For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,998)

पहले जगकर रोज भोर में सूरज ताका करते थे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२/२२२२/२२२२/२२२

पत्थर को भी फूल सरीखा होना अच्छा लगता है

काँधा अपनेपन का हो तो रोना अच्छा लगता है।१।

**

पहले जगकर रोज  भोर  में  सूरज ताका करते थे

अब आँखों को उसी वक्त में सोना अच्छा लगता है।२।

**

छीन लिया है वक्त ने चाहे खेत का जो भी टुकड़ा था

बेटे हलधर के  हम  जिन को  बोना अच्छा लगता है।३।

**

घोर तमस के बीच भी जो  तब चौपालों में रहते थे

उनको…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2020 at 12:31pm — 9 Comments

न हो किरदार अपना रब गिरी दीवार की सूरत(९१ )

++ग़ज़ल++ ( 1222 *4 )

न हो किरदार अपना रब गिरी दीवार की सूरत

कभी बिगड़े नहीं या रब मेरे पिंदार की सूरत

**

ख़ुदाया ख़म कभी सर हो न मेरा इस ज़माने में

सदा क़ायम रहे हर पल मेरे मेआ'र की सूरत

**

दिखाए मुख़्तलिफ़ रंगों में उसने प्यार के जलवे

कभी इक़रार की सूरत कभी इंकार की सूरत

**

सितम कर दिल्लगी कर बस ख़याल इतना ज़रा रखना

न हो ये ज़िंदगी ज़िंदान-ए-तंग-ओ-तार की सूरत

**

जवानों के नए अंदाज़…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 26, 2020 at 8:30am — 6 Comments

ग़ज़ल - जो दिल तुझसे वो तेरा मांगता है

1222 1222 122



निगाहों से हुई कोई ख़ता है ।

जो दिल तुझसे वो तेरा मांगता है ।।

रवानी जिस मे होती है समंदर ।

उसी दरिया से रिश्ता जोड़ता है ।।

हमारी ज़िन्दगी को रफ्ता रफ्ता ।

कोई सांचे में अपने ढालता है ।।

तुम्हारे हुस्न के दीदार ख़ातिर ।

यहाँ शब भर ज़माना जागता है ।।

कभी तुम हिचकियों से पूछ तो लो ।

तुम्हे अब कौन इतना चाहता है ।।

ठहर जाती हैं नज़रें…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on April 25, 2020 at 12:35pm — 4 Comments

ग़ज़ल

2122 2122 212

जाने कैसी तिश्नगी है ज़िंदगी ।

ख्वाहिशों की बेबसी है जिंदगी ।।

हर तरफ़ मजबूरियों का दौर है ।

ज़ह्र कितना पी रही है जिंदगी ।।

फ़िक्र किसको है सियासत तू बता ।

भूख से दम तोड़ती है जिंदगी ।।

दर्दो ग़म मत पूछिए मेरा सनम ।

बेवफ़ा सी हो गयी है ज़िन्दगी ।।

इस वबा के जश्न में तू देख तो ।

क्यूँ बहुत सहमी हुई है ज़िन्दगी ।।

है तबाही का नया मंज़र यहां…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on April 25, 2020 at 12:27pm — 1 Comment

विरोध पर पञ्चचामर छंद में रचना

पञ्चचामर छंद

सूत्र : जगण + रगण + जगण + रगण + गुरु

शरीर लोकतन्त्र तो विरोध एक वस्त्र है

विरोध एक नाम है विरोध अस्त्र शस्त्र है

न अंधकार हो कहीं विरोध वो मशाल है

विरोध एक आग है विरोध क्रांति भाल है।।1

विरोध कीजिए भले, विकास को न रोकिये

विपक्ष पक्ष साथ हो, तुरन्त आप टोकिये

कभी विरोध नाम से यहाँ न तोड़ फोड़ हो

विरोध हो विरोध सा, विरोध में न होड़ हो।।2

अनीति या कुरीति का सदा विरोध कीजिए

भविष्य…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on April 25, 2020 at 11:05am — 4 Comments

न भुज-बल है और न धन-बल , सबसे बड़ा मनुज बुद्धि-बल |(९०)

