श्रमिक दिवस पर श्रमजीवी को आओ शीश झुकाएँ।
बलाक्रान्त शोषित निर्बल को मिलकर सभी बचाएँ।
दुरित दैन्य दुख झेल रहे हैं
सदा मौत से खेल रहे हैं।
तृषा तपन पावस तुसार सह
जीवन नौका ठेल रहे हैं।
हर सुख से जो सदा विमुख हो उस पर बलि-बलि जाएँ।
निर्मित जो करता नवयुग तन,उसे नहीं ठुकराएँ।
आजीवन कटु गरल पी रहे
दुर्धर जीवन सभी जी रहे।
हाँफ-हाँफ कर विदीर्ण दामन
जीने के हित सदा सी रहे।
कर्म निरत गुरु गहन श्रमिक…
ContinueAdded by डॉ छोटेलाल सिंह on May 1, 2020 at 11:30am — 8 Comments
221 1221 1221 122
तू यार हवा गर है तो मानन्द-ए-सबा रह
तू है दुआ तो एक असर वाली दुआ रह
**
तू अब्र है तो बर्क़ से झगड़ा न किया कर
हर हाल में पाबंद-ए-रह-ए-रस्म-ए-वफ़ा रह
**
तू शम'अ है तो ताक़ में रह कर ही जला कर
तूफ़ान है तो दिल में मेरे यार उठा रह
**
तू याद किसी की है तो हिचकी में समा जा
तू ज़ख़्म अगर दिल का है दिन रात हरा रह
**
आज़ाद तेरे इश्क़ से हो पाऊँ न…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 30, 2020 at 3:30pm — 6 Comments
Added by amita tiwari on April 30, 2020 at 3:00am — 5 Comments
आहट .....
दिल
हर आहट को
पहचानता है
आहट
बेशक्ल नहीं होती
होती हैं उसमें
हज़ारों ख़्वाहिशें
जिनके इंतज़ार में
ज़िंदगी
रहती है ज़िंदा
फ़ना होने के बाद भी
सहर होती है साँझ होती है
वक़्त मगर
ठहरा ही रहता है
किसी आहट के इंतज़ार में
नज़रें
अपनी ख़्वाहिशों के अक़्स
देखने को बेताब रहती हैं
तसव्वुर में
ज़िंदा रहती हैं
आहटें
मगर
मिलता है धोख़ा
सायों…
Added by Sushil Sarna on April 29, 2020 at 8:04pm — 6 Comments
एक ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल (1222 *4 )
.
ज़मीँ पर हल चलाता है इसी उम्मीद में कोई
कभी तो जाग जाएगी मेरी क़िस्मत अगर सोई
**
मेरे किरदार की दौलत रहे महफूज़, काफ़ी है
मुझे कुछ ग़म नहीं होगा मेरी दौलत अगर खोई
**
भले इल्ज़ाम मुझ पर बेवफ़ा होने का लग जाये
मगर बर्दाश्त कैसे हो उसे रुस्वा करे कोई
**
अभी भी रोक दो सब क़ह्र क़ुदरत पे न बरपाओ
अरे बर्बाद कर देगी कभी क़ुदरत अगर रोई
**
मेरा…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 29, 2020 at 12:00pm — 6 Comments
आत्मावलंबन
बाहरी दबाव और आंतरिक आदर्श
असीम उलझन और तीव्रतम संघर्ष
ऐसा भी तो होता है कभी
कि मन का सारा संघर्ष मानो
किसी एक बिंदु पर केंद्रित हो उठा हो
और पीड़ा ... जहाँ कहीं से भी उभरी
सारी की सारी द्रवित हो कर
उस एक बिंदु के इर्द-गिर्द
ठहर-सी गई हो
बह कर कहीं और चले जाने का
उस पीड़ा का
कोई साधन न हो
वाष्प-सा उसका उड़…
ContinueAdded by vijay nikore on April 28, 2020 at 6:52am — 6 Comments
आज धरती धन्य है , उसका हृदय प्रमुदित हुआ
स्वच्छ वायु , स्वच्छ जल , पर्यावरण निर्मल हुआ
गर यही स्थिति रही तो संक्रमण मिट जाएगा
यदि पुनः मानव ना अपनी गलतियां दोहराएगा
क्या कभी नभ सर्वदा उज्ज्वल धुला रह पाएगा ?
