगी, उपलब्ध हुआ तो वीडियो भी लगाया जायेगा, आपको उस गीत अथवा गज़ल की बह्र को पहचानना है और कमेन्ट करना है अगर हो सके तो और जानकारी भी देनी है, यदि उसी बहर पर कोई दूसरा गीत/ग़ज़ल मिले तो वह भी बता सकते है। पाठक एक दुसरे के कमेन्ट से प्रभावित न हो सकें…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on February 27, 2011 at 10:30am — 1 Comment
मैं अक्सर निकल जाता हूँ भीडभाड गलियों से
रौशनी से जगमग दुकाने मुझे परेशान करती हैं
मुझे परेशां करती है उन लोगों की बकबक
जो बोलना नहीं जानते
मै भीड़ नहीं बनना चाहता बाज़ार का
मैं ग्लैमर का चापलूस भी नहीं बनना चाहता
मुझे पसंद नहीं विस्फोटक ठहाके
मै दूर रहता हूँ पहले से तय फैसलों से
क्योंकि एकदिन गुजरा था मै भी लोगों के चहेते रास्ते से
और यह देखकर ठगा रह गया की
मेरा पसंदीदा व्यक्ति बदल चूका था
बदल चुकी थी उसकी…
Added by Akhileshwar Pandey on February 27, 2011 at 1:28am — 3 Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 26, 2011 at 10:52pm — 3 Comments
है दिए जो जख्म आपने दिल को,
भर दे उसे कोई किसी में है ओ प्रीत कहाँ,
बहते मेरे लावारिस अश्को को कोई थामले,
एक तेरे सिवा दूसरा ओ मन्मित कहाँ,
आप ने किये जो घोर अँधेरा मेरे जीवन में,
आक़े अब कोई रोशन करे है यैसी तक़दीर कहाँ,
जब ह्रदय की आशाएं बंद हो चली…
ContinueAdded by Sanjay Rajendraprasad Yadav on February 26, 2011 at 7:00pm — 2 Comments
प्रीतम की गली.........
हर किसी के ज़िन्दगी में बसता है किसी के ख्वाबो का कारवां,
दूरियाँ मित जाती है मीट जाते है सारे शिकवे गीले,
हर किसी के धड़कन में होती है किसी की मुहब्बत जवां,
चाहतो का सैलाब लिए जब दो बदन हो एक मीले,
अपने प्रियवर के ख्वाब,को रोशन करे ऐ दिल की समां
उड़ चला जाता है ये मन इस दुनिया से दूर बहुत,
जहां प्रिय मिलन के मदहोश…
ContinueAdded by Sanjay Rajendraprasad Yadav on February 26, 2011 at 6:30pm — 2 Comments
कविता :- छोड़ दूं सच साथ तेरा
हर अनुभव हर चोट के बाद
अक्सर ऐसा सोचता हूँ
छोड़ दूं सच साथ तेरा
चल पडूँ ज़माने की राह
जो चिकनी है और दूर तक जाती है
जिस राह पर चलकर
किसी को शायद नहीं रहेगी
शिकायत मुझसे
अच्छा…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 26, 2011 at 1:30pm — 11 Comments
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