एक गीत

**

न भुज-बल है और न धन-बल ,

मनुज बड़ा सबसे   बुद्धि-बल |

**

अभिमानी करते हैं केवल नित्य प्रदर्शन अपने धन का |

डर फैलाते चन्द भुजबली रोब दिखाकर अपने तन का |

लक्ष्मी जैसे ही रूठेगी सर्वनाश होना निश्चित है |

मिला स्वयं से शक्तिमान तो गर्व नाश होना निश्चित है |

कहने का बस अर्थ यही है धन-बल भुज-बल हैं अस्थायी,

किन्तु भ्रष्ट नहीं हो जब तक

अक़्ल कभी न…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 24, 2020 at 11:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल मनोज अहसास

221   2121   1221    212

वो मेरी ज़िन्दगी है उसे ये पता नहीं,

मैंने सलीके से ही यकीनन कहा नहीं।

ऐसा कोई कोई है ज़माने में दोस्तो,

जो आने वाले कल की कभी सोचता नहीं।

सब अपनी अपनी धुन में बताते हैं उसकी बात,

वो कैसा है, कहाँ है,किसी को पता नहीं।

मजबूरियां हमारी हमारा नसीब है,

चलने की आरज़ू है मगर रास्ता नहीं।

बेकार सर खपाने की आदत का क्या करें,

कोई नया ख्याल मयस्सर हुआ नहीं।

हर फूल को बिछड़ना है डाली से एक दिन, …

Continue

Added by मनोज अहसास on April 23, 2020 at 10:30pm — 6 Comments

पिता पर मत्त गयंद छंद में एक रचना

मत्त गयंद छंद

हाथ रखा जिसने सिर पे वह जीवन सम्बल शक्ति पिता है

प्रेम प्रशासन औ अनुशासन प्यार दुलार विभक्ति पिता है

रीढ़ झुकी उसके तन की पर वज्र दधीचि प्रसक्ति पिता है

तीर्थ बसें जग के जिसमें सब पूजित वो इक व्यक्ति पिता है।।1

खार बिछावन हो अपना सुत सेज रखे पर फूल पिता है

पुत्र हजार करे गलती पर माफ़ करे सब भूल पिता है

होकर आज बड़ा सुत जो कुछ है उसका सब मूल पिता है

पूत कपूत सपूत बने, बनता न कभी प्रतिकूल पिता है।।2

शौक सभी…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on April 23, 2020 at 8:30am — 7 Comments

नारियल- लघुकथा

"आज तो मैं जा के ही रहूंगी, चाहे पुलिस का डंडा ही क्यों न खाना पड़े", उसने एक नजर बिस्तर पर बीमार पड़े पति और भूख से बेचैन दोनों बच्चों को देखते हुए कहा.

बड़े बेटे ने साथ में सुर मिलाया "मैं भी चलूँगा अम्मा, वो तीसरे माले वाली ऑन्टी मुझे कितना मानती हैं".

उसने दृढ़ता से मना कर दिया "मुझे तो शायद छोड़ देंगे लेकिन तुझे नहीं छोड़ेंगे. तू यही छोटे का ख्याल रख, मैं कुछ लेकर आती हूँ".

बाहर निकलकर जैसे ही वह सड़क पर पहुंची, एक पुलिसवाला डंडा फटकारते हुए आया "कहाँ जा रही है, पता नहीं है कि…

Continue

Added by विनय कुमार on April 22, 2020 at 5:30pm — 4 Comments

महीना-ए-मुहर्रम में मह-ए-रमज़ान ले आये-ग़ज़ल (८९ )

(1222 *4 )

.