या कि फिर से धुन्ध का अजगर निगल ले जाएगा
है यही सपना निशा में दमकते नक्षत्र हों
चँहु दिशा पंछी चहकते उपवनों में मस्त हों
शुद्ध हो वातावरण , कैसे ? बड़ों से ज्ञान लें
उनकी अनुभव जन्य ज्ञान मशाल…
ContinueAdded by Usha Awasthi on April 27, 2020 at 7:39pm — 6 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
दूध को जो दूध और पानी को पानी लिख रहे हैं
लोग वो कम ही बचे जो हक़बयानी लिख रहे हैं
खेत में ओले पड़े हैं नष्ट सब कुछ हो चुका है
कूल है मौसम बहुत वे ऋतु सुहानी लिख रहे हैं
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 27, 2020 at 6:59pm — 10 Comments
पूछते क्या हो यूं लेकर सवाल आंखों में
पढ सको पढ लो मेरा सारा हाल आंखों में
देखना था कि समंदर से क्या निकलता है
बस यही सोच के फेंका था जाल आंखों में
वो मिरे सामने आती है झुकाए पलकें
हया को रखा है उसने संभाल आंखों में
नजर से नब्ज पकडकर इलाज कर भी कर दे
वो लेकर चलती है क्या अस्पताल आंखों में
जो उसका साथ है तो तीरगी से डर कैसा
इश्क में जलने लगती है मशाल आंखों में।। #अतुल
…
Added by atul kushwah on April 27, 2020 at 4:50pm — 1 Comment
कुछ पल और ठहर जाओ के रात अभी बाकी है
दो घूंट कश के लगाओ के कई बात अभी बाकी है
जो टूटे है ख्वाब सारे वो बैठ के जोड़ेंगे
छाले दिल में है जितने भी इसी हाथ से फोड़ेंगे
थोड़ा तुम दिल को बहलाओ के ज़ज़्बात अभी बाकी है
के आज हद से गुज़र जाओ मुलाकात अभी बाकी है
तमन्ना जो भी है दिल में आज पूरी सारी कर लो
हम खाएं खो ना जाएं अपने बाहों में भर लो
करेंगे हम ना अब इंकार के इकरार अभी बाकी है
ना होंगे फिर ये हालात के ऐतबार अभी बाकी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 27, 2020 at 2:28pm — 7 Comments
जब हो हृदय अतिशय व्यथित
मन में उठें लहरें अमिट।
शब्द के जल से द्रवित हो
अश्रु सा बन धार बहना
काव्य सरिता का निकलना
है यही कविता का कहना।।काव्य सरिता का...
या परम सुख की घड़ी में
याद करके जिस कड़ी को।
या हृदय की धड़कनों से
शब्द गुच्छों का निकलना
काव्य सरिता का है बहना।काव्य सरिता का....
या विरह की वेदना का
जब स्वयं वर्णन हो करना।
बिन कहे सब कुछ हो कहना
शब्द की नौका पे चढ़कर
दर्द की दरिया में बहना
है यही कविता का…
Added by Awanish Dhar Dvivedi on April 27, 2020 at 9:19am — 1 Comment
डॉक्टर की बातों के जवाब में वर्मा जी कहने लगे-
-हाँ साहब, मुझे पुरानी चीजों से लगाव है।चाहे यादें हों,या पुस्तकें,पन्ने आदि।
-मसलन?
