अधूरा था
मेरा ज्ञान
सर्वभक्षी के बारे में
मै जानता था
केवल अग्नि है सर्व भक्षी
मगर
सब कुछ खाते थे वे
सांप, झींगुर,कीट –पतंग
यहाँ तक कि चमगादड़ भी
असली सर्वभक्षी तो ये थे
इन्हें पता था
प्रकृति लेती है बदला
पर उन्हें भरोसा था
कि वे बदल देंगे
अपने ज्ञान-विज्ञान से
विनाश की दशा और गति
पर जब हुआ
विनाश का तांडव्
फिर कोई न बचा पाया
और न कोइ…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 22, 2020 at 1:30pm — 2 Comments
रक्त वर्ण इन पुष्प गुच्छ से
तुमने जो श्रृंगार किया
तपती गर्म दोपहरी को भी
है तुमने रसधार किया
लू के गर्म थपेड़ों से
बच रहने का उपचार किया
नारंगी और पीत रंग के
भावों से मनुहार किया
पथिकों को विश्राम , पंछियों को
आश्रय , उपहार दिया
जिस धरती से अंकुर फूटा
उसका कर्ज़ उतार दिया
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 22, 2020 at 12:45pm — No Comments
(212 1222 212 1222)
बेच कर ज़मीर उसको फ़ायदा हुआ होगा
ज़िंदगी में फिर उसके जाने क्या हुआ होगा
क़त्ल तो यक़ीनन था पर बयान आया है
फिर बहस छिड़ी है कि हादसा हुआ होगा
बदहवास पत्ते फिर ज़र्द पड़ गये सारे
कल ख़िज़ाँ के मौसम पर फैसला हुआ होगा
रौशनी में जंगल भी जगमगा रहा होगा
चांँद पेड़ की टहनी पर टंँगा हुआ होगा
बोझ से मांँ तसले के दोहरी हुई होगी
पीठ पर कोई बच्चा भी बंँधा हुआ…
Added by सालिक गणवीर on April 22, 2020 at 9:30am — No Comments
2122 2122 2122 2
एक ग़ज़ल मीठी सुनाकर बैठ जाऊँगा
मैं तुम्हारे दिल में आकर बैठ जाऊँगा
वक्त मुझको अपने आने का बताओ तो
राह में पलकें बिछाकर बैठ जाऊँगा
सामने सबके कहूँगा प्यार है तुझसे
ये न सोचो मैं…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 21, 2020 at 5:30pm — 4 Comments
फूल-सी सुकोमल,सुकुमारी
कौन-सा फूल तेरी बगिया की
न्यारी-प्यारी माँ-बाबा की दुलारी
मुस्कराती ,बाबा फूले ना समाते
फूल-से झङते माँ होले-से कहती
पर दादी झिङकती-फूल कोई-सा होवे
पर सिर पर ना ,चरणों में चढाये जावे
उस समय कोमल मन को समझ ना आई
जब किसी के घर गुलदान की शोभा बनी
तब बात समझ आई
नकारा,छटपटाई,महकना चाहती थी
टूटकर अस्तित्वहीन नहीं होना था
पर असफल रही,दल-दल छितर-बितर गया
सोचती,मैं फूल तो हूँ
चंपा,चमेली,चांदनी,पारिजात नहीं
गुलाब…
Added by babitagupta on April 21, 2020 at 4:32pm — No Comments
२१२२/ २१२२/ २१२२
आप कहते आपदा में योजना है
सत्य में हर भ्रष्ट को यह साधना है।१।
**
बाढ़ सूखा ऐपिडेमिक या हों दंगे
चील गिद्धों के लिए सद्कामना है।२।
**
घोषणाएँ हो रही हैं नित्य जो भी
वह गरीबों के लिए बस व्यंजना है।३।
**
बँट रहा है ढब खजाना सत्य है यह
किंतु किसको मिल रहा ये जाँचना है।४।
**
हो गई है हर जिले में अब व्यवस्था
शौक से लूटे जिसे भी लूटना …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 21, 2020 at 7:00am — 4 Comments
( 212 1212 1212 1212 )
गर बढ़ा असर किसी भी रोग के इ'ताब का
है पलटना तय तुरंत ज़िंदगी के बाब का
**
जिन्न एक सैंकड़ों हयात क़त्ल कर रहा
इंतज़ार है ख़ुदा सदाओं के जवाब का