महीना-ए-मुहर्रम में मह-ए-रमज़ान ले आये

ग़रीबों के रुख़ों पर गर कोई मुस्कान ले आये

**

किनारे पर हमेशा बह्र-ए-दिल के एक ख़तरा है

न जाने मौज ग़म की  कब कोई  तूफ़ान ले आये

**

नहीं है मोजिज़ा तो और इसको क्या कहेंगे हम

ख़ुशी का ज़िंदगी में पल कोई  अनजान ले आये

**

ये कैसा वक़्त आया है न जाने कब कोई मेहमाँ

हमारी ज़िंदगी में  मौत का सामान ले आये 

**

कभी सोचा नहीं था घर बनेगा एक दिन ज़िंदाँ 

मगर…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 22, 2020 at 4:00pm — 4 Comments

मसीहा

अधूरा था

मेरा ज्ञान

सर्वभक्षी के बारे में

मै जानता था

केवल अग्नि है सर्व भक्षी



मगर

सब कुछ खाते थे वे

सांप, झींगुर,कीट –पतंग

यहाँ तक कि चमगादड़ भी

असली सर्वभक्षी तो ये थे

इन्हें पता था

प्रकृति लेती है बदला

पर उन्हें भरोसा था

कि वे बदल देंगे

अपने ज्ञान-विज्ञान से

विनाश की दशा और गति

पर जब हुआ

विनाश का तांडव्

फिर कोई न बचा पाया

और न कोइ…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 22, 2020 at 1:30pm — 2 Comments

गुलमोहर

रक्त वर्ण इन पुष्प गुच्छ से

तुमने जो श्रृंगार किया

तपती गर्म दोपहरी को भी 

है तुमने रसधार किया

लू के गर्म थपेड़ों से

बच रहने का उपचार किया

नारंगी और पीत रंग के

भावों से मनुहार किया

पथिकों को विश्राम , पंछियों को

आश्रय , उपहार दिया

जिस धरती से अंकुर फूटा 

उसका कर्ज़ उतार दिया

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on April 22, 2020 at 12:45pm — No Comments

ग़ज़ल ( बेच कर ज़मीर उसको ....)

(212 1222 212 1222)

बेच कर ज़मीर उसको फ़ायदा हुआ होगा

ज़िंदगी में फिर उसके जाने क्या हुआ होगा

क़त्ल तो यक़ीनन था पर बयान आया है

फिर बहस छिड़ी है कि हादसा हुआ होगा

बदहवास पत्ते फिर ज़र्द पड़ गये सारे

कल ख़िज़ाँ के मौसम पर फैसला हुआ होगा

रौशनी में जंगल भी जगमगा रहा होगा

चांँद पेड़ की टहनी पर टंँगा हुआ होगा

बोझ से मांँ तसले के दोहरी हुई होगी

पीठ पर कोई बच्चा भी बंँधा हुआ…

Continue

Added by सालिक गणवीर on April 22, 2020 at 9:30am — No Comments

मैं तुम्हारे दिल में आकर बैठ जाऊँगा - ग़ज़ल सादर समीक्षा

2122 2122 2122 2 

एक ग़ज़ल  मीठी सुनाकर बैठ जाऊँगा 

मैं तुम्हारे दिल में आकर बैठ जाऊँगा 

 

वक्त मुझको अपने आने का बताओ तो 

राह में पलकें बिछाकर बैठ जाऊँगा 

 

सामने सबके कहूँगा प्यार है तुझसे 

ये न सोचो मैं…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on April 21, 2020 at 5:30pm — 4 Comments

फूल

फूल-सी सुकोमल,सुकुमारी

कौन-सा फूल तेरी बगिया की

न्यारी-प्यारी माँ-बाबा की दुलारी

मुस्कराती ,बाबा फूले ना समाते

फूल-से झङते माँ होले-से कहती

पर दादी झिङकती-फूल कोई-सा होवे

पर सिर पर ना ,चरणों में चढाये जावे

उस समय कोमल मन को समझ ना आई

जब किसी के घर गुलदान की शोभा बनी

तब बात समझ आई

नकारा,छटपटाई,महकना चाहती थी

टूटकर अस्तित्वहीन नहीं होना था

पर असफल रही,दल-दल छितर-बितर गया

सोचती,मैं फूल तो हूँ

चंपा,चमेली,चांदनी,पारिजात नहीं

गुलाब…

Continue

Added by babitagupta on April 21, 2020 at 4:32pm — No Comments

शौक से लूटे जिसे भी लूटना है - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/ २१२२/ २१२२