-मैं यदा-कदा यह निर्णय ही नहीं कर पाता कि किन यादों को स्मृति-पटल से खुरचकर मिटा देना चाहिए या कौन किताब या पन्ना अपनी अलमारी से बाहर करूँ,कौन रखूँ।
-मतलब ,आप दुविधाग्रस्त रहते हैं।
-जी।
-और पुरातनता से संबद्ध भी रहना चाहते हैं।
-जी।पर कभी-कभी अपने इस लगाव के चलते पश्ताचाप भी होता है कि मैं अनावश्यक तौर पर अनचाही चीजों में फँसकर खुद…
Added by Manan Kumar singh on April 27, 2020 at 8:30am — 4 Comments
Added by नाथ सोनांचली on April 27, 2020 at 6:24am — 6 Comments
गीत
देखा जब से उनको हिय में हुई अजब सी हलचल।
दिन को चैन और रातों को नींद नहीं है इक पल।।
उनके अरुण अधर ज्यों फूलों की हों कोमल कलियाँ।
जिनसे फूटें स्वर मधुरिम तो गूँजें मन की गलियाँ।।
केशों के झुरमुट में उनका मुखमंडल यों भाये।
घन के मध्य झरोखे में ज्यों इंदु मंद मुसकाये।।
दृग पराग के प्याले हों ज्यों करते हर पल छल-छल।
दिन को चैन और रातों को नींद नहीं है इक पल।।
खिलता यौवन-पुष्प सुरभि यों चहुँ दिश बिखराता…
ContinueAdded by रामबली गुप्ता on April 26, 2020 at 11:03pm — 6 Comments
झूठ
नहीं, नहीं
रहने दो
सच और झूठ की ये तकरार
सच में बेकार है
सत्य
जब उजागर होता है
तो आघात देता है
और झूठ जब उजागर होता है
तो शर्मिंदगी का शूल देता है
फिर क्यूँ मुझे
अपने सच और झूठ का स्पष्टीकरण देते हो
सच कहूँ
यदि आघात ही सहना है तो
मुझे ये झूठ अच्छा लगता है
कम से कम मौन पलों में
स्नेह का आवरण तो नहीं हटता
कोई स्वप्न मेघ तो नहीं फटता
स्पर्शों की आँधी
सत्य के चौखट पर…
Added by Sushil Sarna on April 26, 2020 at 9:00pm — 4 Comments
दिल के दोहे :
पागल मन की मर्ज़ियाँ, उत्पाती उन्माद।
हुए अलंकृत स्वप्न से, नैनों के प्रासाद।।
वंचक नैनों का भला , कौन करे विश्वास।
इनके हर अनुरोध में, छलके तन की प्यास।।
नैनों के अनुरोध को, नैन करें स्वीकार।
लगती है इस खेल में, दिल को अच्छी हार।।
हृदय कुंज में अवतरित, हुई पिया की याद।
नैन तीर को कर गई, अश्कों से आबाद।।
तृषा हुई बैरागिनी, द्रवित हुए शृंगार।
हौले-हौले दिन ढला, रैन बनी…
Added by Sushil Sarna on April 26, 2020 at 7:10pm — 8 Comments
नन्हीं बिटिया जग में आई
बड़ी उदासी घर में छाई!
सब के सब हैं चुपचाप मगर
मैया की छाती भर आई।।
जन्म दिया मैया कहलाई
पर इक बात समझ ना आई
नानी है या कोई मिसरी?
माँ से भी मीठी कहलाई।।
पहले बिटिया बनकर आई
फिर बिटिया को जग में लाई
माँ बनती जब, माँ की बिटिया
तब जाकर नानी कहलाई।।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Dharmendra Kumar Yadav on April 26, 2020 at 3:30pm — 3 Comments
पत्थर को भी फूल सरीखा होना अच्छा लगता है
काँधा अपनेपन का हो तो रोना अच्छा लगता है।१।
**
पहले जगकर रोज भोर में सूरज ताका करते थे
अब आँखों को उसी वक्त में सोना अच्छा लगता है।२।
**
छीन लिया है वक्त ने चाहे खेत का जो भी टुकड़ा था
बेटे हलधर के हम जिन को बोना अच्छा लगता है।३।
**
घोर तमस के बीच भी जो तब चौपालों में रहते थे
उनको…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2020 at 12:31pm — 9 Comments
++ग़ज़ल++ ( 1222 *4 )
न हो किरदार अपना रब गिरी दीवार की सूरत
कभी बिगड़े नहीं या रब मेरे पिंदार की सूरत
**
ख़ुदाया ख़म कभी सर हो न मेरा इस ज़माने में
सदा क़ायम रहे हर पल मेरे मेआ'र की सूरत
**
दिखाए मुख़्तलिफ़ रंगों में उसने प्यार के जलवे
कभी इक़रार की सूरत कभी इंकार की सूरत
**
सितम कर दिल्लगी कर बस ख़याल इतना ज़रा रखना
न हो ये ज़िंदगी ज़िंदान-ए-तंग-ओ-तार की सूरत
**
जवानों के नए अंदाज़…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 26, 2020 at 8:30am — 6 Comments
1222 1222 122
निगाहों से हुई कोई ख़ता है ।
जो दिल तुझसे वो तेरा मांगता है ।।
रवानी जिस मे होती है समंदर ।
उसी दरिया से रिश्ता जोड़ता है ।।
हमारी ज़िन्दगी को रफ्ता रफ्ता ।
कोई सांचे में अपने ढालता है ।।
तुम्हारे हुस्न के दीदार ख़ातिर ।
यहाँ शब भर ज़माना जागता है ।।
कभी तुम हिचकियों से पूछ तो लो ।
तुम्हे अब कौन इतना चाहता है ।।
ठहर जाती हैं नज़रें…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on April 25, 2020 at 12:35pm — 4 Comments
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