**
हसरतें न दिल की हों दिमाग़ पर कभी सवार
इख़्तियार हो नहीं लगाम पर रिकाब का
**
बैठ कर ये सोचना हुज़ूर इतमिनान से
क्या किया है हश्र प्यार के हसीन ख़्वाब का
**
सोच अम्न-ओ-चैन की रहे हर एक दिल में गर
देखना पड़े न…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 20, 2020 at 8:30pm — 4 Comments
2212/ 1211/ 2212/ 12
चेहरा छुपा लिया है सभी ने नका़ब में,
परदा नशीं बने हैं सभी इस अ़ज़ाब में।
आक़ा हो या अ़वाम सभी फ़िक्रमन्द हैं,
अब घिर चुकी है पूरी जमाअ़त इताब में।
फ़ाक़ाकशी न कर दे कहीं ज़िन्दगी फ़ना,
सब लोग मुब्तिला हैं इसी इज़्तिराब में।
करता रहा ग़रूर सदा जिस ग़िना पे तू ,
क़ुदरत न कुछ है आज तेरे इस निसाब में।
क्या ये अ़ज़ाब है या कोई इम्तिहान है ?,
ये …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 20, 2020 at 5:30pm — 5 Comments
Added by विनय कुमार on April 20, 2020 at 3:40pm — 4 Comments
एक नज़्म-कोरोना
.
ये साफ़ नहीं है कोरोना कितनी ज़ालिम बीमारी है
मालूम नहीं है दुनिया को ये किसकी कार-गुज़ारी है
**
कुछ लोग अज़ाब इसे कहते कुछ कहते कि महामारी है
आसेब हक़ीक़त में अब ये सारी दुनिया पर भारी है
**
हल्के में मत लेना इसको ये रोग शरर भी शोला भी
बच्चों बुड्ढों की ख़ातिर यह क़ुदरत की आतिश-बारी है
**
हैरान परेशां कर डाला दुनिया के लोगों को इसने
घर को ज़िन्दान बनाना अब हर इंसां की…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 19, 2020 at 2:30pm — 6 Comments
२२१/२१२२/२२१/ २१२२
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लोरी सुना सुलाती रातें कहाँ गयीं अब
बचपन में चहचहाती सुब्हें कहाँ गयीं अब।१।
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दिनभर का खेलना वो हर भूख भूलकर नित
मस्ती भरी गजब की शामें कहाँ गयीं अब।२।
**
हर छलकपट से बंचित लड़ना झगड़ना लेकिन
मन से निकलती सच्ची बातें कहाँ गयीं अब।३।
**
जिनपर थी झुर्रियाँ ढब हरपल थी कँपकपाती
रखती थी किन्तु थामे बाहें कहाँ गयीं अब।४।
**
वो होंट खिल-खिलाते मुरझा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 19, 2020 at 6:52am — 4 Comments
राजा विक्रमादित्य फिर वेताल को कंधे पर ले कर जंगल से चला. रास्ते में वेताल विक्रम से बोला- 'राजा, तुम चतुर ही नहीं बुद्धिमान् भी हो, लेकिन आज विश्व में जो कोविड-19 के कारण लाखों लोग मर रहे हैं और अनेक मौत के मुँह में जाने को हैं. छोटा क्या बड़ा क्या, अमीर क्या गरीब क्या, डॉक्टर क्या वैज्ञानिक क्या, नेता क्या अभिनेता क्या, दोषी, निर्दोष सभी इस बीमारी से हताहत हो रहे हैं. मनुष्य ने…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on April 18, 2020 at 6:02pm — 2 Comments
राष्ट्र धर्म - लघुकथा -
परिवार के सभी लोग शाम सात बजे का महाभारत का टी वी पर प्रसारण देख रहे थे।तभी मोबाइल बज उठा।सभी का ध्यान बंट गया।मैं मोबाइल लेकर मेरे कमरे में चला आया।
मोबाइल कान पर लगाया।"हल्लो सिंह साहब, वर्मा बोल रहा हूँ।"
"बोलिये वर्मा जी, कैसे मिजाज हैं?"