आप कहते  आपदा  में योजना है

सत्य में हर भ्रष्ट को यह साधना है।१।

**

बाढ़ सूखा ऐपिडेमिक या हों दंगे

चील गिद्धों के लिए सद्कामना है।२।

**

घोषणाएँ हो  रही  हैं नित्य जो भी

वह गरीबों के लिए बस व्यंजना है।३।

**

बँट रहा है ढब  खजाना  सत्य है यह

किंतु किसको मिल रहा ये जाँचना है।४।

**

हो गई है हर जिले में अब व्यवस्था

शौक  से  लूटे  जिसे  भी लूटना …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 21, 2020 at 7:00am — 4 Comments

गर बढ़ा असर किसी भी रोग के इ'ताब का(८८ )

( 212 1212 1212 1212 )

गर बढ़ा असर किसी भी रोग के इ'ताब का

है पलटना तय तुरंत ज़िंदगी के बाब का

**

जिन्न एक सैंकड़ों हयात क़त्ल कर रहा

इंतज़ार है ख़ुदा सदाओं के जवाब का

**

हसरतें न दिल की हों दिमाग़ पर कभी सवार

इख़्तियार हो नहीं लगाम पर रिकाब का

**

बैठ कर ये सोचना हुज़ूर इतमिनान से

क्या किया है हश्र प्यार के हसीन ख़्वाब का

**

सोच अम्न-ओ-चैन की रहे हर एक दिल में गर

देखना पड़े न…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 20, 2020 at 8:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल (इंक़लाब)

2212/ 1211/ 2212/ 12 

चेहरा छुपा  लिया है सभी  ने नका़ब  में, 

परदा नशीं बने  हैं सभी  इस अ़ज़ाब में।

आक़ा  हो या अ़वाम सभी फ़िक्रमन्द  हैं, 

अब घिर चुकी है पूरी जमाअ़त इताब में।

फ़ाक़ाकशी न कर दे कहीं ज़िन्दगी फ़ना,

सब लोग मुब्तिला  हैं  इसी इज़्तिराब में।

करता  रहा  ग़रूर सदा जिस  ग़िना पे  तू , 

क़ुदरत न कुछ है आज तेरे इस निसाब में।

क्या ये अ़ज़ाब है या कोई  इम्तिहान है ?, 

ये …

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 20, 2020 at 5:30pm — 5 Comments

भय- लघुकथा

दरवाजे पर दस्तक हुई और आवाज आयी 'दीदी, मैं आयी हूँ".

उसने आवाज पहचान लिया और दरवाजा खोल दिया. बाई अंदर आयी और नमस्ते करके खड़ी हो गयी.

"कैसी हो बाई, घर में सब ठीक है ना?, उसने पूछ तो लिया लेकिन उसे अपनी आवाज ही खोखली लग रही थी.

"सब ठीक ही है दीदी, क्या कहें?, बाई ने कुछ नहीं कहते हुए भी सब कुछ कह दिया.

"अच्छा ये लो पैसा, थोड़े ज्यादा पैसे भी दे दिया हैं. अपना ख्याल रखना", उसने बाई के हाथ में पैसे रख दिए.

बाई ने पैसे वैसे ही अपने छोटे से पर्स में रख लिए. वह पलट कर जाने लगी… Continue

Added by विनय कुमार on April 20, 2020 at 3:40pm — 4 Comments

ये साफ़ नहीं है कोरोना कितनी ज़ालिम बीमारी है( ८७ )

एक नज़्म-कोरोना

.

ये साफ़ नहीं है कोरोना कितनी ज़ालिम बीमारी है

मालूम नहीं है दुनिया को ये किसकी कार-गुज़ारी है

**

कुछ लोग अज़ाब इसे कहते कुछ कहते कि महामारी है

आसेब हक़ीक़त में अब ये सारी दुनिया पर भारी है

**

हल्के में मत लेना इसको ये रोग शरर भी शोला भी

बच्चों बुड्ढों की ख़ातिर यह क़ुदरत की आतिश-बारी है

**

हैरान परेशां कर डाला दुनिया के लोगों को इसने

घर को ज़िन्दान बनाना अब हर इंसां की…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 19, 2020 at 2:30pm — 6 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service