"क्या बतायें सर, इस लॉक डाउन ने सब गुड़ गोबर कर रखा है।"
"हाँ थोड़ी परेशानी तो है ही।बोलो कैसे याद किया?"
"भोजन हो गया क्या?"
"आजकल रात्रि का भोजन तो महाभारत के पश्चात ही होता…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on April 18, 2020 at 9:48am — 4 Comments
जीवन के रिश्तों में इतने झोल नहीं होते
अपने मुँह में जो ये कड़वे बोल नहीं होते
रस्ता एक पकड़ कर यदि चलते ही जाते हम
मंजिल तक अपने पग डाँवाडोल नहीं होते
कृष्ण भक्ति में अगर नहीं डूबी होती मीरा
उसके प्याले में भी…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 18, 2020 at 9:10am — 6 Comments
Added by amita tiwari on April 17, 2020 at 9:00am — 2 Comments
अकेले तुम नहीं यारा
तुम्हारे साथ और भी बात
मुझे हैं याद
कि जैसे फूल खिला हो
तुम हसीं, बिलकुल महकती सी
चहकती सी
मृदुल किरणों में धुलकर आ गई
और छा गई
जैसे कि बदली जून की
तपती दोपहरी से धरा को छाँव देती
ठाँव देती हो मुसाफिर को
कि जैसे झील हो गहरी
कि ये भहरी…
Added by आशीष यादव on April 17, 2020 at 7:09am — 2 Comments
तर्क यदि दे सको तो
बैठो हमारे सामने
व्यर्थ के उन्माद में , अब
पड़ने की इच्छा नहीं
यदि हमारी संस्कृति को
कह वृथा , ललकारोगे
ऐसे अज्ञानी मनुज से
लड़ने की इच्छा नहीं
सर्व ज्ञानी स्वयं को
औरों को समझें निम्नतर
जिनके हृद कलुषित , है उनको
सुनने की इच्छा नहीं
व्यर्थ के उन्माद में , अब
पड़ने की इच्छा नहीं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 15, 2020 at 8:32pm — 8 Comments
221 2121 1221 212
आँखों में बेबसी है दिलों में उबाल है.
कैसा फरेबी वक्त है चलना मुहाल है.
जो हर घड़ी करीब हैं उनका नहीं ख़्याल,
जो बस ख़्याल में है उसी का ख़्याल है.
रहता हूं जब उदास किसी बात के बिना,
तब खुद से पूछना है जो वो क्या सवाल है
.
पहुँचें हैं जिस मकाम पर उससे गिला हो क्या,
बस रास्तों की याद का दिल में मलाल है.
कुछ लोग बदहवास हैं सोने के भाव से,
कुछ लोग मुतमईन हैं रोटी है दाल…
Added by मनोज अहसास on April 14, 2020 at 11:59pm — 7 Comments
जब से तुमको, देखा सविता।
भूल गया मैं, लिखना कविता।।
भाता मुझको, पैदल चलना।
तुम चाहो, अंबर में उड़ना।
सैर-सपाटा, बँगला-गाड़ी।
फैशन नया, रेशमी साड़ी।
सखियाँ तेरी, इशिता शमिता।
भूल गया मैं, लिखना कविता।।
तुमको प्यारे, गहने जेवर।
नखरे न्यारे, तीखे तेवर।
होकर विह्वल, संयम खोती।
हँसती पल में, पल में रोती।
आँसू बहते, जैसे सरिता।
भूल गया मैं, लिखना कविता।।
नारी धर्म, निभाया तूने।
माँ बनकर,…
Added by Dharmendra Kumar Yadav on April 14, 2020 at 4:30pm — 1 Comment
(1212 1122 1212 22 /112 )
रिवायतें तो सनम सब निभाई यारी की
तमाम तोड़ हदें हमने दुनिया-दारी की
**
करोगे बात किसी की गर इंतजारी की
जुड़ेगी इस से कहानी भी बेक़रारी की
**
जब आब सर से हमारे लगा गुज़रने तब
निराश होके सनम हमने दिलफ़िगारी की
**
रक़ीब से जो मिले आप बे-हिज़ाब मिले
हमीं से सिर्फ़ लगातार पर्दे-दारी की
**
जूनून और गुमाँ में हुज़ूर भूल गए
क़सम भी कोई निभानी है राज़-दारी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 14, 2020 at 11:00am — 5 Comments
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